इक कोशिश ....
ज़ख़्मी जुबान
मिटटी में नाम लिखती है
कोई जंजीरों की कड़ियाँ तोड़ता है
दर्द की नज़्म लौट आती है समंदर से
दरख्त फूल छिड़क कर
मुहब्बत का ऐलान करते हैं
मैं रेत से एक बुत तैयार करती हूँ
और हवाओं से कुछ सुर्ख रंग चुराकर
रख देती हूँ उसकी हथेली पे
मुझे उम्मीद है
इस बार उसकी आँखों से
आंसू जरुर बहेंगे ....!!
हरकीरत हीर ..
ज़ख़्मी जुबान
मिटटी में नाम लिखती है
कोई जंजीरों की कड़ियाँ तोड़ता है
दर्द की नज़्म लौट आती है समंदर से
दरख्त फूल छिड़क कर
मुहब्बत का ऐलान करते हैं
मैं रेत से एक बुत तैयार करती हूँ
और हवाओं से कुछ सुर्ख रंग चुराकर
रख देती हूँ उसकी हथेली पे
मुझे उम्मीद है
इस बार उसकी आँखों से
आंसू जरुर बहेंगे ....!!
हरकीरत हीर ..