Saturday, September 25, 2010

कुछ मोहब्बत के ख्याल .......

उम्मीद का इक उड़ता पंछी जाने कब मेरी खिड़की पे बैठा .....पेड़ों के पत्ते हरे हो गए ....सबा ने झोली से कई सारे फूल निकाले ....और बिखेर दिए मेरे सामने .....मैंने देखा उसमें तुम्हारा वो सुर्ख फूल भी था ....मैंने हौले से उसे छुआ ....वह तेरी तस्वीर बन मुस्कुराने लगा ............
बस ये मोहब्बत के कुछ ख्याल उतर आये यूँ ही .........


()

रती में .....
जब चारों ओर आग लगी थी
सूरज ने अपना चेहरा ढक लिया था शर्म से .....
चाँद लुढ़क आया था पत्थरों पे ..
कोई जहरीले धागों से सी रहा था कफ़न .....
उस वक़्त ......
मुहब्बत सफ़ेद लिबास में मेरे सामने खड़ी थी
मैंने हौले से उसे छुआ और पूछा -
''क्या तुम मुझे इक.......
फूल दोगी ....!?! ''

()

रा सी .....
नज़र क्या मिली
कितने ही रंग फ़ैल गए
ज़िस्म की दीवार पर ....

ये मोहब्बत क्या ....
रौशनियों की नगरी होती है .....!?!

()

ये मरुस्थल में
जाने कैसा ...
सुर्ख सा फूल खिला
आज की रात ....
पिघलेगी कोई बर्फ ...
मुहब्बत की आग में .......!!

()

मेरे एक हाथ की मुट्ठी में
ज़िन्दगी है .....
और दुसरे हाथ की मुट्ठी में
मौत ......
देखना है मोहब्बत ....
किस रस्ते चलती है .......!!

()

ये उम्र दराज़ के लोग
भले ही अपने दरीचों से
झांकते रहे हमारी खिडकियों की ओर
हम बंद कमरों में सी लेंगे
अपनी मुहब्बत का...
पैरहन ......!!

()

तुम्हारी नज्में ...
अब भी हैं मेरे पास
तुम्हारी भेजीं , वो तस्वीरें भी ...
कभी -कभी बड़ी बेहयाई से
ज़िस्म से बातें करने लगतीं हैं ....
ऐसे में मैं उन्हें ओढा देती हूँ ....
गर्म साँसों का कम्बल ......!!

()

मुहब्बत अक्षरों को ...
घुलने नहीं देती पानी संग
किसी और ज़मीं की तलाश में
लांघती है दहलीज़ ....
वह उन अक्षरों को जोड़ कर
देना चाहती हूँ करती है
जहाँ मैं आज की
रात लिख ....!!

()


सूरज ........
बदनसीबी की रौशनी से रंग देता है
मेरे लिखे हर लफ्ज़ को ....
इससे पहले कि वह फिर छीन ले
मेरे हाथ से कलम ...
और निराशा में मेरे सारे
हर्फ़
मर जायें
मैं आज की रात
लिख देना चाहती हूँ
मोहब्बत के नाम ...
पहला ख़त .....!!


()

पर स्याह आसमां था
और नीचे आग से जलते अक्षर
इन दोनों के बीच से गुजर कर
मैंने अपनी मुहब्बत अयाँ की है
इससे पहले कि वह फिर
ख़ामोशी में पनाह ले
इसे.....
इन हवाओं में
नस्ब कर दें .....!!

नस्ब- कायम

(१०)

का ये आधा चाँद
लिख इन है अपनी तकदीर
खंज़र की नोक पर ....
आज की रात यह
फिर सोयेगा .....
सूरज के आगोश में ......!!

Monday, September 13, 2010

मोहब्बत ...दर्द...और हँसी .......

ज़िन्दगी अपनी चीखों से निजात पाने के लिए कई बार मुस्कराहट का नकाब ओढ़ लेती है ......और जब कभी तन्हाई में ये नकाब उतारती है तो हंसी मुआवजा मांगने लगती है ...ऐसे में भला मैं उसे क्या देती ....बस ये नज्में दे दीं .....शायद वो इससे बहल जाये ......?
पिछली बार किसी के भी ब्लॉग पे जा सकी ....व्यस्तता रही कुछ .....मन भी उबने लगा है ....यहाँ भी अब पहले जैसा अपनापन नहीं रहा .....इस बीच अपनी पिछली पोस्टें देखीं ...टिप्पणियाँ भी .....बहुत से मित्रों ने ब्लॉग बंद कर लिया ....और कुछ ने मुह मोड़ लिया .....कुछ अच्छा लिखने वाले खामोश हो गए ....हम यहाँ कुछ पाने आये हैं या खोने पता नहीं ........
फिर कुछ क्षणिकाएं .......


(१)

मोहब्बत .....

ज़िन्दगी की चीखें लिए
जब चाँद उतर आता है
झील के आगोश में ....
लम्बी रात का काफ़िला भी
ठहर जाता है .....
अपना वायदा तोड़
सांसें लौटने तक .....!!


(२)

उम्र की हंसीं .....

हाँ ...
कोई रात
जायका लिए नहीं आती
बस नमक के साथ
चख ली जाती है ...
उम्र की सारी
हंसी .....!!


(३)

दर्द.....


बदलते वक़्त में
हर चीज़ बिकती है
जमीं बिकती है ,आबरू बिकती है
हुस्न बिकता है , नाच बिकता है
ज़िस्म बिकता है ,मुस्कान बिकती है
बस दर्द नहीं बिकता ......!!

(४)

कोफ़्त ...

ले गई है
कई बार सबा
सितारों की नगरी में
अब बड़ी कोफ़्त होती है
देख चाँदनी को....
मोहब्बत के पाश
खिलखिलाते हुए ....!!


(५)

हँसी .....

फि कुछ सवाल
हवा में खड़े हैं
ज़ेवरात में सजी
उस दूसरी औरत की हँसी
जज़्बात के सीने पर
पैर रखे ......
खिलखिला रही है .....!!