"मोहब्बत" ....दवा भी है ... दर्द भी, ....सुकूं भी है .... बेकरारी, बेकसी भी , .....करार भी है... बेताबी भी ,.....विश्वास भी है फरेब भी .... किसी शायर का बडा प्यारा सा शे'र याद आ रहा है ......
मुहब्बतों के खेल में जो पास था गवां दिया
ये दर्दे दिल सही मगर मुझे कुछ मिला तो है
उसे ....
आज भी याद है
कहाँ से शुरू हुए थे शब्द
वो बेतरतीब सी धड़कती धडकने
वो खामोशी , वो इन्तजार ...
वो सारा आसमां
मुट्ठी में भर लेती
रात जब मुट्ठी खोलती
तो चाँद ,तारे , आसमां
सारा जहां अपना सा लगता ....
वो तमाम नज्में
जो अब तक अनछुई थीं
स्पर्श के एहसासों से
गुनगुनाने लगीं थीं
वह अपनी अँगुलियों के पोरों से
लिख डालता हर बार इक नई ग़ज़ल
वह छुई- मुई सी सुन्दरता के
बन जाती कई गीत .....
वो मुस्कुरा के पूछता ...
डायरी मिल्क या
किट- कैट....?
वो खिलखिला के कहती
किट - कैट ....
वो उदास हो जाता ...
बातों ही बातों में वे गढ़ लेते
कई हसीं नगमें...
वो ख़त लिखता
तो रोमानियत के कई आवरण
खोल देता ....
वह समेट लेती
अहसासों का समुंद्र
होंठों की छुअन
ख़त में लिखी सतरों को
और भी पाक कर देती ...
दूर कहीं आसमां
मिलन का भ्रम देता
सामने दरख्त पर बैठे
दो पंक्षी घंटों बैठ
ज़िन्दगी की बातें करते...
वक्त बीतता गया .......
वर्ष बीतते गए .....
वह आज भी लिखती है नज्में
पर वह कहीं आस-पास नहीं होता
वह भी लिखता है गजलें
पर वह कहीं आस-पास नहीं होती.....!!
Friday, October 30, 2009
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
59 comments:
जिसको चाहा वही मिला होता
तो मुहब्बत मज़ाक़ हो जाती
bahut hi ehsaason se paripurn ek romani si .... bahut hi achchi kavita.... is kavita mein bachchon jaisi zid bahut achchi lagi....
हरकीरतजी,
बेहतरीन नज्म ! अंतिम बंद और उसकी अंतिम पंक्ति तो सारे कहे पर आग की बूँद-सी गिरी है :
वह आज भी लिखती है नज्में
पर वह कहीं आस-पास नहीं होता
वह भी लिखता है गजलें
पर वह कहीं आस-पास नहीं होती
सुना है उसे अब फ़िर से ख़त आने लगे हैं ......!!
वल्लाह ! अहसासों और जज्बातों को बयाँ करनेवाली क्या उम्दा कलम पायी है आपने !!
बधाई !!! साभिवादन--आ.
वाह बहुत सुंदर रचना,धन्यवाद
बहुत सुन्दर।एक अजीब-सी कसक महसूस होती है।
वह आज भी लिखती है नज्में
पर वह कहीं आस-पास नहीं होता
वह भी लिखता है गजलें
पर वह कहीं आस-पास नहीं होती
सुना है उसे अब फ़िर से ख़त आने लगे हैं ......!!
एक और बेमिसाल कविता आपकी..हमेशा की तरह..जज्बात को पिघला कर अलग-२ पैकर देने वाले सांचों की कमी नही आपके पास...
..और इस बार अमृता नही परवीन शाकिर याद आयीं
दिल मे फूल खिलते हैं
रूह मे चिरागाँ है
जिंदगी मुअत्तर है
फिर भी दिल ये कहता है
बात कुछ बना लेना
वक्त के खजाने से
एक पल चुरा लेना
काश! वह खुद आ जाता !!
कलेजे में सट से लगने वाली बात
बात में करामात
करामाती कविता.............अद्भुत कविता ,,,,,,,,
जियो भैण जी जियो !
तुहाडी प्रतिभा नू सलाम !
सामने दरख्त पर बैठे
दो पंक्षी घंटों बैठ
ज़िन्दगी की बातें करते...
आपकी नज़्मो को पढना ऐसा लगता है जैसे जिन्दगी के सिलसिले को पढ रहे है.
नायाब
दूर कहीं आसमां
मिलन का भ्रम देता
सामने दरख्त पर बैठे
दो पंक्षी घंटों बैठ
ज़िन्दगी की बातें करते...nice
जिंदगी के हँसीन लम्हों को याद दिलाता एक सुंदर गीत...एक सुंदर एहसास प्रस्तुत किया आपने..गीत बढ़िया लगी..धन्यवाद!!!
जारी रहे,
इन खतों का सिलसिला
अब न टूटे कभी
व्यक्ति शाख से टूट कर भी जीता रहता है और जीते हुए एक दिन पाता है कि उसकी कोंपले फिर से निकलने लगी हैं...
मैं थाम नहीं पा रहा इस असीम सुख को...इस नज़्म को...
1.आज फिर जख्मी हुआ दिल
..आज फिर उसको पढ़ा
..घाव जो भंरने लगा था
..आज फिर ताज़ा हुआ
2.suraj aag ka nahin
..dard ka gola hai
..kirnein shabd mein dal jati hain
..mat samjhna ye nagme tere hain
3. aapki ye kavita .. A.K. 47
वह आज भी लिखती है नज्में
पर वह कहीं आस-पास नहीं होता
वह भी लिखता है गजलें
पर वह कहीं आस-पास नहीं होती
बहुत सुन्दर शब्द रचना, बेहतरीन प्रस्तुति ।
बात कुछ बना लेना
वक्त के खजाने से
एक पल चुरा लेना
काश! वह खुद आ जाता !!
kash aisa ho pata,ek behtarin kavita ke liye badhai.mohobbat hai hi aisi chiz....mithas ki leheron ke niche khara paani...
शब्द सामंजस्य के लिए आदरणीय एवं अनुकरणीय
को प्रणाम !
बहुत मीठी यादों का अहसास लिए सुन्दर रचना.
कितना अच्छा लिखती हैं आप.
नज़मो की रानी को मेरा सलाम और आगे कुछ नहीं कह पाउँगा ... वरना पोस्ट से लम्बी टिपण्णी कर बैठूँगा...
आपका
अर्श
हरकीरत जी, आपकी कविता तो रूमानी ख्यालों की है, लेकिन आपके ब्लॉग का लेआउटहॉरर फिल्मों जैसा लग रहा है, सम्भव हो तो मेरी बात पर विचार करें।
--------------
स्त्री के चरित्र पर लांछन लगाती तकनीक
आइए आज आपको चार्वाक के बारे में बताएं
बहुत बेहतरीन रचना लगी . पढ़ते पढ़ते सांस कब रुक गयी पता ही नहीं चला .रचना समाप्त हुई तब पता चला कि सांस भी लेना है . बधाई !!!
वो बेतरतीब सी धड़कती धडकने
वो खामोशी , वो इन्तजार ...
शब्दों की जादूगरी तो कोई आपसे सीखे...क्या लिखती हैं आप...कमाल...वाह...मेरे पास प्रशंशा के शब्द नहीं हैं...
नीरज
बहुत ही सुंदर मीठे अहसासों को लिख दिया। बस उसमें डूबता चला गया।
वो सारा आसमां
मुट्ठी में भर लेती
रात जब मुट्ठी खोलती
तो चाँद ,तारे , आसमां
सारा जहां अपना सा लगता ..
इन शब्दों में ना जाने क्या है? बयान नही कर सकता।
वह आज भी लिखती है नज्में
पर वह कहीं आस-पास नहीं होता
वह भी लिखता है गजलें
पर वह कहीं आस-पास नहीं होती
सुना है उसे अब फ़िर से ख़त आने लगे हैं
कुछ शब्दों को उधार दे दो कुछ कहने के लिए ........
hamesha ki tarah aapke shabd sketch bana rahe hain par is baar mujhe maaf kariyega... mujhe 'end' nahi samjha :(
सुना है उसे अब फ़िर से ख़त आने लगे हैं ......!!
thoda prakash daaliye? :(
"सुना है उसे अब फ़िर से ख़त आने लगे हैं"
इस वाक़ये ने जैसे सांस फूंकी है पूरी नज़्म में ......पूरी नज़्म एक अजीब से अहसासों का भरा टोकरा है .जिसे छूने भर से छलकने का डर लगता है ...लगता है इस दिल में ढेरो नज्मे छुपी बैठी है ..सर झुकाए .अपनी अपनी बारी का इंतज़ार करती हुई.....
अर्शिया said...
हरकीरत जी, आपकी कविता तो रूमानी ख्यालों की है, लेकिन आपके ब्लॉग का लेआउटहॉरर फिल्मों जैसा लग रहा है, सम्भव हो तो मेरी बात पर विचार करें।
अर्शियाजी सुझाव का शुक्रिया ...कुछ और लोग भी सुझाव दें तो विचार करूँ ....!!
मित्रों से अनुरोध है कि सुझाव दें ....वैसे ये हारर शब्द बड़ा डरावना है ....!!.
Pankaj Upadhyay said...
hamesha ki tarah aapke shabd sketch bana rahe hain par is baar mujhe maaf kariyega... mujhe 'end' nahi samjha :(
सुना है उसे अब फ़िर से ख़त आने लगे हैं ......!!
thoda prakash daaliye? :(
पंकज जी सुना है उसे फिर से ख़त आने लगे हैं ....भेजने वाली कोई और है वो नहीं .....!!
ohh ok :)..mujhe actually wahi confusion tha ki 'kise' khat aane lage hain...
shayad main likhta to ladki ko kisi aur ke khat aane lage hote.. :)
aur jaisa anurag ji ne bola sab ekdam wahi.. ab unse achha to nahi bol sakta .. aur kya bola hai unhone bhi :)
Thanks for helping me out.. likhti rahiye :)
बहुत सुंदर और नायाब रचना.
रामराम.
ek alag hi khyalon ki duniya mein le gayi aap ............bahut hi nazuk se ahsaas ...........badhayi
ehsaaso ki aahat honton ki chuan bahut hi umda ....behtareen bahut hi gud likhte rahiye
वह आज भी लिखती है नज्में
पर वह कहीं आस-पास नहीं होता
वह भी लिखता है गजलें
पर वह कहीं आस-पास नहीं होती
सुना है अब फिर से आने लगे हैं उसके खत ।
वाह ! वाह ! वाह !
भई आप बहुत अच्छा लिखती हैं
KHWAABON AUR KHYAALON KI DUNIYA MEIN DOOBE ALFAAZ ...... PYAAR KI MAHAKTI RESHMI HAVA KE JHONKE SI AAPKI LAJAWAAB RACHNA .... BAHOOT HI LAJAWAAB .... KAMAAL KI HAI ...
सुना है उसे अब फ़िर से ख़त आने लगे हैं ......!
आमीन...।
वो मुस्कुरा के पूछता ...
डायरी मिल्क या
किट- कैट....?
वो खिलखिला के कहती
किट - कैट ....
वो उदास हो जाता
बेहद खुबसूरत और मासूम अहसासों से भरी रचना .....अंत देख कर बहुत सुकून आया.
wah,bahut sunder
वह आज भी लिखती है नज्में
पर वह कहीं आस-पास नहीं होता
वह भी लिखता है गजलें
पर वह कहीं आस-पास नहीं होती
सुना है उसे अब फ़िर से ख़त आने लगे हैं ......!!
सुना है उसे अब फिर से ख़त आने लगे हैं.....!
इस एक पंक्ति ने पूरी कविता को बेहतरीन बना दिया है।
jai mata di
mera nam pankaj hai mene aapki kavita padi mujhe bhut achhi agi
mere pass bhi bhut se sval hai sayad un svalo ke jvab aap de paye mujhe me aapke jvab ka intjar krunga
ki aap mujhe jrur mere kuch svalon ke jvab denge
meri email hai pankajgoyal525@gmail.com
jai mata di
दूर कहीं आसमां
मिलन का भ्रम देता
सामने दरख्त पर बैठे
दो पंक्षी घंटों बैठ
ज़िन्दगी की बातें करते...
bahut achaa chitran....
सुना है उसे अब फ़िर से ख़त आने लगे हैं ......!!
laajwaab........
वह आज भी लिखती है नज्में
पर वह कहीं आस-पास नहीं होता
वह भी लिखता है गजलें
पर वह कहीं आस-पास नहीं होती.....
बेहतरीन नज्म .....
वो तमाम नज्में
जो अब तक अनछुई थीं
स्पर्श के एहसासों से
गुनगुनाने लगीं थीं
fabulous
वो मुस्कुरा के पूछता ...
डायरी मिल्क या
किट- कैट....?
वो खिलखिला के कहती
किट - कैट ....
वो उदास हो जाता ...
excellent conversation
वह आज भी लिखती है नज्में
पर वह कहीं आस-पास नहीं होता
वह भी लिखता है गजलें
पर वह कहीं आस-पास नहीं होती
सुना है उसे अब फ़िर से ख़त आने लगे हैं ..
Marvelous
HARKIRAT JI, "DARASHIKOH KI MOT" kahani ke liye DAD MERE KAVI MITR MAHARAJ KRISHAN SANTOSHI KE LIYE
YAH KAHANI UNKI KALAM SE HAI ..
SHYAM KI KOI HISEDARI NAHIN HAI SIWA THODE SE SAMPADAN KE
AAPKE IS "SHYAM1950 BLOG" KA TIPANI KALAM JAM HUA PADA HAI SO YAHAN AANA PADA
धन्यवाद हरकीरत जी, आपके मेरे ब्लॉग पर आने से मेरा लिखने का होंसला बढ़ता है.....
आपसे निवेदन है की मेरे ब्लॉग www.saaransh-en-ant.blogspot.com पर भी कृपा दृष्टि डाला करें और मेरा होंसला बढायें....
bahut gaharaee liye hue sashakt rachana . badhai
हरकीरत जी, आज आप के ब्लॉक पर आना हुआ | सबसे पहले आप को गुरुनानकदेव जी के प्रकाश उत्सव की लख-लख बधाई|आप बहुत अच्छा लिखती है|इसी तरह लिखती रहे| गुरुग्रन्थ साहिब में गुरू नानकदेवजी ने कहा है- हमारा आचरण कागज है और मन स्याही की दवात है। स्याही से जो लेख लिखे जाते हैं,वह ही हमारा स्वभाव बन जाता है।
aapke jadui shabdon ke jaal ne ek baar phir mohit karliayaa ati sundar!!
मुहब्बतों के खेल में जो पास था गवां दिया
ये दर्दे दिल सही मगर मुझे कुछ मिला तो है
आपकी कविताओं में मुझे धीरे-धीरे सम्हल के उतरना पडता है ।
जिसको चाहा वही मिला होता
तो मुहब्बत मज़ाक़ हो जाती
thoda dard bhara magar sach
shayad kadwa sach
-Sheena
वह आज भी लिखती है नज्में
पर वह कहीं आस-पास नहीं होता
वह भी लिखता है गजलें
पर वह कहीं आस-पास नहीं होती..
बस यही तो मुहब्बत है.. क्या खूब कहा है!!
aanand ji bahut sahi kahe aur is rachna se meri atit ki yaade taaza ho gayi .harkirat ji aap bahut umda likhti hai ,atit kaisa bhi ho zindagi ka hissaa hota magar kuchh log ki salaah hai ise chipkaane se kya fayda magar mitaya bhi nahi jaata ,kahana har cheej aasaan hai aur face karna muskil .
aapko mera likha achcha laga...ye mujhe achcha laga.
Tere lkane mein chipa hai koi gahara sa dard purana
jab ye dosti ho jaye purani tab use tum humko batana
neelesh, mumbai
वाह.....
सुना है के नाम पर कशिश छोड़ती हुई आपकी एक सुन्दर रचना के लिए बधाई स्वीकारें......
बेहतरीन नज्म !
धन्यवाद हरकीरत जी, आपके मेरे ब्लॉग पर आने से मेरा लिखने का होंसला बढ़ता है.
बहुत अच्छे भाव आप पिरो जाती हैं। यह खासियत है काबिलियत शायद छोटा शब्द है
spare tim to visit
http://kumarzahid.blogspot.com
हमेशा की तरह खूबसूरत नज़्म.. दिल को करीब से छूती हुई..
वो मुस्कुरा के पूछता ...
डायरी मिल्क या
किट- कैट....?
वो खिलखिला के कहती
किट - कैट ....
वो उदास हो जाता ...
बहुत ही प्यारा हिस्सा लगा नज़्म का...
ब्लॉग का रंग रूप , कलर कम्बीनेशन एक दम दुरूस्त है...
लेकिन सबसे ऊपर बड़ा बड़ा लिखा
'' harkeerat haqeer ''
thodaa saa horrer look de rahaa hai..
:)
:)
isme kuchh badlaaw ho sake to dekhiygaa ji....
:)
जी मनु जी जल्द ही कोशिश करुँगी बदलने की .....शायद मैं अपना तखल्लुस भी बदल लूँ ...इमरोज़ जी का बार-बार आग्रह है ....वे मुझे लिखते भी 'हीर' ही हैं बताइयेगा......!!
अभी हम आपके ब्लॉग को चेक ही कर रहे हैं...
और इतनी जल्दी आपका जवाब भी आ गया हकीर जी...
या '' हीर '' जी....
तखल्लुस चेंज करना आपकी मर्जी है...
हाँ,
हम से हमारा तखल्लुस नहीं बदला जाता
निशब्द
Post a Comment