महिला दिवस पर एक कविता  …… 
खुराफ़ाती जड़ …
इतना नीचे मत गिर जाना
कि तमाम उम्र मैं अपनी नज़रों में 
फिर तुम्हें उठा न सकूँ 
और मेरी अंगुलियां सनी रहे  
तुम्हारे उगले घिनावने शब्दों के रक्त से …
देखो ! कोने की मकड़ी 
खुद ही फंस गई है अपने बनाये जाल में 
लो मैंने तोड़ दिया है एक तंतु 
पूरे का पूरा जाल हिलने लगा है 
सुनो ! तुम मत फंस जाना 
अपने बनाये जाल में 
वर्ना एक तंतु के टूटते ही 
हिलने लगेगा तुम्हारा पूरे का पूरा वजूद …
बौखला क्यों गए ?
बौखला क्यों गए ?
अभी तो चींटी ने अपने दांत भी नहीं गड़ाये 
बस एक अंगुली भर में काटा है 
और तुम धड़ से अलग हो गए हो ?
जब चींटियों की लम्बी कतार करेगी 
तुम पर हमला 
तब तुम जड़ से विहीन 
खड़े भी न रह पाओगे 
क्योंकि चींटियों ने तुम्हारी 
खुराफ़ाती जड़ को तलाश  लिया है .... 
हरकीरत 'हीर '

15 comments:
एक न एक दिन ऐसा जरुर आएगा।
खुराफ़ाती जड़ वाह क्या शब्द प्रयोग किया है :)
बहुत पसंद आयी यह रचना बधाई आपको !
आज की लिए विशिष्ट रचना
महिलाओं की क्षमताओं का परिणाम - यह महिला दिवस
लोग अपने लिये स्वयं ही गढ्ढे खोद लेते है। समभाव यथासम्भव बना रहे।
बहुत बेहतरीन....
:-)
आज के दिन के लिये यह बेउन वान नज़्म काफी कुछ कहती है...!! बहुत कुछ!! बधाई!
चीटियाँ ग्रुप गतिविधियों को खूबसूरती से अंजाम देतीं हैं...उनकी ताकत है नेटवर्किंग और सह अस्तित्व...खुराफात से लड़ने ले किये संगठित होना आवश्यक है...
बहुत ही सार्थक और सशक्त अभिव्यक्ति... अब सार्थक महिला दिवस मनाएँ, महिला दिवस की शुभकामनाएँ …
प्रतीक एक माध्यम से कितना कुछ कहती पोस्ट ... लाजवाब ...
इस विशिष्ट रचना ..... एवं दिवस की बधाई
"क्योंकि चींटियों ने तुम्हारी खुराफ़ाती जड़ को तलाश लिया है"
सुन्दर.......
क्योंकि चींटियों ने तुम्हारी
खुराफ़ाती जड़ को तलाश लिया है ....
...बहोत खूब...वाह...!!!!!
सुन्दर और सामयिक पोस्ट...
आप को होली की बहुत बहुत शुभकामनाएं...
नयी पोस्ट@हास्यकविता/ जोरू का गुलाम
क्योंकि चींटियों ने तुम्हारी
खुराफ़ाती जड़ को तलाश लिया है ... बहुत बढिया
बौखला क्यों गए ?
अभी तो चींटी ने अपने दांत भी नहीं गड़ाये बस एक अंगुली भर में काटा है और तुम धड़ से अलग हो गए हो ?
bahut hi damdar sawaal?
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