Monday, July 9, 2012

बस इक हत्या....

ज फिर ख्यालों की रात बहुत गहरी है ...सांकल खोलती हूँ तो  पिता की बूढी आँखों का दर्द ..भईया  की डूबती  सुर्ख आँखें ...और औरत होने का मुआवजा मांगती भतीजी सिम्मी की अंदरूनी चीखें.... मष्तिष्क को हथौड़ों  की सी चोट से  पीटने लगती हैं ..इक और दर्द.... दो वर्ष से लिए अतिथि संपादन के कार्य में असफलता का हाथ  ....नसें कसमसाने लगतीं हैं तो कलम खोलकर बैठ जाती हूँ ...

 
(१)


बस इक हत्या....

अच्छा होता
मैं ये  आवाज़ भी दबा लेती
दातों तले .....
फिर लील ली गई है
इक ज़िन्दगी ...
वह सबकुछ भूल चुकी है
अपना वजूद ..अपनी पहचान ...
अपनी हँसी ....
शब्द कहीं दूर खंडहरों से उभर कर आते हैं .....
मुझे हत्या करनी है ...
बस इक हत्या .......!!

( सिम्मी के लिए ..)

(२)


मौत....

वह रोज़ पीता
है
डूबती जा रही ज़िन्दगी का जाम

और मौत धीरे-धीरे
उसके ज़िस्म के
हर अंग को छूकर देखती है
अपने पैर कहाँ से फैलाऊँ ......!!

(भईया के लिए   )

(३)


खंडहर....
 
बेबस देख रहा है
घर को खंडहर में बदलते हुए
कभी इस ईंट को तो कभी उस ईंट को
बचाने की कोशिश में
खुद खंडहर हुआ जा रहा है .....

(पिता के लिए )

(४)
 

अब कोई गिला नहीं....

जले पैरों से ...
अंगुलियाँ टूटकर गिर पड़ी हैं
जब दर्द के धागे लम्बे होते गए
मैंने ज़ज्बातों की रस्सियाँ खोल दीं
सारी पत्तियाँ  बिखर गई हैं
मैं  उन
बिखरी पत्तियों को  समेट
 मसलकर  माथे से लगा लेती हूँ 

  अब मुझे किसी से कोई
 गिला नहीं .......!!

(आनंद जी और जितेन्द् जौहर जी के लिए )

(५)


 तुम्हारे और मेरे पास ....

तुम्हारे पास
उसके साथ बिताये
उम्रभर के सुनहरे पल थे
और मेरे पास ...
तुम्हारे संग बिताये
चंद लम्हें ...
मेरी नज्में मुड़-मुड़ परत आती हैं
उन बुतों की ओर
जो मुहब्बत की उडीक में
पत्थर हो गए थे ......

(इमरोज़ के लिए )

51 comments:

अजय कुमार झा said...

सभी कतरे एक से बढकर एक । बहुत ही उम्दा

डॉ. मोनिका शर्मा said...

अद्भुत पंक्तियाँ.... एक से बहकर एक रचनाएँ....

प्रवीण पाण्डेय said...

सब की सब, दमदार क्षणिकायें..

केवल राम said...

हीर ....अब सच में हीर हुए जा रही है
मोहब्बत शब्दों का पार पा रही है
यक़ीनन जिन्दगी में गम होते हैं सबके
यहाँ नाव दरिया में ,
और दरिया ही नाव होती जा रही है
याद रखना दुनिया वालो
"हीर" के शब्दों में दर्द नहीं
हीर मोहब्बत हुए जा रही है ......!

Arvind Jangid said...

पत्थर हो गए थे ......बहुत सुन्दर

अरुण चन्द्र रॉय said...

pita ke liye kahi gai kavita sabse prabhavshali hai....bahut badhiya,

संजय कुमार चौरसिया said...

बहुत ही उम्दा , बहुत सुन्दर

संजय कुमार चौरसिया said...
This comment has been removed by the author.
Simmi said...

bhuaji, bohot acha laga apki sabhi rachnayen....and as everyone wrote, its beautiful and more beautiful then beyond imagination..... thank you sooo much from the deepest core of my heart.....

Simmi said...

bhuaji, aapki har likhi hua kavita dil ko chu jati hai....bohat hi acha laga padh ke...it is indeed a very beautiful imagination feelings put together in words....and i thank you from the deepest corner of my heart for including my feelings too in ur poetry....with all the best wishes for today, tomorrow and forever...
Simmi.

S.N SHUKLA said...

बहुत सुन्दर सृजन , सुन्दर भावाभिव्यक्ति , बधाई .

हरकीरत ' हीर' said...

Thanks Simmi tune Tanu ke naam se blog bna rakha hai aaj hi pta chla ....ab bna hi liya hai to ummid karti hun kuchh likhegi bhi ....

intjaar rahega ....!!

Simmi said...

mujhe khud abhi yaad aya ki meine bhi blog banaya tha jab vizag mein thi, aur abhi ja ke meine naam change kiya hai,jab meine sign in kiya toh dekha ki meine bhi blog banaya tha but us mein kuch likha nahi hai, home remedies ka bas ek coloumn banaya hua hai but likha nahi kuch....

दीपिका रानी said...

दर्द में डूबी ये नज्में वाकई कमाल हैं....

प्रेम सरोवर said...

बहुत सुंदर प्रस्तुति ..बधाई। मेरे नए पोस्ट "अतीत से वर्तमान तक का सफर" पर आपका स्वागत है। धन्यवाद।

सदा said...

गहन भाव लिए मन को छूते शब्‍दों का संगम ... आभार इस प्रस्‍तुति के लिए

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

हीर के लिखे शब्दों पर टिप्पणी करना बहुत कठिन है .... बस महसूस किया जा सकता है ... उम्दा

अशोक सलूजा said...

हीर को सिर्फ़ ...पढ़ना जरूरी है ..
महसूस "दर्द" का होना दर्द की मज़बूरी है !
खुश और स्वस्थ रहो !

रश्मि प्रभा... said...

सब तराशे हुए सच हैं ... कुछ दर्द , कुछ मुस्कान , कुछ ....

डॉ टी एस दराल said...

व्यक्तिगत अहसासों को बहुत खूबसूरती से आम किया है .
शुभकामनायें सभी को .

वन्दना अवस्थी दुबे said...

कमाल की क्षणिकाएं हैं हरकीरत जी!!! बहुत दिनों बाद दिखाई दीं आप., लेकिन अपनी धज के साथ. बधाई.

Anonymous said...

दर्द ही दर्द समेटे ये नज्मे एक कसक उठती हैं,,,,,,खुदा सबको फैज़ दे....आमीन।

Sawai Singh Rajpurohit said...

सुन्दर भावाभिव्यक्ति ,..बहुत सुंदर प्रस्तुति ... :-).
आज का आगरा

Maheshwari kaneri said...

सभी एक से बढ़ कर एक हैं....अद्भुत रचना ..आभार

इस्मत ज़ैदी said...

बेबस देख रहा है
घर को खंडहर में बदलते हुए
कभी इस ईंट को तो कभी उस ईंट को
बचाने की कोशिश में
खुद खंडहर हुआ जा रहा है ....
बहुत बढ़िया रचनाएं
आपकी इतने दिनों की अनुपस्थिति का जो ख़ालीपन था इन क्षणिकाओं ने दूर कर दिया

ANULATA RAJ NAIR said...

मोहब्बत के इतर आपका लिखा कुछ भी ....हलक में अटका सा है......

सादर
अनु

रचना दीक्षित said...

वह रोज़ पीता है
डूबती जा रही ज़िन्दगी का जाम
और मौत धीरे-धीरे
उसके ज़िस्म के
हर अंग को छूकर देखती है
अपने पैर कहाँ से फैलाऊँ ......!!

हर शब्द दिल में तीखा प्रहार करता है. बहुत ही प्रभावशाली सभी की सभी नज्में.

हरकीरत ' हीर' said...

जैदी जी , इस अतिथि संपादन ने मेरे दो वर्ष ले लिए और पत्रिका अभी तक नहीं छ्प पाई .....
इन दी वर्षों में मेरा लेखन भी प्रभावित हुआ ...नियमित रूप से ब्लॉग चला ही नहीं पाई .....
अब मैंने आनंद जी से कह दिया है मैं अतिथि संपादन से नाम वापस लेती हूँ ....

Dr.NISHA MAHARANA said...

aap bahut accha likhti hain heer jee ...likhte rahiye ....

Arun sathi said...

साधु-साधु

दिगम्बर नासवा said...

कमाल का लिखा है हर लम्हा ... अपने आप कों रोके रखता है और विवश करता है सोचने कों ... अध्बुध है आपका दर्द ...

deepakkibaten said...

अच्छा है. आपने मेरे ब्लॉग पर कमेन्ट किया अच्छा लगा. मैंने कविता से स्वप्न की बात एडिट कर दी है, सुझाव के लिए शुक्रिया. उम्मीद है आगे भी मार्गदर्शन मिलता रहेगा.

कविता रावत said...

अंतर्मन में जब दर्द गहराता है तब वह बाहर निकलने को बेताब हो उठता है ...कुछ ऐसी ही तीव्र हलचल आपकी रचनाओं में पढने को मिले जो मन को उदेलित कर सोचने पर मजबूर करती हैं.
.जब कोई काम बोझिल होने लगता है तो उससे मुक्ति पाने में ही भलाई है...
बहुत बढ़िया सार्थक रचनाएँ

S.N SHUKLA said...

ब्लॉग पर पधारने और उत्साहवर्धन का धन्यवाद.स्नेह इसी तरह मिलता रहेगा , ऐसी अपेक्षा है .

अनामिका की सदायें ...... said...

gehre tak kahin shabdon ne jagah bana li hai dil me.

gehen abhivyakti.

Vandana Ramasingh said...

मार्मिक...... अत्यंत मार्मिक ....

Sonroopa Vishal said...

इन नाजुक और मार्मिक क्षणिकाओं के लिए कुछ भी कहने के लिए निशब्द हूँ ....!

amit kumar srivastava said...

हिलाने देने , थर्रा देने वाली रचनाएं | बेहद उम्दा |

neera said...

वाह! हर क्षणिका में आंसुओं निशाँ किस कदर निखर कर उभरे हैं...

Akhileshwar Pandey said...

आपके शब्दों का तो मैं कायल हूँ. बहुत पहले से आपको पढता रहा हूँ. दुआ है आप यूँ ही लिखती रहें.

रजनीश तिवारी said...

बहुत प्रभावशाली और बेहतरीन प्रस्तुति...

Saras said...

नि:शब्द हूँ ..........

डॉ टी एस दराल said...

संपादन से नाम वापस ले लेंगे तो हमारी भेजी रचनाओं का क्या होगा जो हमने आपके भरोसे भेजी थी .
अब तो आप जिम्मेदारी से बच नहीं सकती जी .

हरकीरत ' हीर' said...

अंक तो छपेगा ही डॉ साहब ....
बस इंतजार करते रहिये ....
अब अवधि इस वर्ष के अंत तक बढ़ा दी गई है .....

शिवनाथ कुमार said...

क्या लिखा है आपने
दर्द आपके अंतर्मन से निकलकर हमारे अंतर्मन को छू गयी
मर्मस्पर्शी !!
अद्भुत !!

शिवनाथ कुमार said...

क्या लिखा है आपने
दर्द आपके अंतर्मन से निकलकर हमारे अंतर्मन को छू गयी
मर्मस्पर्शी !!
अद्भुत !!

Darshan Darvesh said...

आपके एहसासों के अंदर जीवंत मोहब्बत में एह नहीं कितने पोर्ट्रेट छुपे होते हैं , हर किसी की नजर नहीं पहचान सकती , हो सकता है मैं भी पूरे न पाऊं , लेकिन जो भी दिखे उनके अंदर छनकती झांजर का चेहरा कहीं न कहीं कोई न कोई बात कर ही जाता है |

Onkar said...

हर कविता एक से बढ़कर एक

उपेन्द्र नाथ said...

दराल साहब की भी चिंता वाजिब है। आनन्द जी भी ध्यान दे। ये विशेषांक जल्द अपनी अंतिम रूप में आये इससे बेहतर बात भला और क्या हो सकती है। उम्मीद है वह दिन भी आएगा।
.
सभी क्षणिकाएं बहुत ही अच्छी है। सुंदर प्रस्तुति।

Arvind kumar said...

वाह....एक से बढ़कर एक...."खंडहर" तो बहुत ही खूबसूरत लिखा है...

सादर..

Anju (Anu) Chaudhary said...

एक ही जीवन में ...सब के जीवन में इतना दर्द क्यूँ हैं ...क्यूँ ????