Friday, December 31, 2010

अलविदा....तोहफ़ा और... दर्द की महक ....

ज वर्ष का आखिरी दिन है .....नववर्ष द्वार पर है ....सोचती हूँ क्या खोया ...क्या पाया ..?....तो पाया का पलड़ा जरा भारी लगता है .....आप सब का स्नेह ...प्यार ...मित्रता ....कई तोहफे .. ....सम्मान .....तो शुक्रिया तेरा वर्ष २०१० ...अलविदा .....

इस अलविदा और स्वागत के साथ ....कुछ शब्दचित्र ....

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अलविदा .....

मैंने.....
उसके चेहरे से
चादर उठाकर देखा
उसके चेहरे पर खरोंचे थीं
सीने पर गोलियों के निशां
और पाँव ज़ख़्मी थे ......
मैंने नम आँखों से
हाथों में पकड़े फूल
उसके सीने पर रखे
और कहा .....
अलविदा वर्ष .....!!

()

तोहफ़ा ......

सने ...
जाते हुए गठरी में
अपना सारा समान बाँध लिया
मैंने धीमे से कहा -
कुछ तो छोड़ जाओ मेरे लिए
जिससे तुम्हें याद कर सकूँ ....?
उसने गठरी खोली ...
और कुछ खुशनुमा यादें निकाल
मेरी हथेली पे रख दीं
मैंने देखा उनमें ....
राजेन्द्र जी का दिया
हीर को तोहफा भी था .....!!


()

स्वागत .....

दर्द से कराहता
द्वार पर औंधा पड़ा था
मैंने देखा उसके हाथों में
इक पर्ची थी .....
जिस पर लिखा था -
'' स्वागत है मित्र ...''
मैंने उसके हाथों से पर्ची ली
और नववर्ष को
पकड़ा
दी .....!!

()

दर्द की महक ....

सने हौले से
द्वार पे दस्तक दी ...
मैंने दरवाज़ा खोला
देखा ...तो नववर्ष था
मैंने कहा -तुम्हें देने के लिए
मेरे पास कुछ नहीं है वर्ष
वह मुस्कुरा कर बोला -
मैं तुमसे कुछ लेने नहीं
देने आया हूँ हीर ....
मैंने हैरानी से पूछा -
क्या ......?
वह बोला -
'दर्द की महक' ....!!

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ईमान के बीज .....

....
खुश था ,बेहद खुश
आँखों में हजारों सपने ,
ख्वाहिशें , उम्मीदें , अरमान लिए
दौड़ता चला आया ....
राह में बीता वर्ष पड़ा था
उसने पूछा- 'क्या हुआ मित्र...?'
वह बोला - ताउम्र झूठ,फरेब,
भ्रष्टाचारी के दाने खाते-खाते
आँते ज़ख़्मी हो गईं हैं ....
कुछ बीज ईमान के बचा रखे हैं
इन्हें तुम ले जाओ ...
इक इल्तिज़ा है ...
इस बार इन्हें जरुर
बो देना .......!!


Sunday, December 19, 2010

आखिरी हँसी ...जिब्ह होते सपने.... और कब्र का सच .......

आज मन बहुत उदास है ....पोस्ट डालने का मन भी था ...पर लगा कि आप सब इंतजार में होंगे ... पहली दो नज्में पंजाबी में लिखी थीं जिसका यहाँ हिंदी अनुवाद है .....और बाकी कुछ उदास मन की अभिव्यक्ति ....शायद इस बार मैं सबके ब्लॉग पे पाऊँ .....


आखिरी हँसी ......

कविता ने ...
उसकी ओर आखिरी बार
हसरत भरी आँखों से देखा
नीम-गुलाबी होंठ फड़ड़ाये
अश्कों से भरी पलकें ऊपर उठीं
और धीमें से मुस्कुराकर बोली ......

आज तेरे घर.......
ज़िन्दगी की आखिरी हँसी
हँस चली हूँ ...... !!

()

मिलन .....

मुहब्बत से भरी
इक नज़्म .....
इश्क़ के कलीरे* बांधे
हौले-हौले सीढियां उतर
तारों की राह चल पड़ी ....
खौफज़दा रात ....
कोयलों पर पानी
डालती रही .....!!


कलीरे -सूखे नारियल और कौड़ियों से से बने कलीरे जो शादी के वक़्त लड़की को कलाइयों में बांधे जाते हैं

()

जिब्ह होते सपने .....

इक खामोश शमा
चुपचाप जलती है
मैं पलटकर ....
आईने में देखती हूँ
चेहरे पर सूखे गजरे की
झड़ती पत्तियों की सी
वीरानी है .......
जिब्ह होते सपनों का
आर्त्तनाद है ......

मन किसी
गुमसुदा व्यक्ति की तरह
औंधा पड़ा है ....!!

()

अतिक्रम .....

जब तक ...
तुम्हारे हाथों में
जाल है , पिंजरे हैं , माचिस है
मैं समुन्द्र में रहूँ या घरों में ...

रहूंगी तो तुम्हारे
खौफ़ तले .....!!

()

कब्र का सच ....

इक अजीब सी
उन्मत्त कामना लिए
मैं अनिमेष सी
अपनी ही कब्र पर बैठी
रातभर लिखती रही
अपनी मृत्यु की
तारीख .....!!

Thursday, December 9, 2010

सौतेली...अनचाहा गर्भ ....और ..परिवर्तन ..

(१)

पिछले दिनों इक काम वाली लड़की ने जो अपनी दास्ताँ सुनाई तो कलम खामोश रह सकी .....
पहली नज़्म उसी के मनोभाव हैं ......दूसरी नज़्म अपना परिचय खुद देती है ....
वक़्त बदलता है ...परिवर्तन होते हैं मकानों की जगह अब बहुमंजिला इमारतें ली रही हैं ....
और ये इमारतें .....?
नाकामियों का सफ़र तय करते लोगों के काम आती हैं ....

सौतेली .....

तक मेरी ज़िन्दगी में
एक वही तो थी ....
जिसने मुझे
अपनी नज़र में बनाये रखा ...
रोज़ ज़िन्दगी के ...
आधे से ज्यादा कामों में मैं
उसकी सोच में बसी होती
कभी कपड़ों के ढेर में ...
कभी बर्तनों के अम्बार में ...
कभी चूल्हे की सिसकती आग में...
कभी उसकी दुखती पीठ पर
फिरती मेरी अँगुलियों में ...
तो कभी बिस्तर पर फैले
फटे कम्बल में से कंपकंपाती
ठण्ड में खनकती उसकी हँसी में
वह हर पल मेरे साथ होती .....

मेरी अपनी माँ तो .....
कबका जीना बंद कर चुकी थी .....!!

()

अनचाहा गर्भ ....

द्धिम बूढी लालटेन
अँधेरे का सीना चीर
देखने का असफल प्रयास करती है
तम से आवृत कोई स्त्री ...
अपनी गोद से ...
कुछ ,धीमे से नीचे रखती है
और थके क़दमों से, लौट जाती है
अँधेरी रात लिखने लगती है
अनचाहे गर्भ का भविष्य ...

मन में एक साथ ...
कई चिताएं जलने लगती हैं  .....!!

()

परिवर्तन .....

खुला दरवाजा
अधखुली खिड़कियाँ ...
उखड़ा पलस्तर ...
बरसों से कोई परिचित सी पदचाप
सुनने की आस में .....
इक पुराना जीर्ण, उपेक्षित सा मकां
आहिस्ता-आहिस्ता खंडहर हो गया है
शायद इसके गिरने के बाद यहाँ ....
एक बहुमंजिला इमारत बन जाये .....

मैं अखबार उठा पढ़ने लगती हूँ ...
इक बहुमंजिला इमारत से कूदकर
इक स्त्री ने खुदकशी कर ली ......!!