२६ जनवरी इमरोज़ के जन्मदिन पर …
आज का ही दिन था
जब रंगों से खेलता वह
माँ की कोख से उतर आया था
और ज़िन्दगी भर रंग भरता रहा
मुहब्बत के अक्षरों में ....
कभी मुहब्बत का पंछी बन गीत गाता
कभी दरख्तों के नीचे हाथों में हाथ लिए
राँझा हो जाता ....
दुनिया देखने के लिए
कमरे के ही सात चक्कर लगा
मुहब्बत के सामने खड़ा हो मुस्कुरा उठता ,
मैं दुनिया देख आया अमृता
तेरे सिवाय कहीं कुछ नहीं
मेरा कैनवस भी तू है
और मेरे रंग भी ....
आ इक दूजे के ख्यालों में
रंग भर लें और एक हो जाएं
वह आज का ही दिन था
जब इक सोच ने पैदा होकर
मज़हबों का दरवाजे की सांकल तोड़
मुहब्बत की नज़्म लिखी थी
इक आज़ाद नज़्म
जो उम्र , जाति के बंधनों से परे
मुहब्बत के मज़हब पर खड़ी
हवाओं से पूछती बता तेरी जात क्या है
खुशबू की जात क्या है
पानी की जात क्या है
वही मेरी जात है …
वह आज ही का दिन था इमरोज़
जब तूने जन्म लिया था
और सोच के एक नए रंग को जन्म दिया था
और वह था सिर्फ मुहब्बत का रंग
सिर्फ मुहब्बत का रंग ....
हीर ....
आज का ही दिन था
जब रंगों से खेलता वह
माँ की कोख से उतर आया था
और ज़िन्दगी भर रंग भरता रहा
मुहब्बत के अक्षरों में ....
कभी मुहब्बत का पंछी बन गीत गाता
कभी दरख्तों के नीचे हाथों में हाथ लिए
राँझा हो जाता ....
दुनिया देखने के लिए
कमरे के ही सात चक्कर लगा
मुहब्बत के सामने खड़ा हो मुस्कुरा उठता ,
मैं दुनिया देख आया अमृता
तेरे सिवाय कहीं कुछ नहीं
मेरा कैनवस भी तू है
और मेरे रंग भी ....
आ इक दूजे के ख्यालों में
रंग भर लें और एक हो जाएं
वह आज का ही दिन था
जब इक सोच ने पैदा होकर
मज़हबों का दरवाजे की सांकल तोड़
मुहब्बत की नज़्म लिखी थी
इक आज़ाद नज़्म
जो उम्र , जाति के बंधनों से परे
मुहब्बत के मज़हब पर खड़ी
हवाओं से पूछती बता तेरी जात क्या है
खुशबू की जात क्या है
पानी की जात क्या है
वही मेरी जात है …
वह आज ही का दिन था इमरोज़
जब तूने जन्म लिया था
और सोच के एक नए रंग को जन्म दिया था
और वह था सिर्फ मुहब्बत का रंग
सिर्फ मुहब्बत का रंग ....
हीर ....