क्या पता कब कहाँ मारेगी ?
बस कि मैं ज़िंदगी से डरता हूँ
मौत का क्या है, एक बार मारेगी
ब्लॉग जगत में मैंने सबसे पहले डा. अनुराग जी के ब्लॉग पे त्रिवेणी पढ़ी व परिचित हुई .....फिर अपूर्व जी ने हाल ही में अपने ब्लॉग पे लाजवाब त्रिवेणियाँ डालीं ......एक और उभरते हुए फनकार ' त्रिपुरारी कुमार शर्मा ' हैं पिछले दिनों उनके ब्लॉग पे बेहतरीन दस त्रिवेणियाँ देखने को मिलीं ......इसी श्रृंखला में मेरी इक नाकाम सी कोशिश ......पर ये त्रिवेणी नहीं उसी से मिलते-जुलते मेरे अपने 'त्रिशूल' हैं ......
(१)
उसने मेरी नब्ज़ काटकर ढूंढ ली है खून की किस्म
अब वह हर रोज़ मुझे तिल-तिल कर मारता है ....
रब्बा! ये मोहब्बत के खून की क़िस्म इतनी कम क्यूँ बनाई थी ......??
(२)
तुम फिर तैर गए थे शब्दों के सहारे
और मेरे शब्द मझधार में ही दम तोड़ गए थे
पापा! तूने मुझे स्विमिंग क्यूँ नहीं सिखलाई थी ....?
(३)
एक्वेरियम में कैद मछली को वह हर रोज़ डाल जाता है रोटी का इक टुकड़ा
और निकल पड़ता है फिर दरिया की सैर को इक नई मछली की तलाश में
घर के बाहर नाम की तख्ती पर लिखा था ........." प्रेम - निवास "
(४)
आज फिर मानसिक द्वन्द है कहीं भीतर
और इक डरी-सहमी आकृति मेरी पनाह में
आज फिर न जाने कितने ज़ज्बातों की हत्या होगी ......!!
(५)
मैंने जर्द पत्तों पर शबनम की बूंदें भेजी थीं
उसने गुलाब की पत्तियों पर भेजा है पैगाम
हवाओं से बुझता चिराग फिर जी उठा .......!!