Wednesday, June 3, 2015

मुरझाये फूल .....
******************

भी चाहतों के धागे से
लिखा था मुहब्बत का पहला गीत
इक हर्फ़ बदन से झड़ता
और इश्क़ की महक फ़ैल जाती हवाओं में
देह की इक-इक सतर गाने लगती
रंगों के मेले लगते
बादलों की दुनियाँ बारिशों के संग गुनगुनाने लगती
आस्मां दोनों हाथों से
आलिंगन में भर लेता धरती को …


कभी उम्र के महल में
हुस्नों के दीये जलते थे
रात भर जागती रहती आँखों की मुस्कराहट
शहद सा भर जाता होठों में
इक नाजुक सा दिल
छुपा लेता हजारों इश्क़ के किस्से करवटों में
रात घूँट -घूँट पीती रहती
इश्क़ का जाम ....

आज बरसों बाद
दर्द का एक कटोरा उठाकर पीती हूँ
रूह के पानी से आटा गूँधती हूँ
ग़म की आँच पर सेंकने लगती हूँ
अनचाहे रिश्तों की रोटियाँ
और उम्र के आसमान पर उगते सफेद बादलों में
ढूंढने लगती हूँ टूटे अक्षरों की कोई मज़ार
जहाँ रख सकूँ बरसों पहले मर गए
देह के खुशनुमा अक्षरों के
मुरझाये फूल …

हीर ……

14 comments:

सुशील कुमार जोशी said...

वाह!
बहुत दिनों के बाद ।
एक लाजवाब रचना ।

डॉ टी एस दराल said...

वक्त गुजर ही जाता है ! वक्त को रोक लो ...
वही चिर परिचित अंदाज़ ! ब्लॉगिंग के पुराने दिनों की याद ताज़ा हो गई !

प्रवीण पाण्डेय said...

समय बीत जायेगा, मन न बीतेगा।

Himkar Shyam said...

बहुत ख़ूब! लाजवाब नज़्म, हमेशा की तरह...
अरसे बाद आपको यहाँ पढना अच्छा लगा, इस बीच कई चक्कर लगाये... कभी मेरे ब्लॉग पर भी आयें और मेरा मार्गदर्शन करें.

मनोज भारती said...

बहुत खूब !!! दर्द पर बहुत खूब लिखती हैं आप ... बहुत दिनों के बाद फिर से पढना अच्छा लगा।

मनोज भारती said...

बहुत खूब !!! दर्द पर बहुत खूब लिखती हैं आप ... बहुत दिनों के बाद फिर से पढना अच्छा लगा।

Onkar said...

लाजवाब

रचना दीक्षित said...

क्या खूबसूरती है,क्या दर्द है सब कुछ लाजवाब

अरुण चन्द्र रॉय said...

सुन्दरपंक्तियाँ

Asha Joglekar said...

इक हर्फ़ बदन से झड़ता
और इश्क़ की महक फ़ैल जाती हवाओं में
देह की इक-इक सतर गाने लगती
रंगों के मेले लगते
बादलों की दुनियाँ बारिशों के संग गुनगुनाने लगती
आस्मां दोनों हाथों से
आलिंगन में भर लेता धरती को …
वाह ये भाव सुंदर लगे वैसे दर्द में आपकी महारत है ही।

आरंभ से अंत तक said...

अच्छी अभिव्यक्ति

शारदा अरोरा said...

bahut khubsurat ...Harkeerat ji

Pushpendra Vir Sahil पुष्पेन्द्र वीर साहिल said...

इक हर्फ़ बदन से झड़ता
और इश्क़ की महक फ़ैल जाती हवाओं में
देह की इक-इक सतर गाने लगती
रंगों के मेले लगते
बादलों की दुनियाँ बारिशों के संग गुनगुनाने लगती
आस्मां दोनों हाथों से
आलिंगन में भर लेता धरती को ....

बहुत सुन्दर चित्र उकेरा है आपने .... मुहब्बत का नाजुक सा उफान !

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

आपके लिखे को पढ़ बस आह सी निकल जाती है .