इश्क़ इक खूबसूरत अहसास ....
तुमने ही तो कहा था
मुहब्बत ज़िन्दगी होती है
और मैंने ज़िन्दगी की तलाश में
मुहब्बत के सारे फूल तेरे दरवाजे पर टाँक दिए थे
तुमने भी खुली बाहों से उन फूलों की महक को
अपने भीतर समेट लिया था
उन दिनों पेड़ों की छाती से
फूल झरते थे
हवाएं नदी में नहाने जातीं
अक्षर कानों में गुनगुनाते
छुईमुई सी ख़ामोशी
आसमां की छाती से लिपट जाती
लगता कायनात का कोना -कोना
मुहब्बत के रंग में रंगा
चनाब को घूंट घूंट पीये जा रहा हो
छत पर चिड़ियाँ मुहब्बत के गीत लिखतीं
रस्सी पर टंगे कपड़े
ख़ुशी से झुम -झूम मुस्कुराने लगते
सीढियों की हवा शर्माकर हथेलियों में
चेहरा छिपा लेती .......
तुमने ही तो कहा था
मुहब्बत ज़िन्दगी होती है
और मैं मुहब्बत की तलाश में
कई छतें कई मुंडेरें लांघ जाती
न आँधियों की परवाह की
न तूफ़ानों की ...
सूरज की तपती आँखों की
न मुझे परवाह थी न तुझे
हम इश्क़ की दरगाह से
सारे फूल चुन लाते
और सारी-सारी रात उन फूलों से
मुहब्बत की नज़्में लिखते ....
उन्हीं नज़्मों में मैंने
ज़िन्दगी को पोर पोर जीया था
ख़ामोश जुबां दीवारों पे तेरा नाम लिखती
मदहोश से हर्फ़ इश्क़ की आग में तपकर
सीने से दुपट्टा गिरा देते ...
न तुम कुछ कहते न मैं कुछ कहती
हवाएं बदन पर उग आये
मुहब्बत के अक्षरों को
सफ़हा-दर सफ़हा पढने लगतीं ...
तुमने ही तो कहा था
मुहब्बत ज़िन्दगी होती है
और मैंने कई -कई जन्म जी लिए थे
तुम्हारी उस ज़रा सी मुहब्बत के बदले
आज भी छत की वो मुंडेर मुस्कुराने लगती है
जहां से होकर मैं तेरी खिड़की में उतर जाया करती थी
और वो सीढियों की ओट से लगा खम्बा
जहां पहली बार तुमने मुझे छुआ था
साँसों का वो उठना वो गिरना
सच्च ! कितना हसीं था वो
इश्क़ के दरिया में
मुहब्बत की नाव का उतरना
और रफ़्ता -रफ़्ता डूबते जाना ....डूबते जाना .....!!
हीर .....
तुमने ही तो कहा था
मुहब्बत ज़िन्दगी होती है
और मैंने ज़िन्दगी की तलाश में
मुहब्बत के सारे फूल तेरे दरवाजे पर टाँक दिए थे
तुमने भी खुली बाहों से उन फूलों की महक को
अपने भीतर समेट लिया था
उन दिनों पेड़ों की छाती से
फूल झरते थे
हवाएं नदी में नहाने जातीं
अक्षर कानों में गुनगुनाते
छुईमुई सी ख़ामोशी
आसमां की छाती से लिपट जाती
लगता कायनात का कोना -कोना
मुहब्बत के रंग में रंगा
चनाब को घूंट घूंट पीये जा रहा हो
छत पर चिड़ियाँ मुहब्बत के गीत लिखतीं
रस्सी पर टंगे कपड़े
ख़ुशी से झुम -झूम मुस्कुराने लगते
सीढियों की हवा शर्माकर हथेलियों में
चेहरा छिपा लेती .......
तुमने ही तो कहा था
मुहब्बत ज़िन्दगी होती है
और मैं मुहब्बत की तलाश में
कई छतें कई मुंडेरें लांघ जाती
न आँधियों की परवाह की
न तूफ़ानों की ...
सूरज की तपती आँखों की
न मुझे परवाह थी न तुझे
हम इश्क़ की दरगाह से
सारे फूल चुन लाते
और सारी-सारी रात उन फूलों से
मुहब्बत की नज़्में लिखते ....
उन्हीं नज़्मों में मैंने
ज़िन्दगी को पोर पोर जीया था
ख़ामोश जुबां दीवारों पे तेरा नाम लिखती
मदहोश से हर्फ़ इश्क़ की आग में तपकर
सीने से दुपट्टा गिरा देते ...
न तुम कुछ कहते न मैं कुछ कहती
हवाएं बदन पर उग आये
मुहब्बत के अक्षरों को
सफ़हा-दर सफ़हा पढने लगतीं ...
तुमने ही तो कहा था
मुहब्बत ज़िन्दगी होती है
और मैंने कई -कई जन्म जी लिए थे
तुम्हारी उस ज़रा सी मुहब्बत के बदले
आज भी छत की वो मुंडेर मुस्कुराने लगती है
जहां से होकर मैं तेरी खिड़की में उतर जाया करती थी
और वो सीढियों की ओट से लगा खम्बा
जहां पहली बार तुमने मुझे छुआ था
साँसों का वो उठना वो गिरना
सच्च ! कितना हसीं था वो
इश्क़ के दरिया में
मुहब्बत की नाव का उतरना
और रफ़्ता -रफ़्ता डूबते जाना ....डूबते जाना .....!!
हीर .....