Saturday, October 22, 2011

दिवाली पर कुछ क्षणिकाएं ....

कुछ दीये ऐसे भी होते हैं ...चाहे लाख आँधियाँ आये ...आसमां फटे ....उनकी रौशनी कभी कम नहीं होती ...'मोहब्बत' कुछ ऐसे ही दीये जलाती है दिलों में ......इसलिए .....


दो सांसों की बीच की ख़ामोशी में है ग़र , बुझता दीया
लिख दो ढाई अक्षर प्रेम के, जी जायेगा दिल का दीया ....



(१)

अमावस की रात .....

क कंपकंपाती ..
सूत के धागे की लौ
इक लम्बी दर्द भरी साँस के बाद
सो जाना चाहती है
आँखें भींचकर
उफ्फ.......
कितनी खौफजदा है यह
कोहरे भरी लम्बी रात ......!

(अस्पताल से )

(२)

उम्र का दीया .....

म्र का दीया छूती हूँ तो
सिर्फ कुछ काली सी लकीरें
उभर आती हैं ...
रब्बा...!
धुआँ उठने के लिए ही सही
कुछ बूंदें ज़िस्म में
बची रहने दे
अभी फर्ज को
कुछ दिन और जीना है ......!!


(३)

आखिरी बूंद तक.......

ह....
नहीं थकती
दौड़े चले आते हैं उसके पास
दुःख, दर्द, ज़ख्म ,
अपमान , अपशब्द, तिरस्कार
अवहेलना , आँसू, गम, खौफ़ , ख़ामोशी जैसे
अनगिनत शब्द .....
वह नहीं थकती .....
ताउम्र उन्हें संभाले रखती है
थपथपाकर रुमाल में
दीये की बाती सी जलती रहती है
तेल की आखिरी बूंद तक.......

(४)

रौशनी का रंग .....

ज़िन्दगी के .....
कितने ही दीये
वक़्त की कोख में बुझे हैं
टटोलती हूँ तो पत्थरों का
कोई हिस्सा नहीं पिघलता
इन आँखों में अब नहीं है कोई
हँसी तसव्वुर ....
फिर तू ही बता ...
इस रक्त-मांस की देह में मैं
रौशनी का रंग कैसे भरूं ....?

(५)

आस की लौ....

ई बार ....
दरवाज़ा खटखटाया है
ज़िन्दगी के कुछ हिस्से
कभी मेरी पकड़ में नहीं आये
जब-जब मुट्ठी खोली
दर्द तर्जुमा करने लगा
आज मैंने फिर छाती की आग को जलाया है
देखना है इन जलती-बुझती आँखों में
आस की लौ टिमटिमाती है या नहीं .....!

(६)

मोहब्बत का दीया ....

टूटती उम्मीदों के साथ
न जाने दिल के कितने दीये बुझे हैं
ऐसे में एक बार फिर तुम्हारा ख़त
ठहरी ख़ामोशी को
रुला गया है .....
मेरे लहू में अब
नहीं बचा कोई इश्क का कतरा
बता ! मैं मोहब्बत का दीया
कैसे जलाऊँ .....?


(७)

मन्नतों के चिराग ....

य खुदा !
अब पेड़ पर से
मेरी बाँधी वह कतरन खोल दे
मेरी मन्नतों के चिराग
बुझने लगे हैं .....

(८)

तेरा नाम .....

स घुप्प ...
अँधेरी रात में
तेरा नाम लेकर
रक्खा जो हाथ
दिल की कब्र पर
चिराग जल उठा .....

(९)

बाती ....

बाती हूँ
जलती हूँ
तड़पती हूँ
मेरा पैगाम है
मोहब्बत फैलाना
कुछ चीखती आवाजें
टूटे शीशे , रस्सियाँ ,
रक्त के कतरे ...
नहीं रोक सकते
मेरी मोहब्बत को .....

(१०)

इस बार आओ तो ....

स बार आओ तो
जला जाना मन का वह दीप भी
जो बरसों पहले
जाते वक़्त
प्रेम.....
बुझा गया था .....

(११)

दीया .....

हते हैं मोहब्बत
देह को ....
आखिरी बूंद तक
जिलाए रखती है
रांझेया...!
आज हीर फिर
अपने ज़िस्म की रुई से
तेरी मजार पर
मोहब्बत का .....
दीया जलाने आई है .....!!


( आप सब को दिवाली की हार्दिक शुभकामनाएं ....और एक बार फिर राजेन्द्र स्वर्णकार जी का शुक्रिया जिन्होंने मुझे दूरदर्शन पर हुए कवि सम्मलेन की तस्वीरें लगाने का आग्रह किया उन्हीं तस्वीरों की बदौलत मुझे दिल्ली आकाशवाणी ने अपनी नज्मों की सी डी भेजने का आग्रह किया .....जिसका प्रसारण ३१ अक्तू. रात :३० पर होगा ....)