आज मैं ....इस अदब के सफ़र में जिस मुकाम पे हूँ उसमें से कुछ खुशगवार पल आपसे साँझा करना चाहती हूँ .....कुछ ही दिनों पहले मुझे सुमन पाटिल जी की ये मेल मिली .....
हरकीरत जी नमस्ते ! यहाँ हैदराबाद शहर में हिंदी अख़बार निकलता है-- हिंदी मिलाप डेली आजके अख़बार में, आपके बारे में, आपकी रचनाओंके बारे में : कुछ भीगे अक्षर नाम ,के शीर्षक में छपा है ! आप अंदाजा नहीं लगा सकती मुझे इतनी ख़ुशी हुयी पढ़कर,खैर बहुत बहुत बधाई !मैंने सुमन जी को उस अखबार की प्रति भेजने का आग्रह किया ....उन्होंने स्कैन करके वो कटिंग भेजी है ...किन्हीं ऍफ़.एम.सलीम जी की लिखी हुई ...(सलीम जी कभी अगर ये पोस्ट पढ़े तो मुझसे जरुर संपर्क करें ....) इससे पहले भी अरविन्द श्रीवास्तव जी 'कथादेश' पत्रिका में मेरे ब्लॉग का ज़िक्र कर चुके हैं जिसकी मैं कटिंग न रख सकी थी ..... स्कैन की प्रति संलग्न है .....
दूसरी खुशी की बात ये है कि 'सरस्वती सुमन' (प्र. संपा. आनंद सुमन ) पत्रिका का एक अंक 'क्षणिका विशेषांक' होगा जिसकी अतिथि-संपादक मैं रहूंगी ...
इससे पहले जनवरी का ग़ज़ल विशेषांक इस वक़्त आपके हाथों में होगा जिसके अतिथि संपादक दानिश-भारती जी ( मुफलिस जी ) रहे हैं ...कुशल संपादन के लिए उन्हें हार्दिक बधाई ...बेतरीन गजलों का संचय पढ़ने को मिला उनके अधिकृत ।
अगला अंक महिला-विशेषांक है ...उससे अगला लघुकथा विशेषांक होगा ...और उससे अगला जितेन्द्र जौहर जी के संपादन में मुक्तक विशेषांक ।
हालांकि क्षणिकाएं भी मुक्तक की ही श्रेणी में आती हैं लेकिन हम छंद मुक्त लिखी गई लघु नज्मों को ही क्षणिकाओं में शामिल करेंगे .
इस बीच ब्लॉग जगत में कुछ बेहतरीन क्षणिकाएं पढ़ने को मिली हैं ...अत : आपसब से गुजारिश है कि अपनी कलम को कुछ मीठा ...तीखा और खिलाना शुरू करें ताकि आपकी सृजन -कला प्रतिभा और उन्मुख हो कर सामने आये ....और फिर उसे अपने चित्र और संक्षिप्त परिचय के साथ भेज दीजिये निम्न पते पर .....
आप मेल भी कर सकते हैं ..... हरकीरत 'हीर' १८ ईस्ट लेन , सुन्दरपुर हॉउस न . ५ , गुवाहाटी-७८१००५ harkiratheer@yahoo.in
आज राजेन्द्र जी की पोस्ट पढ़ छत पर गई तो देखा ...सूरज धुंध की चादर ओढ़े बादलों की ओट में है ....मुझ से रहा न गया ...खूब छेड़ा- छाडी हुई ...आरोप-प्रत्यारोप लगे ....शायरों पर छींटा- कशी हुई ....कुछ मासूम से जवाब भी मिले ....देखिये आप भी ......
(ये पोस्ट सिर्फ आज के लिए ......)आप सब को गणतंत्र दिवस ढेरों शुभकामनाएं ......(१)हर वर्ष की तरहइस बार भी सूरजछुट्टियों पर था ...मैंने फुनगी पर टंगा अपनामोबाईल उतार उसे फोन लगाया ....जनाब ! आज २६ जनवरी हैलौट आयें .....हम ठिठुरता गणतंत्र कैसे मनाएं ?भला आपके बिना प्रधानमंत्रीसलामी कैसे लेने जायेगें .....जेबों में हाथ होंगे ,लोगतालियाँ कैसे बजायेगें ...?वह मुस्कुराकर बोला -प्रधानमंत्री को मेरी क्या जरुरतवह तो मंच पर खड़े होकरसमाजवाद लायेंगे ....हाँ; उन हजारों नंगे बदनों के लिएहम जरुर आयेंगे ....जो देश-प्रेम की भावना मन में लिएझंडा फहराने जायेंगे .....!!(२)सूरज ....धुंध की चादर ओढ़ेबादलों की ओट में थामैंने जरा सी चादर उठाईतो मुस्कुराया ......बोला - बहुत ठिठुरन होती है नमेरे बिना .....?अपनी नज्मों में तो हमेशा मुझेकटघरे में खड़ा रखती हो ....सुनो ! अब आऊंगा तो एक शर्त परपहले गणतंत्र दिवस पर....कोई जोशीली सी नज़्म सुना दोमेरे देश के नौजवाओं में ...जरा सा जोश तो ला दो ...मैंने राजेन्द्र स्वर्णकार जी कीनज़्म का लिंक उसे दे दिया .... !!शस्वरं(३)मैं छत पर गईतो देखा सूरज ....उदासी के कपड़े धो रहा थामैं मुस्कुराई ....बोली : क्यों किरण को छोड़धुंध रास नहीं आई ..?जो आज गणतंत्र दिवस पर भीओढ़ ली है ये ख़ामोशी की रजाई ?वह बोला : अगर मैं किरण तक हीमहदूद रहता ,तो कवि या शायर नहींइक दहकती आग होता ......और तुम मुझे छूते हीजल कर राख हो जाती ....बताओ फिर भला तुम गणतंत्रकैसे मनाती ....?
(१)
मुहब्बत ...उठती लपटें आग से चुगली खाती हैं किस उम्र की नज्में मुहब्बत के गीत लिखें ...?सूरज आदतन फिर छेड़ गया है ज़िस्म की साँसें आज फिर भीतर की आग जन्म देगी इक नज़्म को .....!!(२)तकदीर.....बता....!इस तकदीर का मैं क्या करूँ ....?जो नज्मों के सर चढ़ बोली है ......लोग कहते हैं तेरी नज्मों पे जवानी आई है इधर देख ,बुर्के की ओट में किस कदर मौत मुस्कुराई है .....!!(३)चुप्पियों के बादल .....कुछ चुप्पियों के बादल आहों के बीज से उगे हैं दर्द के तिनके एक-एक कर बनाते हैं घरौंदे छाती में हसरतों के लफ्ज़ रेत के पानी का तकिया बना डूब जाना चाहते हैं समंदर में ......गुम हुए आँखों के सपने उदासी से तकते हैं राह किसी फकीर की .....कोई कमजोर सी दीवार फिर चुपचाप ढह गई .....!!(४)वक़्त के नाम .....अय वक़्त ...अगर बदलना है तो अपने दिल की हैवानियत बदल वह मकां बेरौनक होते हैं जिनकी दीवारों पे मुहब्बत गीत नहीं लिखती इक हलकी सी मुस्कराहट भी पुरअश्क ज़िन्दगी को उतार जाती है सलीबों से .....!!(५)कब्र .....तुमने कहा था ...तुम आना मैं मिलूँगा तुम्हें सड़क की उस हद पे जहाँ गति खत्म होती है मैं बरसों तुम्हें ...सड़क के हर छोर पे तलाशती रही ....पर तुम कहीं न मिले बस एक सिरे पे ये आज कब्र मिली है .....!!
(१)इक ज़र्द पत्ता ....फिर टूटा है अपने कद केहरे पत्तों के बीच ....जनवरी महीने का उगता सूरजदरख्तों के वजूद कोनापने लगा है ...हवा बड़े एहतियात सेढूंढ लेती है ज़र्द पत्ते ....पिछले वर्ष भी देखा था इनकीडरी-सहमी आँखों मेंरौंदे जाने का खौफ़ ....मैं हौले से समेट कर इन्हेंएक तरफ कर देती हूँकिसी के पैरों तलेकुचलने से पहले ......!!(२)सुनो.....जो नववर्ष के फूलतुम्हें तोहफ़े में भेजे थेवो महज़ फूल ही थे ....कोई रहस्य नहीं था मुट्ठियों मेंन उन पंखुड़ियों में कोईइबादत छिपी थी ...वह तुम्हारा वहम ही थाया फिर तुम्हारे अपने आँगन कीमहक रही होगी जो तुमने महसूस की ....उन पत्तियों को गौर से देखनामोहब्बत के पत्ते ....ज़र्द नहीं होते .....!!(३)बदन की मिट्टी ...फिर कांपी है ठिठुरते वक़्त के साथ ....कोई हवा महक लिए गुजरी हैटूटे मकान से ....कोई चुपके से पोंछ गया हैनज़्म की आँखों सेदुखते शब्द ....रात कैद की रस्सियाँसहलाने लगी है ....आज मुस्कराहटरात भर रोएगीज़र्द पत्तों के साथ .....!!(४)रात ने सुबह के ......चार चक्कर* काटे, देखाधूप एक कोने में बैठी थी ...उसने हौले से उसका हाथ पकड़ाऔर बोली .....बहुत सिहरन होती हैतुम्हारे बिना ....अलसुब्ह नींद तकती हैतुम्हारी अँगुलियों का मीठा स्पर्शसहला जाये माथे को कोईगालों पे रख जाये गर्म सा चुम्बनदिनभर की ऊर्जा के लिएकंधे थपथपाकर झाड़ देबदन के सारे ज़र्द पत्ते ...कभी मेरे घर आना नधूप ......!?!
चार चक्कर*- चार फेरे (चार लावां) सिखों के विवाह में चार ही फेरे होते हैं ....