यह कैसी आजा़दी है?
अभी-अभी बम के धमाको़ से
चीख़ उठा है शहर
बच्चे, बूढे,जवान
खून से लथपथ
अनगिनत लाशों का ढेर
इस हृदय वारदात की
कहानी कह रहा है
ओह!
यह कैसी आजा़दी है
जो घोल रही है
मेरे और तुम्हारे बीच
खौ़फ, आग और विष का धुआँ?
हमारे होठों पे थिरकती हंसी को
समेटकर
दुबक गई है
किसी देशद्रोही की जेब में
और हम
चुपचाप देख रहे हैं
अपने सपनों को
अपने महलों को
अपनी आकांक्षाओं को
बारूद में जलकर
राख़ में बदलते हुए.
Monday, November 10, 2008
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3 comments:
दोस्त मूल्क आजाद हुआ था यहां के लोग नही.
लेकिन आपके पंक्तियों के भाव काश के उन चरमपंथियों को समझ में आता। उससे अधिक कहीं हुक्मरानों को...
...hamesha ki tarah bhaav achhe haiN, lekin shilp/lehjaa zra kamzor lga mujhe.. kahee kuchh kami hai.aur "iss hriday vaardaat" ki jagah "iss (hriday.vidaarak)ya (hriday,sparshi) vaardaat" jaisa kuchh hona chahiye...hai na !?! khair.khwaah... ---MUFLIS---
Bahut shandaar posting, padhkar man ko laga ki kuchh padha hai. shbdon ka behatreen sanyojan...
Namaskar!!!
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