तुम भी पूछना चाँद से
जब तुम
लौट जाओगे
मैं पलटूँगी
मौसम के पन्ने
यादों की चिट्ठी से
भर लूँगी
मुठ्ठी में बादल...
कुछ भीगे अक्षर
तपती देह पर रखकर
मैं खोलूँगी
रंगो की चादर...
पूछूँगी उनसे
हवाओं के दोष पर
बहते बादलों का पता
सूरज वाले मंत्र
और स्पर्श के
उन एहसासों को
जो जिंदा होगें
तुम्हारे सीने पर
'ओम' बनकर...
तुम भी पूछना
चाँद से
ताबूतों में बंद
हवाओं ने
कफ़न ओढा़ या नहीं...
Wednesday, November 19, 2008
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32 comments:
पूछूँगी उनसे
हवाओं के दोष पर
बहते बादलों का पता
सूरज वाले मंत्र
और स्पर्श के
उन एहसासों को
जो जिंदा होगें
तुम्हारे सीने पर
'ओम' बनकर...
मुझे लग रहा है की ये मेने ही लिख दिया है .....बादल की बातें......अहसासों की बातें....वो हवाओं के दोष...
हरकीरत....बहुत अच्छा लिखा है...मन को छु गया और आंखों में ठहर गया .....
bahut achche bhaav hain harkeerat jee
hamne aapki rachna padhi, man ko achchhi lagi
aapka
vijay
तुम भी पूछना
चाँद से
ताबूतों में बंद
हवाओं ने
कफ़न ओढा़ या नहीं...
बहुत गहरे और सुंदर भाव ! बहुत शुभकामनाएं !
बहुत सुंदर रचना मैम....एकदम दिल को छूती,दिल में उतरती---और ये तारीफ़ भी हृदय की गहराईयों से
मर्मस्पर्शी
MAN KI PARTON KO KHOL DIL KI GHERAIYON TAK PAHUCH GAI YE RACHNA......
ATI SUNDAR KALPNA,.......
एक दर्द नही यहाँ तो बहूत सारे दर्द हैं सभी बेहद खूबसूरत!
तुम भी पूछना
चाँद से
ताबूतों में बंद
हवाओं ने
कफ़न ओढा़ या नहीं...
puri hi rachna bahut khubsurat ha ye pankityan bahut hi achi lagi bahut bahut badhai...
पूछूँगी उनसे
हवाओं के दोष पर
बहते बादलों का पता
सूरज वाले मंत्र
और स्पर्श के
उन एहसासों को
जो जिंदा होगें
तुम्हारे सीने पर
'ओम' बनकर...
अच्छा लिखा है
तुम भी पूछना
चाँद से
ताबूतों में बंद
हवाओं ने
कफ़न ओढा़ या नहीं...
bahut umda
bahut gahraa dard ka samandar liye likhaa hai .........bahut khoob.
मैं तो आपकी रचनाओं का कायल हो गया हूँ!
अब तो लगता है कि डेली विजिट करना होगा।
बाकी रचनाओं की तरह यह भी काबिल-ए-तारीफ़ है।
बधाई स्वीकारें।
तुम भी पूछना
चाँद से
ताबूतों में बंद
हवाओं ने
कफ़न ओढा़ या नहीं...
वाह। गहरे भाव हैं। बधाई।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
Dear Harkirat ,
मैं क्या कहूँ , आज पढ़ा ,,तुम्हारी ये नज़्म तो यूँ लगा की मैं अपनी ही कोई नज़्म पढ़ रहा हूँ...
अब मैं तारीफ भी क्या करूँ , कोई अल्फाज़ नही मिल रहे है , सच में सब कुछ ऐसा है जैसे मेरे हाथों ने मेरे मन पर लिख हो ...
मुझे लगता था की और मेरी ये चाह भी थी की कोई मुझ पर भारी पड़े , वो आज ख़तम हो गई .. [ मैं 1985 से लिख रहा हूँ और आज मेरी उम्र ४२ साल है ,कुल जमा २० साल में तीसरी बार ऐसा लगा की कोई है ,जो सपनो में मेरी तरह जीता है .. [ पहली बार अमृता और दूसरी बार गुलज़ार ]
" तुम भी पूछना
चाँद से
ताबूतों में बंद
हवाओं ने
कफ़न ओढा़ या नहीं..."
इन पंक्तियों में जैसे किसी का दिल धड़क रहा हो....कोई धीरे धीरे जान दे रहा हो...
बस यार , मेरी आँखे भीग गई है ....
यूँ ही लिखते रहो , यही दुआ है मेरी ..
आज मैं भी कुछ लिखा है , जरा अपनी ज़िन्दगी से कुछ लम्हे मेरी नज़्म के नाम कर देना ..
Regards,
Vijay
बेहतरीन!
Kya gazab rachna hai...mere paas alfaaz nahee...aapki dhamniyonme behta dard kabhi santh prawahit hota hai to kabhi barsaatee samandarki tarh garjta huaa...
जी विजय जी, आपने ठीक पहचाना इस ताबूत में बंद हवा कई वर्षो सिसक रही है अभी कफ़न नहीं ओढा उसने...
Tumhare seene main om banker ......behad sunder bhav hai.....likhti rahiye....
जब तुम
लौट जाओगे
मैं पलटूँगी
मौसम के पन्ने
यादों की चिट्ठी से
भर लूँगी
मुठ्ठी में बादल...
पूछूँगी उनसे
हवाओं के दोष पर
बहते बादलों का पता
सूरज वाले मंत्र
और स्पर्श के
उन एहसासों को
तुम भी पूछना
चाँद से
ताबूतों में बंद
हवाओं ने
कफ़न ओढा़ या नहीं...
शब्द नहीं हैं मेरे पास कि इस अद्भुत अभिव्यक्ति की तारीफ कैसे करुँ.
बेहतरीन और अद्भुत शब्द संयोजन और भाव
यादों की चिट्ठी से
भर लूँगी
मुठ्ठी में बादल...
वाह वा...इसे कहते है लफ्जों से जादू जगाना...आज आप के ब्लॉग पर पहली बार आना हुआ और अब ये सिलसिला शायद ही कभी टूटे...बेहद दिलकश अंदाज़ में लिखती हैं आप...शब्द और भाव का ऐसा सुंदर खजाना है आप के पास की क्या कहूँ...बेहतरीन रचना...मेरी बधाई स्वीकार करें.
नीरज
"...yaado ki chitthi se bhr loongi mutthi mei baadal" waah ! aisa la.jwaab lehjaa, aisa dil.fareb andaaz... nazm prh kr yu lagtaa hai jaise qudrat ki saari nemteiN aapki lekhni ka kehna maan kr hi chalti-firti haiN...aapki soch, aapke khyaalaat ke jaadu se hi fitrat ka nizaam ravaaN-davaaN hai, parhne walo ko to aap jaise apni hi duniya mei le jaati haiN. iss bahot hi sanjeeda rachna ke liye rooh ki gehraaeeyoN se mubaarakbaad deta hooN... MaaSaraswati aapko bharpoor aashirwaad deiN...ASTU.
---MUFLIS---
behtareen aur khoobsurat khayalaat
...waah !!!
कुछ भीगे अक्षर
तपती देह पर रखकर
मैं खोलूँगी
रंगो की चादर...
... प्रभावशाली रचना ।
पूछूँगी उनसे
हवाओं के दोष पर
बहते बादलों का पता
सूरज वाले मंत्र
और स्पर्श के
उन एहसासों को
जो जिंदा होगें
तुम्हारे सीने पर
'ओम' बनकर...
तुम भी पूछना
चाँद से
ताबूतों में बंद
हवाओं ने
कफ़न ओढा़ या नहीं...
देरी से आने के लिए मुआफी ...कही वक़्त में उलझा हुआ था ....पर यकीनन यहाँ आकर कुछ देर आपकी नज़्म के साये में बैठना सुखद है.....क्या कहूँ ......एक ओर खूबसूरत नज़्म
एहसास कभी नहीं मरते, एहसास मौत के मोहताज नहीं होते और इसीलिए उन्हें दुनिया को कोई ताबूत अपने भीतर कैद नहीं कर सकता।
बहुत गहरे और सुंदर भाव ! बहुत शुभकामनाएं !
मैंने मरने के लिए रिश्वत ली है ,मरने के लिए घूस ली है ????
๑۩۞۩๑वन्दना
शब्दों की๑۩۞۩๑
आप पढना और ये बात लोगो तक पहुंचानी जरुरी है ,,,,,
उन सैनिकों के साहस के लिए बलिदान और समर्पण के लिए देश की हमारी रक्षा के लिए जो बिना किसी स्वार्थ से बिना मतलब के हमारे लिए जान तक दे देते हैं
अक्षय-मन
गुमान भी न हुआ कभी
के इस नाचीज़ तक अमृता भी आ सकती है...
शुक्रिया...तेरा.. ऐ मल्लिका-ऐ-कलम.......
मैं आपके ब्लॉग पर html वगैरह हटाने की बात पूछने और समझने आया था..
पर अब और ही किसी से पता करूंगा ..
आपकी कलम से इस तरह की टेक्निकल बातें लिखी जाएँ
ऐसा कभी नहीं चाहूंगा........
खूबसूरत नज़्म ..
आपकी हर नज़्म पढ़ कर मन कहीं गहराई में पहुँच जाता है ... अभी तो ताबूत में बंद हवा की हलचल सुनाई दे रही है ..
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल कल 11 - 08 - 2011 को यहाँ भी है
नयी पुरानी हल चल में आज- समंदर इतना खारा क्यों है -
कुछ भीगे अक्षर
तपती देह पर रखकर
मैं खोलूँगी
रंगो की चादर...
बहुत सुन्दर भाव
ओह! शानदार.
नई पुरानी हलचल से आपकी इस पोस्ट
की लिंक मिली.
अनुपम अभिव्यक्ति है आपकी.
आप अध्यात्म में कम रूचि रखतीं हैं,
फिर भी आपका मेरे ब्लॉग पर आना बहुत अच्छा लगता है मुझे.काफी समय से आपका आना नहीं हो पाया है.समय मिलने पर अनुग्रहित कीजियेगा.
waah... lajawaab...
तुम भी पूछना
चाँद से
ताबूतों में बंद
हवाओं ने
कफ़न ओढा़ या नहीं...
best lines...
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