Friday, July 24, 2009
जो देते हैं दर्द उन गमों से क्या सिला रखना...............................................
जो देते हैं दर्द उन ग़मों से क्या सिला रखना
बहा दो अश्कों से न उन्हें दिल में दबा रखना
वो भला क्या समझेंगे मोहब्बत की बातें
जिनकी है अदा हर दिल को ख़फा रखना
बेच दी हो जिसने गैरत भी अपनी
क्या उनके लिए दिल में गिला रखना
आ चल चलें कहीं दिल को बहलाने
जरुरी है हर ज़ख्म को खुला रखना
मिल जायेंगे इस जहाँ में सैंकडों हमसफ़र
प्यार के फूल 'हक़ीर' दिल में खिला रखना
Monday, July 13, 2009
बोलते पत्थर ........
(१)
बोलते पत्थर ........
जब कभी छूती हूँ मैं
इन बेजां पत्थरों को
बोलने लगते हैं
ज़िन्दगी की अदालत में
थके- हारे ये पत्थर
भयग्रसित
मेरी पनाह में आकर
टूटते चले गए
बोले......
कभी धर्म के नाम पर
कभी जातीयता के नाम पर
कभी प्रांतीयता के नाम पर
कभी ज़र,जोरू, जमीन के नाम पर
हमें फेंका गया है
और हम ....
न जाने कितनी चीखें
अपने भीतर
दफ़्न किए
बैठे हैं ........!!
(२)
मन्दिर मस्जिद विवाद ....
वह ....
कुछ कहना चाह रहा था
मैंने झुक कर
उसकी आवाज़ सुनी
वह कराहते हुए धीमें से बोला......
मैं तो बरसों से चुपचाप
इन दीवारों का बोझ
अपने कन्धों पर
ढो रहा था
फ़िर......
मुझे क्यों तोड़ा गया ....?
मैंने एक ठंडी आह भरी
और बोली, मित्र .......
अब तेरे नाम के साथ
इक और नाम
जुड़ गया था
'मन्दिर' का नाम ......!!
(३)
भ्रूण हत्या ......
मन्दिर में आसन्न
भगवान से
मैंने पूछा .......
तुम तो पत्थर के हो ....
फ़िर तुम्हें किस बात गम ....?
तुम क्यों यूँ मौन बैठे हो......??
वह बोला .......
जहां मैं बसता हूँ
उन कोखों में
नित....
न जाने कितनी बार
कत्ल किया जाता हूँ मैं .....!!
(४)
आतंक के बाद ......
सड़क के बीचो- बीच
पड़े ....
कुछ पत्थरों ने ...
मुझे ....
हाथ के इशारे से
रोका....
और कराहते हुए बोले.....
हमें जरा
किनारे तक
छोड़ दो मित्र
मैंने देखा .....
उनके माथे से
खून रिस रहा था
मैंने पूछा ....
'तुम्हारी ये हालत....?'
वे आह भर कर बोले .....
तुम इंसानों के
इंसानों को दिए ज़ख्म
इन माथों से बहते हैं .....!!
Wednesday, July 8, 2009
मोहब्बत की निगार है नज़्म....
मानो तो ख़ुदा की इबादत का साज़ है नज़्म
बेबस खामोशी की आवाज है नज़्म
किसी कब्र में सिसकती मोहब्बत की निगार है नज़्म
आशिकों की रूह से निकली पुकार है नज़्म
हवाओं का भी रुख मोड़ दे वो तूफान है नज़्म
दिल में छुपे दर्द की जुबान है नज़्म
बेंध दे सीना पत्थरों का वो औज़ार है नज़्म
शायर और आशिकों की मजार है नज़्म
चट्टानों पर लिखा इश्क का पैगाम है नज़्म
न भूले सदियों तक 'हकीर' वो इलहाम है नज़्म
१) निगार - प्रतिमा, मूर्ति , २) इलहाम - देववाणी