Sunday, March 10, 2013

महिला - दिवस' एक वेश्या की नज़र से ....

'महिला - दिवस' एक वेश्या की नज़र से     ....

देर रात ....
शराब पीकर लौटी है रात
चेहरे पर पीड़ा के गहरे निशां
मुट्ठियों में सुराख
.चाँद के चेहरे पर भी
थोड़ी कालिमा है आज
उसके पाँव लड़खड़ाये
आँखों से दो बूंद हथेली पे उतर आये
भूख, गरीबी और मज़बूरी की मार ने
देह की समाधि पर ला
खड़ा कर दिया था उसे
वह आईने में देखती है
अपने जिस्म के खरोचों के निसां
और हँस देती है ...
आज महिला दिवस है .....

हरकीरत हीर

44 comments:

राहुल said...

वह आईने में देखती है
अपने जिस्म के .....
-------------------
जीवंत पोस्ट ..

ओंकारनाथ मिश्र said...

बहुत गहरी रचना है. कितने उसकी इंसानियत को देख पाते हैं, उसकी परिस्थितियों को देख पाते है. शायद वही कोई प्यासा गुरु दत्त. फिल्मों में!

Shalini kaushik said...

भावनात्मक प्रस्तुति ."महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें"आभार मासूम बच्चियों के प्रति यौन अपराध के लिए आधुनिक महिलाएं कितनी जिम्मेदार? रत्ती भर भी नहीं . आज की मांग यही मोहपाश को छोड़ सही रास्ता दिखाएँ . ''शालिनी''करवाए रु-ब-रु नर को उसका अक्स दिखाकर .

विभा रानी श्रीवास्तव said...

ॐ नाम: शिवाय ! हर-हर महादेव !!
वह आईने में देखती है
अपने जिस्म के खरोचों के निसां
और हँस देती है ...
आज महिला दिवस है .....
ये हालात तो कुछ अच्छे घरो के रानियों के भी होगें ना .... ??

सादर !!

Vandana Ramasingh said...

गहन सोच

प्रवीण पाण्डेय said...

गहरे भाव..चुभते हुये..

Arun sathi said...

क्या कहें
यह कि
निशां जिस्म पर नहीं
रूह पर भी है
खरोंच की टीस
सिर्फ उसे ही क्यों?

डॉ टी एस दराल said...

भूख तो महिला दिवस पर भी लगती है। ग़रीबी की मज़बूरी कहाँ जाती है एक दिन में।
जिंदगी की यह भी एक सच्चाई है।
मार्मिक।

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत मार्मिक और पीडा दायक हकीकत है ये.

रामराम.

डॉ. मोनिका शर्मा said...

गहन..... विचारणीय भाव

Rajendra kumar said...

गहन सोंच,भावपूर्ण प्रस्तुति.आपको महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ!

Anupama Tripathi said...

गहन ...मन उद्वेलित करती रचना ....

Onkar said...

झकझोरती हुई रचना

रचना दीक्षित said...

नारी उत्पीडन में शराब को दोष देना अनुचित ही है, ज्यादा तो पुरुष मन की कुत्सित सोच दोषी है.

भावुक करती प्रस्तुति.
महाशिवरात्रि पर हार्दिक शुभकामनाएँ.

महेन्द्र श्रीवास्तव said...

भूख ने मजबूर कर दिया होगा,
आचरण बेच के पेट भर लिया होगा ।

अंतिम सांसो पर आ गया होगा संयम,
बेबसी में कोई गुनाह कर लिया होगा।


रश्मि प्रभा... said...

खुदा की नज़र कहूँ या खुदा की कलम .......... सजदे में सर झुकाती हूँ

Surendra Chaturvedi said...

महिला दिवस के अलावा रूह पर पड़ने वाली खरोंचों का क्‍या ?

वन्दना अवस्थी दुबे said...

सचमुच...ऐसा ही है महिला दिवस.

Reena Pant said...

मार्मिक ह्रदय स्पर्शी.........

Vinay said...

महाशिव रात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ

मेरा मन पंछी सा said...

बेहद मार्मिक...

tbsingh said...

maarmik rachana

shikha varshney said...

उफ़ ..तीर सी दिल भेदती पंक्तियाँ.

रश्मि प्रभा... said...

http://www.madhepuratoday.com/2013/03/3.html

संजय कुमार चौरसिया said...

गहरे भाव

Saras said...

वह आईने में देखती है
अपने जिस्म के खरोचों के निसां
और हँस देती है ...
आज महिला दिवस है .....
कमज़ोरों के लिए बने दिनों की एक लम्बी फेहरिस्त में शुमार एक और दिन ...इसके अलावा और कुछ नहीं ......नि:शब्द हूँ.....

सदा said...

वह आईने में देखती है
अपने जिस्म के खरोचों के निसां
और हँस देती है ...
आज महिला दिवस है .....
.............. आपकी कलम और उसकी गहनता को नमन

सादर

devendra gautam said...

सीधे ह्रदय को छू जाने वाली नज़्म...बहुत बहुत बधाई!

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

बहुत कुछ सोंचने पर विवश करती सटीक सामयिक अभिव्यक्ति...

Manav Mehta 'मन' said...

हीर जी ..क्या कहूँ निशब्द हूँ

Asha Joglekar said...

वह इस समाज का विष पी कर नीलकंठ हो रही है ।
बहुत तीखा व्यंग ।

दिगम्बर नासवा said...

सजीव रचना ... महिला दिवस का कडुआ सच ...

amit kumar srivastava said...

इस दुनिया में सब कुछ सापेक्ष है ,निरपेक्ष कुछ नहीं । कौन वेश्या कौन सावित्री ,सब परिस्थितियाँ तय करती हैं ।

Aditya Tikku said...

satik aur ispasht-***

Unknown said...

उसकी तरफ देखने की फुरसत किसे है
यूँ भी सब अपने ही सीखचों में हैं कैद
और फिर उसे स्त्री माना ही किसने
वो तो एक खिलौना है ना ...
उसका ...जो दाम दे सके
मजबूरी से हारी बेबसी का
आपके स्वागत के इंतज़ार में ...
स्याही के बूटे

Rajput said...

आज महिला दिवस है .....
सच मे आज़ादी के इतने बरसों बाद भी औरत को वो मुकाम नहीं मिल पाया जिसकी वो हकदार है। आज भी पुरुष प्रधान समाज मे अपनी हैसियत को तलाश रही है औरत ।

Anju (Anu) Chaudhary said...

जिंदगी के आईने में एक कड़वा सच ...बहुत खूब

अंजना said...

सुन्दर प्रस्तुति..

आशा बिष्ट said...

Chubhta sachh...

डॉ. जेन्नी शबनम said...

महिला दिवस - वेश्या हो या आम महिला, सब खामोश, अपने अपने अस्तित्व के लिए सवाल लिए... भावपूर्ण रचना, शुभकामनाएँ.

Naveen Mani Tripathi said...

आँखों से दो बूंद हथेली पे उतर आये
भूख, गरीबी और मज़बूरी की मार ने
देह की समाधि पर ला
खड़ा कर दिया था उसे


sach me mn ko chhoo jane wali rachana .....hardik badhai Heer ji .

Fani Raj Mani CHANDAN said...

bahut bhawanaatmak prastuti. aapne samaaj jis ansh ko apni kavitaa ke maadhyam se chhuaa hai wo aamtaur par havaaniyat se hi chhuaa jaataa, amaanviyaataa ki aankh gadi rahti aur manviyataa to pahunch hi nahi pati un tak.

Maheshwari kaneri said...

गहन भाव बहुत सुन्दर प्रस्तुति!

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

ओह .... एक सच यह भी है ... बहुत मार्मिक