Saturday, January 29, 2011

अदब के मुकाम........


ज मैं ....इस अदब के सफ़र में जिस मुकाम पे हूँ उसमें से कुछ खुशगवार पल आपसे साँझा करना चाहती हूँ .....कुछ ही दिनों पहले मुझे सुमन पाटिल जी की ये मेल मिली .....

हरकीरत जी नमस्ते !
यहाँ हैदराबाद शहर में हिंदी अख़बार निकलता है-- हिंदी मिलाप डेली आजके अख़बार में,
आपके बारे में, आपकी रचनाओंके बारे में : कुछ भीगे अक्षर नाम ,के शीर्षक में छपा है !
आप अंदाजा नहीं लगा सकती मुझे इतनी ख़ुशी हुयी पढ़कर,खैर बहुत बहुत बधाई !

मैंने सुमन जी को उस अखबार की प्रति भेजने का आग्रह किया ....उन्होंने स्कैन करके वो कटिंग भेजी है ...किन्हीं ऍफ़.एम.सलीम जी की लिखी हुई ...(सलीम जी कभी अगर ये पोस्ट पढ़े तो मुझसे जरुर संपर्क करें ....) इससे पहले भी अरविन्द श्रीवास्तव जी 'कथादेश' पत्रिका में मेरे ब्लॉग का ज़िक्र कर चुके हैं जिसकी मैं कटिंग न रख सकी थी .....
स्कैन की प्रति संलग्न है .....


दूसरी खुशी की बात ये है कि 'सरस्वती सुमन' (प्र. संपा. आनंद सुमन ) पत्रिका का एक अंक 'क्षणिका विशेषांक' होगा जिसकी अतिथि-संपादक मैं रहूंगी ...

इससे पहले जनवरी का ग़ज़ल विशेषांक इस वक़्त आपके हाथों में होगा जिसके अतिथि संपादक दानिश-भारती जी ( मुफलिस जी ) रहे हैं ...कुशल संपादन के लिए उन्हें हार्दिक बधाई ...बेतरीन गजलों का संचय पढ़ने को मिला उनके अधिकृत ।

अगला अंक महिला-विशेषांक है ...उससे अगला लघुकथा विशेषांक होगा ...और उससे अगला जितेन्द्र जौहर जी के संपादन में मुक्तक विशेषांक ।

हालांकि क्षणिकाएं भी मुक्तक की ही श्रेणी में आती हैं लेकिन हम छंद
मुक्त लिखी गई लघु नज्मों को ही क्षणिकाओं में शामिल करेंगे .

इस बीच ब्लॉग जगत में कुछ बेहतरीन क्षणिकाएं पढ़ने को मिली हैं ...अत : आपसब से गुजारिश है कि अपनी कलम को कुछ मीठा ...तीखा और खिलाना शुरू करें
ताकि आपकी सृजन -कला प्रतिभा और उन्मुख हो कर सामने आये ....और फिर उसे अपने चित्र और संक्षिप्त परिचय के साथ भेज दीजिये निम्न पते पर .....

आप मेल भी कर सकते हैं .....


हरकीरत 'हीर'
१८ ईस्ट लेन , सुन्दरपुर
हॉउस न . ५ , गुवाहाटी-७८१००५
harkiratheer@yahoo.in

Wednesday, January 26, 2011

गणतंत्र दिवस पर सूरज से हुई कुछ बातचीत ......

राजेन्द्र जी की पोस्ट पढ़ छत पर गई तो देखा ...सूरज धुंध की चादर ओढ़े बादलों की ओट में है ....मुझ से रहा गया ...खूब छेड़ा- छाडी हुई ...आरोप-प्रत्यारोप लगे ....शायरों पर छींटा- कशी हुई ....कुछ मासूम से जवाब भी मिले ....देखिये आप भी ......
(ये
पोस्ट सिर्फ आज के लिए ......)
आप सब को गणतंत्र दिवस ढेरों शुभकामनाएं ......


()

वर्ष की तरह
इस बार भी सूरज
छुट्टियों पर था ...
मैंने फुनगी पर टंगा अपना
मोबाईल उतार उसे फोन लगाया ....
जनाब ! आज २६ जनवरी है
लौट आयें .....
हम ठिठुरता गणतंत्र कैसे मनाएं ?
भला आपके बिना प्रधानमंत्री
सलामी कैसे लेने जायेगें .....
जेबों में हाथ होंगे ,लोग
तालियाँ कैसे बजायेगें ...?
वह मुस्कुराकर बोला -
प्रधानमंत्री को मेरी क्या जरुरत
वह तो मंच पर खड़े होकर
समाजवाद लायेंगे ....
हाँ; उन हजारों नंगे बदनों के लिए
हम जरुर आयेंगे ....
जो देश-प्रेम की भावना मन में लिए
झंडा फहराने जायेंगे .....!!

()

सूरज ....
धुंध की चादर ओढ़े
बादलों की ओट में था
मैंने जरा सी चादर उठाई
तो मुस्कुराया ......
बोला - बहुत ठिठुरन होती है
मेरे बिना .....?
अपनी नज्मों में तो हमेशा मुझे
कटघरे में खड़ा रखती हो ....
सुनो ! अब आऊंगा तो एक शर्त पर
पहले गणतंत्र दिवस पर....
कोई जोशीली सी नज़्म सुना दो
मेरे देश के नौजवाओं में ...
जरा सा जोश तो ला दो ...

मैंने राजेन्द्र स्वर्णकार जी की
नज़्म का लिंक उसे दे दिया .... !!
शस्वरं


()

मैं छत पर गई
तो देखा सूरज ....
उदासी के कपड़े धो रहा था
मैं मुस्कुराई ....
बोली : क्यों किरण को छोड़
धुंध रास नहीं आई ..?
जो आज गणतंत्र दिवस पर भी
ओढ़ ली है ये ख़ामोशी की रजाई ?
वह बोला : अगर मैं किरण तक ही
महदूद रहता ,तो कवि या शायर नहीं
इक दहकती आग होता ......
और तुम मुझे छूते ही
जल कर राख हो जाती ....
बताओ फिर भला तुम गणतंत्र
कैसे मनाती ....?

Monday, January 17, 2011

मुहब्बत ....तकदीर ...और कुछ चुप्पियों के बादल .....

()

मुहब्बत ...


उठती लपटें
आग से चुगली खाती हैं
किस उम्र की नज्में
मुहब्बत के गीत लिखें ...?
सूरज आदतन
फिर छेड़ गया है
ज़िस्म की साँसें
आज फिर भीतर की आग
जन्म देगी
इक नज़्म को .....!!

()

तकदीर.....

बता....!
इस तकदीर का मैं
क्या करूँ ....?
जो नज्मों के सर चढ़
बोली है ......
लोग कहते हैं तेरी नज्मों पे
जवानी आई है
इधर देख ,बुर्के की ओट में
किस कदर मौत
मुस्कुराई है .....!!

()

चुप्पियों के बादल .....

कुछ चुप्पियों के बादल
आहों के बीज से उगे हैं
दर्द के तिनके एक-एक कर
बनाते हैं घरौंदे छाती में
हसरतों के लफ्ज़
रेत के पानी का तकिया बना
डूब जाना चाहते हैं
समंदर में ......
गुम हुए आँखों के सपने
उदासी से तकते हैं राह
किसी फकीर की .....

कोई कमजोर सी दीवार
फिर चुपचाप ढह गई .....!!

()

वक़्त के नाम .....

अय वक़्त ...
अगर बदलना है तो
अपने दिल की हैवानियत बदल
वह मकां बेरौनक होते हैं
जिनकी दीवारों पे
मुहब्बत गीत नहीं लिखती
इक हलकी सी मुस्कराहट भी
पुरअश्क ज़िन्दगी को
उतार जाती है
सलीबों से .....!!

()

कब्र .....

तुमने कहा था ...
तुम आना मैं मिलूँगा तुम्हें
सड़क की उस हद पे
जहाँ गति खत्म होती है
मैं बरसों तुम्हें ...
सड़क के हर छोर पे
तलाशती रही ....
पर तुम कहीं मिले
बस एक सिरे पे ये आज
कब्र मिली है .....!!

Sunday, January 9, 2011

ज़र्द पत्ते ......

()

ज़र्द पत्ता ....
फिर टूटा है अपने कद के
हरे पत्तों के बीच ....
जनवरी महीने का उगता सूरज
दरख्तों के वजूद को
नापने लगा है ...
हवा बड़े एहतियात से
ढूंढ लेती है ज़र्द पत्ते ....
पिछले वर्ष भी देखा था इनकी
डरी-सहमी आँखों में
रौंदे जाने का खौफ़ ....
मैं हौले से समेट कर इन्हें
एक तरफ कर देती हूँ
किसी के पैरों तले
कुचलने से पहले ......!!

()

सुनो.....
जो नववर्ष के फूल
तुम्हें तोहफ़े में भेजे थे
वो महज़ फूल ही थे ....
कोई रहस्य नहीं था मुट्ठियों में
उन पंखुड़ियों में कोई
इबादत छिपी थी ...
वह तुम्हारा वहम ही था
या फिर तुम्हारे अपने आँगन की
महक रही होगी
जो तुमने महसूस की ....
उन पत्तियों को गौर से देखना
मोहब्बत के पत्ते ....
ज़र्द नहीं होते .....!!

()

दन की मिट्टी ...
फिर कांपी है ठिठुरते
वक़्त के साथ ....
कोई हवा महक लिए गुजरी है
टूटे मकान से ....
कोई चुपके से पोंछ गया है
नज़्म की आँखों से
दुखते शब्द ....
रात कैद की रस्सियाँ
सहलाने लगी है ....
आज मुस्कराहट
रात भर रोएगी
ज़र्द पत्तों के साथ .....!!

()

रा ने सुबह के ......
चार चक्कर* काटे, देखा
धूप एक कोने में बैठी थी ...
उसने हौले से उसका हाथ पकड़ा
और बोली .....
बहुत सिहरन होती है
तुम्हारे बिना ....
अलसुब्ह नींद तकती है
तुम्हारी अँगुलियों का मीठा स्पर्श
सहला जाये माथे को कोई
गालों पे रख जाये गर्म सा चुम्बन
दिनभर की ऊर्जा के लिए
कंधे थपथपाकर झाड़ दे
बदन के सारे ज़र्द पत्ते ...
कभी मेरे घर आना
धूप ......!?!

चार चक्कर*- चार फेरे (चार लावां) सिखों के विवाह में चार ही फेरे होते हैं ....