सरेआम नाबालिग लड़की से बदसलूकी मामले का मुख्य आरोपी अमर ज्योति कलिता जिसपर असम पुलिस ने सुराग देने वाले को एक लाख रुपये का इनाम देने की घोषणा की थी और जिसका आज 15 दिन बाद 24 जुलाई को वाराणसी (उत्तर प्रदेश) में होने का पता चला .है ...अमरज्योति राज्य सरकार की आईटी एजेंसी एमट्रॉन में काम करता था । घटना के बाद कंपनी ने इसे नौकरी से निकाल दिया. इस घटना को शूट करने वाले टीवी चैनल के पत्रकार गौरव ज्योति नियोग ने अपनी नौकरी से इस्तीफा दे दियाहै ......
16 जुलाई यहाँ के हिंदी समाचार-पत्र 'दैनिक पूर्वोदय' में छपी यही रचनायें ......
http://www.youtube.com/watch?v=LP0rO-BdCQM&feature=player_detailpage —
यहाँ देखें इस घटना से जुड़ा विडिओ ......
गुवाहाटी ने लगाई अपने चेहरे पर एक और कालिख .....9 जुलाई हमारे घर से करीब एक किलोमीटर दूर जी.एस.रोड में ....बीच सड़क पर .... इक लड़की जी इज्ज़त 20 लड़कों द्वारा तार-तार कर दी जाती है (देखिये ऊपर दिए गए लिंक में ) और लोग किनारे खड़े तमाशा देखते रहे ...कहाँ हैं वो लड़कियों को हक़ दिलाने की बातें करने वाले ..? .कहाँ हैं ..''लड़कियों को बचाव'' की दुहाई देने वाले .....? इतने अधिकारों के बाद भी कितनी सुरक्षित हो पायीं हैं लडकियां ....? है कोई जवाब आपके पास .....? यह तस्वीर देख मैं तो शर्म से पानी-पानी हूँ .....आपका क्या कहना है ......
अय औरत अब उतर आओ सड़कों पर .......
(१)
अय औरत ....
वक़्त आ गया है
उतार दो ये शर्मो-ह्या का लिबास
और उतर आओ सड़कों पर
अकेली नहीं हो तुम
देखो संग हैं तुम्हारे
आज हजारों हाथ ...
बस एक बार....
एक बार तुम ऊँची तो करो
हक़ की खातिर
अपनी आवाज़ ......!
(२)
लो नोच लो
मेरा ज़िस्म
उतार दो मेरे कपड़े ...
कर दो नंगा सरे- बाज़ार
मैं वही औरत हूँ
जिसने तुझे जन्म दिया ......!!
(३)
इज्जत के नेजे पर
दाग दिया जाता है कभी ....
कभी किसी कोठे से
निकलती है चीख मेरी
कभी बीच सड़क पर
मसल दिए जाते हैं मेरे अरमान
तुम पुरुष हो ...?
या हो हैवान ....?
(४)
देख लिया ...
नोचकर मेरा ज़िस्म ....?
अब तुम देखना
मेरे ज़िस्म से निकलती आग
जो भस्म कर देगी
तुम्हारी अँगुलियों से
उठती हर इक भूख को
और भूखे रह जाओगे तुम
किसी बंद कोठरी में
बरसों तलक
सलाखों के पीछे ....
(५)
आज़ादी ....
कहाँ हो तुम ....?
बस एक दिन फहराने
आ जाती हो तिरंगा ...?
देख.यहाँ तेरी जननी को
कैसे बीच चौराहे पर
कर दिया जाता है नंगा ....!!
(६)
मैं फिर ..
तारीख नहीं बनना चाहती
जो ज़िन्दगी की दास्ताँ लिखती रहूँ उम्र भर
या जन्म होते ही
फिर कोई माँ दबा दे मेरा गला
बेटी..बेटी..बेटी....
अय बेटी की मांग रखने वालो
मुझे न्याय दो ....!
(७)
नहीं ...नहीं ....
अब नहीं डालूंगी मैं गले में फंदा ...
और न रोऊंगी अब जार-जार
अब तो दिखलानी होगी तुझको
इस ज़िस्म से उठती धार .....
(8)
बेटियाँ बचाओ ...
मत मारो इन्हें कोख में
बेटी लक्ष्मी है
बेटी देवी है ...
बेटी दुर्गा है ...
बेटी माँ है ....
अय दरिंदो ...!
आज तुमने ..
ये साबित के दिया ....!!
(9)
आँखों में ...
आँसू नहीं अब अंगार हैं ....
होंठों में गिड़गिड़ाहट नहीं
अब सवाल हैं ....
दुःख की भट्टी में
जलती-बुझती ये औरत
मुआवजा चाहती है
सदियों से कैद रही
अपनी जुबान का ......!!
(10)
कल इक और देवी के
उतार दिए गए कपड़े
बीच सड़क पर किया गया
उसका उपहास ....
क्योंकि वह ....
मिटटी-गारे की नहीं
हाड़-मांस की जीती-जागती
औरत थी .....
'देवी' तो मिटटी की होती है ....
(11)
लो मैंने....
उतार दिया है अपना लिबास
खड़ी हूँ बिलकुल निर्वस्त्र ..
चखना चाहते हो इस जिस्म का स्वाद ..?
तो चख लो.....
मगर ठहरो.....!
मेरा जिस्म चाटने से
अगर मिट सकती है
तुम्हारे पेट की भी आग
तो चाट लो मेरा जिस्म ....
क्योंकि ...
फिर ये तुम्हारे हाथ
नहीं रह पायेंगे इस काबिल
कि बुझा सकें
अपने पेट की आग .....!!