Wednesday, July 31, 2013

दुआओं का फूल …

इमरोज़ की इक नज़्म का जवाब ….


दुआओं का फूल …

सोचें सच होती होगीं
पर हीर की सोचें कभी कैदो ने
 सच नहीं होने दीं
इक खूबसूरत शायरा की मुहब्बत
वक़्त की कीलियों पर टंगी
मजबूर खड़ी है ….

इस पीर की कसक
तूने भी सुनी होगी कभी
कब्रों पर
सुर्ख गुलाब नहीं खिला करते
अपनी पागल सी चाहत
रंगीली चुन्नियों के ख़्वाब
मैंने अब चुप्पियों की ओट में
छिपा दिए हैं …
मुहब्बत की लकीरें
कैनवास पर उतरती होंगी
हथेलियों पर लकीरें
तिड़क जाती हैं …

चल तू यूँ जख्मों पर
रेशमी रुमाल न फेरा कर
रात आहें भरने लगती है
बेजान हुए सोचों के बुत
पास खड़े दरख्तों से
ख़ामोशी के शब्द तलाशते हैं
सपनों के अक्षर पत्थर हो
धीमे से समंदर में
उतर जाते हैं ….

देख आज मेरी नज़्म भी
सहमी सी खड़ी है
आ आज की रात
इसकी छाती पर कोई
दुआओं का फूल रख दे …!!

हीर …

Thursday, July 18, 2013

कुछ सेदोका ....


यही सेदोका २६ - ७ -१३ के दैनिक भास्कर समाचार- पत्र में भी ……



कुछ सेदोका ....


(सेदोका हाइकु की ही तरह काव्य की एक विधा है जो कि ५ + ७ +७ + ५ + ७+७  के क्रम में लिखे जाते हैं ....)


(१)
खूंटी पे  टंगा
हंसता है विश्वास
चौंक जाती धरा भी
देख खुदाया !
 तेरे किये हक़ औ'
नसीबों के हिसाब ...!

(२)

स्याह से लफ़्ज
दुआएं मांगते हैं
जर्द सी ख़ामोशी में
लिपटी रात
उतरी है छाती में
आज दर्द के साथ ....!

(३ )

आग का रंग
मेरे लिबास पर
लहू सेक रहा है
कैद सांसों में
रात मुस्काई  है
कब्र उठा लाई  है ....

(४)

दागा जाता है
इज्जत के नेजे पे
बेजायका सी देह
चखी जाती है
झूठी मुस्कान संग
दर्द के बिस्तर पे .....

(५)

कैसी आवाजें
बदन को छू गईं
अँधेरे की पीठ पे
नज़्म उतरी
तड़पकर आया
आज ख़याल तेरा ...!

(६)
कुछ चीखते
 जिस्मों की कहानियाँ
उतरी है पन्नो में
हर घर में
मरती  है औरत
आज भी पिंजरों में

(७ )

उधड़ा दर्द
बुनती है औरत
उलझे फंदे सारे
पंजे समेट
आया है चुपके से
टूटे धागे हैं सारे .

Thursday, July 11, 2013

यादें ......

आज पेश है यादों में उलझी-सुलझी इक नज़्म .....

यादें ......
 
गुलाबी सी सपनों की चादर
जलता सा  ख़्वाब ज़हन में
इक आग का  दरिया  है औ'
 इक कम्पन सी बदन  में
आज भूली बिसरी बातों की
यादें साथ आई हैं  ....
धड़कती सी ज़िन्दगी की
कुछ नज्में याद आई हैं  ....

वक़्त के सीने में सिमटी
कुँवारी सी हसीन कहानी
इश्क़ के पानियों पर  लिखी
बीज  की इक जिंदगानी
सुलगती सी रात ये
नुक्ते पर सिमट आई है ...

धड़कती सी ज़िन्दगी की
कुछ नज्में याद आई हैं  ....


दीवानी सी हर गली थी
हँसती थी तन्हाई  में
अक्षर-अक्षर जश्न मनाती 
रात गुजरती शहनाई में
हवा दे रही हिचकोले
 चनाब चढ़-चढ़ गदराई  है ...

धड़कती सी ज़िन्दगी की
कुछ नज्में याद आई हैं  ....


बावरी सी कोई महक ये
भीगती है मेरे  संग संग
 कौन रख गया है आज
यादों में इक खुशनुमा रंग
देह में रौशनी की इक
लकीर सी कुनमुनाई है ...

धड़कती सी ज़िन्दगी की
कुछ नज्में याद आई हैं  ....


वह सोहणी थी  या सस्सी
साहिबां थी या कोई हीर
इश्क़ में डूबी जीती-जागती
मोहब्बत की थी कोई ताबीर
पूरे  आसमान में इक
 खलबली सी मच आई  है ...

धड़कती सी ज़िन्दगी की
कुछ नज्में याद आई हैं  ....


आज चाँद की छाती में फिर से
प्यार की इक हूक  उठी
सितारों की चादर में किसने
बादलों  की नज्म लिखी
आज वादियों से तेरे नाम की
सदा उठ -उठ आई है ....

भूली बिसरी बातों की
यादें साथ आई है ....
धड़कती सी ज़िन्दगी की
कुछ नज्में याद आई हैं  ....



हीर ......

Monday, July 1, 2013

उत्तराखंड की त्रासदी पर कुछ हाइकु ....

१६  जून २०१३ को उत्तराखंड में भारी बारिश से आई तबाही पर
 कुछ हाइकु ....


महाकाल के
आगोश में समाया
उत्तराखंड

(२)

फटा बादल
उमड़ा यूँ सैलाब
आया प्रलय

(३)

कुदरत ने
कहर बरपाया
मची तबाही
(४)

प्रकृति रोई
लगा लाशों का ढेर
डूबे शहर

(५)

डूबी बस्तियां
केदारनाथ अब
बना श्मशान

(६)

मत खेलना
कभी प्रकृति से,थी
ये चेतावनी

(७)

मिट्टी  बांधते
पेड़ - पौधे जड़ों से
न काटो इन्हें

(८)
कटते पेड़
उफनती नदियाँ
भू-स्लखन


१६  जून २०१३ को उत्तराखंड में भारी बारिश से आई तबाही पर.....
रोया केदारनाथ ....

इक तबाही
कयामत भरी रात में
ले डूबी हजारों सपने
हजारों ख्वाहिशें , हजारों ख्वाब
बह गई बस्तियां
उजड़ गए घर बार
टूटे पहाड़ , आया सैलाब
टूटे संपर्क , रूठी जिंदगियां
खौफनाक चीखें और मलबे का ढेर
लाशों का मंज़र , कुदरत का कहर
जल का तांडव बचा न कोई 

मची तबाही हाल बेहाल
बंद आँखों में हजारों सवाल

देव भूमि में  बरपा आज कहर
लील ले गई उफनती लहर
सूने हो गए घर के चिराग
कैसी ये विभीषिका
कैसा या सैलाब .....?

उजड़ा उत्तराखंड 
रोया केदारनाथ ....