यही सेदोका २६ - ७ -१३ के दैनिक भास्कर समाचार- पत्र में भी ……
कुछ सेदोका ....
(सेदोका हाइकु की ही तरह काव्य की एक विधा है जो कि ५ + ७ +७ + ५ + ७+७ के क्रम में लिखे जाते हैं ....)
(१)
खूंटी पे टंगा
हंसता है विश्वास
चौंक जाती धरा भी
देख खुदाया !
तेरे किये हक़ औ'
नसीबों के हिसाब ...!
(२)
स्याह से लफ़्ज
दुआएं मांगते हैं
जर्द सी ख़ामोशी में
लिपटी रात
उतरी है छाती में
आज दर्द के साथ ....!
(३ )
आग का रंग
मेरे लिबास पर
लहू सेक रहा है
कैद सांसों में
रात मुस्काई है
कब्र उठा लाई है ....
(४)
दागा जाता है
इज्जत के नेजे पे
बेजायका सी देह
चखी जाती है
झूठी मुस्कान संग
दर्द के बिस्तर पे .....
(५)
कैसी आवाजें
बदन को छू गईं
अँधेरे की पीठ पे
नज़्म उतरी
तड़पकर आया
आज ख़याल तेरा ...!
(६)
कुछ चीखते
जिस्मों की कहानियाँ
उतरी है पन्नो में
हर घर में
मरती है औरत
आज भी पिंजरों में
(७ )
उधड़ा दर्द
बुनती है औरत
उलझे फंदे सारे
पंजे समेट
आया है चुपके से
टूटे धागे हैं सारे .
44 comments:
बहुत प्यारी लघु रचनाएं/सेदोके ...
आपने लिखा....हमने पढ़ा....
और लोग भी पढ़ें; ...इसलिए शनिवार 20/07/2013 को
http://nayi-purani-halchal.blogspot.in
पर लिंक की जाएगी.... आप भी देख लीजिएगा एक नज़र
लिंक में आपका स्वागत है ..........धन्यवाद!
गहन सेदोके!
बेहतरीन सेदोका..
सुन्दर और भावपूर्ण ...
:-)
बहुत ही गहरे भाव, शुभकामनाएं.
रामराम.
वाह हीर जी.....
कमाल के सेदोका लिखे हैं..
कैसी आवाजें
बदन को छू गईं
अँधेरे की पीठ पे
नज़्म उतरी
तड़पकर आया
आज ख़याल तेरा ...!
लाजवाब!!!
सादर
अनु
प्रवाहपूर्ण प्रयोगधर्मिता...
बहुत खुबसूरत सी प्यारी प्रस्तुति....
हीर जी ....बधाई और शुभकामनायें !
अन्यथा न ले ..अनपढ़ हूँ ..सिर्फ अपनी जानकारी के लिए ..वरना आप तो बेहतरीन हैं ..
मुझे पहले ही सेदोको की पहली ही लाइन में छे शब्द नज़र आ रहे हैं ....??? क्षमा सहित !
शुक्रिया आदरणीय सलूजा जी ...गलती सुधार दी है ......:))
दर्द से भरे
सेदोके सुंदर से
टूटे हुए सपने
और किरचें
चुभतीं सी दिल में
हर एक कदम ।
वाह बहुत खूब ...हर बार कुछ नया सिखने और पढ़ने को मिलता है ....आभार
वाह... एक नै विधा में उम्दा, बेहतरीन अभिव्यक्ति...बहुत बहुत बधाई...
गहन दर्द भरे सेडोका ....
दर्द ही दर्द
सेदोका में नीहित
चौंकता है पाठक
महसूसता
इंसानी पीड़ा को
जो है केवल नारी ।
दर्द किसी भी विधा में बयाँ हो... छलक ही जाता है...
बहुत-बहुत सुंदर अभिव्यक्ति...
~सादर!!
उफ़ दर्द ही दर्द...
सेदोका हाइकु से परिचय और सुन्दर सार्थक लघु रचना प्रस्तुति के लिए धन्यवाद ...
बहुत सुंदर
सभी सेदोके एक से बढ़कर एक
मेरी कोशिश होती है कि टीवी की दुनिया की असल तस्वीर आपके सामने रहे। मेरे ब्लाग TV स्टेशन पर जरूर पढिए।
MEDIA : अब तो हद हो गई !
http://tvstationlive.blogspot.in/2013/07/media.html#comment-form
बदन को छू गईं
अँधेरे की पीठ पे
नज़्म उतरी
तड़पकर आया
आज ख़याल तेरा ...!
वाह हीर जी.....लाजवाब!!!
बेहतरीन सेदोका *****
सदके या सेदोके जो भी हैं दर्द से लबरेज़ लगे। गणित में कमज़ोर रहा हूँ इसलिये हम किसी 5-7-के चक्कर में नहीं फसते। हम ठहरे आज़ाद पंछी अक्षर 6 हों या 4 क्या फ़र्क पड़ता है दिल को जमना चाहिये बस हो गया। अब मुझे "सोणिये" कहना हो तो मैं 5-7 कहाँ से लाऊँ? 5 के चक्कर में बोलना पड़ेगा "सुनो सोणिये" मगर इसमें वह मजा कहाँ जो सिर्फ़ सोणिये में है।
हा .... हा .....हा ......कौशलेन्द्र जी आप सोणिए ही कहिये ...ये विधा भी वैसी ही है जैसे गज़ल को बह्र में लिखना जो पारंगत हैं वो तो गज़ब की लिख लेते हैं हम जैसे नौसिखिये बह्र के चक्कर में ग़ज़ल बर्बाद कर लेते हैं .....
कविता उसी तरह झरती है जैसे चाँदनी। चाँद को पता नहीं होता कि कोई उसकी रौशनी का कितना दीवाना है ..और यह कि कब ज़्यादा झरना है और कब कम। कविता तो तब भी झरती है जब चाँद को बादल छेड़ने लगते हैं। कविता तब भी झरती है जब चाँद दिन के उजाले में कहीं घूमने निकल जाता है और हम उसे अपनी नासमझी में इधर उधर तलाशते रहते हैं। कविता बिना गणित के भी झरती है और गणित के साथ भी। हम बिना गणित वाले हैं। ...और हाँ ...अब मैंने भी एक सेदोका लिख दिया है बिना गणित वाला - "सोणिये! / तुम कहाँ छिप जाती हो/ अक्सर / मैं तलाशता हूँ तुम्हें / ताकि लिख सकूँ एक सेदोका/ झरती चाँदनी में / सेदोका तो मैं तब भी लिखता हूँ / जब नहीं होती हो तुम / किंतु तब कविता / सहम-सहम कर झरती है / अच्छा बताओ / कल तो आओगी ना!
क्या बात है ...:))
आपकी कलम से तो कवितायेँ फूल सी झरती हैं .....
पुस्तक निकालिए अब ....
किसी प्रकाशक से बात करूँ ....?
बुज़ुर्गों ने कहा है कि बेबी साहित्यकारों को प्रकाशकों से डरना चाहिये। जब मैं भी आपकी तरह बड़ा हो जाऊँगा तब बात कीजियेगा प्रकाशक से। अभी तो मैं ख़ुद शर्माता हूँ ....
बहुत सुन्दर अर्थपूर्ण रचना !
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भावों से नाजुक शब्द.
बहुत बहुत सुंदर
प्रभावी हैं सभी सेदोका ... अपनी बात को स्पष्ट कह जाते हैं ... लाजवाब ...
नया प्रयोग किया है "सेदोका" लिखकर
बहुत सुंदर
उत्कृष्ट प्रस्तुति
सादर
आग्रह है---
केक्ट्स में तभी तो खिलेंगे--------
I liked your poem
Shall I share your poem with your reference with your due permission if you please permit me to I shall mention your name with reference to this excellent poem :)
Harkeerat ji ! Shall I share you poem on my facebook post with your reference ? :)
आपकी यह रचना आज दैनिक भास्कर में छपी है, बधाई.
मैने इसकी इमेज आपको मेल की थी पर यह वापस (failed) आ गई है.
रामराम.
आपकी यह रचना आज दैनिक भास्कर में छपी है, बधाई.
मैने इसकी इमेज आपको मेल की थी पर यह वापस (failed) आ गई है.
रामराम.
shukriyaa tau ji ...mujhe kisi aur ne bhi btaataa tha ...aap kripyaa mujhe fir se e mail kar dein ....harkirathaqeer@gmail.com par .....
Amar ji aap ise facebook par share kar sakte hain mere naam ke saath .....thanks ...!!
सुंदर लेखन ,
पहली बार सेदोका पढ़ा |
अच्छा लगा ,इसके बारे में व्याकरण सम्बन्धी जानकारी कहाँ मिलेंगी ?
कृपया ब्तायियेंगा |
http://drakyadav.blogspot.in/
कैसी आवाजें
बदन को छू गईं
अँधेरे की पीठ पे
नज़्म उतरी
तड़पकर आया
आज ख़याल तेरा ...!
ये ख्याल तड़पकर हर बार आ ही जाता है
कितना कुछ अनकहा सा कहने के लिए
नि:शब्द करती आपकी लेखनी ... प्रकाशन के लिए बधाई भी !!!
बहुत सुन्दर सेदोके बहुत बहुत बधाई
बहुत सुन्दर और मर्मस्पर्शी रचनाएँ । देखन में छोटन लगे घाव करे गंभीर ।
नारी मन की संवेदना को लिए सुन्दर सेदोका
साभार !
निःशब्द
aan ek nayee bidha kee jaankaare hui ..aaur hamne iska lutf bheee uthaya ..maine aapka blog join kar liya hai .ab aapko satat padhne ka mauka milta rahega ..aapko bhee main apne blog se judne ke liye amantrit kar raha hoon /..saadar
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