Saturday, December 13, 2008

प्रत्‍युत्तर

हाँ;
मैं चाहती हूँ
सारे आसमां को
आलिंगन में
भर लूँ...

हाँ;
मैं चाहती हूँ
चंद खुशियाँ
कुछ दिन और
समेट लूँ...

पर;
मेरे आसमां में
न कोई तारा है
न आफ़ताब...

वह तो रिक्‍त है
शुन्‍य सा
भ्रम है
क्षितिज सा...

मेरी कल्‍पनाओं का
कोई इमरोज नहीं
न ही कोई अन्‍य
चित्रकार...

कसूर
धड़कनों का नहीं
कसूर नजरों का था
कुछ तुम्‍हारी
कुछ मेरी...

इन बेवजह
धड़कती धड़कनों को
समेटना तो मुझे
बखूबी आता है...

बरसों से
मदिरा के प्‍यालों में
डूबो-डूबो कर
इन्‍हें ही तो
पीती आई हूँ...

हाँ;
इतना तो सच है
आज तुम्‍हारे ही लिए
मैंने इन शब्‍दों
को बाँधा है...

किसी
उपनाम से ही सही
तुम्‍हारे प्रत्‍युत्तरों को
ढूंढा करूँगी मैं
इन्‍हीं पन्‍नों में...

ताकि
उत्तर-प्रत्‍युत्तर के
इन्‍हीं सिलसिलों में
किन्‍हीं और शब्‍दों को
बाँध पाऊँ...

(काव्‍य- संग्रह 'इक- दर्द' से)

28 comments:

विक्रांत बेशर्मा said...

किसी
उपनाम से ही सही
तुम्‍हारे प्रत्‍युत्तरों को
ढूंढा करूँगी मैं
इन्‍हीं पन्‍नों में...

ताकि
उत्तर-प्रत्‍युत्तर के
इन्‍हीं सिलसिलों में
किन्‍हीं और शब्‍दों को
बाँध पाऊँ...


बहुत ही सुंदर !!!

manvinder bhimber said...

ताकि
उत्तर-प्रत्‍युत्तर के
इन्‍हीं सिलसिलों में
किन्‍हीं और शब्‍दों को
बाँध पाऊँ...
बहुत सुंदर

डॉ .अनुराग said...

कुछ सवाल अनसुलझे रहे तो अच्छा है......कुछ बैचैनिया जिन्दा रहे तो बेहतर है......कुछ शब्द सबके रहे तो भी अच्छा है

!!अक्षय-मन!! said...

बहुत ही अलग और सुलझी हुई रचना है......
आज तुम्हारे लिए मैंने शब्दों को बांधा है....
बहुत ही व्याकुलता है ....
बहुत ही मार्मिक रचना है......
और सत्य भी जिंदगी के न जाने कौनसे रोस्तों पर ले जाते हैं जिनके बारे में सोचा भी नही होता


अक्षय-मन

सुशील छौक्कर said...

हाँ;
मैं चाहती हूँ
सारे आसमां को
आलिंगन में
भर लूँ...
पर;
मेरे आसमां में
न कोई तारा है
न आफ़ताब...
किसी
उपनाम से ही सही
तुम्‍हारे प्रत्‍युत्तरों को
ढूंढा करूँगी मैं
इन्‍हीं पन्‍नों में...

वाह बहुत खूब लिखा आपने। साथ ही अनुराग जी के कमेंट से सहमत हूँ।

गौतम राजऋषि said...

क्या बात है

मोह लिया इस कविता ने और खास कर इमरोज के जिक्र ने

Bahadur Patel said...

bahut sundar hai. badhai.

manu said...

hameshaa ki tarah .......
behtareen

vijay kumar sappatti said...

kuch baaten aisi hi hoti hai ..

आज तुम्हारे लिए मैंने शब्दों को बांधा है....

bahut sundar ..

neera said...

बहुत सुंदर कविता ... दिल को छूने वाली!

shivraj gujar said...

bahut khoob. aapka aasman rikt nahi hai. bus badlon ki ot main chhup gaye hain taare. jaldee hi akash saf hoga or taron ki roshani se jagmag ho uthega aapka aangan.
achha likha hai aapne. jeevan se juda, jeevan ke kareeb.
mere blog (meridayari.blogspot.com) par bhi aayen

Prakash Badal said...

वाह हरकीरत जी एक और बढिया कविता

समेट लूं सारा आकाश अच्छा बिंब्

RAJ SINH said...

harkiratji,

har vyakti kee tarah aapkee kavitayen bhee sanvedit man ka pratibimb hain. par aapkee kavitaon me vah sanvedna itnee saralata se sirf kuch linon aur chand shabdon me hee ghaneebhoot hojatee hai.

jeevan ke aapke aasman ke
sandarbh me ho sakta hai ki ...............vah to rikt hai shoonya saa, bhram hai shitij sa.......! par aapkee kavitayen sanvedna ke vistar ka antarikch hain.anant aur sampoorna.

meree blogger mitr shamaji ka shukragujar hoon ki unse aapkee kavitaon kee tareef sun aapke lekhan tak pahuncha aur aapke samagra to naheen par bahut saare kathya tak pahuncha aur umdaa abhivyakti ka aanand paa saka.

aapke likhe ka aage bhee aise hee intezar hoga.aap aise hee likhtee rahen .

meree badhayiyan .

सुजाता said...

सुन्दर कविताएँ !

Mansoor ali Hashmi said...

किसी
उपनाम से ही सही
तुम्‍हारे प्रत्‍युत्तरों को
ढूंढा करूँगी मैं
इन्‍हीं पन्‍नों में...

आपका पुर उम्मीद होना अच्छा लगा, दर्दे दिल की सबसे कारगर दवा उम्मीद ही है .
उम्मीद है उत्तर-प्रत्युत्तर के सिलसिले में आपके शब्द बंधते रहेंगे , साहित्य -सर्जन होता रहेगा.
म.ह.
http://www.mansooralihashmi.blogspot.com
http://www.hashimiyaat.mywebdunia.com

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

कसूर
धड़कनों का नहीं
कसूर नजरों का था
कुछ तुम्‍हारी
कुछ मेरी...


बहुत सुन्दर नज़्म ..गहन भाव लिए हुए

Udan Tashtari said...

उस समय नहीं आये थे तो क्या..अब आ गये. :)

vandana gupta said...

उत्तर प्रत्युत्तर की एक बेहतरीन रचना…………कभी कभी किसी खास के लिए ही कुछ होता है जो रह भी जाता है और कह भी दिया जाता है।

'साहिल' said...

बहुत खूब! बहुत सुन्दर कविता!

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...


आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 24-01-2013 को यहाँ भी है

....
बंद करके मैंने जुगनुओं को .... वो सीख चुकी है जीना ..... आज की हलचल में..... संगीता स्वरूप

.. ....संगीता स्वरूप

. .

Madhuresh said...

खूबसूरत ख्वाहिशें! सुन्दर अभिव्यक्ति।

Satish Saxena said...

मंगल कामनाएं आपको !

Rajput said...

शुन्‍य सा
भ्रम है
क्षितिज सा...

बहुत खूब लिखा आपने।

Anita Lalit (अनिता ललित ) said...

बहुत-बहुत खूबसूरत दिल को छू लेने वाली पंक्तियाँ....
~सादर!!!

नीलिमा शर्मा Neelima Sharma said...

speechless

वृजेश सिंह said...

काबिल-ए-गौर है कि मेरी कल्पना को कोई इमरोज नहीं है। कल्पनाओं की सीमाओं को जानने के बावजूद जीवन में सपनों का बने रहना, इसकी सुंदरता भी है और तकलीफ भी। उत्तर-प्रत्युत्तर के सिलसिले में जीवन चलता रहता है। बहुत-बहुत शुक्रिया।

सुनीता शानू said...

वाह बेहतरीन रचना के लिये बधाई हरकीरत जी।

विभूति" said...

भावो का सुन्दर समायोजन......