Tuesday, September 22, 2009

जब दर्द पास आ मुस्कुराने लगता है ...

सुना है तेरे यहाँ कलम कभी घुटती नहीं .....बड़ी ही रंगीन नज्में हैं तेरे सफ़्हों में .....कभी मुझे भी अपने घर बुलाना ज़िन्दगी ......

सितारों के
टूटने के बाद
रात के अंधेरे में
जब र्द पास आ
मुस्कुराने लगता है
तब दिल के किसी गोशे में
खिल उठते हैं
कई सुर्ख गुलाब ....
एक हलकी सी सुगंध
महक उठती है
हम दोनों के बीच .....

वह मेरा हाथ ...
अपने हाथों में लेकर
तकता है आंखों में
और आँखें ...
खामोशी में भी
कर डालतीं हैं उससे
कई सारे सवालात ....

तभी ....
कोरों में उभर आई
कुछ शबनम की बूंदों पर
वह झुककर ...
रख देता है
अपने तप्त होंठ
और धीमें से कहता है
मैं हूँ न तेरे पास ...

मोहब्बत जैसे .....
कुछ पल के लिए ही सही
साँस लेने लगती है
दर्द के आगोश में .....!!

Friday, September 11, 2009

वह तेरा नाम ही था जो गिर गया था हाथों से ......

तुम पढना मेरी मौत के बाद मेरी ख़ामोशी को ....के नज्मों ने आखिरी साँस ली है ....तुम रखना अपने लफ़्ज़ों की खुरदरी ज़मीं अपने साथ ....के मोहब्बत ने आखिरी साँस ली है ......कहते हैं....
इश्क़ जिनके खून में बसता है
उनके नसीब खारों से सजे होते हैं .....



आज फ़िर
रात के साये बहुत गहरे हैं
मन की तहों में छिपी
बेपनाह मोहब्बत ....
अपने आप को क़त्ल करती
खामोश हो गई है....

आँखें ....
एक गहरी साँस लेती हैं
इक खामोश आवाज़
कट कर गिरती है
पंखे से.....

रब्बा....!
मैं तुलसी के नीचे
जलते दीये सी पाक़
कितनी खोखली हो गई हूँ आज
कि अब ....
इन बनते- बिगड़ते लफ़्जों में
अपने ही जन्म का पल
बेमानी लगने लगा है ...

आह....!
न जाने क्यों यह परिंदा
रोता है रातों में ....
कहीं यह भी किसी जाइर* रूह से
घायल तो नहीं ....?

सामने कागज़ पर
मेरा कटा बाजू पड़ा है
और हैवानियत क़र्ज़ख्वाह* सी
चिखती रही सीढियों से .......

आज फ़िर शब्दों ने
अपने आप को
क़त्ल किया है ....
कुछ सच्चाइयाँ नग्न खडी थीं
पर लफ़्ज़ों ने यूँ परदा डाला
के बदन ....
हैरत की गठरी बन गया ...

ज़ज्बात ...
भीगते रहे बूंदों में
वजूद मिट्टी के बर्तन सा
तिड़कता गया
बस .....
दर्द मुस्काता रहा आंखों में
तसल्ली देता रहा
देख कलाइयों को
जहाँ लहू का एक कतरा
अपना तवाजुन *
खो बैठा था ....

वह तुम्हीं तो थे
जो दर्द में भी
तहजीब सिखलाते रहे थे जीने की
पर खुदा से दुआ मांगते वक्त
वह तेरा नाम ही था
जो गिर गया था
हाथों से ....!!!

जाइर - अत्याचारी
कर्जख्वाह -ऋण इच्छुक
तवाजुन -संतुलन