Thursday, August 30, 2012

३१ अगस्त ....

३१ अगस्त ....

 नींव हिली ....
देह थरथराई ....
नीले पड़े होंठों पर
इक फीकी सी मुस्कराहट थी ....
''इक नज़्म का जन्म हुआ है ''


आज उम्र की कंघी का
इक और टांका टूट गया .......!!

Tuesday, August 21, 2012

तेरी और मेरी ईद .....



अव्वल अल्ला नूर उपाया ,कुदरत के सब बंदे.
एक नूर ते सब जग उपज्या ,कौन भले कौन मंदे ...


जी हाँ सारे बन्दे उसी रब्ब की  ,उसी खुदा की ,  उसी एक ईश्वर की देन  हैं . ईश्वर को तो हमने  बाँट दिया है अलग अलग धर्मों में .पर सन्देश सभी का एक ही है 'प्रेम का' ...आज के शुभ अवसर पर हमारा मकसद भी एक ही होना चाहिए ....''प्रेम बाँटना ...और प्रेम से रहना ''
     ईद का मतलब ही 
होता है खुशी, हर्ष, उल्लास। फितर या फितरा एक तरह के दान को कहते हैं। इस तरह ईद-उल-फितर का मतलब है दान से मिलने वाली खुशी।
ईद सही माने में एक प्रकार का इनाम है, पुरस्कार है जो अल्लाह की ओर से उन सभी लोगों के लिए है जो एक महीने का व्रत रखते हैं और प्रात: से संध्या तक बगैर अन्न और पानी ग्रहण किए अल्लाह की इबादत में लगे रहते हैं। इस महीने की इबादत भी कुछ अलग और कठिन होती है, जैसे कि खूब सुबह यानी पौ फटने से भी काफी पहले उठकर समय पूर्व सेहरी खाना और अपनी प्रात: की नींद की आहुति देना। रात्रि में विशेष रूप से नमाज तरावी पढ़ना। कुरान का अतिरिक्त पठन और पाठन करना। अन्त के दिनों में शब-ए-कदर को विशेष नमाज पढ़ना। इतनी कठिन इबादत के पश्चात जो खुशी मनाने का एक दिन दिया जाता है- वह ईद है।
ईद या ईद-उल-फितर मीठी ईद को कहते हैं। इस दिन त्योहार की खुशी दूध और सूखे मेवों से बनी मीठी सेवइयों के साथ मनाते हैं।  ईद-उल-फितर पूरी तरह से निरामिष त्यौहार  है

  यह ईद जो ईद-उल-फितर के नाम से जानी जाती है- इसे मनाने से पहले फितरा और जकात का निकालना अनिवार्य होता है।
फितरा अनाथ, मालूम और गरीबों के लिए होती है, जिससे वे लोग भी अपनी खुशियों का आनन्द ले सकें तथा अपना जीवन सुखी बना सकें। फितरे और जकात की अदायगी के बगैर रमजान अधूरा माना जाता है।

इस्लाम में कहा गया है कि सबसे पहले अपने पड़ोस में देखो कि कौन जरूरतमंद है, फिर मोहल्ले में, फिर रिश्तेदारों में, फिर अपने शहर में, उसके बाद किसी और की जरूरतों को पूरा करने की कोशिश करो। फितरा प्रत्येक उन रोजेदारों पर अनिवार्य है
.

जकात दान करना होता है, बशर्ते दानकर्ता कर्जदार न हो, अर्थात सम्पन्न हो। इस्लाम में दान पर बल दिया गया है। दान की राशि निर्धन, अपंग, विकलांग अथवा शारीरिक रूप से चैलेंजों को देना अधिक अच्छा माना जाता है। सर्वप्रथम अपने ऐसे पड़ोस व सगे संबंधियों को देना अच्छा और उचित माना गया है, जो जरूरतमंद और मजबूर हैं।
ईद के दिन लोग सुबह-सुबह उठकर स्नानादि करके नमाज पढ़ने जाते हैं. जाते समय सफेद कपड़े पहनना और इत्र लगाना शुभ माना जाता है. सफेद रंग सादगी और पवित्रता की निशानी माना जाता है. नमाज पढ़ने से पहले खजूर खाने का भी रिवाज है. नमाज पढ़ने से पहले गरीबों में दान या जकात बांटा जाता है.


नमाज अदा करने के बाद सभी एक-दूसरे से गले मिलते हैं और ईद की बधाई देते हैं. ईद पर मीठी सेवइयां बनाई जाती हैं जिसे खिलाकर लोग अपने रिश्तों की कड़वाहट को खत्म करते हैं. इस दिन “ईदी” देने का भी रिवाज है. हर बड़ा अपने से छोटे को अपनी हैसियत के हिसाब से कुछ रुपए देता है, इसी रकम को ईदी कहते हैं. जब दोस्तों और रिश्तेदारों के घर जाते हैं तो वहां भी बच्चों को ईदी दी जाती है।
ईद खुशियां और भाईचारे का पैग़ाम लेकर आती है, इस दिन दुश्मनों को भी सलाम किया जाता है यानि सलामती की दुआ दी जाती है और प्यार से गले मिलकर गिले-शिकवे दूर किए जाते हैं।
तो आइये आज के दिन हम सब गले मिल के एक हो जायें,  अपने गिले शिकवे दुश्मनियाँ भुला मोहब्बत का धर्म अपनाएं औए एक वतन हो जायें ...........


तेरी मेरी ईद .....

जब ....
तेरी
मुहब्बत का
चाँद चढ़ा .....
कई सारी नज्में 

उतर आईं झोली में
तेरे  ख्यालों की  भी
और मेरे ख्यालों की भी
ईद हो गई .....


(ये पोस्ट मैं ईद से पहले ही लिख चुकी थी ...ईद पर यहाँ के समाचार पत्रों में प्रकाशित भी हुई पर व्यस्तता के कारण मैं पोस्ट को ब्लॉग पर डाल ही न पाई .....तो देर से ही सही ईद मुबारक ......)
 

Wednesday, August 15, 2012

आज़ादी से कुछ सवाल ......

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ज़ादी पर कुछ लिखना चाहा तो जेहन में पिछले महीने की घटी घटनाएं अभी ताजा थीं ....घटा तो यहाँ बहुत कुछ कोकराझार और धुबड़ी  में जो  हजारों लोग बेघर बैठे हैं उनके लिए क्या आज़ादी ....? 9 जुलाई को  जी.एस.रोड में  घटी घटना जहां इक लड़की की  इज्ज़त 20 लड़कों द्वारा तार-तार कर दी जाती है......२२ जुलाई २०१२ राजस्थान के उदयपुर जिले में   एक शर्मसार कर देने वाले घटनाक्रम में युवती को  प्रेम करने के जुर्म में उसके प्रेमी के साथ उसे पूरे गांव के सामने निर्वस्त कर पीटा  जाता है और नंगा कर पेड़ से बांधा दिया  जाता है .....१६ जुलाई २०१२ इंदौर में  एक महिला पिछले चार सालों से पति द्वारा किये गए असहनीय कृत्य को अपने सीने में छुपाये ख़ुदकुशी कर  लेती है.... शंकालु पति ने अमानवीयता की सारी हदें पार करते हुए पत्नी के गुप्तांग पर ताला लगा  रखा  था । इसका खुलासा  तब हुआ जब अस्पताल में डॉक्टरों ने जांच की .....ऐसी घटनाओं को देखते हुए  सोचती हूँ  कि हम कितने स्वतंत्र हुए हैं ......? या महिलाओं की स्वतंत्रता को लेकर क्या स्तिथि है ......? क्या आज़ादी का गरीब तबके में कोई महत्त्व है ...? क्या आज़ादी सिर्फ बड़े लोगों का ज़श्न बन कर नहीं रह गई है .....? इस बार सोचा यही सवाल आज़ादी से क्यों न किये जायें .....

आज़ादी पर मेरे कुछ हाइकू देखें  यहाँ .......

आज़ादी से कुछ सवाल ......


रुको ....!
जरा ठहरो अय आज़ादी .....
तुम्हें केवल ज़श्न मनाने के लिए
हमने नहीं दिया था तिरंगा
इसे फहराने से पहले तुम्हें
देने होंगे मेरे कुछ सवालों के जवाब ....

उस दिन तुम कहाँ थी
जिस दिन यहाँ बीस लोग बीच सड़क पर
उतार रहे थे मेरे कपड़े ....?
या फिर उस दिन ....
जिस दिन प्रेम करने के जुर्म में
मुझे नंगा कर लटका दिया गया था
दरख़्त से ....?
या उस दिन ....
जब मेरी खुदकशी के बाद तुमने
खोला था ताला मेरे गुप्तांग से ...?
या फिर उस दिन ...
जिस दिन नन्हीं सी मेरी लाश
तुम्हें मिली थी कूड़ेदान में ...?

मौन क्यों हो ...?
लगा लो झूठ का कितना ही आवरण भले
पर यह सच है ....
तुम  छिपी बैठी हो सिर्फ और सिर्फ
अमीरजादों और नेताओं की टोपियों तले
कभी किसी गरीब  की झोंपड़ी में झांकना
तुम  टंगी मिलोगी किसी
सड़े हुए खाली थैले में
या किसी टूटी खाट  पर
 ज़िन्दगी की आखिरी साँसे गिनती
फुटपाथों पर कूड़े के ढेर में देखना
कटे अंगों की चीखों में
जहां तुम्हें जन्म देने का भी मुझे
अधिकार नहीं ....

आज़ादी ...
जाओ लौट जाओ ,पहले
पाक और साफ कर लो अपनी आन
 खोल दो मेरे बंधन
जोड़ दो मेरे कटे पंख ...
कर दो मुझे भी स्वतंत्र
फिर हम और तुम मिल कर गायेंगे
आसमां में ....
जन ,गण  मन का
पावन गान ....!!