Saturday, July 5, 2014

मुहब्बत की तक़दीर .......

मुहब्बत की तक़दीर .......


इक अनलिखी तक़दीर
जिसे दर्द ने बार -बार लिखना चाहा
अपने अनसुलझे सवालों को लेकर
आज भी ज़िंदा खड़ी है  ....
नहीं है उसके पास मुस्कानों का कोई पैबंद
जीने योग्य रात की हँसी
उगते सूरज की उजास भरी किरणें
फड़फड़ाते सफ़्हों पर वह लिखती है
अधलिखि नज़्मों की दास्तान  ....

कबूल है उसे हर इल्ज़ाम
चुप्पियों में उग आये शब्दों से वह
 सीती है सपने
तक़दीर के अनलिखे सपने
जहाँ हथेलियों की रेखाएं
घर बनाकर ठहर गई हैं
एक घुटन , एक टीस , एक चीख
खुली हवा में साँस लेने को
तरसती है उसकी नज़्म ……
इक दिन वक़्त ने उससे पूछा
तू कौन है ? तेरी तो तक़दीर भी नहीं
मनचाही ज़िन्दगी क्या
तेरा तो कोई मनचाहा सपना भी नहीं ?
वह मुस्काई ,बोली -
ज़ख्म अनचाहा हो सकता है
दर्द भी अनचाहा हो सकता है
पर मुहब्बत अनचाही नहीं होती
मुहब्बत मनचाही होती है
मेरी रूह में मुहब्बत की मनचाही लकीर है
जिसे तक़दीर भी नहीं मिटा सकती
 और जिसने मुहब्बत को जी लिया
उससे बड़ा सुखी कोई नहीं होता
मैं मुहब्बत भी हूँ और
 मुहब्बत की तक़दीर भी
कोई मेरे हिस्से में बेशक़ ख़ामोशियाँ लिख दे
पर रूह पर लिखी मुहब्बत की नज़्म पर
ख़ामोशी नहीं लिख़ सकता  …


हीर  …