Friday, July 23, 2010

बता, मैं अपनी ही कब्र पर चिराग कैसे रखूं......?

अपना तो दर्द का दामन है ,कोई साथ चले न चले
गिला नहीं अय ज़िन्दगी , तू अब मिले न मिले

पेश हें फिर कुछ क्षणिकाएँ ......

(१)

नजरिया ......

उसकी नज़रें देख रही थीं
रिश्तों की लहलहाती शाखें .....
और मेरी नज़रें टिकी थी
उनकी खोखली होती जा रही
जड़ों पर .......!!

(२)

ख़ामोशी ....

पता न था ...
मेरी ख़ामोशी के साथ
चलते चलते ....
वह भी यूँ ....
खामोश हो जायेगा ....
इक दिन .......!!

(३)

मजबूरियां ......

वह......
कुछ दूर तक
चला था .....
मेरी ख़ामोशी के साथ ...
कुछ कदम चलकर
लौट आया अपनी
मजबूरियों के साथ .......!!

(४)

दम तोडती चीखें .....

यहाँ तो ....
पाक आवाजें भी
दम तोड़ देती हें
चीखने के बाद .....
फिर मेरी चीखें तो यूँ भी
खामोश थीं ........!!

(५)

नसीहतें .....

वे अपने लफ़्ज़ों से
हर रोज़ गैरों को
देते हें नसीहतें ....
खुद अपने आप को
नसीहत .....
कौन दे पाया है भला ........!?!

(६)

घरौंदे .....

उसने कहा :
तुम तो शाख़ से गिरा
वह तिनका हो .....
जिसे बहाकर कोई भी
अपने संग ले जाये .....
मैंने कहा :
शाख़ से गिरे तिनके भी तो
घरौंदे बन जाते हें
किसी परिंदे के .......!!

(७)

राँग नंबर .....

उसने फोन उठाया ....
और धीमें से कहा , ''हैलो !
आप कौन बोल रहीं हें ?
किस से मुखातिब होना चाहती है ?
मैंने हंसकर कहा ......
किसी से नहीं ...
बस यूँ ही जरा
गम को बहलाना चाहती थी .....!!

(८)

चिराग .....

हर कोई
रख आता है चिराग
किसी अपने की कब्र पर
बता, मैं अपनी ही कब्र पर
चिराग कैसे रखूं......?

*********************

इन नज्मों को आप मेरी आवाज़ में भी सुन सकते हें यहाँ .......

89 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

आज कि हर क्षणिका लाजवाब है....
नजरिया , मजबूरियां ,घरौंदे , रोंग नंबर ..विशेष पसंद आई....

अंतिम वाली कुछ अधूरी सी लगी..
हर कोई
रख आता है चिराग
किसी अपने की कब्र पर
बता, मैं अपनी ही कब्र पर...

इसके आगे भी एक पंक्ति होनी चाहिए थी

Udan Tashtari said...

आह!! बहुत गहराई...

शाख़ से गिरे तिनके भी तो
घरौंदे बन जाते हें
किसी परिंदे के ...

क्या बात है..और फिर आपसे सुनना...जबरदस्त!

Amrendra Nath Tripathi said...

विविध रूप-रंग की ये क्षणिकाएं बढियां रहीं .. छोटे छोटे अनुभवों को रखती हुई ! आभार !

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

हर कोई
रख आता है चिराग
किसी अपने की कब्र पर
बता, मैं अपनी ही कब्र पर
चिराग कैसे रखूं......?

वाह!खुबसूरत ढंग से भावनाएं उभर कर आई हैं।

किसी ने कहा है-

अरमां तमाम उम्र के सीने में दफ़्न हैं।
हम चलते फ़िरते लोग मजारों से कम नहीं।

शुभकामनाएं

डॉ टी एस दराल said...

आज की क्षणिकाएं अलग सी हैं । एक अजीब सी कशिश है इनमे ।
सब की सब लाज़वाब ।
नसीहतें और घरोंदे सबसे अच्छी लगी ।
शाम को आराम से बैठकर सुनेंगे आपकी आवाज़ का जादू ।

वाणी गीत said...

अलग अलग खूबसूरत नहीं कहूँगी ...दर्द भरी क्षणिकाएं ...
मन उदास क्यों कर देती हो ...!

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

उत्कृष्ट. शानदार.

सदा said...

शाख़ से गिरे तिनके भी तो
घरौंदे बन जाते हें
किसी परिंदे के ...

गहरे भाव लिये हुये बेहतरीन शब्‍द रचना, सभी क्षणिकाएं एक से बढ़कर एक ।

रश्मि प्रभा... said...

रौंग नंबर लगाती हूँ... मन बहला लेती हूँ
रचनाएँ तो सबकी सब कमाल हैं
पर जहाँ दिल बहलाने का बहाना मिल जाये
उसकी अलग बात है !

Parul kanani said...

as usal...amazing..amazing..amazing :)

राज भाटिय़ा said...

बहुत उदास कर दिया आप ने तो...बहुत अच्छा लगा. धन्यवाद

संजय भास्‍कर said...

हर क्षणिका लाजवाब है..

संजय भास्‍कर said...

बहुत पसन्द आया
हमें भी पढवाने के लिये हार्दिक धन्यवाद
बहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..

उमेश महादोषी said...

'आह' पर 'वाह' कहना बहुत मुश्किल होता है....... आपकी रचनाओं पर कुछ कहना हो तो शब्द कहाँ से लाऊं.......

Deepak Shukla said...

Hi..

Dard bhari har kshanika teri..
dard bhari har nazm..
anjaana ek dard dikha hai...
aaya teri vazm..

Etne dard main rahkar ke..
kaise tum muskaate ho..
dard jhalakta hai gazlon main..
kaise tum sah paate ho..

Mitron ke sang aakar ke tum...
jara sang muskaoge...
dil main koi dard ho chahe..
use bhool tum jaoge..

jeevan hai gar dard ka dariya...
hanskar paar utarna hai..
kanton ke raahen hon chahe...
adig hamesha chalna hai...

Sundar abhivyakti...

Deepak..

Ravi Rajbhar said...

Shand nahi tarrif ke liye...
har baar aap ki kalam mujhe stambh kar deti hai!

Har chhadika lajbab hai par .... (6) no. dil ko under tak chhu gai..!

nilesh mathur said...

बहुत दर्द है आपकी रचनाओं में, आज पहली बार आपकी आवाज़ सुनी है, आपकी आवाज़ में भी एक कशिश और दर्द है! बेहतरीन क्षणिकाएँ!

प्रवीण पाण्डेय said...

एक एक कणिका गहराई बढ़ाती चली गयी भावों की।

shikha varshney said...

उसकी नज़रें देख रही थीं
रिश्तों की लहलहाती शाखें .....
और मेरी नज़रें टिकी थी
उनकी खोखली होती जा रही
जड़ों पर .......!!
वाह क्या कहने .....
घरोंदे और रोंग नंबर भी बहुत पसंद आईं.

Sunil Kumar said...

हर शेर, खुबसूरत दिल की गहराई से लिखा गया, मुवारक हो

vandana gupta said...

दम तोडती चीखें .....

यहाँ तो ....
पाक आवाजें भी
दम तोड़ देती हें
चीखने के बाद .....
फिर मेरी चीखें तो यूँ भी
खामोश थीं ........!!
बहुत ही गहन वेदना का चित्रण्।

चिराग .....

हर कोई
रख आता है चिराग
किसी अपने की कब्र पर
बता, मैं अपनी ही कब्र पर
चिराग कैसे रखूं......?
गज़ब का लेखन्………………दर्द की पराकाष्ठा है।

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

हर कविता अपने आप में लाजवाब।
………….
ये साहस के पुतले ब्लॉगर, इनको मेरा प्रणाम
शारीरिक क्षमता बढ़ाने के 14 आसान उपाय।

कविता रावत said...

नजरिया ...... ख़ामोशी .. मजबूरियां ..... दम तोडती चीखें .....नसीहतें .....
घरौंदे ..... राँग नंबर .... चिराग .... किसे कोड करूँ ...सच में सभी क्षणिकाएँ में गहरे भाव भरे है आपने!
बेहद प्रभावपूर्ण और सार्थक प्रस्तुति के लिए आभार

rashmi ravija said...

.मैंने कहा :
शाख़ से गिरे तिनके भी तो
घरौंदे बन जाते हें
किसी परिंदे के .......!!

सारी क्षणिकाएं एक से बढ़कर एक हैं....कमाल का लिखा है...

Vinay said...

So Nice

----
चाँद, बादल और शाम
गुलाबी कोंपलें
The Vinay Prajapati

स्वप्निल तिवारी said...

यहाँ तो ....
पाक आवाजें भी
दम तोड़ देती हें
चीखने के बाद .....
फिर मेरी चीखें तो यूँ भी
खामोश थीं ........!!

kabhi cheekh khamosh hoti hai ..aur kabhi khamoshi cheekhti hai ..aawaz ki aawaz bhi kai tarah ki hoti hai na...

मैंने कहा :
शाख़ से गिरे तिनके भी तो
घरौंदे बन जाते हें
किसी परिंदे के .......!!


ummid ka sahara..humesha bana hai tinka..:)


हर कोई
रख आता है चिराग
किसी अपने की कब्र पर
बता, मैं अपनी ही कब्र पर
चिराग कैसे रखूं......?

fir se mil gayeen amrita preetam mujhe... incredible...

मनोज भारती said...

गहरे अर्थ लिए हुई सुंदर क्षणिकाएँ ...

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

हर अश' आर ग़ज़ब के हैं... बहुत ही सुंदर... मन को बहुत अच्छे लगे....

रवि धवन said...

बेहद खतरनाक
वो जाने कैसे लिखते हैं अनमोल शब्द
रुह निकल जाए
क्यों करते हैं ऐसा सितम
इतने भी नगवार हम नहीं
चुपके से शुक्रिया भी कर न सकें

सुधीर राघव said...

हर बात बहुत गहरी है। हर शब्द ऐसे पिरोया है जैसे यहीं के लिए बना हो।

सुधीर राघव said...

हर बात बहुत गहरी है। हर शब्द ऐसे पिरोया है जैसे यहीं के लिए बना हो।

पवन धीमान said...

शाख़ से गिरे तिनके भी तो..घरौंदे बन जाते हें
किसी परिंदे के ....
..बहुत मर्मस्पर्शी

Coral said...

शाख़ से गिरे तिनके भी तो
घरौंदे बन जाते हें
किसी परिंदे के ....

बहुत सुन्दर लगी ये पंक्तिया!

M VERMA said...

शाख़ से गिरे तिनके भी तो
घरौंदे बन जाते हें
किसी परिंदे के .......!!

परिन्दों के घरौन्दे तो गिरे तिनकों से ही बनते हैं
बहुत खूबसूरत हैं क्षणिकाएँ
और फिर आपकी आवाज का दर्द ... खंजर सी उतर जाती हैं.
शब्द और आवाज का संगम नायाब

डॉ टी एस दराल said...

कल समय नहीं मिला । आज सुन रहा हूँ , आपकी जादुई आवाज़ में ये खूबसूरत क्षणिकाएं ।
कितनी दर्द भारी पंक्तियाँ हैं । उतना ही दर्द आपने आवाज़ में उंडेल दिया है ।
आज बैठे बैठे मुशायरा हो गया ।

Coral said...

हरकीरत जी आपकी टिप्पणी के लिए शुक्रिया ...
आज मै पहली बार आपके ब्लॉग मै आई थी ..बहुत अच्छा लगा आपका ब्लॉग ..आशा है अब बार बार आना होगा ...

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" said...

वैसे तो हर क्षणिका मुझे अच्छी लगी, पर उसमे से भी 'नजरिया', 'ख़ामोशी', 'घरौंदे' और 'चिराग' मुझे खास कर बेहद पसंद आई ...
बधाई !

दिगम्बर नासवा said...

पता न था ...
मेरी ख़ामोशी के साथ
चलते चलते ....
वह भी यूँ ....
खामोश हो जायेगा ....
इक दिन ....

कुछ ही लाइनों में इतना गहरा कहना .... हर बार कहना ... नया कहना ... पता नही आप कहाँ से इतनी संवेदनाएँ ले आती हैं ... कमाल की लेखनी ही आपकी .....

रजनीश 'साहिल said...

sachmuch, har ek kshanika behtareen hai.

Rohit Singh said...

बता, मैं अपनी ही कब्र पर
चिराग कैसे रखूं......?

कोई बताए तो मुझे भी बता दिजिएगा।

मैंने हंसकर कहा ......
किसी से नहीं ...
बस यूँ ही जरा
गम को बहलाना चाहती थी ..

वाह आप के रास्ते पर तो कई बार हम भी चलें हैं। क्या बात है हम आपके सफर पर जाने अनजाने चल देते हैं कई बार।

manu said...

बेहद बेहद खूबसूरत लिखी हैं सब क्षणिकाएं...

पिछली कविता ही कई दिन बाद सुन सके थे...बेशक वो भी बहुत दिलकश अंदाज में पेश कि गयी थी..
अब इन्हें सुनने का नंबर देखें कब आता है...

manu said...

हाथ थामा तो पुकारा कभी सरगोशी से
जब भी खामोशियों ने बे-सदा देखा है उसे..

देवेन्द्र पाण्डेय said...

चिराग .....

हर कोई
रख आता है चिराग
किसी अपने की कब्र पर
बता, मैं अपनी ही कब्र पर
चिराग कैसे रखूं......?
..सबसे अच्छी लगी यह क्षणिका.
..दिल जले तो हरदम चिराग लिए घूमते हैं. जिस्म कब्र की तरह ठंडा, दिल चिराग की तरह रौशन.

रचना दीक्षित said...

शाख़ से गिरे तिनके भी तो
घरौंदे बन जाते हें
किसी परिंदे के .......!!
उफ्फ्फ !!!! लाजवाब ,कमाल है !!!!!!!!!!!!!!सिर्फ चंद पंक्तियाँ और निरुत्तर ही कर दिया हर क्षणिका लाजवाब है....

वन्दना अवस्थी दुबे said...

उसकी नज़रें देख रही थीं
रिश्तों की लहलहाती शाखें .....
और मेरी नज़रें टिकी थी
उनकी खोखली होती जा रही
जड़ों पर .......!!
बहुत सुन्दर क्षणिकाएं हैं हरकीरत जी. पहली पर ही नज़र अटक गई.

सु-मन (Suman Kapoor) said...

बहुत गहराई लिये हुए शब्द.......................

Khushdeep Sehgal said...

तेरे लफ़्ज़ों से नज़र नहीं हटती,
नज़ारें हम क्या देखें....

आवाज़ में भी वही कशिश जो कलम में है...ये मकनातीस कहां से लाई हैं हुज़ूर...

जय हिंद...

Avinash Chandra said...

देर से आने के लिए माफ़ी..
हर क्षणिका जबरदस्त है..बिलकुल आपका कॉपीराईट

और इस पर कुछ भी कहने का मन नहीं होता...बस पढ़ लिया, कई कई बार...

यहाँ तो ....
पाक आवाजें भी
दम तोड़ देती हें
चीखने के बाद .....
फिर मेरी चीखें तो यूँ भी
खामोश थीं ........!!

ऐसा लिख सकने का बहुत बहुत आभार..

सूबेदार said...

आपकी की कबिता हर बिषय पर सटीक है
कबिता अपने आप में बहुत कुछ कह जाती है
मै सोचता हू की लोग इतना कठिन कार्य कैसे करते है.
बहुत अच्छा लगा.
धन्यवाद

Dimple said...

Namaste :)

Harr shabd harr pankti dil ko chooh rahi hai
Bilkul waise jaise thanddi hawaa mann ko sehlaati hai...

Aap ne bahut khoobsurati se aur sachhai se likha hai. Aur sheershakk mujhe bahut achha laga!

Prem Sahit,
Dimple

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

मंगलवार 27 जुलाई को आपकी रचना ... चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर ली गयी है .कृपया वहाँ आ कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ .... आभार

http://charchamanch.blogspot.com/

इस्मत ज़ैदी said...

उसकी नज़रें देख रही थीं
रिश्तों की लहलहाती शाखें .....
और मेरी नज़रें टिकी थी
उनकी खोखली होती जा रही
जड़ों पर ..

bahut sundar !
jaden hee khokhlee ho jayen to rishton ki bunyaaden hil jaya kartee hain

इस्मत ज़ैदी said...
This comment has been removed by the author.
सुनील गज्जाणी said...

harkeerat mam ,
pranam !
kya kaha aap ki oomda rachanye padh kar is baare me u kaha chahuga ki

''' kounsi sannse me loo aur kaun si piya ke naam kar du''

har rachna dil ko chookar gujarti hai. salaam aap ki kalam ko aap ke zazbaat ko.
shukariya.

Pawan Rajput said...

very very nice .. .........

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...

हरकीरतजी
तीन दिन में कई बार आपकी ये क्षणिकाएं पढ़ने आ चुका हूं …
अभी पढ़ते हुए अचानक बरसों पहले के एक शे'र की याद आ गई …
उल्फ़त न सही नफ़रत ही सही , हम यह भी गवारा कर लेंगे
इक याद किसी की दिल में लिए , जीने का सहारा कर लेंगे



एक ख़ूबसूरत -सी , सांवली - सी लड़की ने लिख कर दिया था मुझे , मेरे बनाए एक चित्र के पीछे कभी …
सम्हाल कर रखा हुआ है अभी !
( ' राजी ' कहता था मैं उसे …
वह नहीं पढ़ रही होगी यह सब )

बस … शे'र शेअर करने को मन चाहा , तो कर दिया
क्षणिकाओं पर …
कल आऊंगा न , तो कहूंगा कुछ … !
लेकिन कल का क्या भरोसा ?

उम्मीद पर ही संसार चलता है न !

Do'nt worry !
Be happy !!

- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं

शरद कोकास said...

सुन्दर क्षणिकायें ।

hem pandey said...

बता, मैं अपनी ही कब्र पर
चिराग कैसे रखूं......?'

- बेहद सुन्दर पंक्तियाँ.

हरकीरत ' हीर' said...

ओये ...होए .......!!

राजेंद्र जी ,यह शे'र तो कभी हमने भी खूब इस्तेमाल किया था ......मतलब डायरियों -पन्नों पर ....

ख़ूबसूरत -सी , सांवली -...ओये होए .......राज़ की राज़ी .......क्या बात है ......!!

कोई ग़ज़ल कोई नज़्म कोई गीत भी लिखा होगा 'राज़ी 'के लिए .....वह भी कभी शेअर कीजियेगा .....!!

daanish said...

उसकी नज़रें देख रही थीं
रिश्तों की लहलहाती शाखें .....

और मेरी नज़रें टिकी थी
उनकी खोखली होती जा रही
जड़ों पर .......!!

क्षणिकाओं में छिपे शब्द
और शब्दों में छिपी सच्चाई ...
वाह !!
"खामोशी" और "मजबूरियां" में
khoob रिश्ता निभा है

आवाज़ की बात पर तो
डॉ दराल जी की बात ही दुहराता हूँ,,,
और
स्वरंकार जी की बात का
अनुमोदन करता हूँ

ज्योति सिंह said...

उसकी नज़रें देख रही थीं
रिश्तों की लहलहाती शाखें .....
और मेरी नज़रें टिकी थी
उनकी खोखली होती जा रही
जड़ों पर .......!!
हर ही एक से बढ्कर एक ,लाजवाब
अपना तो दर्द का दामन है ,कोई साथ चले न चले
गिला नहीं अय ज़िन्दगी , तू अब मिले न मिले
साथ ही यह भी भा गया .

ज्योति सिंह said...

पता न था ...
मेरी ख़ामोशी के साथ
चलते चलते ....
वह भी यूँ ....
खामोश हो जायेगा ....
इक दिन .......!!
लाज़वाब ,मेरे मन ने इसे सहेज लिया .

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

हर क्षणिका हमेशा की तरह साहित्य के चरम को छूती हुई

उसने कहा :
तुम तो शाख़ से गिरा
वह तिनका हो .....
जिसे बहाकर कोई भी
अपने संग ले जाये .....
मैंने कहा :
शाख़ से गिरे तिनके भी तो
घरौंदे बन जाते हें
किसी परिंदे के ......
ये बात शेर में यूं कही गई है....
हां मैं तुझसे हूं मगर मेरा भी है अपना वजूद
पत्ते गिर जाएंगे तो साया कहां रह जाएगा.

bhawana said...

bahut gahrai hai aapki har pankti mei ...

संजीव गौतम said...

वह......
कुछ दूर तक
चला था .....
मेरी ख़ामोशी के साथ ...
कुछ कदम चलकर
लौट आया अपनी
मजबूरियों के साथ .......!!

मेरी चीखें तो यूँ भी
खामोश थीं

बहुत बढिया कविता अपने पूरे उफान पर है यहां। अच्छी कहन।
हरजीत जी की ग़ज़लों को समर्थन देने के लिए आभार।
आगरा के एक और रचनाकार के गीत देखें।

RAJ SINH said...

अप्प दीपो भव !

आपकी कीर्ति स्वयं कभी न बुझने वाला चिराग होगी .

विनोद कुमार पांडेय said...

यहाँ तो ....
पाक आवाजें भी
दम तोड़ देती हें
चीखने के बाद .....
फिर मेरी चीखें तो यूँ भी
खामोश थीं ........!!

हरकिरत जी आज की प्रस्तुति भी लाजवाब..मेरे कहने ने पहले यहाँ उपस्थित सभी कमेंट मेरे कथन की ज़ोर शोर से गवाही दे रहे है..सुंदर भाव सुंदर लेखनी के लिए हार्दिक बधाई

Asha Joglekar said...

Behad sunder. ye dono to lajawab
उसने कहा :
तुम तो शाख़ से गिरा
वह तिनका हो .....
जिसे बहाकर कोई भी
अपने संग ले जाये .....
मैंने कहा :
शाख़ से गिरे तिनके भी तो
घरौंदे बन जाते हें
किसी परिंदे के .......!!
हर कोई
रख आता है चिराग
किसी अपने की कब्र पर
बता, मैं अपनी ही कब्र पर...
Chirag kaise rakhoon ?

Shayar Ashok : Assistant manager (Central Bank) said...

हर क्षणिका लाजवाब है...बहुत खूब ||
दिल आनंदित हो उठा ||

VIVEK VK JAIN said...

उसने कहा :
तुम तो शाख़ से गिरा
वह तिनका हो .....
जिसे बहाकर कोई भी
अपने संग ले जाये .....
मैंने कहा :
शाख़ से गिरे तिनके भी तो
घरौंदे बन जाते हें
किसी परिंदे के .......!!
b'ful lines........im speechless.

VIVEK VK JAIN said...

उसने कहा :
तुम तो शाख़ से गिरा
वह तिनका हो .....
जिसे बहाकर कोई भी
अपने संग ले जाये .....
मैंने कहा :
शाख़ से गिरे तिनके भी तो
घरौंदे बन जाते हें
किसी परिंदे के .......!!
b'ful lines........im speechless.

Razi Shahab said...

ik baar phir lajawaab likha aapne....magar is theme ki wajah se padhne mein kafi dushwari ho rahi hai... ya to color text ka change kar diya karien ya phir theme...
regard,

अरुण अवध said...

sabhee nazme aapki
saundarya drishti aur
abhivyakti kshamta ki
sunder prastutiyan hai.
Bahut badhai.

Dr. Tripat Mehta said...

ah! choo gai andar tak aapki rachna :)


http://liberalflorence.blogspot.com/

shyam gupta said...

सभी कमेन्ट्स अच्छे हैं---नो कमेन्ट

हरकीरत ' हीर' said...

Dr. shyam gupta said...

सभी कमेन्ट्स अच्छे हैं---नो कमेन्ट

डा गुप्ता जी आप यहाँ कमेन्ट पढने आये थे या रचनायें .....

कमेन्ट पर मत जाइएगा ...यहाँ तो वाह- वाह कुछ ज्यादा ही हो जाती है .....!

kumar zahid said...

हर कोई
रख आता है चिराग
किसी अपने की कब्र पर
बता, मैं अपनी ही कब्र पर
चिराग कैसे रखूं......?



ऐसा न कहें मोहतरमा !...चरागां चराग के लिए नहीं तरसते...
क्या हम आपकी इस बात पर कहीं और पल्टकर देख सकते हैं..?

हकीम हो के जो दवा मांगे
गो कि तूफान भी हवा मांगे !!!

palaash ki talaash said...

hote jaate hain charaagaan bhi kaaf-e-nazar
tahreer ko zaraa pareshaan na kar

हरकीरत ' हीर' said...

हकीम हो के जो दवा मांगे
गो कि तूफान भी हवा मांगे !!!

कुमार जाहिद जी शुक्रिया इन बेहतरीन पंक्तियों के लिए .....
आपकी टिपण्णी सहेज कर रख ली है .....!!

Satish Saxena said...

आनंद आ गया ....शांत और एकांत में आपको, सुनना सुखकर है...शुभकामनायें !

Pawan Kumar said...

हर कोई
रख आता है चिराग
किसी अपने की कब्र पर
बता, मैं अपनी ही कब्र पर
चिराग कैसे रखूं......?
बहुत शानदार नज़्म....तारीफ के लिए भी अलफ़ाज़ ढूँढने पद रहे हैं यूँ तो सारी नज्में ही दिलकश थीं, मगर कब्र पर चिराग तो अद्भुत है!

Pawan Kumar said...

हर कोई
रख आता है चिराग
किसी अपने की कब्र पर
बता, मैं अपनी ही कब्र पर
चिराग कैसे रखूं......?
क्या खूब छोटी सी नज़्म है......!
सेंसिटिव नज़्म जिसमें ख्याल और अलफ़ाज़ आदायगी दोनों ही काबिल ए तारीफ़

Manav Mehta 'मन' said...

bahut sundar harkeerat ji.......
ek cheekh nikal gayi dil se, ye padh kar...........

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ said...

नजरिया
नसीहतें
घरौंदे
राँग नंबर
चिराग
अब इसके बाद, और क्या?
सादर नमन!

Subhash Rai said...

क्या बताऊं, देर से आया. आप आखरकलश पर, साखी पर दस्तक दे गयीं थीं, अच्छा लगा लेकिन उससे भी अच्छा लगा आप की कलम से, आप के कलाम से परिचित होकर. सच कहते हैं, हीर..हीरा आसानी से नहीं मिलता है. बहुत से लोग खोजते-खोजते थक जाते हैं, उम्र गंवा देते हैं, पर नसीब नहीं होता. इस तरह मैं समझता हूं, मुझे ज्यादा देर नहीं हुई. आप की कुछ रचनाएं पढीं, उनमें सिर्फ चौंका कर छोड देने वाली चमक भर नहीं है, बल्कि दिल में उतर जाने वाली कसक है, दर्द है. यही आप की रचनाओं की ताकत है. धन्यवाद. आप के ब्लाग को साखी की पसन्द में शामिल कर रहा हूं ताकि हीर का यनि आप का साथ बना रहे.

प्रिया said...

WAise to sabhi badhiyan hai lekin......Wrong number bole to "Ati Uttam"

Sunil Sharma said...

अपना तो दर्द का दामन है ,कोई साथ चले न चले
गिला नहीं अय ज़िन्दगी , तू अब मिले न मिले

Ati sundar

Suman said...

bahut sunder laga khaskar aapki aavaj me sunna.annya bahut saari blogon par bhi to aapki pahachan hai.

Suman said...

bahut sunder laga khaskar aapki aavaj me sunna.annya bahut saari blogon par bhi to aapki pahachan hai.