Monday, November 10, 2008

दुहाई है! अय जिस्‍म से खेलने वाले इंसानों...

(दो कविताएं '३० अक्‍टू. २००८' एक न भुला सकने वाले दिन पर, जब एक के बाद एक छ: धमाकों से पूरी
गुवाहाटी हिल गई थी जिसके जख्‍म आज भी अस्‍पतालों में पडे़ सिसक रहे हैं।)

अभी तो ताजा थे जख्‍म
पिछले वर्ष के
जब इन्‍हीं सडकों पर निर्वस्‍त्र
घसीटी गई थी
घर की लाज

और आज
ठीक एक वर्ष बाद
एक और गहरा जख्‍म...?

एक के बाद एक
छ: मिनट में छ: धमाके
ओह! इतनी दरिंदगी...?
इतनी निर्दयता...?

रक्‍तरंजित सड़कों पर
बिखरी पडी़ हैं लाशें
क्षत-विक्षत अंगों का बाजार लगा है
क्रोध,आक्रोश, धुंआँ,बारूद, आगजनी
चारो ओर कैसा ये सामान सजा है...?

आह..! मन आहत है भीतर तक
क्‍यों मर गई हैं हमारी संवेदनाएं...?
क्‍यों मर गई है हमारी मानवता...?

मुझे मुआफ करना
अय दर्द में कराहते इंसानों
मुझे मुआफ करना
अय बारूद में जलकर तड़पते इंसानो
मैं शर्मींदा हूँ
क्‍यों मैंने मानव रुप में जन्‍म लिया
मैं शर्मींदा हूँ
क्‍यों मैंने इस धरती पर जन्‍म लिया...

दुहाई है!
अय मानव जिस्‍म़ से खेलने वाले इंसानो...!
दुहाई है
अय रब की बनाई दुनियाँ में
आग लगाने वाले इंसानो...!
दुहाई है तुम्‍हें
उन मासूम सिसकियों की
दुहाई है तुम्‍हें
उन मासूम आहों की...
जो आज तुम्‍हारी वजह से
यतीम कहलाये जा रहे हैं...

9 comments:

अनुपम अग्रवाल said...

रक्‍तरंजित सड़कों पर
बिखरी पडी़ हैं लाशें
क्षत-विक्षत अंगों का बाजार लगा है
क्रोध,आक्रोश, धुंआँ,बारूद, आगजनी
चारो ओर कैसा ये सामान सजा है...?

भरपूर आतंक की कहानी
शब्दों में आपकी जुबानी
अत्यन्त मार्मिक चित्रण
वाह

डॉ .अनुराग said...

निशब्द हूँ ....क्या कहूँ शर्मिंदा हूँ !

वेद प्रकाश सिंह said...

namaste mam,you also write very well....nice poem.

daanish said...

"kshat.vikshat ango ka baazar lga hai..." kavita ka ek ek lafz haivaaniyat ke nange taandav ko byaan kr rha hai..lekin aapka marm aur samvedna bhi mar`ham ki tarah sath dikhte haiN..jis se ye zaahir hai k insaan ka ehsaas abhi zinda hai...aapki kavita ni`sandeh sari maanavjaati ke liye prerna hai,nek sandesh hai...Bhagwaan aapko aur shakti de taake aapki qalam achhe samaaj ke achhe rachaav mei sahaayak ban`ti rahe...astu ! (MUFLIS)

Tarun said...

सुनकर हम निशब्द रह गये थे, ऐसे ही धमाकों पर मैने भी लिखी थी वो लाश अभी तक रोती है

RAJ SINH said...

harkeeratji,
aapke blog par main ek recommendation kee tahat aaya . paya ki aapme insanee rishton ke jajbe hee jajbe hain . achcha lagta hai ki koyee aap ke hee spandan ko shabdon ke madhyam se aaapko hee suna bata raha ho . pahle daur me main aapke blog ka sirf ek vihangam avlokan hee kar paya. janta hoon fir fir aane ka man karega. aur aaoonga bhee !

Dorothy said...

बेहद मार्मिक एवं संवेदनशील प्रस्तुति. आभार.
सादर,
डोरोथी.

Nidhi said...

बहुत ही हृदयस्पर्शी रचना...अंदर तक हिला गयी ,मुझे .

Yashwant R. B. Mathur said...

बहुत ही बढ़िया।

सादर