Sunday, December 21, 2008

दर्द के टुकड़े

फेंके हुए लफ्‍़ज
धूप की चुन्‍नी ओढे़
अपने हिस्‍से का
जाम पीते रहे
सूरज खींचता रहा
लकीरें देह पर
मन की गीली मिट्‌टी में
कहीं चूडि़याँ सी टूटीं
और दर्द के टुकडे़
बर्फ हो गए...

(प्रकाशित- 'पर्वत-राग' अक्‍टू.-दिसं.०८)
सं:गुरमीत बेदी

(२)

पत्‍थर होता जिस्‍म़

तुम गढ़ते रहे
देह की मिट्‌टी पर
अपने नाम के अक्षर
हथौडो़ की चोट से
जिस्‍म़ मेरा
पत्‍थर होता रहा...

(प्रकाशित- 'सरिता' जुलाई-द्वितीय -०८ )

34 comments:

neera said...

उफ़! यह दर्द! शायद बाँट कर कुछ कम हो जाए!
बेहतरीन अल्फाज़ और अंदाज़ दर्द बयाँ करने का!

मोहन वशिष्‍ठ said...

बेहद सुंदर रचना है प्रतीत होता है कि हर शब्‍द को दर्द में डुबोकर चस्‍पा किया है बहुत ही अच्‍छी

daanish said...

lafz.dr.lafz dard ka mukammal izhaar... phir bhi...
aapka azm (sankalp),
aapka pukhtaa lehjaa,
aapki prabhaavshali rachna.shaili hamesha ki tarah...
waqt ke sitam, halaat ki mnmaani, aur dard ki shiddat pr haavi hi rehte haiN.
khoobsurat rachna pr badhaaee svikaareiN.
---MUFLIS---

प्रशांत मलिक said...

बेहतरीन
लाजवाब

गौतम राजऋषि said...

मन की गीली मिट्‌टी में
कहीं चूडि़याँ सी टूटीं
और दर्द के टुकडे़
बर्फ हो गए...

क्या खूब रचना मैम.

और ये कहना कि "हथौडो़ की चोट से जिस्‍म़ मेरा
पत्‍थर होता रहा" नत-मस्तक कर गया हमें

अमिताभ मीत said...

कुछ कह नहीं रहा. बस पढ़ रहा हूँ ....

डॉ .अनुराग said...

आपको पढता हूँ तो जैसे कही ओर चला जाता हूँ....ऐसा लगता है जैसे उन सफ्हो से गुजर रहा हूँ....आहिस्ता आहिस्ता सब समेटने का मन करता है......सच में बेमिसाल लिखती है आप.....ओर इसे महज़ यूँ ही तारीफ न समझिये ....तहे दिल से

MANVINDER BHIMBER said...

मन की गीली मिट्‌टी में
कहीं चूडि़याँ सी टूटीं
और दर्द के टुकडे़
बर्फ हो गए...
सच में बेमिसाल लिखती है आप.....बेहतरीन अल्फाज़

हरकीरत ' हीर' said...

अनुराग जी , पता नही म कैसा लिखती हूँ पर जब लिख लेती हूँ तो मन को कहीं सुकून सा मिलता है. ये रचनाएँ मेरा इश्क मेरा मज़हब मेरा इमान सब है और आप सब की तारीफ मुझे बहुत सुकून देती है. शुक्रिया....बहुत बहुत......

vijay kumar sappatti said...

harkirat ji ,

bahu sundar , bahut achi nazm , hamesha ki tarah , shabdo mein zindagi dhadkati hui.. aur shbdon mein zindagi ki ek alag dard bhari tasveer bayan karti hui...

सूरज खींचता रहा
लकीरें देह पर
मन की गीली मिट्‌टी में
कहीं चूडि़याँ सी टूटीं
और दर्द के टुकडे़
बर्फ हो गए...

kya koi aur shabd ho sakte hai , apne man ko abhivyakt karne ke liye ...

dusari rachna out of world hai , main us kaabilo nahiki , uski tareef kar sakun..


yun hi likhe ...

vijay
poemsofvijay.blogspot.com

इरशाद अली said...

संवेदनशीलता आपके अपने घर की चीज मालूम पड़ती है। लिखने का अन्दाज एकदम जुदा है। बहुत सूक्ष्म पकड़ है आपकी। एक विशेष बात आपकी इन क्षणिकाओं में है वह है कि आप जो लिख रही हैं आपकी खुद की आपबीती का दस्तावेज है, कोई कलमकारी या भाषणबाजी नही है। हां एकबात है कि आपके लिखने में गुलजार की अदा दिखाई पड़ती है। मैं एक बड़ा पोर्टल गुलजारनामा डॉट कॉम के नाम से शुरू करने जा रहा हूं। अगर आप गुलजार के मुताल्लिक कोई लेख या अनुभव बताना चाहें तो मैं शुक्रगुजार रहूंगा।

manu said...

aapko pahle bhi samjhaayaa hai ke aap likhaa na karein...

aapko naheen maaloom..

kitni takleef hoti hai yahaan...

manu said...

aur lihkein to dikhaa zaroor diyaa lrein.......
kyunke is takleef ki puraani aadat hai....badhyi hai to lutf hi aata hai...

" MILA JO DARD TERA,
AUR LAJAWAAB HUI,

MERI TADAP THI JO KHINCHKAR,
GHAM-E-SHARAAB HUI "

ye sirf tippani naheen hai...

Manuj Mehta said...

तुम गढ़ते रहे
देह की मिट्‌टी पर
अपने नाम के अक्षर
हथौडो़ की चोट से
जिस्‍म़ मेरा
पत्‍थर होता रहा...


हरकीरत जी, एह की लिख दिता तुसी, ऐना दुंगा. क्या बात है. इतना दरद आया कहाँ से. बहुत ही गहरा. इस रचना के लिए शुक्रिया.

Dr.Bhawna Kunwar said...

सूरज खींचता रहा
लकीरें देह पर
मन की गीली मिट्‌टी में
कहीं चूडि़याँ सी टूटीं
और दर्द के टुकडे़
बर्फ हो गए...

बहुत गहराई है आपकी रचना में...बहुत-बहुत बधाई...

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत सशक्त अभिव्यक्ति ! दोनो रचनाएं बहुत गहराई से भेदती हैं ! बहुत शुक्रिया आपका !

रामराम !

Vinay said...

बहुत ही सुन्दर हैं दोनों रचनाएँ

!!अक्षय-मन!! said...

क्या कहूं ये कल्पना है जो बाँध जाती है सांसों के तार को जिंदगी की डोर से फिर चाहें जिस्म पत्थर बन जाए या हथोडों की मार से दर्द के टुकड़े हो जायें कोई फर्क नही पड़ता उस डोर उस तार से बंधा ये जिस्म कभी नही टूटता कभी नही टूटता बस थक जरुर जाता है...
मर्म हैं ...
बहुत अच्छी अभिव्यक्ति........


अक्षय-मन

हें प्रभु यह तेरापंथ said...

जिस्‍म़ मेरा
पत्‍थर होता रहा...
***FANTASTIC




PLEASE VISIT MY BLOG...........

रश्मि प्रभा... said...

तुम गढ़ते रहे
देह की मिट्‌टी पर
अपने नाम के अक्षर
हथौडो़ की चोट से
जिस्‍म़ मेरा
पत्‍थर होता रहा...
bade hi sashakt ehsaaon ko shabd diya hai,likhne ki shaily me amrita preetam ki chhawi hai-bahut sundar

hem pandey said...

'फेंके हुए लफ्ज', 'धूप की चुन्नी', 'दर्द के टुकड़े' - गजब की उपमाएं हैं. साधुवाद.

अनुपम अग्रवाल said...

दोनों ही रचनाएं अच्छी और सशक्त .
दर्द को जैसे शब्दों में अभिव्यक्त कर दिया हो .

मुकेश कुमार तिवारी said...

हरकीरत जी,

बिल्कुल नई उपमांए, कल्पना का अद्भुत संसार मिला आपके ब्लॉग पर आके.

मुकेश कुमार तिवारी

आपका "कवितायन" पर पधारने और टिप्प्णी का धन्यवाद.

द्विजेन्द्र ‘द्विज’ said...

दर्द उपमाओं में ढलकर कैसे कविता हो जाता है,यहाँ सीखा जा सकता है.

सुन्दर अभिव्यक्ति.

Unknown said...

bahu khub bahut sundar laga !or ye jaan kar achcha laga ki aap assam me rahti hai! kyonki maine apna bachpan wahi par bitaya hun!

Dileepraaj Nagpal said...

taarrif m kya likha jaye kuch samjh nahi aa rha...bahut hi badhiya likha hai aapne

KK Yadav said...

आपके ब्लॉग पर बड़ी खूबसूरती से विचार व्यक्त किये गए हैं, पढ़कर आनंद का अनुभव हुआ. कभी मेरे शब्द-सृजन (www.kkyadav.blogspot.com)पर भी झाँकें !!

कडुवासच said...

... दोनों रचनाएँ प्रसंशनीय हैं, प्रसंशा के लिये शब्द नही हैं ।

ilesh said...

bahot hi dard bhara likha he aapne...ek kashish najar aati he aur padhte huye dil me ek tiss ithati he....khubsurat

Publisher said...

लाजवाब!

उम्मीदों-उमंगों के दीप जलते रहें
सपनों के थाल सजते रहें
नव वर्ष की नव ताल पर
खुशियों के कदम थिरकते रहें।


नव वर्ष की ढेर सारी शुभकामनाएं।

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

बहुत ही अद्भुत लिखते हो आप....सच्ची....!!

Sajal Ehsaas said...

afsos ho raha haiki aapke blog pe itni derse nazar kyon padee....itni behatreen lekhani se blogspot ki duniya mein roobaroo hone ka mauk abahut kam mila tha :)

likhte rahiye...hum seekhte rahenge aapse...aur haan blog template bada kamaal ka hai

Gurinderjit Singh (Guri@Khalsa.com) said...

This is how we spoil even the possible solutions to our life problems.
Very well described, Harkirat!

Prem Farukhabadi said...

Harkirat Haqeerji

तुम गढ़ते रहे
देह की मिट्‌टी पर
अपने नाम के अक्षर
हथौडो़ की चोट से
जिस्‍म़ मेरा
पत्‍थर होता रहा...

Agar yun kahen to kaisa lagega

Chheni hathoude ki mar se patthar ban jate hain deviyon ke roop,
Koi mujhpe bhi chalaaye chheni hathoude taaki main bhi devata ban jaaoon.