Friday, November 18, 2011

इक संगोष्ठी और 'सरहद से...' मनोहरलाल बाथम का काव्य संग्रह ......



इक संगोष्ठी और 'सरहद से...' मनोहरलाल बाथम का काव्य संग्रह ......



ऊपर की पंक्ति में श्री बी के सिंह, सीमा सुरक्षा बल के उपमहानिरीक्षक श्री ए के शर्मा , प्रो.प्रेमलता (अध्यक्ष हिंदी विभाग ,विक्रम विश्वविद्यालय , उज्जैन) , श्रीमती उर्मिला कुलश्रेष्ठ (उज्जैन )
नीचे की पंक्ति में श्री रामचरण बट , डॉ आनंद मंगल सिंह कुलश्रेष्ठ (प्रांतीय अध्यक्ष ,हिंदी साहित्य सम्मलेन म.प्र.) , सीमा सुरक्षा बल के महानिरीक्षक ऍम. एल. बाथम , श्रीमती पुष्पलता राठौर , श्रीमती बी के सिंह, श्रीमती सरला मिश्रा , हरकीरत 'हीर'


सरहद से लौटते हुए ......

तुम अपनी सरहद को
पाक कहते हो
मैं भी ...
दोनों
की है यह एक

यह
प्यार करना नहीं सिखाती

माँ की तरह
बांटती
है ....

हरदम
सोचता हूँ मैं

सरहद
से लौटते हुए ......बाथम


शि
लांग से अचानक डॉ. अकेला भाई ( संयोजक, पूर्वो
त्त हिंदी अकादमी ) का फोन आया १५ नवम. को बी एस
ऍफ़ में एक हिंदी संगोष्ठी और कवि सम्मलेन है आई. जी. साहब जी की खास इल्तजा है कि हीर साहिबां को जरुर बुलाया जाये ...इसलिए आप इनकार नहीं कर सकती ...आपको आना ही है ....' इंकार नहीं कर सकती....' मतलब इस बीच मैं कई बार अकेला भाई जी को इनकार कर चुकी थी कवि सम्मलेन के लिए ....पर अब फरमाइश आई जी साहब की तरफ से थी तो जाना ही पड़ा ....

कविता पाठ करते हुए .....

कार्यक्रम बहुत ही यादगार रहा ....कार्यक्रम तो बढ़िया रहा ही पर आई जी साहब की सहृदयता देख विश्वास ही नहीं कर पा रही थी कि ऐसे भी इंसान होते हैं ....अपने पद और ओहदे का जरा भी गुमान न था उनमें ....वे कई बार उठ कर मेरे पास आये ...पूछते रहे, रहने-खाने की कोई असुविधा तो नहीं ...? ..आप आगे आकर बैठिये पीछे क्यों बैठ गईं हैं .....? ..यहाँ तक कि आने -जाने के लिए गाड़ी की भी व्यवस्था करके दी उन्होंने ...एक रात हमें रुकना पड़ा था वहाँ उसके लिए उन्होंने विशेष अतिथि कक्ष में इंतजार करवा रखा था ...सबसे बड़ी बात थी कि उनका खुद फोन करके पूछते रहना ...मिलने आना ...अपनी पुस्तकें भेंट करना ....उफ्फ... इतनी विनम्रता ..... ?

बहुत कुछ सीखना पड़ेगा बाथम जी आपसे .......:))

सीमा सुरक्षा बल के महानिरीक्षक ऍम एल बाथम तथा डॉ आनंद मंगल कुलश्रेष्ठ के हाथों स्मृति-चिन्ह लेते हुए ....


मनोहर लाल 'बाथम' यानि सीमा सुरक्षा बल के हानिरीक्षक (आई जी ) से मेरा परिचय हाल ही में हुआ जब वे अपनी क्षणिकाएं देने हमारे घर आये ....इतने बड़े ओहदे पर होने के बावजूद उनकी सादगी और विनम्रता ने मुझे हैरत में डाल दिया था ...विश्वास नहीं कर पा रही थी ... (क्योंकि इस क्षणिकाओं के चक्कर में कइयों ने मुझे अपने पद और कद की ऊँचाई-लम्बाई समझाई है)....उनकी बातों में इतनी सादगी और संजीदगी थी कि कोई भी व्यक्ति उनसे प्रभावित हुए बिना न रह सकेगा .....बाथम साहब अपनी उल्लेखनीय सेवाओं के लिए राष्ट्रपति से पुलिस पदक प्राप्त कर चुके हैं . इसके अलावा इन्हें अपनी पहली पुस्तक ' आतंकवाद : चुनौती और संघर्ष 'के लिए गोविन्दवल्लभ पन्त पुरस्कार एवं इंदिरा गाँधी राजभाषा अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार एवं कई अन्य प्रशस्ति-पत्र व पुरस्कार मिल चुके हैं ....

मेरा बाथम साहब की सादगी ने ही नहीं उनकी कविताओं ने भी मन जीत लिया था ....'सरहद से....' काव्य संकलन उन्होंने मुझे संगोष्ठी में ही भेंट किया . इसमें सरहद की एक एक घटना ...एक-एक दृश्य दिलों को बेंध देने वाली है ....शायद इसलिए सरदार पंछी जी ने कहीं इनकी ये पुस्तक जब पढ़ी तो तुरंत इन्हें फोन कर कहा कि , 'मैं इसे पंजाबी में तर्जुमा करने की इजाज़त चाहता हूँ '....गौरतलब है कि अब तक यह पुस्तक १४ भाषाओँ में अनुदित हो चुकी है ....सरहद एक ऐसी जगह है जहाँ अक्सर गोलियों और बारूद के बीच खून के छींटे नज़र आते रहते हैं ...जहाँ न ज़ज्बातों के लिए जगह है ...न अपनों के लिए रहम की ....बाथम जी ने इसी धुएँ में बिखरे दर्द को शब्दों में उड़ेल कर रख दिया है ...जो सीधे दिल और दिमाग को चीर कर निकलता है .....

इनकी कुछ नज्मों का अंश आपके लिए ......

'जुर्म' (कामरेड हामिद के लिए )- ईद के दिन हमारी चौकी पर/पीछे के दरवाज़े से /उसने सेवइयां भेजीं चुपचाप/किसी को बताने की शर्त थी /मेरी दीपावली की मिठाई भी शायद इसी तरह से जाती /वो हो गया रुखसत दुनिया से /मेरे साथ ईद मनाने के जुर्म में ......

'गूंगा' -हर चौथे रोज़ ही दिखती थी /दो तीन बरस के बच्चे के साथ /डॉ से गिड़गिडाती / बच्चे के बोलने के इलाज के लिए /गूंगा लफ्ज़ उसे अच्छा नहीं लगता /माँ की तरह डॉ भी उम्मीदों के साथ /की तोतली आवाज़ में ही सही / निकलेगा 'अम्मी'/कल ही की तो बात है /उस ज़ालिम के बम से /चीखों से सारी बसती गूंजी /कहते हैं पहली और आखिरी बार /गूंगा भी चीखा था / '....अम्मी' .......................

ओह
....निशब्द कर देने वाली रचनायें हैं ये ....


ये
सरहदें किसने बनाई यहाँ , ये क्यों डाल दी गयीं दिलों में दरारे
मैं भी इंसां तू भी इंसां फिर ये बारूद का धुआँ क्यों बीच है हमारे

इक और नज़्म देखिये -

दोनों
तरफ
''- मेरी नौकरी का पहला साल/पाक सीमा पर पहला दिन / तो तनी-तनी भौहें / खिंची खिंची तलवारें/ फसल कट रही है दोनों तरफ/पंजाबी लोक गीतों को आँख बंद कर सुन लो/ वही जोश,थिरकन भी वही/लफ़्ज़ों-लहजों में भी सब एक सा / चेहरे के रंगों में तो मुझे /कोई फर्क नज़र नहीं आता / ट्रेक्टर जरुर अलग-अलग कंपनी के हैं / 'नए हजूर' आये लगते हैं /रेंजर ने सूबेदार से पूछा/हाँ मियाँ आओ कैसे हो ?/ अल्ला का करम हजूर /फसल अच्छी हुई /और सब ठीक है मैंने पूछा / हाँ जानवरों का ख्याल रखना हजूर /तुम अपने भगा देना मैं अपने भगा दूंगा / अच्छी फसल को नुकसान करने वाले /दोनों तरफ मौजूद हैं मियाँ !

बाथम जी के बारे सरदार पंछी जी लिखते हैं , ''उनकी कवितायें पढ़ते-पढ़ते पाठक उसी मानसिक अवस्था में विचरने लगता है जिसमें से कवि खुद गुजरा होता है और कवितायें पढ़ते वक़्त पाठकों की आँखें भी उसी तरह सजल हो जाती हैं जिस तरह शायर की हुई होती हैं ........'' ...मैं भी यही सोच रही हूँ ...इतनी संवेदनशीलता लेकर इस कवि ने १३ साल सीमा पे कैसे काटे होंगे .....? शायद रोज़ तिल-तिल कर मरना और फिर इन शब्दों के सहारे मन को सांत्वना देना .... कितना मुश्किल होता होगा ये रोज़ का जीवन-मरण .......

लीलाधर मंडलोई कवि के बारे कहते हैं कि '' 'सरहद से' आती इन कविताओं में वहां के जनजागरण और प्रकृति के साथ एक प्रहरी का अदेखा कठिन जीवन है . जीवन जिसमें दुःख,सपने,उदासी,तिक्तता,खीज,असहायता,जिजीविषा और अकेलापन है . उसके सपने को घेरते एक ओर खेत-खलिहान, माता-पिता , बच्चे,रिश्तेदार हैं तो दूसरी ओर नए सम्बन्ध जो सरहद पर बने , देश जिनसे अनभिज्ञ है .....''
कवि ....
सौ
से ऊपर जवान / इतनी ही बंदूकें /तीन घोड़े एक गाड़ी/दस ऊँट और कुछ कुत्ते /यही मेरी रियासत /मेरा परिवार/यही मेरे सुख दुःख के साथी /दोस्त माँ-बाप और बच्चे
....

स्वयं बाथम जी ' मेरी बात' में लिखते हुए कहते हैं - ''प्रहरी का जीवन एक ऐसे अंधकार में होता है जिसे एक सामान्य व्यक्ति नहीं जनता . उसके लिए वह देश पर प्राण न्योछावर करने वाला एक आदर्श प्रतीक है . किन्तु उसका अज्ञातवास और अकेलापन कौन जनता है ? किसी अदेखी अचीन्ही भूमि पर प्रहरी अपना अकेलापन कभी फ्लेमिंगो की दोस्ती , कभी समुन्द्र की लहरों , कभी पेड़ -पौधों , कभी विराट रेगिस्तान ,कभी चिट्ठियों कभी हममुकाम दोस्तों तो कभी यादों के सहारे काटता है .... ''

बाथम जी की कवितायें प्रहरियों के जीवन की वह दास्ताँ है जिससे आम जन-जीवन बिलकुल अनभिग्य है ...सीमाओं के बीच होने वाले हादसे , घटनाएं ,वाद-विवाद नित धुएँ को हवा देने वाले होते हैं इसी धुएँ के बीच ये प्रहरी ईद भी मनाते हैं ,दिवाली भी और गुरपुरब भी ...सच्च में जीने का सलीका तो कोई इनसे सीखे .....

एक
मंदिर है इसी दो सौ गज में / नमाज़ भी पढ़ी जाती है /क्रिसमस पर केक भी कटता है /वाहे गुरु की आवाजें रोज़ सुन लेना /रहने का सलीका सीखना हो अगर/बी पी में चले आना ( बार्डर आउट पोस्ट )

मैं समीक्षा नहीं लिखती ..मेरे पास कितनी ही पुस्तकें आई पड़ी हैं मैं अक्सर सभी से यही कहती हूँ कि मैं समीक्षक नहीं हूँ ..न बाथम जी की इस पुस्तक की मैंने ये समीक्षा की है ...बस बाथम जी की ये कवितायें थीं जिन्होंने मुझे लिखने पर मजबूर किया क्योंकि ये दिल को छूती हुई रचनायें हैं जिसे पढ़ कर सहज ही कोई आह ..भर उठे ....


अंत में बाथम जी की ही एक कविता से अंत करती हूँ ....

सुरों की सरहदें
शब्दों की सरहदें
हवाओं की सरहदें
पक्षियों की सरहदें
सरहदें मुल्क की
मैं मुल्क का प्रहरी
मैं होना चाहता हूँ
सुर
शब्द
हवा
और पक्षी .......

अगर आपको इन रचनाओं ने जरा भी प्रभावित किया हो तो बाथम जी का न . ये है .....०९४३५५२२३४३ उन्हें फोन जरुर करें .....

प्रकाशक -शिल्पायन
शाहदरा , दिल्ली -110032
दूरभाष -011-२२८२११७४
मूल्य -125




52 comments:

बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरना said...

सियासत ने खीची थी रेखा
चिड़ियों ने नहीं मानी
हवा ने नहीं मानी
बादलों ने भी नहीं मानी.
बिना वीसा के आते-जाते रहे
इनमें अक्ल नहीं होती न !
अक्लमंदों ने मान ली
पर
किसी को इससे क्या कि
प्रहरी की पीड़ा पर
सरहद रोज़ सिसकती है.


बाथम जी की इन चंद रचनाओं के लिए ......
मेरे पास कोई शब्द नहीं हैं. हीर जी को धन्यवाद ....सरहद के दर्द से परिचित कराने के लिए.

डॉ. मोनिका शर्मा said...

सार्थक आयोजन ..... मन के...सरहदों के सारे भेद मिट जाते हैं .... सुंदर साहित्य संगम

Deepak Shukla said...

Hi..

Aapki badaulat aaj hamen Shree Batham ji ka parichay prapt hua.. Unki nazmon ko sarhad par rahnewla har sanvedansheel vyakti samajh sakta hai.. Maine umra ka ek hissa aisi jagahon main hi jiya hai.so Shree Batah ji har nazm mujhe apne aas paas ghati ko ghatna si nmahsoos hui hai..kash hamen es karyakram ki pahle se jaankari hoti to hum yahan se 2 din ka safar karke bhi awashy pahuchte.. Haan Shri Batham ji sahrudayi kyon na honge bhala..kavi to sahrudayi hi hota hai na..

Sundar charcha..vaise aapne Shree Batham ji ko blog likhne ka sujhav nahi diya kya..??

Deepak Shukla..

Santosh Kumar said...

बहुत सुंदर आयोजन, बाथम जी का परिचय जानकार अच्छा लगा, अच्छे कवि और भावुक व्यक्ति लगे.
कहते है कि ' जहाँ न जाए रवि, वहाँ जाए कवि'.. आएँ हम-सभी मिल-जुल कर इन सरहदों को मिटा दें.

आपकी सुंदर प्रस्तुति का शुक्रिया!!

प्रवीण पाण्डेय said...

सुन्दर भाव-प्रवाह, किसने बनायी सरहदें..

दर्शन कौर धनोय said...

सौ से ऊपर जवान
/ इतनी ही बंदूकें /
तीन घोड़े एक गाड़ी/
दस ऊँट और कुछ कुत्ते /
यही मेरी रियासत/
मेरा परिवार/
यही मेरे सुख दुःख के साथी
/दोस्त माँ-बाप और बच्चे ....

बाथम जी का परिचय ..और उनकी शैली की कविताए पढ़कर आँखे न भर आए तो क्या बात हैं ..जितनी पढ़ी प्यास बदती गई ..


अच्छी फसलको नुकसान करने वाले /दोनों तरफ मौजूद हैं मियाँ ! बहुत खूब

"ये सरहदें किसने बनाई यहाँ , ये क्यों डाल दी गयीं दिलों में दरारे
मैं भी इंसां तू भी इंसां फिर ये बारूद का धुआँ क्यों बीच है हमारे"

सलाम हैं उन जवानो को और नत मस्तक भी ?
बाथम जी का परिचय आपकी कलम से पढ़कर एक रूहानी सुंकुं मिला हैं ....लाजबाब !

दर्शन कौर धनोय said...

आसाम में इन दिनों बहुत कड़ाके की ठंडी पड़ रही हैं प्यारे ..ओवरकोट में बड़े हसींन लग रहे हो ..

अशोक कुमार शुक्ला said...

आदरणीय महोदया हरकीरत जी !
बाथम जी की कवितायें संजीदगी भरी हैं ।
आपका आभार कि आपकी बदौलत इनके कुछ मुखडे हम तक भी आ सके।
देश की सीमाओं के बंटवारे से अलग हमारे देश में राज्यों के बंटवारे के बाद का मंजर भी कम दारूण नहीं होता।
अभी हाल ही में देश के नवगठित राज्य उत्तराखंड के उत्तर प्रदेश की सीमा से लगे जिले रूद्रपुर में भडके हिंन्दू मुसलमान दंगे के बाद यहां राज्य की सीमा पर भी बंटवारे के दौरान हुयी अफरातफरी का सा माहौल था।इस संबंध में विस्तार से फिर कभी लिखूंगा। बहरहाल इसी पृष्ठभूमि में कुछ पंक्तियाँ लिखी थीं जिनका कुछ अंश प्रासंगिक जानकार उद्धृत कर रहा हूँ

हम उस लकीर के फकीर
अब सहेज रहे है
बहती मिट्टी को,
दरकती पहाडियों को,
सुलगते रिश्तों को,
विद्रोही स्वरों को
और हवा की मिठास को
साथ ही निबट रहे हैं
सीमाओं पर बढते जा रहे
आस्तीन के सॉपों से
ताकि
मैदान का पानी खारा न हो
रिश्तों की ऑच मध्यम न हो
और जीवन दायिनी हवा
और ज्यादा जहरीली न हो।

दर्शन कौर धनोय said...

आसाम में इन दिनों बहुत कड़ाके की ठंडी पड़ रही हैं प्यारे ..ओवरकोट में बड़े हसींन लग रहे हो ..

daanish said...

कोई सरहद , न कभी रोक सकी रिश्तों को
खुशबुओं पर , न कभी कोई भी पहरा निकला

बहुत बहुत मुबारकबाद .

दर्शन कौर धनोय said...

बाथम जी की कविताए पढ़कर और आपकी कलम से उनका परिचय दिल को सुकू देने वाला रहा ..धन्यवाद !

हरकीरत ' हीर' said...

दीपक जी ,
उन्हें नेट की विशेष जानकारी नहीं ...
अपना कार्य भी मातहतों से करवा लेते हैं ....
वैसे भी व्यस्त व्यक्ति हैं ....पूरे नार्थ ईस्ट की जिम्मेदारी है उन पर ..
आज यहाँ तो कल कहाँ ...
पर बहुत ही सरल स्वभाव के हैं ....
आप उन्हें फोन जरुर करें .....
तभी मेरी यह पोस्ट सार्थक होगी .....

सदा said...

आपकी कलम से आदरणीय बाथम जी को पढ़ना ...सरहदों का आभास .. एक प्रहरी का जीवन सच आम जन तो इससे अनभिज्ञ ही होते हैं भावमय करती हैं ये रचनाएं ...बधाई के साथ शुभकामनाएं ... ।

नीरज गोस्वामी said...

बाथम जी जैसे लेखक की रचनाओं को हम तक पहुँचाने के लिए आपका तहे दिल से शुक्रिया

नीरज

सुभाष नीरव said...

न सुरों की सरहदें
न शब्दों की सरहदें
न हवाओं की सरहदें
न पक्षियों की सरहदें
सरहदें मुल्क की
मैं मुल्क का प्रहरी
मैं होना चाहता हूँ
सुर
शब्द
हवा
और पक्षी .......

बहुत खूब ! बाथम जी का कविता संग्रह पढ़ने की अब तो मन में इच्छा है… आपने बाथम जी और उनके कविता संग्रह तथा उनकी कविताओं से परिचय कराया,इसके लिए आपका धन्यवाद हीर जी…

डॉ टी एस दराल said...

एक कवि बाकि लोगों से इसी बात में भिन्न होता है की वह आस पास की घटनाओं से प्रभावित होता है और अपने अनुभवों को शब्दों में ढाल देता है .
श्री बौथम जी भी निश्चित ही एक संवेदनशील व्यक्ति होने के साथ साथ एक अच्छे कवि भी हैं . यह उनकी रचनाओं में साफ झलक रहा है .
सचमुच बड़ा कठिन होता है गोलियों के बीच रहकर जिंदगी गुजारना .

हमारे सुरक्षा कर्मी बहुत विषम परिस्थितियों में काम करते हैं
इसीलिए हम इनको तहे दिल से सलाम करते हैं .

वैसे ठण्ड में कविता पाठ कर आप भी एक सैनिक ही लग रही हैं .
बधाई और शुभकामनायें जी .

डॉ टी एस दराल said...

मांफ कीजियेगा --कृपया बाथम जी पढ़ा जाए .

हरकीरत ' हीर' said...

हम उस लकीर के फकीर
अब सहेज रहे है
बहती मिट्टी को,
दरकती पहाडियों को,
सुलगते रिश्तों को,
विद्रोही स्वरों को
और हवा की मिठास को
साथ ही निबट रहे हैं
सीमाओं पर बढते जा रहे
आस्तीन के सॉपों से
ताकि
मैदान का पानी खारा न हो
रिश्तों की ऑच मध्यम न हो
और जीवन दायिनी हवा
और ज्यादा जहरीली न हो।

क्या बात है अशोक जी कमाल की पंक्तियाँ हैं ....
बहुत खूब .....


@ वैसे ठण्ड में कविता पाठ कर आप भी एक सैनिक ही लग रही हैं . ..

दराल जी सच्च में whaan ठण्ड बहुत थी ....ये तो अच्छा हुआ मैं यह कोट ले गई ....
वर्ना मेरे लिए तो कविता पाठ करना ही मुश्किल हो जाता ....

Human said...

बाथम साहब जैसे भावप्रधान,उच्च कोटि के कवि व बढ़िया शक्सियत का परिचय देने के लिए आपका आभार ।
वाकई में उनकी कविताओं बेहद अच्छी व भावपूर्ण हैं ।

देश सेवा के लिए सीमा पर रहने वालों को नमन ।

सरहद
जिसकी कोई हद नहीं होती
आदमी को आदमी से बांटते हुए
दोस्तों की दोस्ती को काटते हुए
अवाम को अवाम से रोकते हुए
यहाँ तक की कई पीढियां गुज़र जाती हैं
पर सरहद ख़त्म नहीं होती
वहीँ की वहीँ रहती है

दिगम्बर नासवा said...

बहुत ही कमाल का लिखते हैं बाथम जी ... सभी रचनाओं ने अब पूरी किताब की उत्सुकता जगा दी है ... सार्थक हैं ऐसे आयोजन ...

rashmi ravija said...

बहुत बहुत शुक्रिया..बाथम जी और उनकी रचनाओं से परिचित करवाने का...

उनकी कविताएँ भीतर तक मथ जाती हैं...कितना मुश्किल होता है..सीमा-प्रहरियों का रोज-ब-रोज ऐसे अनुभवों से गुजरना..

vandana gupta said...

बाथम जी से परिचित कराने के लिये शुक्रिया हीर जी…………संवेदनाओ से भरी उनकी रचनाये सच मे दिल मे उतर गयीं और सरहद के बीहडों मे नाचता अकेलापन कैसे रूह मे सर्द रात की तरह उतरता है उसका बहुत मार्मिक चित्रण किया है।

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " said...

bahut achchha laga...

सौ से ऊपर जवान / इतनी ही बंदूकें /तीन घोड़े एक गाड़ी/दस ऊँट और कुछ कुत्ते /यही मेरी रियासत /मेरा परिवार/यही मेरे सुख दुःख के साथी /दोस्त माँ-बाप और बच्चे ....

bahut sundar nazmen.

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बातां जी से परिचय और उनकी पुस्तक के कुछ अंश दोनों ही मन को भाये .. गूंगा क्षणिका ..जैसे दिमाग से चिपक कर रह गयी है ..

सैनिकों के जीवन की झांकी मिली ..इन प्रहरियों को सलाम ..

आभार ..

शिवम् मिश्रा said...

आपकी पोस्ट की खबर हमने ली है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - रोज़ ना भी सही पर आप पढ़ते रहेंगे - ब्लॉग बुलेटिन

आकर्षण गिरि said...

एक सार्थक आयोजन से रूबरू करवाने के लिए शुक्रिया....

महेन्‍द्र वर्मा said...

बाथम जी के व्यक्तित्व और कृतित्व से परिचय कराने के लिए आभार।

बाथम जी की रचनाएं पाठकों के मनोभावों के साथ तादात्म्य स्थापित करने में सफल हैं।

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

आयोजन में आपकी सफल भागीदारी के लिए बधाई॥

अनुपमा पाठक said...

मैं होना चाहता हूँ
सुर
शब्द
हवा
और पक्षी .......
वाह!
बाथम जी की कविताओं से परिचय कराने का आभार!

Onkar said...

बहुत सुन्दर पंक्तियाँ

Ravi Rajbhar said...

ये सरहदें किसने बनाई यहाँ , ये क्यों डाल दी गयीं दिलों में दरारे
मैं भी इंसां तू भी इंसां फिर ये बारूद का धुआँ क्यों बीच है हमारे
kash har koi is nazm ka dard samjh pata.. bahut hi sunder prastuti di hi apne..

badhai.

Asha Joglekar said...

सुंदर आयोजन और आपकी सुंदर समीक्षा सरहद से की । बाथम जी ने इन कविताओं को जिया है ।

शारदा अरोरा said...

shukriya , Batham ji ki kavitaon se parichy karvaane ka ...sundar lageen ..

Anonymous said...

एक मंदिर है इसी दो सौ गज में / नमाज़ भी पढ़ी जाती है /क्रिसमस पर केक भी कटता है /वाहे गुरु की आवाजें रोज़ सुन लेना /रहने का सलीका सीखना हो अगर/बी ओ पी में चले आना

निशब्द करती रचनाये हैं बाथम जी की.......बहुत ही सुन्दर |

प्रेम सरोवर said...

आपके पोस्ट पर आकर अच्छा लगा । मेरे नए पोस्ट शिवपूजन सहाय पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद

Anonymous said...

Mera comment nahi dikh raha Heer Ji?

हरकीरत ' हीर' said...

पता नहीं इमरान जी .....

कोई गूगल की समस्या रही होगी ....

mridula pradhan said...

न सुरों की सरहदें
न शब्दों की सरहदें
न हवाओं की सरहदें
न पक्षियों की सरहदें
सरहदें मुल्क की
मैं मुल्क का प्रहरी
मैं होना चाहता हूँ
सुर
शब्द
हवा
और पक्षी .......
kahoon to kya kahoon.......anupam......

kumar zahid said...

बहुत आत्मीयता और सरलता से लिखा गया पठनीय आलेख ..ये संस्मरण धरोहरें ही हैं। बधाइयां

Anonymous said...

@ हीर जी टिप्पणीयों में स्पैम में देखें वहां मिलेगा.....आजकल ज़्यादातर टिप्पणी वहाँ जा रही हैं.........और न मिले तो कोई बात नहीं हम फिर से देते हैं -

एक मंदिर है इसी दो सौ गज में / नमाज़ भी पढ़ी जाती है /क्रिसमस पर केक भी कटता है /वाहे गुरु की आवाजें रोज़ सुन लेना /रहने का सलीका सीखना हो अगर/बी ओ पी में चले

दिल को छू लेने वाली हैं बाथम जी की रचनाएँ.........बहुत ही सुन्दर लगी.......आपका आभार बाँटने के लिए|

महेन्‍द्र वर्मा said...

आ.हीर जी,
नमस्कार
आपने मुझसे सरस्वती सुमन के लिए क्षणिकाएं चाही हैं। कृपया रचनाएं भेजने के लिए पता बताने का कष्ट करें।
धन्यवाद।

हरकीरत ' हीर' said...

आद महेंद्र जी ,

मेरी मेल पे hi भेजें .....

harkirathaqeer@gmail.com

१०,१२ क्षणिकाएं संक्षिप्त परिचय और तस्वीर .....

Akshitaa (Pakhi) said...

बाथम अंकल जी से मिलकर अच्छा लगा..और सुन्दर आयोजन की भी बधाई.

प्रेम सरोवर said...

बहुत रोचक और सुंदर प्रस्तुति.। मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है । धन्यवाद ।

रजनीश तिवारी said...

ये सरहदें किसने बनाई यहाँ, ये क्यों डाल दी गयीं दिलों में दरारे
मैं भी इंसां तू भी इंसां फिर ये बारूद का धुआँ क्यों बीच है हमारे

मैं होना चाहता हूँ सुर शब्द हवा और पक्षी .......
बहुत अच्छी पंक्तियाँ ...बाथम जी का परिचय कराती सुंदर पोस्ट...

SANDEEP PANWAR said...

यही तो जीवन है। शुभकामनाएँ

Maheshwari kaneri said...

सार्थक आयोजन ...सुंदर प्रस्तुति का शुक्रिया!!

Udan Tashtari said...

बहुत आभार इस रिपोर्ताज का...

प्रेम सरोवर said...

बहुत ही मनभावन प्रस्तुति । कामना है सर्वदा सृजनरत रहें । मेरे नए पोस्ट पर आपकी आतुरता से प्रतीक्षा रहेगी । धन्यवाद ।

Pushpendra Vir Sahil पुष्पेन्द्र वीर साहिल said...

इतनी खूबसूरत रचनाओं से मिलवाने का शुक्रिया..!

Rakesh Kumar said...

न सुरों की सरहदें
न शब्दों की सरहदें
न हवाओं की सरहदें
न पक्षियों की सरहदें
सरहदें मुल्क की
मैं मुल्क का प्रहरी
मैं होना चाहता हूँ
सुर
शब्द
हवा
और पक्षी .......

आपकी समीक्षा तो कमाल की है हीर जी.
फिर फिर पढ़ने को मन करता है.
भाव विभोर हो गया हूँ.

सुन्दर प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत आभार.

Pushpendra Vir Sahil पुष्पेन्द्र वीर साहिल said...

एक मंदिर है इसी दो सौ गज में / नमाज़ भी पढ़ी जाती है /क्रिसमस पर केक भी कटता है /वाहे गुरु की आवाजें रोज़ सुन लेना /रहने का सलीका सीखना हो अगर/बी ओ पी में चले आना ....


मेरी अज़ान घंटियों के सुर में जा बैठी
सुबह-सुबह यहाँ धरमों का कोई भेद नहीं
अभी दिन होगा तो कुछ ज्ञानी लोग आयेंगे
फर्क समझायेंगे क्यूँ एक कुरान-वेद नहीं


बहुत ही बढ़िया लेख.. बहुत ही अच्छी कवितायेँ.... आपको और बोथम जी, दोनों का आभार!