Sunday, April 24, 2011
तवायफ़ की इक रात ....
मैं फिर .....
अनुवाद हो गई थी
उसी तरह , जिस तरह
तुम उतार कर फेंक गए थे मुझे
अन्दर बहुत कुछ तिड़का था
ग़ुम गए थे सारे हर्फ़ ....
रात मुट्ठी में
राज़ लिए बैठी रही ...
जो तुम मेरी देह की
समीक्षा करते वक़्त
एक-एक कर खोलते रहे थे
हवा दर्द की आवाजें निगलती ...
जर्द, स्याह, सफ़ेद रंग आग चाटते
कई गुनाह मेरी आहों में
चुपचाप दफ़्न होते रहे ......
बस ये .....
बिस्तर पर पड़ा जनेऊ
खिलखिला कर हँसता रहा
जो तुमने मुझे छूने से पहले
उतार कर रख दिया था
सिरहाने तले ......!!
Thursday, April 7, 2011
दर्द की मुस्कुराहटें ......
ओ बी ओ परिवार ने इस बार 'दोस्ती' शब्द दिया था नज्मों के लिए ....ये नज्में वहीँ से उपजी हैं .....
(१)
ये सिहरन सी ...
क्यों है अंगों में ?
ये कौन रख गया है
ज़िस्म पर बर्फ के टुकड़े ?
ये नमी कैसी है आँखों में ..?
के मेरा दोस्त भी आज ....
इश्क़ की नज़्म उतार
सजदे में खड़ा है .....!!
(२)
अब चाँद ने भी
मुँह फेर लिया है ...
वह नहीं आता अब मेरी खिड़की पर
बस रात चुपचाप रख जाती है
एक टुकडा दर्द का ......!!
(3)
क्या लिखूँ ....?
शब्द भी मुँह मोड़ने लगे हैं
कुछ दिनों में ये अंगुलियाँ भी
कलम का साथ छोड़ देंगी ....
नामुराद दर्द ......
अब हड्डियों में उतर आया है .....!!
(४)
दीवारें तो ...
खामोश थीं बरसों से
फासले भी तक्सीम किये बैठे थे
अय ज़िस्म..... !
अब इसमें तेरा दर्द भी शुमार हो गया
दोस्त .....
अब छोड़ दे तन्हाँ मुझे ......!!
(५)
वह सारे ख़त
जो तूने मुहब्बत में लिखे थे
हाथों में काँपने लगे हैं ....
मैं हथेली में तीलियाँ लिए बैठी हूँ
इससे पहले कि दर्द बेनकाब हो जाये
लगा दूँ आग इनमें ......!!
(६)
लो....
मैंने उतार दी है नज़्म
तेरे नाम की इन आँखों से
टांक दिए हैं सारे गीत मोहब्बत के
अंधेरों की कब्र में ...
आ इस अजनबी रात के सीने पर
गैर सा कोई गीत लिख दें ......!!
(७ )
कमजोर हुई काया
अकड़ी हुई अंगुलियाँ ....
नकारे हुए हाथ ....
अब अपनी ही लिखी तहरीरों पर
लगाते हैं ठहाके ....
और दर्द है के कपड़े उतारे बैठा है ......!!
(८)
हैरां न होना
ग़र मैं न लौटूँ ....
सामने की कब्र में ...
जश्न भी है और मुशायरा भी
अँधेरे, नज्मों से भरे पड़े हैं
अय दोस्त.... !
आ अब उतार दे मुझे इस
कब्र में .....!!