जो जंजीरें खुलीं
रात आसमां के घर नज्म़ मेहमां बनी
चाँदनी रातभर साथ जाम पीती रही
बादलों ने जिस्म़ से जंजीरें जो खोलीं
नज्म़ सिमटकर हुई छुईमुई,छुईमुई
ख्वाबों ने नज्मों का ज़खीरा बुना
हर्फ रातभर झोली में सजते रहे
नज्म़ टाँकती रही शब्द आसमां में
आसमां जिस्म़ पे गज़ल लिखता रहा
वक्त पलकों की कश्ती पे होके सवार
इश्क के रास्तों से गुज़रता रहा
तारों ने झुक के जो छुआ लबों को
नज्म़ शर्मा के हुई छुईमुई,छुईमुई
Wednesday, November 5, 2008
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8 comments:
बेहतरीन भाव और शब्द.
आपका ब्लॉगजगत में स्वागत है .
बहुत अच्छा लिखा है जारी रखें
"Raat aasmaa ke ghar nazm mehmaan banee..."!Kisqadar nafees khayal hai ! Kamlki rachna hai !Agar aap bura na maane to mai ise mukhodgat kar sakti hun??Aapheeke naamse apnee maa, behen ya kisee saheleeko suna saktee hun??
रात आसमां के घर नज्म़ मेहमां बनी
चाँदनी रातभर साथ जाम पीती रही
बादलों ने जिस्म़ से जंजीरें जो खोलीं
नज्म़ सिमटकर हुई छुईमुई,छुईमुई
subhan allah....
शमा जी, जब मैंने आपको पढा तभी जान गई थी कि मैं अकेली नहीं हूँ दर्द के सफर में मनविन्दर और आप भी
उसी राह पर हैं। अब सफर अच्छा कटेगा। आप मेरी रचना सुना सकतीं हैं।
बादलों ने जिस्म़ से जंजीरें जो खोलीं
नज्म़ सिमटकर हुई छुईमुई,छुईमुई
छुईमुई छुईमुई नज़्म मन को भाई
बेहतरीन .
सादर
वाह बहुत सुन्दर भावो को पिरोया है।
शब्द-चयन बड़ा ही नाजुक सा,भाव बड़े रुपहले से.
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