सुइयों की पोटली है .....जो अक्सर सुलगाती रहती है इक आग ....वह अंधेरे में छोटी-बड़ी लकीरें खींचती है .....सीढियों से अँधेरा उतर कर आता है .....और रख देता हैं पाँव.....बड़ी लकीर मिट जाती है .....वह फ़िर छोटी हो जाती है ....बहुत छोटी .....हक़ीर सी .....!! '' कुछ क्षणिकायें .....''
(१)
तलाक
......................
वहशी बादल
जमकर बरसे फ़िर कल रात
सुई जुबां से लहू कुरेदती रही
सबा तो खामोश रही दोनों के बीच
बस तेरा चेहरा तलाक मांगता रहा .....!!
(२)
कफ़न
....................
मैं कफ़न उतार के बैठी थी
कुछ हसीं रूहें .....
चुरा ले गई कफ़न मेरा
तुम यूँ न बिछड़ना मुझ से
मोहब्बत यतीम हो जाएगी ......!!
(३)
पत्थर होते छाले
...................................
मेरे इश्क़ के कतरे
पत्थरों पे गिरते रहे
और रफ्ता -रफ्ता दिल के छाले
पत्थर होते गए.....!!
(४)
गिला
.............
गुज़र जाता अगर दरिया चुपचाप
मैं ख्यालों को रख लेती ज़ख्मों तले
गिला तो इस बात का है
वह जाते-जाते छू गया ......!!
(५)
तू ही बता
.........................
मैंने ज़िस्म में
जितने भी मुहब्बतों के बीज थे
तेरे नाम की लकीरों पे बो दिए हैं
अब तू ही बता मैं ख्यालों को
किस ओर मोडूं .....!?!
(६)
अर्थियाँ
.........................
मोहब्बत खिलखिला के
हंसने ही वाली थी के गुज़र गई
कुछ अर्थियाँ फ़िर करीब से .....!!
Sunday, November 29, 2009
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86 comments:
बहुत ही खूबसूरत क्षणिकाएं.......
मैं कफ़न उतार के बैठी थी
कुछ हसीं रूहें .....
चुरा ले गई कफ़न मेरा
तुम यूँ न बिछड़ना मुझ से
मोहब्बत यतीम हो जाएगी ......!!
इन पंक्तियों ने मन मोह लिया........
बहुत सुंदर ..... अति सुंदर......
bahut hi sunder shanikaye
गुज़र जाता अगर दरिया चुपचाप
मैं ख्यालों को रख लेती ज़ख्मों तले
गिला तो इस बात का है ....
वह जाते-जाते छू गया ......!!
" gaherai se bharpur baat kardi chand alfaz me aapne "
----- eksacchai { AAWAZ }
http://eksacchai.blogspot.com
हरकीरत जी,
तलाक, कफ़न, पत्थर होते छाले, गिला, तू ही बता, अर्थियां...
क्या ये सारे शब्द पर्यायवाची नहीं लगते...
जय हिंद...
मैंने ज़िस्म में
जितने भी मुहब्बतों के बीज थे
तेरे नाम की लकीरों में
बो दिए हैं ....
अब तू ही बता ....
मैं ख्यालों को
किस ओर मोडूं .....!?!
bahut khubsurat kshanikaayen hain..gehre bhav liye.
मोहब्बत खिलखिला के
हंसने ही वाली थी
कि गुज़र गई फ़िर
कुछ अर्थियाँ करीब से .....!!
--उफ्फ!!!
आपको जब भी पढ़ता हूँ..बहुत देर को मौन हो जाता हूँ और विल्स कार्ड को निकालने की इच्छा हो उठती है..आज शाम फिर...
पत्थर होते छाले
...................................
मेरे इश्क़ के कतरे
पत्थरों पे गिरते रहे
रफ्ता -रफ्ता ....
दिल के छाले
पत्थर होते रहे .....!!
...wah..! this one is best.. i remembered a small poem by Brecht..
कमजोरियां
तमहारी कोई नहीं थी
मेरी थी एक
मैं करता था पयार....
क्या बात है!
तुम यूँ न बिछड़ना मुझ से
मोहब्बत यतीम हो जाएगी ......!!
छू लेने वाली रचनाएँ. इतना करीबी, इतना दर्द और ---
वहशी बादल जमकर बरसे फ़िर रात
सुई जुबां से लहू कुरेदती रही
सबा तो खामोश रही दोनों के बीच
बस तेरा चेहरा तलाक मांगता रहा .....!!
क्या बात है ....
ये क्षणिकाएं कहाँ हैं ....दर्द उगलते जख्म है ....लफ्ज़ गहरे उतरते हैं सीधे सीने में ...एक टीस और हूक उठती है ....गज़ब ये है की ये दर्द कोई मरहम भी नहीं चाहता ....यूँ ही रिसता रहे....!!
मेरे इश्क़ के कतरे
पत्थरों पे गिरते रहे
रफ्ता -रफ्ता ....
दिल के छाले
पत्थर होते रहे .....!
kitana sunder likhatee hai aap ?
ek ek kshnika bemisaal hai! Subhanallah !!!
जबर्दस्त ...
सशक्त, सुंदर अभिव्यक्ति।
मैं कफ़न उतार के बैठी थी
कुछ हसीं रूहें .....
चुरा ले गई कफ़न मेरा
तुम यूँ न बिछड़ना मुझ से
मोहब्बत यतीम हो जाएगी ......!!
--वाह! यह तो खूब रही..
अरे, संभलकर, कोई बेचैन आत्मा भी ब्लाग पढ़ सकता है..
हा.. हा.. हा..
मोहब्बत खिलखिला के
हंसने ही वाली थी
कि गुज़र गई फ़िर
कुछ अर्थियाँ करीब से .....!!
छू गयी अन्तर्मन को .....शब्द को सार्थक कर जाती हैं आप.बस इतना ही कह सकता हूँ मैं
आपकी रचनाओं को पढ़कर.....
मैं कफ़न उतार के बैठी थी
कुछ हसीं रूहें .....
चुरा ले गई कफ़न मेरा
तुम यूँ न बिछड़ना मुझ से
मोहब्बत यतीम हो जाएगी ......!!
खूबसूरत क्षणिकाएं .. बहुत सुंदर
मोहब्बत खिलखिला के
हंसने ही वाली थी
कि गुज़र गई फ़िर
कुछ अर्थियाँ करीब से .....!!
हरकीरत जी "बहुत सुंदर क्षणिंकाएं" आभार
वहशी बादल जमकर बरसे फ़िर रात
सुई जुबां से लहू कुरेदती रही
सबा तो खामोश रही दोनों के बीच
बस तेरा चेहरा तलाक मांगता रहा .....!!
मैंने ज़िस्म में
जितने भी मुहब्बतों के बीज थे
तेरे नाम की लकीरों में
बो दिए हैं ....
अब तू ही बता ....
मैं ख्यालों को
किस ओर मोडूं .....!?!
sabhi kshnikaaeiN bahut prabhaavshali bn padee haiN,,,
lekin ye do khaas taur pr mn ko kaheeN kheench le gaeeeeN .
bahut achaa...
hamesha ki tarah . . .
तेरा चेहरा तलाक मांगता रहा.
एक पंक्ति में नज़्में आपके इधर ही हुआ करती है. सब बेहतरीन है मुहब्बत के बचे रहने का उदघोष करती हुई, दिल के कोनों में चुभे हुए, टूटे पलों के नश्तर को सहेजती हुई और मन हाल का बयान करती हुई. मुझे हर बार पढ़ते हुए ख़ुशी होती है कि आप मुहब्बत के नाम सिर्फ इश्क ओ जाम, ग़म और ख़ुशी जैसे गहरे किन्तु चलताऊ शब्दों से अलग रोजमर्रा के जीवन से ऐसे लफ्ज़ चुनती हैं कि वे सीधे दिल तक उतरते हैं. एक क्षणिका में मैंने पाया कि वह पहलीदो पंक्तियों में ही मुकम्मल है, है न अजब ... गुज़र जाता अगर दरिया चुपचाप/ मैं ख्यालों को रख लेती ज़ख्मों तले. हीर साहिबा जी आप अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों के बीच यूं हम सब के लिए समय निकाल कर नियमित लिखती हैं और कभी संजीदा करते हुए भी मुहब्बत अल्टीमेट है याद दिला जाती हैं... शुक्रिया. आपकी लेखनी की नोक पर सूरज जितना नूर बना रहे.
आया हूँ, काँप गया हूँ...अभी वाजिब टिप्पणी नहीं कर पाऊंगा..फिर आऊंगा...!!!
फिर से आना पडा..... बहुत अच्छी लगीं क्षणिकाएं.....
बधाई....
इंसान जब रिश्तों, संबंधों, एहसासों पर लिखता है तो कहीं ना कहीं अपने आस पास के अनुभव, अपने निजी अनुभव बयान करता है. हर शब्द जब कुछ बोलता सा नज़र आता है तब लगता है कि ये रचना अपने आप में सम्पूर्ण हो ली है. मैं हमेशा आपकी रचनाओं में वो सब पाता हूँ
behtareennn...
मेरे इश्क़ के कतरे
पत्थरों पे गिरते रहे
रफ्ता -रफ्ता ....
दिल के छाले
पत्थर होते रहे .....!!
मैं कफ़न उतार के बैठी थी
कुछ हसीं रूहें .....
चुरा ले गई कफ़न मेरा
तुम यूँ न बिछड़ना मुझ से
मोहब्बत यतीम हो जाएगी ......!!
बहुत खूब सभी क्षणिकायें एक से एक बढ कर हैं बहुत बहुत बधाई
मैं कफ़न उतार के बैठी थी
कुछ हसीं रूहें .....
'चुरा ले गई कफ़न मेरा'
तुम यूँ न बिछड़ना मुझ से
मोहब्बत यतीम हो जाएगी ...
__gazab ka likha hai aapne.!
Sabhi ek se badhkar ek...
गुज़र जाता अगर दरिया चुपचाप
मैं ख्यालों को रख लेती ज़ख्मों तले
गिला तो इस बात का है ....
वह जाते-जाते छू गया
waah kya baat hai,bahut sunder
पूरी रचना ही लाजवाब रही आपकी । आपके शब्दो का चयन, और उनका प्रयोग बखूबी किया गया है । बहुत-बहुत बधाई
kshnikayein kya ye to wo anmol moti hain jinhein aap dil ke sagar ki anant gahraiyon se nikal kar layi hain.
kis kshanika kahun ya kis shabd kahun.........kis kis k tarif karun........rooh mein itni gahri utar gayi hain ki kuch pal ke liye shabd bhi maun ho gaye .........hosh aaya to ab likhne baithi hun.
agar ho sake to ye kshanikayein aap mujhe mail kar dijiye .......sahej kar rakhna chahti hun.
मेरे इश्क़ के कतरे
पत्थरों पे गिरते रहे
रफ्ता -रफ्ता ....
दिल के छाले
पत्थर होते रहे .....!!वाह !
पर आलम है कि किसकी तारीफ करूँ,किसे छोडूँ.......सारे ख्याल दिल से बातें कर रहे हैं
मैंने ज़िस्म में
जितने भी मुहब्बतों के बीज थे
तेरे नाम की लकीरों में
बो दिए हैं ....
अब तू ही बता ....
मैं ख्यालों को
किस ओर मोडूं .....!?!
superb............
ऐसा लगता है जब इस मूड में होती है तब अपना बेस्ट देती है ......
वहशी बादल जमकर बरसे फ़िर रात
सुई जुबां से लहू कुरेदती रही
सबा तो खामोश रही दोनों के बीच
बस तेरा चेहरा तलाक मांगता रहा .....!!
kitna dard chhupa hai, gazab!!
खूबसूरत क्षणिकाएं ...मुझे तो सब ही बेहतरीन लगी ..सब में एक नया रंग है .शुक्रिया
दर्द भरी और सन्न कर देने वाली क्षणिकाएं.......
मैंने ज़िस्म में
जितने भी मुहब्बतों के बीज थे
तेरे नाम की लकीरों में
बो दिए हैं ....
अब तू ही बता ....
मैं ख्यालों को
किस ओर मोडूं .....!?!ultimate...jaise modh lena apne bas me ho..uski khusboo nas nas me ho.....
इश्क़िया और विरह का मौसम सदाबहार होता है...
ek se badkar ek hai kshinkaayein
kaise taarif karoon kuchh samjh nahi aa raha
सब की सब बेजोड़ .... कमाल की .......... निःशब्द कर दिया ....... कुछ कह नही पा रहा ..... बस बेमिसाल, लाजवाब ......
निशब्द हुं. बेहद लाजवाब. नमन आपको.
रामराम.
@ समीर जी विल्स कार्ड का इन्तजार है ......!!
@ देवेन्द्र जी आत्माओं को भला क्या खौफ .....!?!
@ किशोर जी मुझे उम्मीद थी आप इसी पंक्ति को सराहेगें .......!!
@श्रीश जी दोबारा इन्तजार है ......!!
@ वंदना जी जरुर ......!!
@डिम्पल जी आपका जवाब कुछ समझ नहीं आया ......" ultimate...jaise modh lena apne bas me ho..uski khusboo nas nas me ho....."
मैंने ज़िस्म में
जितने भी मुहब्बतों के बीज थे
तेरे नाम की लकीरों में
बो दिए हैं ....
अब तू ही बता ....
मैं ख्यालों को
किस ओर मोडूं ...?
yahaan mod lena apne bas mein है hi kahaan .....?
@ Manjeet जी ,Digambar जी shukariya .....!!
गुज़र जाता अगर दरिया चुपचाप
मैं ख्यालों को रख लेती ज़ख्मों तले
गिला तो इस बात का है ....
वह जाते-जाते छू गया ......!!
वाह बहुत सुंदर
वहशी बादल जमकर बरसे फ़िर रात
सुई जुबां से लहू कुरेदती रही
सबा तो खामोश रही दोनों के बीच
बस तेरा चेहरा तलाक मांगता रहा .....
........बहुत सुंदर ..
harkeerat जी,
कहने को ६ छोटी छोटी क्षणिकाएं ही हैं....
२ minut पढने के...४ मिनट कमेन्ट देने के....
लेकिन १ घंटे से ब्लॉग पर हूँ....
और कुछ नहीं कह पा रहा...
तेरे नाम की लकीरों में
बो दिए हैं ....
अब तू ही बता ....
मैं ख्यालों को
किस
और मोडूं....
और,,,,,,,,
सबा तो खामोश रही दोनों के बीच
बस तेरा चेहरा तलाक मांगता रहा .....!!
पढ़कर
हैरान सा हो गया....
मोहब्बत खिलखिला के
हंसने ही वाली थी
कि गुज़र गई फ़िर
कुछ अर्थियाँ करीब से ....
wah wah wah bas wah wah wah.
बहुत ही खूबसूरत रचना है...
बहुत खूब क्षणिकाये.
तुम यूँ न बिछड़ना मुझ से
मोहब्बत यतीम हो जाएगी ......कितनी सुन्दर और सार्थक पंक्तियां.
इतने कम शब्दो मे इतनी बड़ी बड़ी परिभाशायें !!
aap bahut gehra likhti hai
गुज़र जाता अगर दरिया चुपचाप
मैं ख्यालों को रख लेती ज़ख्मों तले
गिला तो इस बात का है ....
वह जाते-जाते छू गया .
ahsas bol uthe .
bahut sundar abhivykti
अभी ख़ामोश हूँ लेकिन कभी आवाज़ मैं भी हूँ
जिस में बोलती हो तुम वही अंदाज़ मैं भी हूँ...
बहुत खुबसूरत लगा आपकी रचनाओं को पढ़ कर
"मैंने ज़िस्म में
जितने भी मुहब्बतों के बीज थे
तेरे नाम की लकीरों में
बो दिए हैं ....
अब तू ही बता ....
मैं ख्यालों को
किस ओर मोडूं .....!?!"
आपने चरम को छू लिया.
"मोहब्बत खिलखिला के
हंसने ही वाली थी
कि गुज़र गई फ़िर
कुछ अर्थियाँ करीब से .....!!"
ये क्षणिकाएं नहीं
ऐसा लगता है मोहब्बत का समूचा जीवन चक्र एक हथेली पर आकर ठहर गया है.
क्या इसे भाग्य रेखा समझे जो कहता है "सब्र कर एक और दुनिया नसीब होगी तुम्हे..."
हरकीरत जी ठीक कहा
आत्माओं को भला क्या खौफ!
Asaan Shabdo me itni gahri baatein, yaqeenan dil ko chhoo gai hain aur mujhe nahi lagta ki mujhe kuchh kahne ki jaroorat hai.......Shukriya itni behtar rachnaao ke liye.........
थोड़ा सा लेट सा हुआ आने मे..मगर इब्तिदा इतनी पुरअसर और दिलफ़िगार है कि नजरों को आगे धक्का देना पड़ा क्षणिकाओं पे जाने के लिये...
तलाक :
निःशब्द !! मगर चहरे की देहरी पे तलाक के लफ़्ज़ को चढ़ने की नौबत नही देनी चहिये..बल्कि लहू कुरेदती जुबां को खुद खुला दे देना चाहिये था..
कफ़न :
हसीं रूहों को कफ़न से क्या काम है समझ नही आया
पत्थर होते छाले:
छाले भले ही पत्थर हो गये हों वक्त के साथ..मगर वो पत्थर जरूर जख्म जैसे पिघल गये होंगे..इश्क के क़तरों की कुर्बत पा के..
गिला :
दरिया अगर कुछ तेज हो तो खयालों को भी साथ बहा ले जाता है..और ज़ख्मों को भी..
तू ही बता :
खयालों पे अगर अपना बस होता तब शायद हमारी मर्जी के मुताबिक मोड़ लेते..मगर कब हो पाता है ऐसा..
अर्थियाँ :
शायद टूटे हुए दिलों की अर्थियाँ रही होंगी...मुहब्बत तो लाज़वाल होती है..
अपूर्व जी ,
शुक्रिया इब्तिदा के लिए ......!!
आपने पूछा है .....@कफ़न :हसीं रूहों को कफ़न से क्या काम है समझ नही आया .....
लाश और कफ़न का तो जन्मों- जन्मों का साथ है ....यहाँ मैं लाश हूँ ....और मेरा महबूब कफ़न ......जिसे कोई और हसीं चेहरा चुराए लिए जा रहा है ......!!
ग़ज़ब हर बार आप इतनी अच्छी पोस्ट लिखती हैं की दिल में सनसनी दौड़ जाती है !! लगता है जैसे एक सच्चाई हो !!! बहुत कशिश है "बस तेरा चेहरा तलाक मांगता रहा .....!!"मोहब्बत यतीम हो जाएगी ......!!"वह जाते-जाते छू गया" "कि गुज़र गई फ़िर
कुछ अर्थियाँ करीब से" अंतिम लाइनों में तमा दर्द और निचोड़ कर भर देती हैं!!!
Harkirat ji
Aapki likhi har ek shanikaa dil ko choo gayi.
bahut bahut tareef karna chahti hu par shabdo ki kami mehsoos ho rahi hai.. tareef ka koi bhi shabd aisa nahi jinmein aapko bayan ki ja sake
-Sheena
मैं कफ़न उतार के बैठी थी
कुछ हसीं रूहें .....
चुरा ले गई कफ़न मेरा
तुम यूँ न बिछड़ना मुझ से
मोहब्बत यतीम हो जाएगी
वाह कितनी सुंदर अभिव्यक्ति प्रेम की..
क्षणिकाएँ बहुत बढ़िया लगी...बढ़िया रचना...हरकिरत जी बहुत बहुत बधाई!!!
गुज़र जाता अगर दरिया चुपचाप
मैं ख्यालों को रख लेती ज़ख्मों तले
गिला तो इस बात का है ....
वह जाते-जाते छू गया ......!!
Bahut sunder...aap bahut aacha likhti haa
तुम यूँ न बिछड़ना मुझ से
मोहब्बत यतीम हो जाएगी ..!
बहुत ही सुन्दर भावों से सजी हर पंक्ति सभी क्षणिकाएं अनुपम ।
kya baat hai..bahut khoob..sach mein man mohak panktiya
हरकीरत जी, एक बार पकडने के बाद अब शेर को छोडने का मन ही नहीं हो रहा...लेकिन जल्दी ही छोड दूंगी...हाहा...आप "किस्सा-कहानी" पर क्यों नहीं गईं?
aapka lekhan vakai dilchasp he, alg andaaz aour behad doob jaane ko man kartaa he/
तुम यूँ न बिछड़ना मुझ से
मोहब्बत यतीम हो जाएगी ......!! kya baat he/ kafan utarna aour fir usaka chori ho jana..prem ke sandarbh me ek behatreen soch/
पत्थर होते छाले
...................................
मेरे इश्क़ के कतरे
पत्थरों पे गिरते रहे
रफ्ता -रफ्ता ....
दिल के छाले
पत्थर होते गए.....!!
in paanch lino ne fir prem ke us roop ko darshayaa he jo antatah patthar hojata he, yaani devata// meri soch he yah/
मोहब्बत खिलखिला के
हंसने ही वाली थी
कि गुज़र गई फ़िर
कुछ अर्थियाँ करीब से .....!!
ynha ek alag tarah ka bhaav../ sach he harkiratji, aapki lekhani me ek alag kasak he/
aapke likhne ka jawaab hi nahi ....bahut sunder dhang har ek kavita ko pesh karti hai ...........bhadhai ho
तू ही बता
.........................
मैंने ज़िस्म में
जितने भी मुहब्बतों के बीज थे
तेरे नाम की लाकीरों पे
बो दिए हैं ....
अब तू ही बता ....
मैं ख्यालों को
किस ओर मोडूं .....!?!
बहुत उमदा सवाल.
पर नाराज है क्या ? गरीबखाने की तरफ़ बिल्कुल तवज्जो नहीं है।
हीर जी सुंदर रचनाओं के लिए बधई।
kaafi gehare bhav hain inmein......
man ko ekanki si mil gayi....kuch bhav bhatak gaye the, sihar rahe the....ab simat rahe hain
shukriya
छोटी-छोटी इन क्षणिकाओं में बड़ी ही शाइस्तगी और संभाल से शब्दों को रखा है. बहुत ही खूबसूरत है सभी कविताएं. मेरी बधाई स्वीकार करें.
विशेषकर इन पंक्तियों के लिए-
''सबा तो खामोश रही दोनों के बीच
बस तेरा चेहरा तलाक मांगता रहा .....!!''
- प्रदीप जिलवाने, खरगोन म.प्र.
गुज़र जाता अगर दरिया
चुपचाप.....
मैं ख्यालों को रख लेती
ज़ख्मों तले....
गिला तो इस बात का है ....
वह जाते-जाते छू गया ......!!
kuch kahne layak choda kahan ki comment kar paayein!!!
sundar.... lekin dard deti....!!!
एक से एक गहरी बेहतरीन क्षणिकायें। सुबह से कई बार पढ चुका हूँ आपकी इस पोस्ट को। आपकी लिखी रचनाओं को पढ़कर मेरा शब्दकोश बढ़ता जाता है। और काफी कुछ सीखने को भी मिल जाता है।
कमाल की क्षणिकाएं हैं । गिला और अर्थी तो जबरदस्त ।
... एक साथ ढेरों चमचमाते तारे, ...सच कहूं कुछ पल को आंखें चौंधिया गई थीं, ... अंतिम रचना तो लाजबाव !!!!!
v
अरे वाह... हक़ीर से हीर.... अच्छा लगा..
LAJAWAAB...LAJAWAAB...MUGDH KAR LIYA AAPKI IN KSHANIKAON NE.....PRASHANSHA KO SHABD NAHI DHOONDH PAA RAHI....
हरकीरत जी,
आज दुबारा पढ़ा कुछ पंक्तियाँ फिर से टीस दे रही है.
अगली रचना का इंतिजार है.
कुछ मौसमी बारिश की दरकार है.
- सुलभ
Lajawaab!!Badhai!!
ਅੰਤਾਂ ਦਾ ਸ਼ਬਦ ਸੰਜਮ , ਥੋੜੇ ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਵਿਆਪਕ ਦ੍ਰਿਸ਼ ਸਾਕਾਰ ਕਰਨਾ ਤੁਹਾਡੀ ਵੱਡੀ ਖੂਬੀ ਹੈ ।
आपका ब्लॉग बेहद सूक्षम और संवेदनशील अनुभूतियों से बुनी हुयी नज्मों / कविताओं
का शानदार संग्रह है ! नज्मों में तो आपने कमाल ही किया है !
बहुत पसंद आया आपका रचना संसार ! हार्दिक बधाइयां !
आपने मेरी ग़ज़ल पर अपने कमेन्ट दिए , अच्छा लगा , आभार !
शुभकामनाएं , सादर.................
पत्थर होते छाले
...................................
मेरे इश्क़ के कतरे
पत्थरों पे गिरते रहे
और ......
रफ्ता -रफ्ता ....
दिल के छाले
पत्थर होते गए.....!!
बहुत बढ़िया हरकीरत जी----वसे तो आपकी सभी क्षणिकायें पसन्द आईं---पर यह क्षणिका तो दिल को छू गयी।
पूनम
हरकीरत जी,
आपकी इस पोस्ट की हर क्षणिका अपने आप में मुकम्मल और बेहतरीन है----
हेमन्त कुमार
अत्यंत खूबसूरत क्षणिकायें.
nahi heer aap jo punjabi mein hain vah kuch aur hain
vahan sampreshneeyta aur sankshiptta ka anutha santulan hai jo sanket mein prem ki divayta ka srijan karta hai wo bat hindi kavita mein nahin aa pyee ... abhi AMRITA WALI KAVITA DEKH RAHA THA SACH KAHOON MAIN TO NAHI PAKAD PAYA... HO SAKTA HAI MERI NAZAR KAMJOR HO ...ABHI YE KSHNIKAYEIN DEKH RAHA HOON BAHUT SUNDAR BANI HAIN LEKIN HARKEERAT HEER KI JHALAK INMEIN NAHI MIL RAHI ya fir bahut halki upasthiti MERI IS AALOCHNA KO RADH KARNE KA POORA HAQ HAI APKO LEKIN ISE AADHAR BANA KAR MUJHSE DOSTI NA TODNA ...AAP AUR AAPKI KAVITA APNE GADHE RANGON KE BAVJOOD MUJHE BAHUT PRIY HAIN
Itni
Dard
Bharii
Abhivyakti
OH OH
Thodi
Rulaii
Aa
Rahi
Hai
wakai behtareen kshanikayen hain... khaskar...
मेरे इश्क़ के कतरे
पत्थरों पे गिरते रहे
और रफ्ता -रफ्ता दिल के छाले
पत्थर होते गए.....!!
.............
गुज़र जाता अगर दरिया चुपचाप
मैं ख्यालों को रख लेती ज़ख्मों तले
गिला तो इस बात का है
वह जाते-जाते छू गया ......!!
बहुत ही भावुक कर देने वाली कुछ क्षणिकाएं है ..... सुन्दर चिंतन से लबरेज
बहुत ही भावुक कर देने वाली कुछ क्षणिकाएं है ..... सुन्दर चिंतन से लबरेज
मोहब्बत खिलखिला के
हंसने ही वाली थी
कि गुज़र गई फ़िर
कुछ अर्थियाँ करीब से .....!!
mera maun tak stabdh hai yahaan
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