वह कई अंगारे सीने में दबाये बैठी थी ......बरसों यूँ ही सुलगती रही .....धीरे - धीरे अंगारे राख़ में बदलते गए .....आज भी वह जिस्म झाड़ती है तो दर्द के कई पत्ते गिर पड़ते हैं ....उन्हीं पत्तों से समेट कर लाई हूँ ये नज़्म ...." नसीब के पन्ने" .......
वह आग सीने में दबाये बैठी थी
जब तन्हाई जिस्म तोड़ती
वह खोल देती सारे
खिड़कियाँ, दरवाजे ...
खिड़की से बाहर बाहें फैला ..
कसकर भींच लेती अँधेरा
आसमान से टपक पड़ते
दो कतरे लहू के ......
वह फेंकने लगती
बरसों से इकठ्ठा की ख्वाहिशें
तोड़ डालती सारे ख्वाब
सपने मिट्टी में कब्र खोदते
दीवारों से उखड़ आई खामोशी
एक-एक कर ओढ़ने लगती
दर्द की चादर......
वह बाँध लेती...
जिस्म पर रस्सियाँ
बेतरतीब धड़कती धडकनों पर
लिख देती मिट्टी का नसीब
राख कहकहा लगाती
रात इक कोने में बैठी
पलटती रहती
चुपचाप
नसीब के पन्ने ........!!
52 comments:
लिख देती मिट्टी का नसीब
राख कहकहा लगाती
रात इक कोने में बैठी
पलटती रहती
चुपचाप
नसीब के पन्ने ........!
bahut hi sunder panktiyan...... dil ko chhoo gayin.......
behtareen shabdon ke saath ek behtareen kavita......
आपका लिखा तो हमेशा ही दिल को छू जाता है
एक एक शब्द असरदार है
सच में एक सुन्दर एहसास मिला आपकी इस रचना को पढ़कर।
किताबों के तो बहुत पढे थे....नसीब के ...आज पढ लिए..फ़र्क क्या है आज पता चला..
बस इससे ज्यादा कुछ कहने को नहीं है मेरे पास ..दो बार पढ चुका हूं ..अभी जाने कितनी बार ...........
बहुत सुंदर...कहकर मैं आपको उकसा रहा हूं और सुंदर लिखने के लिए, और दर्द समेटने के लिए। जब तक दर्द नहीं होगा तब तक ऐसी रचना लिखना मुमकिन। जब हीर लिखी वारिस शाह ने तो उसने भी दिल की खाई तब जाकर हीर लिख पाए। शिव बटालवी को भी दर्द ने बनाया कवि। इसलिए मैं उसको उकसा कह रहा हूं। क्योंकि इससे सुंदर का मतलब और दर्द और दर्द का मतलब इससे भी ज्यादा दुखी होकर दुख में रमकर लिखना होगा।
रात इक कोने में बैठी
पलटती रहती
चुपचाप
नसीब के पन्ने ........!!
बहुत सुंदर-आगे कुलवंत ने मेरे दिल की बात कह दी है-आभार
पलटती रहती
चुपचाप
नसीब के पन्ने ...
बहुत ही गहरे शब्दों के साथ भावमय प्रस्तुति, बधाई ।
.वह आग सीने में दबाये बैठी थी जब तन्हाई जिस्म तोड़ती वह खोल देती सारे खिड़कियाँ, दरवाजे ...खिड़की से बाहर बाहें फैला ..कसकर भींच लेती अँधेरा आसमान से टपक पड़ते दो कतरे लहू के .
ak alg sa sukun deti najm .
jha sare apne bemani ho jate hai
bahut achhi rachna
aah nikal gayi ........sare jahan ka dard samet diya hai nazm mein.........kis kis shabd ki tarif karun.........dard hi dard hai ......dard hi pal raha hai aur dard hi jhad raha hai.........uff!kuch nhi kaha ja raha ab.
दर्द को समेटते उम्र गुजरती है यूँही
कही गहरे ह्रदय को इस तरह स्पर्श कर आती है आपकी हर रचना की अपनी
कही सी लगती है ...!!
behad Khubsurat naZm..badhayi
बहुत लाजवाब और खूबसूरत रचना.
रामराम.
बरसों से इकठ्ठा की ख्वाहिशें
तोड़ डालती सारे ख्वाब
सपने मिट्टी में कब्र खोदते
दीवारों से उखड़ आई खामोशी
एक-एक कर ओढ़ने लगती
दर्द की चादर......
अतिसुन्दर.
जब कभी गहरे मे कोई कसक महसूस होती है तो इसी तरह शब्दों मे भी वह नजर आने लगती है.....जैसी आपकी यह रचना है...बहुत अच्छी लगी मन को छूती हुई...यह रचना..
waah!!! Nahoot khoob likha hai...Antim panktiyaan hriday ke kaafi kaafi kareeb payee maine...
itana dard samete hai aapakee ye nazmki pad kar sabhee bhav-vibhor ho gae hai . badhai
बेतरतीब धड़कती धडकनों पर
लिख देती मिट्टी का नसीब
राख कहकहा लगाती
रात इक कोने में बैठी
पलटती रहती
चुपचाप
नसीब के पन्ने .
उफ़ ......दिल को छू लिया इन पंक्तियों ने....और क्या कहूँ .बेहद प्रभावशाली रचना है.
कहाँ कहाँ से जुटाया है इतने दर्द भरे शब्द!!!!
हरकीरत जी, नमस्कार,
एक औरत की व्यथा को शब्दों में ढालना तो कोई आपसे सीखे, लाज़वाब! आपकी अगली कविता का हमें इंतज़ार रहेगा!
बेहद खूबसूरत और प्रभावशाली रचना...
behtareen alfaaz behtareen dhang se sajaye hue.......
वह कई अंगारे सीने में दबाये बैठी थी---
शुरू की पंक्तियों में ही कहर धा दिया जी.
कितनी कसक है कविता में.
बहुत खूब.
लिख देती मिट्टी का नसीब
राख कहकहा लगाती
रात इक कोने में बैठी
पलटती रहती
चुपचाप
नसीब के पन्ने ........! bahut marmic aur sunder kavita-dr minocha
सुन्दर+अतिसुन्दर+सुन्दरतम|रात+माटी हो या राख अपने में
दुःख+कष्ट+विछोहसमेटे रहते हैं|
इसीदुःख की अपनी ही सुन्दरता है|
harkeerat ji, aapki kavita anupam hone ke saath hamare dimaag ki exercise bhi karti hai, dard se bharpoor rachna. badhai.
gazab !
दर्द के पन्ने कई बार पलटे हैं यहाँ आकर ... और पाया उसके रूप अनेक और रंग अनगिनत ...
dard ke inn patton mein sachmuch kisi kaa jism aur rooh lipti hui hai aisaa lagaa.... yeh dard jald hi aazad kar de use apni pakad se...
aakhiri ganth jo aapne lagaye hain uska girah shayad kabhi naa khule mere manaspatal se mam.... aapki bhashaa me oye hoye... kamaal kar diyaa bas kamaal kar diyaa yahi kahunga... badhaayee kubul karen
arsh
सच मे कुदरत भी खुद के होने पर शर्मसार हो जाती होगी..जब देखती होगी इन पन्नों की बेदर्द इबारत को..और नसीब के यह पन्ने क्या सील नही जाते होंगे..रात के बेसाख्ता आँसुओं से..
खिड़की से बाहर बाहें फैला
..कसकर भींच लेती अँधेरा
बस बेचैनी..और कुछ नही.....
आपके ब्लॉग पर देरी से आ रहा हूँ.पर आज एक एक कर सब कविताएँ पढ़ डाली.रितिका,मोहब्बत और नसीब के पन्ने.आपके शब्द स्तब्ध कर देते है.मैं आपकी रचनाओं का प्रशंसक होकर गोरवान्वित महसूस कर रहा हूँ.
dil ko chu lene waali rachan hai...
accha laga padh kar
आपकी नज्में गहरा असर छोड़ती हैं और बेहद मुतासिर करती हैं मुझे !
'वह फेंकने लगती
बरसों से इकठ्ठा की ख्वाहिशें
तोड़ डालती सारे ख्वाब
सपने मिट्टी में कब्र खोदते
दीवारों से उखड़ आई खामोशी
एक-एक कर ओढ़ने लगती
दर्द की चादर.....'
रोम-रोम में सिहरन पैदा करती पंक्तियाँ ! सोचता हूँ, पीडा क्यों नहीं मांगती आपसे पनाह ?
साभिवादन--आ.
harkirat ji, maine exerciseki baat positive men kahi hai anyatha na len, maine kavita ka dard bahut gahre tak mehsoos kiya hai
लिख देती मिट्टी का नसीब
राख कहकहा लगाती
रात इक कोने में बैठी
पलटती रहती
चुपचाप
नसीब के पन्ने ........! ye to behatareen panktian hain, mere sher ko naya roop dene ke liye dhanyawaad.
दर्द की चादर...
नसीब के पन्ने...
पूरी ज़िंदगी का फ़लसफ़ा है इसमें...
जय हिंद...
''जिस्म पर रस्सियाँ बेतरतीब धड़कती धडकनों पर लिख देती मिट्टी का नसीब राख कहकहा लगाती रात इक कोने में बैठी पलटती रहती चुपचाप नसीब के पन्ने''.............!!
जब इतने सारे जख्म बे तरतीब से जिस्म पर पडे हो तो ................स्याह राते तपती रेगिस्तान मे पानी की खोज सी लगती है ...है ना?
दर्द के कब्र पर दफनायी गयी हसरते
स्याह रातो को
इंसानी हरकत करती
दिख जाया करती है ,
............
मेरी भी राते नसीब के पन्ने उलते दिख जाती है ...........
तब मै ऐसी ही नज़्मे पढ लिया करता हूँ!!!!!!
वह आग सीने में दबाए बैठी थी
जब तन्हाई ज़िस्म तोड़ती
वह खोल देती सारी
खिड़कियाँ, दरवाजे....
वाह!
बेहतरी शुरूवात
शानदार अंत
आपके शब्दों से दर्द को जुबान मिल जाती है नही तो दर्द बस दर्द बनकर दफन हो जाते है। कौन बात करना चाहता है इन दर्द की....... सच आप कमाल की लिखती है।
वह बाँध लेती...
जिस्म पर रस्सियाँ
बेतरतीब धड़कती धडकनों पर
लिख देती मिट्टी का नसीब
राख कहकहा लगाती
रात इक कोने में बैठी
पलटती रहती
चुपचाप
नसीब के पन्ने ........!!
दर्द की dastaan है आपकी रचना ....... बहुत ही gahre दर्द का ehsaas rahta है आपकी kavitaaon में ...... दिल में utar जाती हैं seedhe.........
मैंने कभी कहीं लिखा था- याद आ गया...
दर्द की चादर......बहुत बड़ी है
बहुत ही छोटे मेरे पांव।
ह फेंकने लगती
बरसों से इकठ्ठा की ख्वाहिशें
तोड़ डालती सारे ख्वाब
सपने मिट्टी में कब्र खोदते
दीवारों से उखड़ आई खामोशी
एक-एक कर ओढ़ने लगती
दर्द की चादर......
वाह! कितनी खूबी से आप शब्द दे देती हैं इन भावों को..एक कहानी सी कह जाती है पूरी कविता.
लिख देती मिट्टी का नसीब
राख कहकहा लगाती
रात इक कोने में बैठी
पलटती रहती
चुपचाप
नसीब के पन्ने ........!
सुन्दर एहसास ,असरदार,भावमय प्रस्तुति, बधाई ।
दिल में भरे इस अनचीन्ही सी छटपटाहट को बड़ी खूबसूरती से शब्दों का जामा पहनाया है.....सुन्दर कविता
क्या कहने !
दर्द के रूप का लाजवाब चित्र !
अरे वाह आप ने दर्द को भी बहुत सुंदर रुप दे दिया इस कविता मै.
धन्यवाद
bahut hi behtareen rachna hai ..
नज़्में
हाय आपकी नज़्में, जैसे दिल के दर्द का हासिल आपने ही समझा हो.
कल से दो-तीन दफ़ा आकर पढ़ चुका हूं। कुछ कहने लायक शेष नहीं रहा जाता है हर बार...
हर बार, हर नज़्म क्यों कुछ उचटता सा अहसास दिलाता है आपका लिक्खा..? क्यों?? "कहकहा लगाती रात इक कोने में बैठी पलटती रहती चुपचाप नसीब के पन्ने ........!!" शब्द चाहे जो भी हों, जैसे हर नज़्म ये ही भाव लिये खत्म होती है...
कवि का दुख, कवि का दर्द शब्दों के माध्यम से इस कदर उभर आता है कि लेखनी के मायावी होने का भ्रम होने लगता है...कई बार, हर बार!
एक खास मनस्थिति मे ले जाती है यह नज़्म
वह बाँध लेती...
जिस्म पर रस्सियाँ
बेतरतीब धड़कती धडकनों पर
लिख देती मिट्टी का नसीब
राख कहकहा लगाती
रात इक कोने में बैठी
पलटती रहती
चुपचाप
नसीब के पन्ने ........!!
देर से आने के लिए मुआफी .......कभी कभी किसी का लिखा पढ़ उससे बात करने का मन होता है ,....ये नज़्म कुछ वैसी सी है ...
दर्द आपकी खासियत है और आपके अल्फाज उसको बहुत ही असरदार बनाते हैं जो दिलमें कहीं अंदर तक जाकर सालता रहता है ।
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