Thursday, October 24, 2013

करवा चौथ पर दो नज्में ……

करवा चौथ पर दो नज्में  ……
(जो व्यस्तता के कारण उस दिन पोस्ट नहीं कर पाई )

(1)
एक कसक,एक बेचैनी
एक बेनाम सा दर्द
कुछ लिखा है वर्क दर वर्क
नमी में डूबे लफ्ज़
यादों के नगमें सुनाते
ख़ामोशी से उतर आये हैं
 थाली में …
चाँद तब भी था
चाँद  आज भी है
तन्हाइयाँ तब भी थीं
दूरियाँ अब भी हैं
पर दिलों में कुछ तो है
जो बांधे हुए है अब तक
आज के दिन कहीं भीतर
कुछ सालता है  …।

(२)

आज की रात
उफ़क पर निकल आया है चाँद
 तेरी सलामती का ….
इश्क का उड़ता पंछी
आ बैठा है मुंडेर पर
आँखों में उतर आई है
बरसों की दबी मोहब्बत
दीवानगी में चुपके से
चूम लेती हूँ तस्वीर तुम्हारी
 लम्बी उम्र की
दुआओं के साथ …

Monday, October 14, 2013

पहला ख़त …

पहला ख़त  …

क्या ऐसी ही
होती है मुहब्बत … ?
ख्याल कागज़ पर
लिखने लगते हैं नाम
रंग आखों में उतर आता है
ज़िन्दगी चुपके -चुपके
 लिखने लगती है नज़्म  ….

आँखों की बेचैनियाँ
खूबसूरती के सबसे सुंदर शब्द बन
मुस्कुराने लगती  हैं
रात बादलों की छाती पर
ओस कीबूंदें बन लिखती है गीत
ख़्वाबों  में कोई सुना जाता है
बहते झरने की मीठी कल -कल
उम्र घूँट -घूँट पी जाती है
दीवानगी की सारी हदें  ….

आज मैंने
सीने  में छुपा ली है
सोहणी महिवाल की तस्वीर
चनाब आतुर है कोई घड़ा
उतर आये पानी में
आज मेरी कलम के सारे शब्द
टूटे तारे से मुराद मांगने
आसमां की ओर निकल पड़े है   ….

बर्फ सी भीगी हवा
उड़ा ले गई है छाती से दुपट्टा मेरा
लोक गीतों का कोई स्वर
झड़ने लगा है हर सिंगार बन
चलो आज की रात
झील की गहराई में उतार दें
चाँद की सारी हँसी
और लिख दें एक दुसरे के नाम
मुहब्बत का पहला ख़त  …. !

हीर ….