Sunday, March 1, 2009

ठहर जरा आसमां ज़ख्म ढक लेने दे कहीं तेरे आब से ये धुल जायें .....!!
(१)
अपने अपने हिस्से का दर्द ....

रसों तलक
अकेले ही
पीती रही
अपने हिस्से का दर्द
आज जब उनकी बारी आई
तो तलाशने लगे
मेरे ही आँचल का छोर

(2)
टूटती उम्मीद ....

रा बहते हुए अश्कों ने
पूछा मुझसे ...
जब बरसों तलक
बही थीं तुम्हारी आँखें
फिर ये आज क्यों.....?
मैंने मुस्कुरा कहा....
अब इक उम्मीद सी
जगने लगी थी ....

(३)
दुःख ....

दुः कभी खत्म नही होते
सिर्फ़ छद्दम वेश
धारण कर लेते हैं
किसी जादू के
पिटारे से .....

(4)
औरत हूँ ...

रा कुछ तारे
ज़मीं पे उतर आए
पूछने लगे ....
ये मोती क्यों ....?
मैंने कहा ....
औरत हूँ...!!

(५)

दर्द के नश्तर ......

कु अनसिये ज़ख्म
वक़्त बे वक़्त
सिसक उठते हैं
नासूर की टीस लिए
जब ....
यादों के कुछ टुकड़े
चुभो जाते हैं
दर्द के नश्तर ....!!

51 comments:

गौतम राजऋषि said...

ये पाँचों तस्वीरें-उदासी के अज़ब से फ़्रेम में मढ़ी....पूरे ब्लौग-जगत को उदास कर जायेंगी रात ढ़ले

जाने कैसे-कैसे ख्वाब लेकर सोऊँगा...
"आज जब उनकी बारी आई
तो तलाशने लगे
मेरे ही आँचल का छोर"
वाह !

"अर्श" said...

सही में दर्द की बरिकिओं से रूबरू कराती आपकी पांचो रचनाएँ ... हलाकि ये भी के कला है जो आपसे सिख लिया .... आभार आपका ...


अर्श

ताऊ रामपुरिया said...

गहनतम अभिव्यक्ति है पीडा की. शुभकामनाएं.

रामराम.

Shamikh Faraz said...

harkirat ji apne khoye hue followers ko wapas paane ke sambandh me maine aapko aik mail kiya hai. kripya dekh len.

राज भाटिय़ा said...

वाह बहुत ही भावूक कर गई आप की यह कविताये. अति सुंदर.
धन्यवाद

रश्मि प्रभा... said...

हर क्षणिकाएं कमाल की हैं,पर यह,
औरत हूँ ...

रात कुछ तारे
ज़मीं पे उतर आए
पूछने लगे ....
ये मोती क्यों ....?
मैंने कहा ....
औरत हूँ...!!.........बहुत ही अच्छी लगीं....

pallavi trivedi said...

सचमुच उदासी घुली हुई है माहोल में....

Alpana Verma said...

रात कुछ तारे
ज़मीं पे उतर आए
पूछने लगे ....
ये मोती क्यों ....?
मैंने कहा ....
औरत हूँ...!!
sabhi kshanikayen bahut hi gahare dard mein dubi hui hain....
Pankaj udhas ji ki gayi ek gazal yaad aayi...dard ki baarish sahi ....zara ahista chal..

Himanshu Pandey said...

दुःख कभी कम नही होते
सिर्फ़ छद्दम वेश
धारण कर लेते हैं
किसी जादू के
पिटारे से ....."

निःसन्देह इन पंक्तियों में बहुत गहरा भावार्थ और जीवनानुभव संपृक्त है. हर एक क्षणिका ही प्रभावी है. धन्यवाद

Vinay said...

मेरे दिल की ख़ला में भटकते सय्यारों की तरह हर नज़्म आपकी!

Arvind Mishra said...

हूँ ! विभिन्न मनोभावों की जादुई बेहतरीन अभिव्यक्तियाँ ! बधाई !

mehek said...

sari kavita bahut pasand aayi khas kar aurat hun,bahut badhai.

Anonymous said...

जब ....
यादों के कुछ टुकड़े
चुभो जाते हैं
दर्द के नस्तर ....!!

... गहरी अभिव्यक्ति

प्रदीप मानोरिया said...

अद्भुत अपूर्व सहज भाषा गंभीर अभिव्यक्ति वाह वाह

डॉ .अनुराग said...

कुछ अनसिये ज़ख्म
वक़्त बे वक़्त
सिसक उठते हैं
नासूर की टीस लिए
जब ....
यादों के कुछ टुकड़े
चुभो जाते हैं
दर्द के नस्तर ....!!






ये टुकडा जिंदगी के तमाम टुकडो में से अलग सी रौशनी लिए देखा लगा ...बावजूद उदासी के ....

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

सभी रचनाओं में कितनी पीडा,उदासी के गहरे भाव समाहित हैं..........

रंजू भाटिया said...

दुःख कभी कम नही होते
सिर्फ़ छद्दम वेश
धारण कर लेते हैं
किसी जादू के
पिटारे से .....

पाँचों में गहरी भावना और गहरी दर्द की अभिव्यक्ति है ..बहुत अच्छी लगी यह शुक्रिया

के सी said...

आपके शब्द एक बहता हुआ दरिया है, कहीं उदास, कहीं शांत सहज तो कहीं भरा पूरा आवेग है.

प्रताप नारायण सिंह (Pratap Narayan Singh) said...

बहुत ही प्रभावशाली क्षणिकाएं . बहुत सुन्दर !!!

Udan Tashtari said...

सुन्दर और सधी हुई क्षणिकायें. बहुत उम्दा!! बधाई.

रंजन (Ranjan) said...

बहुत सुन्दर रचनाऐं..

Science Bloggers Association said...

रात कुछ तारे
ज़मीं पे उतर आए
पूछने लगे ....
ये मोती क्यों ....?
मैंने कहा ....
औरत हूँ...!!

शायद इसीलिए कहा जाता है कि औरत के मन की बात औरत ही समझ सकती है।

दिगम्बर नासवा said...

पाँचों रचनाएं बहुत शशक्त, प्रभावी छाप छोड़ जाती हें दिल पर. बहुत पीडा है इन में, दिल की गहराई से आती हुयी आवाजें हें ये सब. अपने हिस्से का दर्द...........तो जैसे नारी को पूर्ण रूप से खुले आकाश की तरह सब का दर्द सिमटने का एहसास करा जाती है. बहुत लाजवाब लिखा है

Anonymous said...

गौतम राजरिशी ठीक ही कह रहे हैं।... वैसे इस पीड़ा/आक्रोश/संवेदना को औरत ही बयां कर सकती है।

Yogesh Verma Swapn said...

dard men doobi kalamse likhi gai
meri kismat jaisi dekhi aur kahin

gagar men sagar, sagar men khara jal, jal............ansu.

सुशील छौक्कर said...

कम शब्द में बहुत गहरे दर्द लिए हुई रचनाएं। क्या कहूँ नि:शब्द सा हूँ।
कुछ अनसिये ज़ख्म
वक़्त बे वक़्त
सिसक उठते हैं
नासूर की टीस लिए
जब ....
यादों के कुछ टुकड़े
चुभो जाते हैं
दर्द के नस्तर ....!!

गजब।

अनिल कान्त said...

दर्द में डूब सा गया ..... आपने रूबरू करा दिया ....


मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति

पूनम श्रीवास्तव said...

Harkeerat ji,
bahut achchhee bhavpoorna kshanikayen...kai kai bar padhne ka man hua.
Poonam

Prem Farukhabadi said...

रात कुछ तारे
ज़मीं पे उतर आए
पूछने लगे
ये मोती क्यों ?
मैंने कहा
औरत हूँ..

अच्छी लगीं.

डा0 हेमंत कुमार ♠ Dr Hemant Kumar said...

हरकीरत जी ,
बहुत ही अच्छी क्षणिकाएं ..लेकिन ये शब्द कहीं
ज्यादा शक्तिशाली लगे औरों की अपेक्षा .
दुःख ....

दुःख कभी कम नही होते
सिर्फ़ छद्दम वेश
धारण कर लेते हैं
किसी जादू के
पिटारे से .....
हेमंत कुमार

kumar Dheeraj said...

हर रचना कुछ कहती है । आपने जो पोस्ट किया है लाजबाब है । खासकर मै औरत हूं वाली पोस्ट बहुत अच्छा लगा आपका आभार । महिलाओ पर लिखे मेरा पोस्ट अवश्य पढ़े और प्रतिक्रिया दे

neera said...

हरकीरत जी
आंसुओं का सैलाब मुठ्ठी भर अल्फाज़ में..
बादल की तरह भिगो गया तन मन को...

कडुवासच said...

रात कुछ तारे
ज़मीं पे उतर आए
पूछने लगे ....
ये मोती क्यों ....?
मैंने कहा ....
औरत हूँ...!!
... प्रभावशाली अभिव्यक्ति!!!

वर्षा said...

सब सुंदर, औरत हूं ख़ासकर, पर इतना दर्द क्यों है?

Sanjay Grover said...

अकेले ही
पीती रही
अपने हिस्से का दर्द
आज जब उनकी बारी आई
तो तलाशने लगे
मेरे ही आँचल का छोर
kya baat hai harkeeratji! tees bhi, dard bhi aur vyangya bhi! kamaal hai.

अमिताभ श्रीवास्तव said...

वाह, बहुत खूब लिखा है.
"......तो तलाशने लगे
मेरे ही आँचल का छोर.../"
-नारी चित्रण.. ,
"....अब इक उम्मीद सी
जगने लगी थी ...."
-अरे, इसमें कहा टूटी उम्मीदे? हां जब नेपथ्य में झांका तो शब्द ने अहसास दिलाया.
"दुःख कभी खत्म नही होते
सिर्फ़ छद्दम वेश....."
-ये सही है .
"...ये मोती क्यों ....?
मैंने कहा ....
औरत हूँ...!!"
-जवाब नहीं इस पंक्ति का.
"...यादों के कुछ टुकड़े
चुभो जाते हैं
दर्द के नस्तर ....!!"
-याद होती ही चुभने के लिए है.
सच में आपने मन की बात को पटल पर ला दिया.
साधुवाद

sanams hot cake said...

Harkiratji,
udasi ko khushnuma banane ke liye likha hai,ya
dard ko fir bhavo ke sagar me dubone ke liye likha hai.
nahi maloom is jigar ka sach kya hoga?
shayad kalam se dil ko sahlane ke liye likha hai.
jo bhi likha hai aapne wo bahoot khoob likha hai.
aapki rachna hamari firstnews me prakashit hui hai ,aap tak kaise wo aaye -jara aap rasta battaye
sanjay sanam

अविनाश said...

दुःख कभी खत्म नही होते
सिर्फ़ छद्दम वेश
धारण कर लेते हैं
किसी जादू के
पिटारे से .....

बेहतरीन रचना , एक बेहद सुन्दर और सफल प्रयास.

दुःख स्वयं ही इंसान के रिश्तेदार बन जाते हैं और उसे रिश्तेदारी निभाने को वाध्य करते हैं. वह इंसान की परछाईं बन जाते हैं. इंसान बहुत प्रयत्न करता है दुखों से छुटकारा पाने को पर दुःख उस का पीछा नहीं छोड़ते. आखिर इन दुखों के लिए इंसान खुद ही तो जिम्मेदार है. उसके पूर्व जन्मों का फल हैं यह सुख और दुःख.
बचपन में स्कूल की किताब में पढ़ा था -
दुःख में सुमिरन सब करें, सुख में करे न कोय,
जो सुख में सुमिरन करें तो दुःख काहे को होय.


कितनी सीधी और सच्ची बात है, पर इंसान न जाने किस उलट-फेर में लगा रहता है, दुखों को अपना रिश्तेदार बना लेता है और जीवन भर रोता रहता है.



ब्लॉग पर आने और टिप्पणी करने का धन्यवाद, हिन्दी मे भी लिखता हूँ, आज कल थोडा कम है, जल्द हिन्दी मे भी लिखूंगा

शुक्रिया

ਤਨਦੀਪ 'ਤਮੰਨਾ' said...

Harkirat ji...kya kamaal ki nazam hai...bahut khoob!
अकेले ही
पीती रही
अपने हिस्से का दर्द
आज जब उनकी बारी आई
तो तलाशने लगे
मेरे ही आँचल का छोर
Itni gehri samvedna ko mera salaam!

Tandeep Tamanna
Vancouver, Canada

Sanjay Grover said...

og, hiqarat faqeerji, mera naaN gulshan nai sanjay haiga. aes taraN the bhede-bhede dil todan wale mazak na keeta karo.

vijay kumar sappatti said...

harkirat ji

sorry for late arrival , i was on tour.

itni saari tippaniyon ke baad mujhe nahi lagta ki main kuch aur kah paane ki stithi men hoon..

" dukh" bahut jyada acchi hai ..ultimate ..

main bhi kuch likha hai , jarur padhiyenga pls : www.poemsofvijay.blogspot.com

Sanjay Grover said...

te Tandeep ji nu koi dhang tha banda (kavi) nai milya si? Hindi wale pallei pareshan su, hun punjabian thi wari e.

हरकीरत ' हीर' said...

मित्रो,
मैं तनदीप जी शुक्रगुजार हूँ जो उनहोंने
मेरी नज्में पंजाबी में अनुवाद कर अपने ब्लॉग
आरसी में स्थान दिया है...स्वयम तनदीप जी
भी बहुत अच्छा लिखती हैं ...इनकी अनुवादित
रचनाएँ सुभास नीरव जी के ब्लॉग सेतु साहित्य
पर प्रकाशित हुई हैं ... रचनाएँ दिल को छूती हैं ... तनदीप जी
बहुत बहुत शुक्रिया आपका...!!

और एक खुसखबरी मैं आप सब से बाँटना चाहती हूँ इस माह की वर्तमान साहित्य में भी मेरी रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं ...!!

Sumit Pratap Singh said...

सादर ब्लॉगस्ते,
कृपया पधारें व 'एक पत्र फिज़ा चाची के नाम'पर अपनी टिप्पणी के रूप में अपने विचार प्रस्तुत करें।

आपकी प्रतीक्षा में...

Prakash Badal said...

रात कुछ तारे
ज़मीं पे उतर आए
पूछने लगे ....
ये मोती क्यों ....?
मैंने कहा ....
औरत हूँ...!!
क्या शानदार ख्यालात हैं वाह। इसीलिए तो हमे भी आपकी रचनाओं के कायल हो गये हैं।

Saaz Jabalpuri said...

Harkirat ji,
shukriya, aap hamaare blog par aaye.

टूटती उम्मीद ....

रात बहते हुए अश्कों ने
पूछा मुझसे ...
जब बरसों तलक
न बही थीं तुम्हारी आँखें
फिर ये आज क्यों.....?
मैंने मुस्कुरा कहा....
अब इक उम्मीद सी
जगने लगी थी ....
bahut khoob.

प्रशांत मलिक said...

-अपने अपने हिस्से का दर्द ....
-औरत हूँ ...
bahut achhi lagi..

प्रशांत भगत said...

adhut tasveeren khichi hai aapane dard ki. thanks

Gurpreet said...

ਖੂਬਸੂਰਤ ਕਵਿਤਾਵਾਂ !!!!

प्रदीप कांत said...

रात कुछ तारे
ज़मीं पे उतर आए
पूछने लगे ....
ये मोती क्यों ....?
मैंने कहा ....
औरत हूँ...!!

एक उदास नज्म

MANVINDER BHIMBER said...

जब ....
यादों के कुछ टुकड़े
चुभो जाते हैं
दर्द के नस्तर ....!!

ਹਰਕਿਰਤ ਜੀ.....ਤੁੱਸੀ ਚੰਗਾ ਲਿਖਿਯਾ ਹੈ .....ਮੁਬਾਰਕਾ