Tuesday, August 10, 2010

दो लफ़्ज़ों का फूल ........

जाने कितनी खामोशियाँ है
जो आवाज़ मांगतीं हैं ......
और वक़्त चाहकर भी उन्हें
मुनासिफ फैंसला नहीं सुना पाता ....
बस ये खुशबू है कुछ तेरे ज़िक्र की
जो उम्र की रंगत में हौले-हौले मुस्कुरा रही है ......


(१)

ख़ामोशी ....

संदेशों के बाद
शुक्रवार की शाम
आये थे बादल ....
हलकी बूंदा-बांदी के बाद
एक उदास सी नज़्म छोड़ गए
सफ़्हों पर ......

तुम्हारी ख़ामोशी अब
कुछ कहने लगी है ......!!

(२)

शुकराना ....

तुम्हारी नज़रों के
शुकराने के साथ-साथ
कुछ मोहब्बत के हर्फ़ भी
उड़कर चले आये थे मेरे दर
मैंने उन्हें दिल का दरवाज़ा खोल
अन्दर बैठा लिया है ...........

जाने क्यूँ .....
आज चाँद के चहरे पे
मुस्कराहट है ........!!

(३)

दो लफ़्ज़ों का फूल ....

मैंने हथेलियों पे
चाहत की बूंदें सजा रखी हैं
तुम आना अपनी आँखों से छुआ
इनमें भर जाना .....
मुहब्बत के रंग ....
देख धुले हुए आसमां में
चाँद तारों का काफिला
इश्क़ की अलामत* लिए
उतर आया है .....
मैंने सारी चांदनी भर ली है
बाहों में .......
हवा भी तेरे आस-पास होने का
पता दे गई है ......
आ कुछ तो लिख दे
मेरे नसीब पे तू

आज ...
अँधेरे की कोख से
दो लफ़्ज़ों का फूल खिला है .....!!

अलामत- निशाँ, चिन्ह
(४)

गुलाब के खिलने तक .....

तु आना
अपने हाथों में ...
सूरज की पहली किरण लेकर
मैं मोहब्बत के सारे दरवाज़े
खोल दूंगी .......
देह की दुनियाँ से दूर
जहाँ अंधेरों की सिलवटें
नहीं होती .....
हम बाँट लेगें ....
अपनी-अपनी मोहब्बत
गुलाब के खिलने तक ......!!

54 comments:

सुधीर राघव said...

मैंने सारी चांदनी भर ली है
बाहों में .......
हवा भी तेरे आस-पास होने का
पता दे गई है ......
आ कुछ तो लिख दे
मेरे नसीब पे तू
baihtareen, umda, bahoot khoob

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

आपके ख़ामोश लेखन में भी कितनी आवाज़ है.... कितनी गहराई तक छू जाते हैं आपके अलफ़ाज़......... कहाँ से लातीं हैं आप इतने अच्छे ख़यालात...? लफ़्ज़ों में ऐसा लगता है ...... कि ......उनके होंठ हिल रहे हैं... आपके लफ्ज़ भी कुछ कहना चाहते हैं.... और एकदम ज़िंदा लगते हैं.......... आप बेस्ट हैं......... बेस्ट नहीं........ आप बेस्टेस्ट हैं....... नहीं........... आप बेस्टेस्ट के भी बियौंड हैं.... मैं और कैसे तारीफ़ करूँ......... समझ में नहीं आ रहा है........ शायद लफ्ज़ कम पड़ गए हैं.... हाँ! वाकई में कम पड़ गए हैं ....

ग्रेट........

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...

:)

:)


- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...

हरकीरत जी

सुबहानअल्लाह … !

निश्चित रूप से शुक्रवार की शाम ऐतिहासिक थी ,
शायद … !


आज चांद के चहरे पे
मुस्कराहट है ……!!

ख़ुदा करे कि चांद सदा मुस्कुराता ही रहे … … …
आमीन !

अंधेरे की कोख से
दो लफ़्ज़ों का फूल खिला है .....!!

वल्लाह !
आपकी क़लम को साष्टांग दण्डवत है !
वाह ! वाह ! वाह !

देह की दुनिया से दूर
जहां अंधेरों की सिलवटें
नहीं होती …
हम बांट लेगें …
अपनी-अपनी मोहब्बत
गुलाब के खिलने तक … … …!!

प्रेम की पवित्रतम प्रस्तुति !

लफ़्ज़ लफ़्ज़ में ग़ज़ब कशिश !
नाज़ुक जज़्बातों का ऐसा हुस्नअफ़्ज़ा दरिया !
भाव और शब्द जनित अद्भुत सम्मोहन !
कैसे कोई वशीभूत नहीं होगा ?

ख़ुदा बुरी नज़र से बचाए …!
बड़ी मेहरबानी ! काजल का टीका लगा लें , क़लम और आपकी पेशानी पर …

तमाम दुआएं आपके लिए …
- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं

Alpana Verma said...

वक़्त चाहकर भी उन्हें
मुनासिफ फैंसला नहीं सुना पाता ..
----बहुत खूब!
-------
खामोशियाँ बोलने लगे तो ?....दर्दो ग़म के सभी किस्से कहने लगेंगी..और रुलायेंगी खामखाँ !
------
'दो लफ़्ज़ों के फ़ूल 'पर सदा बहार रहे..
- बहुत सुन्दर नज्में हैं

संगीता पुरी said...

बहुत खूब !!

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

खु्बसूरत नज्में हैं
उम्दा पोस्ट के लिए धन्यवाद


ब्लॉग4वार्ता की 150वीं पोस्ट पर आपका स्वागत है

प्रतुल वशिष्ठ said...

आपके भावों की खामोशी का ये स्वर मन में उठ रहे तमाम भावों के आन्दोलन को थाम देता है. जैसे हिलोरे लेते हुए पानी को किसीने अपने कोमल हाथों से शांत कर दिया हो.
आप प्रायः उन चित्रों को पकड़ने का प्रयास करती हैं जो नज़रों से बचकर भाग जाना चाहते हैं.
पसंद आयीं रचनाएँ.

समयचक्र said...

उम्दा रचना हमेशा की तरह ...आभार

प्रवीण पाण्डेय said...

खामोशी भी एक हद तक खामोश रहने के बाद कुछ कहने सी लगती है।

Parul kanani said...

main to bas kayal hoon...!!!

नीरज गोस्वामी said...

आपकी रचनाओं को महसूस किया जा सकता है उन पर कमेन्ट नहीं लिखा जा सकता...बेहतरीन रचनाएँ...
नीरज

मुकेश कुमार सिन्हा said...

aapki khamoshi me bhi wo baat hai jo hamare bolte lafzo me nahi hai.....:(

kash aap jaisa ham bhi khamoshi se apne soch ko shabdo me dhall pate....:)

lajabab rachna!!

Anonymous said...

"तुम्हारी ख़ामोशी अब
कुछ कहने लगी है ......!!"

"तुम आना
अपने हाथों में ...
सूरज की पहली किरण लेकर
मैं मोहब्बत के सारे दरवाज़े
खोल दूंगी .......
देह की दुनियाँ से दूर
जहाँ अंधेरों की सिलवटें
नहीं होती ....."

रजनीश 'साहिल said...

शुकराना बहुत खूबसूरत है।..

देह की दुनियाँ से दूर
जहाँ अंधेरों की सिलवटें
नहीं होती .....
हम बाँट लेगें ....
अपनी-अपनी मोहब्बत
गुलाब के खिलने तक ......!!

बहुत ही उम्दा।

त्रिवेणी की शक्ल में कुछ लिखा है, देखिएगा-
http://khalishh.blogspot.com/2010/08/blog-post.html#comments

shikha varshney said...

आपके शब्द तो इसे गहरे बैठते हैं दिल में बहुत देर तो कुछ कहा ही नहीं जाता ...
ख़ामोशी और दो लफ्जों का फूल ..बेहतरीन बन पड़ी हैं ...
बहुत सुकून देता है आपको पढ़ना.

Dimple Maheshwari said...

आपकी टिपण्णी के लिए आपका आभार ...अच्छी कविता हैं...बहुत अच्छी .

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

एक से बढ़ कर एक नज़्म ...मन की गहराई में उतरती हुई ..
एक एक हर्फ़ दिल की गहराइयों को छूता चला गया ...

arvind said...

तुम्हारी ख़ामोशी अब
कुछ कहने लगी है ......!!वाह ! वाह ! वाह !

सर्वत एम० said...

आपने एक बार फिर निः शब्द कर दिया. आपकी नज्में तो इस कायनात से कहीं दूर पहुंचा देती, शायद ख्वाबों की नगरी में. हकीकत की दुनिया में वापसी बहुत मुश्किल से होती है. मेरी समझ में नहीं आता कि किस किस नज्म की तारीफ़ की जाए और किसे छोड़ दिया जाए. आप ऐसा क्यों नहीं करतीं कि एक बार में एक ही रचना पोस्ट किया करें. इससे हमारे जैसों को बहुत ज्यादा डूबना नहीं पड़ेगा.
अगर आप बुरा न मानें तो एक अर्ज़ करनी थी- पहली नज्म पर आपने मेहनत नहीं की.

nilesh mathur said...

बेमिशाल, बेहतरीन, लाजवाब.........

Avinash Chandra said...

जाने क्यूँ .....
आज चाँद के चहरे पे
मुस्कराहट है ........!!

क्यूँ न हो मुस्कराहट..

"देख धुले हुए आसमां में
चाँद तारों का काफिला
इश्क़ की अलामत लिए
उतर आया है ...."

बहुत सुकून का एहसास हुआ ये पढ़ के...बहुत ख़ूबसूरत.

और यहाँ फिर से वही चोट, दर्द.....

आज ...
अँधेरे की कोख से
दो लफ़्ज़ों का फूल खिला है .....!!


और ये बहुत बढ़िया लगी..बहुत ही बढ़िया...

हम बाँट लेगें ....
अपनी-अपनी मोहब्बत
गुलाब के खिलने तक ......!!

:)
मासूम सी, आशाओं वाली पछुआ जैसे.

रश्मि प्रभा... said...

तुम्हारी नज़रों के
शुकराने के साथ-साथ
कुछ मोहब्बत के हर्फ़ भी
उड़कर चले आये थे मेरे दर
मैंने उन्हें दिल का दरवाज़ा खोल
अन्दर बैठा लिया है ...........

जाने क्यूँ .....
आज चाँद के चहरे पे
मुस्कराहट है ........!!
bas main bhi muskura rahi hun

vandana gupta said...

देह की दुनियाँ से दूर
जहाँ अंधेरों की सिलवटें
नहीं होती .....
हम बाँट लेगें ....
अपनी-अपनी मोहब्बत
गुलाब के खिलने तक ......!!

बेहतरीन जज़्बात और चाहत्……………॥वैसे तो सारी ही बहुत सुन्दर हैं दिल को छू जाती हैं हमेशा की तरह मगर इसमे तो एक अलग ही अह्सास है।

Deepak Shukla said...

Hi..

Do lafzon ke phool liye..
Koi aaya jo nazmon main..
Ek shukrana dekha hai..
Humne to tere lafzon main..

Hamesha ki tarah .........behtareen..

Wah..

Deepak..

वीरेंद्र सिंह said...

तुम आना
अपने हाथों में ...
सूरज की पहली किरण लेकर
मैं मोहब्बत के सारे दरवाज़े
खोल दूंगी .......
देह की दुनियाँ से दूर
जहाँ अंधेरों की सिलवटें
नहीं होती .....
हम बाँट लेगें ....
अपनी-अपनी मोहब्बत
गुलाब के खिलने तक ......!!

vaise sabhi rachnaayen ek se badhkar ek hain...

Lekin ye panktiyon mujhe bahut khaas lagi.....


AApko meri shubkaamnayen....

विनोद कुमार पांडेय said...

तुम्हारी नज़रों के
शुकराने के साथ-साथ
कुछ मोहब्बत के हर्फ़ भी
उड़कर चले आये थे मेरे दर
मैंने उन्हें दिल का दरवाज़ा खोल
अन्दर बैठा लिया है ...........

Harikirat ji..ye bhi behtareen sundar ehsaas bhari prstuti..badhai

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत लाजवाब, शुभकामनाएं.

रामराम.

डॉ .अनुराग said...

सुना है
वक़्त के मोड़ो पे
दो आंखे
अब भी बहुत बोलती है .....

hem pandey said...

तुम आना
अपने हाथों में ...
सूरज की पहली किरण लेकर
मैं मोहब्बत के सारे दरवाज़े
खोल दूंगी .......

- सुन्दर.

Mithilesh dubey said...

बस लाजवाब ।

हरकीरत ' हीर' said...

Dimpal Maheshwari said...

आपकी टिपण्णी के लिए आपका आभार ...अच्छी कविता हैं...बहुत अच्छी .

डिम्पल जी ,

मुझे तो याद नहीं की मैं आपके ब्लॉग पे पहले गई हूँ ...

.ब्लॉग पर भी जाकर देखा कहीं कोई टिपण्णी नहीं मिली

और आपनी यही टिपण्णी कई जगह और भी देखी...

माजरा क्या है ......?

शोभना चौरे said...

हरकीरत जी
कहाँ से लती है आप इतने जीवंत अहसास ?
बहुत खुबसूरत रचनाये अंतर्मन को छूती हुई |
आभार

रवि धवन said...

एक बार फिर खतरनाक पोस्ट।

neera said...

आपकी खामोशी के रंग कभी चांदनी, कभी किरण, कभी बादल, कभी जंगल, कभी नदी, कभी शबनम तो कभी आंसू ...

Coral said...

न जाने कितनी खामोशियाँ है
जो आवाज़ मांगतीं हैं ......

ek bar phir se sundar nazm Badhai!

डॉ टी एस दराल said...

बस ये खुशबू है कुछ तेरे ज़िक्र की
जो उम्र की रंगत में हौले-हौले मुस्कुरा रही है ......
आज तो ओपनिंग ही कमाल की की है ।


तुम्हारी ख़ामोशी अब
कुछ कहने लगी है ......!!

ख़ामोशी से ही सुनना पड़ेगा ।

जाने क्यूँ .....
आज चाँद के चहरे पे
मुस्कराहट है ........!!

आज तो चाँद धन्य हो गया जी ।

हवा भी तेरे आस-पास होने का
पता दे गई है ......
लगता तो ऐसा ही है ।

हम बाँट लेगें ....
अपनी-अपनी मोहब्बत
गुलाब के खिलने तक ......!!

अति सुन्दर ।

एक एक रचना मोहब्बत के रंग में रंगी हुई ।
ऐसी ही नज़्मे लिखती रहिये ना ।

Dr.R.Ramkumar said...

मैंने सारी चांदनी भर ली है
बाहों में .......
हवा भी तेरे आस-पास होने का
पता दे गई है ......
आ कुछ तो लिख दे
मेरे नसीब पे तू

आज ...
अँधेरे की कोख से
दो लफ़्ज़ों का फूल खिला है .....!!


harkirat ji, bahut sunder. bas belafz hain hum...

कडुवासच said...

...sundar rachanaayen !!!

CS Devendra K Sharma "Man without Brain" said...

तुम आना
अपने हाथों में ...
सूरज की पहली किरण लेकर
मैं मोहब्बत के सारे दरवाज़े
खोल दूंगी .......
देह की दुनियाँ से दूर
जहाँ अंधेरों की सिलवटें
नहीं होती .....
हम बाँट लेगें ....
अपनी-अपनी मोहब्बत
गुलाब के खिलने तक ......!!

hamesha ki tarah behad khubsurat rachnayeeee!!!!!!!!!

Yashwant Mehta "Yash" said...
This comment has been removed by the author.
Yashwant Mehta "Yash" said...

दिल से लिखने वालो की तारीफ़ बन्दा दिल से करे
लफ्जों में तारीफ़ क्या करें, लफ्जों की हदें खत्म हो जाएँगी
अगर आपकी तारीफ़ करना शुरू करें

आप सदा ही कमाल का लिखती हैं.........बस यू ही शब्दों को सजाते रहिये

VIVEK VK JAIN said...

मैंने सारी चांदनी भर ली है
बाहों में .......
हवा भी तेरे आस-पास होने का
पता दे गई है ......
आ कुछ तो लिख दे
मेरे नसीब पे तू.
aapke blog pe har baar kuchh nya pata hu.

VIVEK VK JAIN said...

मैंने सारी चांदनी भर ली है
बाहों में .......
हवा भी तेरे आस-पास होने का
पता दे गई है ......
आ कुछ तो लिख दे
मेरे नसीब पे तू.
aapke blog pe har baar kuchh nya pata hu.

VIVEK VK JAIN said...

मैंने सारी चांदनी भर ली है
बाहों में .......
हवा भी तेरे आस-पास होने का
पता दे गई है ......
आ कुछ तो लिख दे
मेरे नसीब पे तू.
aapke blog pe har baar kuchh nya pata hu.

Asha Joglekar said...

कुछ मोहब्बत के हर्फ़ भी
उड़कर चले आये थे मेरे दर
मैंने उन्हें दिल का दरवाज़ा खोल
अन्दर बैठा लिया है ...........

जाने क्यूँ .....
आज चाँद के चहरे पे
मुस्कराहट है ........!!
कितनी सुंदर नज्म है । दर्द से परे, खुशी की इक झलक लिये ।

अरुण अवध said...

bahut pyaree nazmen,
dil tak pahuchee aap ki
baat.

योगेन्द्र मौदगिल said...

wah.....behtreen bhavabhivyakti...

रचना दीक्षित said...

देह की दुनियाँ से दूर
जहाँ अंधेरों की सिलवटें
नहीं होती .....
हम बाँट लेगें ....
अपनी-अपनी मोहब्बत
गुलाब के खिलने तक ......!!
हर कीरत जी आप की पोस्ट पढ़ कर तो कुछ भी कहने की स्थिति में नहीं रहती हूँ.बहुत सुन्दर नज्में हैं एहसास बहुत गहरे हैं.......

वाणी गीत said...

मैं मोहब्बत के सारे दरवाज़े
खोल दूंगी .......
देह की दुनियाँ से दूर
जहाँ अंधेरों की सिलवटें
नहीं होती .....
हम बाँट लेगें ....
अपनी-अपनी मोहब्बत
गुलाब के खिलने तक ......!!

क्या कहूँ ...सभी एक से एक ...!

Reetika said...

तुम आना
अपने हाथों में ...
सूरज की पहली किरण लेकर
मैं मोहब्बत के सारे दरवाज़े
खोल दूंगी .......
देह की दुनियाँ से दूर
जहाँ अंधेरों की सिलवटें
नहीं होती .....

aise paakeeza se rishton ki kya kahein baangi .. aapki lekhni andheron mein bhi siharte lafz pakad laati hai..

दिगम्बर नासवा said...

इस खामोशी ने भी कितने फूल खिलाए हैं ... भीगा एहसास है आपकी सब पंक्तियों में ... दिल को छूता हुवा ...

Unknown said...

बस ये खुशबू है कुछ तेरे ज़िक्र की
जो उम्र की रंगत में हौले-हौले मुस्कुरा रही है ......
kya khoobsurat khayal ubhra hai

wah! bahut khoob..

ѕнαιя ∂я. ѕαηנαу ∂αηι said...

ख़ामोशियों आवाज़ मांगती हैं ,वक़्त का फ़ैसला,तेरे ज़िक्र की ख़ुशबू , बिम्बों का ख़ूबसूरत संयोजन ब्धाई। मैं "मुनासिफ़" का यहां मतलब नहीं समझ पा रहा हूं।