कुछ क्षणिकाएं .........
(१)
बलात्कार के बाद .....
कुछ आवारा बादल
गली के उस पार
भागते हुए निकल गए
मैंने खिड़की से बाहर झाँका
चाँद उकडूं बैठा सिसक रहा था
अफवाह ने करवट बदली
हिन्दू - मुस्लिम दंगे भड़कने लगे ....!!
(२)
गरीबी .....
अच्छा हुआ वक़्त ने
नहीं पूछा ख़ामोशी का राज़
वर्ना उसकी आँखों में
चूल्हे की बुझी राख देख ...
फिर बरस पड़ते बादल .....!!
(३)
खंडहर होता इश्क़ ......
बेखौफ मदहोश सी ...वह फाड़े जा रही है इश्क़ की पाक चुनरी चनाब की देह पर ......
सब लिबास उधेड़ दिए
इश्क़ की जात ने
शराब में मदहोश
दूर सूखी घास पर
अधजले टुकड़े सी
खंडहर हुई जा रही है
इश्क़ की चादर .....!!
(४)
शबाब बखेरती तितलियाँ .....
भूमिगत कब्रिस्तान से
अंकुरित तितलियाँ
पौधों की जड़ों से चूस लेती हैं खून
इंसानी सोच का .....
बहुरंगी भाषाओँ से खुशबू बिखेरती हैं
शबाब की इस दाखिली पर
झुक जाता है चेहरा ...
शर्म से .....!!
Monday, December 21, 2009
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62 comments:
In unmadiyon ne chaand ko isi layak kar dala hai:
मैंने खिड़की से बाहर झाँका
चाँद उकडूं बैठा सिसक रहा था
(Roman me likhne ke liye mafi, computer ne virus hamle me dum thod diya hai, do boond aandhu usi ke naam)
अच्छा हुआ वक़्त ने
नहीं पूछा ख़ामोशी का राज़
वर्ना उसकी आँखों में
चूल्हे की बुझी राख देख ...
फिर बरस पड़ते बादल .....!!
बहुत बढ़िया चित्रण ग़रीबी की ..सुंदर भाव..धन्यवाद हरकिरत जी
marmsparshi kashanikayen hain ....dil ko chhune wali.
बहुत बढ़िया क्षणिकाएं है। बधाई।
कुछ आवारा बादल
गली के उस पार
भागते हुए निकल गए
मैंने खिड़की से बाहर झाँका
चाँद उकडूं बैठा सिसक रहा था
अफवाह ने करवट बदली
हिन्दू - मुस्लिम दंगे भड़कने लगे ....!!
बहुत खूब , मार्मिक रचना लगी ।
अफवाह ने करवट बदली
हिन्दू - मुस्लिम दंगे भड़कने लगे ....!!
कमाल है!!! इतनी बडी बात इतने आसान लफ़्ज़ों में!! बहुत खूब.
Aajtak na hua ki aapki rachnayen padhne ke baad man nihshabd na hua ho.....
Bahut bahut behtareen...sabhi ki sabhi kshanikayen...
बेहतरीन क्षणिकाएं ।
अच्छा हुआ वक़्त ने
नहीं पूछा ख़ामोशी का राज़
वर्ना उसकी आँखों में
चूल्हे की बुझी राख देख ...
फिर बरस पड़ते बादल .....!!
लाजबाव कर दिया आपने.
kuchh magar bahut kuchh ,laajwaab lagi sabhi kshanikaaye ,aapko kahne ke liye hamare pass hai kahan kuchh ,umda
अच्छा हुआ वक़्त ने
नहीं पूछा ख़ामोशी का राज़
वर्ना उसकी आँखों में
चूल्हे की बुझी राख देख ...
फिर बरस पड़ते बादल .....!!kya pate ki baat hai
मैंने खिड़की से बाहर झाँका
चाँद उकडूं बैठा सिसक रहा था
बहुत सुंदर लेकिन दर्द ओर सचाई से भरपूर
अच्छा हुआ वक़्त ने
नहीं पूछा ख़ामोशी का राज़
वर्ना उसकी आँखों में
चूल्हे की बुझी राख देख ...
फिर बरस पड़ते बादल .....!!
marmsparshi!
-baki ksnikayen bhi samaaj par prahaar karti hain
-bahut sashkat abhivyakti!
हरकीरत जी बहुत सुंदर.
शबाब बिखेरती तितलियाँ झुका देती है शर्म से नजरें ....
२१ वीं सदी के प्रेम में प्रेम है भी क्या ...?
गज़ब लिखती हैं आप ....सच ...!!
"अछूता नहीं है कहीं भी
नष्ट-भ्रष्ट धंसा हुआ अतीत
दूर सूखी घास पर
अधजले टुकड़े सा
खंडहर हुआ जा रहा है
इक्कीसवीं सदी का प्रेम .....!!"
विमुग्ध हूँ इस रचना पर । बेहद खूबसूरत लिखती हैं आप । आभार ।
nice
बहुत ही भावपूर्ण रचनाएं।
हरकीरत जी,
बड़ी कोशिश किती, तारीफ़ लई कोई चंगे जये शब्द ढूंढन लई...नहीं लब पाया...हुण तुसी मेरे मौण तो ही सब समझ जाओ...
जय हिंद...
गूढ़ बात कहने का ढ़ंग
हरकीरत-क्षणिका के संग
सच कहता हूँ मजा आ गया,
रचना में जो दिखा है रंग
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman. blogspot. com
मेरी पसंद की कविताएं आपके यहाँ मिल जाती है. छोटे ताने में बुनी फीलिंग्स की दुनिया, ये आपके शब्दों से ही संभव है. नरम राख में भी एक उम्मीद ज़िन्दा रहा करती है आपने बहुत खूब कहा कि उस पर भी अगर बादल बरस जाये तो... सुंदर.
sabhi kshanikayen, uttam.
अच्छा हुआ वक़्त ने
नहीं पूछा ख़ामोशी का राज़
वर्ना उसकी आँखों में
चूल्हे की बुझी राख देख ...
फिर बरस पड़ते बादल .....!!
अति संवेदनशील।
हमेशा की तरह लाज़वाब रचनाएँ।
बहुत मार्मिक और मर्मस्पर्शी .... क्षणिकायें ......
दिल को छू गयीं.....
Are wah..
kya khub likha hai apne sidha dil me jagah bana gai..!
waise ma'm ham aapki rachna ke diwane hote jarahen hai..ysa koe din nahi jisdin ham aapka blog na tach karten ho...!
मैंने खिड़की से बाहर झाँका
चाँद उकडूं बैठा सिसक रहा था ।
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
अच्छा हुआ वक़्त ने
नहीं पूछा ख़ामोशी का राज़
वर्ना उसकी आँखों में
चूल्हे की बुझी राख देख ...
फिर बरस पड़ते बादल .....!
और
कुछ आवारा बादल
गली के उस पार
भागते हुए निकल गए
मैंने खिड़की से बाहर झाँका
चाँद उकडूं बैठा सिसक रहा था
अफवाह ने करवट बदली
हिन्दू - मुस्लिम दंगे भड़कने लगे । हरकीरत जी निशब्द हूँ आपकी क्षणिकाओं पर लाजवाब. सुन्दर,। कहाँ से लाती हैं नयी नयी उपमायें और शब्दों को गूथने की कला। बधाई
एक से बढ़कर एक बेहद भावनात्मक और संवेदनशील रचनायें
बहुत सुन्दर रचनाएं..सीधे दिल में उतर जाने वाली.
behtarin rachna
अच्छा हुआ वक़्त ने
नहीं पूछा ख़ामोशी का राज़
वर्ना उसकी आँखों में
चूल्हे की बुझी राख देख
फिर बरस पड़ते बादल
bahut bahut abhar
गरीबी .....
अच्छा हुआ वक़्त ने
नहीं पूछा ख़ामोशी का राज़
वर्ना उसकी आँखों में
चूल्हे की बुझी राख देख ...
फिर बरस पड़ते बादल .....!!
dil ko choo gayi...........baki sabhi kshanikayein bahut hi khoobsoorat hain.
अच्छा हुआ वक़्त ने
नहीं पूछा ख़ामोशी का राज़
behtareen line jo maane bahut dilchasp hai ...
अच्छा हुआ वक़्त ने
नहीं पूछा ख़ामोशी का राज़
वर्ना उसकी आँखों में
चूल्हे की बुझी राख देख ...
फिर बरस पड़ते बादल .....!!
सभी बहुत पसंद आई यह बहुत पसंद आई शुक्रिया
किसी भी एक को अच्छा कहना दूसरी क्षणिका के साथ अन्याय होगा ........ बहुत ही कमाल का सांजस्य है शीर्षक और उसकी अभिव्यक्ति में ........ सत्य का विवरण है .......... बहुत कमाल का लिखा है ..........
मैंने खिड़की से बाहर झाँका
चाँद उकडूं बैठा सिसक रहा था ।
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
बहुत सुंदर और उत्तम भाव लिए हुए.... खूबसूरत रचना......
अच्छा हुआ वक़्त ने
नहीं पूछा ख़ामोशी का राज़
वर्ना उसकी आँखों में
चूल्हे की बुझी राख देख ...
फिर बरस पड़ते बादल .....!!
नए और अनोखे... बहुत ख़ास है ये.
चाँद उकडूं बैठा सिसक रहा था
अफवाह ने करवट बदली
हिन्दू - मुस्लिम दंगे भड़कने लगे ....
.. बेहतरीन
heer ji sari kshanikaye bahut gehri aur umda hai..kaise likh leti hai itni gehrayi se...hatts off.guru gyan dijiye.pls.
बलात्कार के बाद अभागी काली स्याही अखबारी कागज पर बस जब-तब पसर गई..!
गरीबी तो वक्त की साजिश से ही उपजी..खामोशी पीकर ही सदा जवाँ रहा है..शोषण..!
हर सदी मे हर तरह का प्रेम नुक्कड़ पर अपनी वैरायटी की नुमाईश करता है..!
अहा..अंकुरित तितलियाँ..खुद के पैदा किए हुए अंधे मुद्दे ताकि मेरे दुकान चलती रहे कालाबाजारी की..राजनीति मे राज बस issue-makers का है...!
ये क्षणिकाएँ...बस क्षण भर का सत्व नही समेटे हैं अपने आप मे...पूरा आधुनिक जीवन सीत्कार कर रहा है इनमें...!
चारों क्षणिकाऍं बहुत कम पंक्तियों में कितना कुछ कह गईं हैं। बधाई
man kartaa hai aap tak pahuch kar dher saari guftgoo karoo
priti
भूमिगत कब्रिस्तान से
अंकुरित तितलियाँ
पौधों की जड़ों से चूस लेती हैं खून
इंसानी सोच का .....
बहुरंगी भाषाओँ से खुशबू बिखेरती हैं
शबाब की इस दाखिली पर
झुक जाता है चेहरा ...
शर्म से .....!!
सच कहा ....कभी कभी लगता है दुःख आपकी विशेषता है दुःख में आप कुछ ओर नजर आती है ...
एक बात ओर .....
अफवाह ने करवट बदली
यहां तक मुझे बहुत अपील की..........इससे अगली लाइन ......
हिन्दू - मुस्लिम दंगे भड़कने लगे ....!!
कुछ मूड हुआ था चेंज करने का ?
आखिर में एक बात इससे अलहदा
आप दुःख को इतना अच्छे से समझती है तो फिर जिंदगी को ?????
कुछ आवारा बादल
गली के उस पार
भागते हुए निकल गए
मैंने खिड़की से बाहर झाँका
चाँद उकडूं बैठा सिसक रहा था
अफवाह ने करवट बदली
हिन्दू - मुस्लिम दंगे भड़कने लगे ....!!
@एक बात ओर .....
अफवाह ने करवट बदली
यहां तक मुझे बहुत अपील की..........इससे अगली लाइन ......
हिन्दू - मुस्लिम दंगे भड़कने लगे ....!!
कुछ मूड हुआ था चेंज करने का ?
डाक्टर अनुराग जी नहीं समझी क्या कहना चाहते हैं .....?
अनुराग जी इस क्षणिका के बहुत ही गहरे अर्थ हैं ....एक लड़की का बलात्कार होता है वह उकडूं बैठी सिसक रही है भागते हुए लड़कों में कुछ हिंदूं हैं कुछ मुसलमां.....हिन्दू-मुस्लिम दंगे इसी बात से भड़क उठते हैं हिन्दू कहते हैं बलात्कारी मुस्लिम था और मुसलमां कहते हैं वह हिन्दू था ....!!
सब कुछ तो कहा जा चुका है .मुग्ध भी हूँ ,स्तब्ध भी .इतना गहरा अवलोकन और लिखे गए में समाहित प्रतिमान और प्रतीक !
आपकी शान में ......
तेरी नज़र से दुनियां को गर देख ले इंसान
इंसान का इंसान होना होगा कुछ आसान .
इतनी उम्दा अभिव्यक्ति के लिए धन्यवाद .
सभी क्षणिकाएं उत्तम कोटि की हैं।
aapki lekhni ke har rang apna nishan chod jate hai aur fir bhi chtak hi rhte hai .
ati sundar.
हकीकत और जिंदगी बयान करती हैं
क्षणिकाएं होते हुए भी...
उम्हु..गलत है ये! सरासर नाइंसाफी!! चार बेहतरीन क्षणिकाओं एक साथ एक पोस्ट में देना...एकदम गलत बात है मैम। किसमें उलझूं, किसको तरजीह दूं....
आवारा बादलों वाला बिम्ब ग़ज़ब का है।
चूल्हे की बूझी राख...उलझा गयी। इशारा शायद प्राकृतिक विपदा अकाल की तरफ है।
सूखी घास पर अधजली सिगरेट के जरिये मुझे मेरा दोस्त क्यों याद आया?
आखिरी क्षणिका उन तमाम विमर्शों{?}के नाम कर दें आप... :-)
बहुत ही उम्दा लिखा है आपने..बेहतरीन..
आपोनार लेखा टू सोबोय जाने ऐतिया आरू मोर कोबोलोगिया एकोई नाइ !!! ईमान धुनिया लेखा टू क मोई की कोम !!!
आपकी कविताएं खूबसूरत तो होती ही हैं किसी अवगुंठनवती की तरह रहस्यमयी भीं । चांद बेचारे का उकडूं बैठ कर सिसकना बिलकुल अच्छा नही लगा ।
kyaa kahoon di... aisi kshanikayein to shayad hi kabhi padhi hon./... especially the first one..."बलात्कार के बाद ..... "
kal hi manto ko padhaa aur aaj hi aapki yeh kshanikaa... kyaa kahoon zehan kaa kyaaa haal hai...
बहुत गहरे अर्थ लिए हुई रचनाए !
बेहतरीन क्षणिकाएं..
वर्ना उसकी आँखों में
चूल्हे की बुझी राख देख ...
फिर बरस पड़ते बादल .....!!
ऐसे ही होते हैं वो भूख के बादल, जो बरस कर पेट की आग को और भड़का देते हैं...और चूल्हे फिर भी बस आग के मुंतजिर ही रह जाते हैं..
बहुत सुंदर
नया साल मुबारक हो।
ਇੰਨੀ ਗਹਿਰਾਈ !
ਡੁੱਬ ਜਾਂਦਾ ਹਾਂ
ਤੁਹਾਡੀਆਂ ਨਜ਼ਮਾਂ ਵਿੱਚ
ਬਹੁਤ ਗਹਿਰਾ
ਹਕੀਰ ਤੋਂ ਹੀਰ
ਦਾ ਸਫਰ
ਦੁਆ ਹੈ
ਸੱਚੇ ਰੱਬ ਅੱਗੇ
ਇਹ ਸਫਰ
ਹੀਰ ਤੋਂ "ਹੀ"
ਤੱਕ ਪਹੁੰਚੇ
ਹਰਕੀਰਤ "ਹੀ"
ਮਤਲਬ
ਸਭ ਜਗ੍ਹਾ
ਹਰਕੀਰਤ ਹੀ ਹਰਕੀਰਤ
Your imagination is really admirable.Wonderful writngs.
God bless.
kya baat hai..harqeerat ji..aapki yehi ada mujhe baar aapke blog par kheech laati hai...
mannhota hai..aapko padhu..aapke baare mein aur jaanu...
itni sundar lekhni kisi parmatma ke doot ki hi ho sakti hai...
एक सेर तो अगली सवा सेर. बहुत खूब.
Aaj subah jara wat tha to aaya... ruka hi nahi, ruka gaya hi nahi
har jagah kuchh kah nahi paya, shabd kam hain mere paas....
Itna achchha, itne se bhi achchha likhne ke liye kya kahun.
Dard ko koi yun ukerega, maanna kathin tha, ab yakin hai.
Likhti rahein, ham bhi kuchh gun sahej aapyenge.
Bahut bahut shukriya
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