सफ़र की एक घटना ......
हैलो.....हे...हाय.....:))
उठ गयीं.....?
हूँ....हूँ....तुम तो मुझे उठाने वाली थी ......?
ह ...ह ss....ह sss....चलो कोई बात नहीं .....नींद तो ठीक से आई न .....?
कितने बजे सोयी थी .....?
ओ के ....!
नेट पे तो नहीं बैठी ज्यादा देर ....?
अच्छी बात बात है ....
देखो अब कोई टेंशन नहीं ओ के ....!
नाश्ता किया ...?
मैं तो कर रहा हूँ राजधानी में ...
यू नो ...राजधानी इज गुड ट्रेन .....सर्विसिंग भी बहुत अच्छी है ...टोयलेट्स आर क्लीन एंड ब्रेक फास्ट इज टू गुड ...ब्रेड बटर ऑमलेट टी .....
ऐसा करो तुम भी अपना नाश्ता रूम में मंगवा लो ....
छोड़ो यार ...अपने दिमाग से ये सारी बातें निकाल दो ...मैं हूँ न तुम्हारे साथ .....अब दो दिन मेरे साथ रहोगी तो बिलकुल नार्मल हो जाओगी .....
हाँ ...हाँ...बाबा ....
ठीक है डार्लिंग ...पहले तुम चलाना तो सीख लो ....लेने से पहले चलानी आनी चाहिए कि नहीं ....?
पहले सीखना जरुरी है ...समझ रही हो न ...फस्ट यू लर्न ...कम से कम साल छ : महीने चलाना सीख लो ...ऍम आई राईट ओर रोंग ....?
द बेस्ट इज पहले चलाना सीखो फिर लो ....क्यों ....?
सीखना जरुरी है ....ये मत सोचो कि अपनी कार होगी तो ही सीखूंगी ...पहले तुम चलाना तो सीखो .....
यूँ करो पास में कहीं कोई ड्राइविंग ट्रेनिंग सेंटर है तो उसे ज्योन कर लो ...साल छ : महीने ......
नहीं स्वीट हार्ट ऐसा क्यों सोचती हो ....?
नो...नो...बेबी ...ऐसा सोचना भी मत .....
तुम्हें लगता है मैं ऐसा हूँ ....?
मैं झूठ नहीं बोलता तुम जानती हो .....
मुझ पर विश्वास है कि नहीं ....?
ओ के ऐसा करो ...डिसाइड करो कौन सी लेनी है ....बुकिंग का पता करो , ...कितने दिन पहले बुकिंग होती है ...कब तक मिलेगी ....गेटिंग ईट ....
और हाँ ....अपने दिमाग से ये सारी फिजूल की बातें निकाल दो ....समझी .........
अब कोई टेंशन नहीं ....कोई तनाव नहीं ...ओ के ....माई डार्लिंग ....लव यू ....
देखो जब मैं तुम्हें दिल्ली में मिलूं तो बिलकुल मुस्कुराती हुई मिलनी चाहिए ...खिली हुई ....ओ के ...
( बीच बीच में उसके दुसरे फोन की घंटी भी बजती जाती है जिसे वह बार बार काटता जा रहा है .....बात चित लगातार जारी है...सुबह से दोपहर ...दोपहर से शाम ....शाम से रात ..... )
अब आपका मौसम कैसा है ....?
बहुत जल्द मौसम बदलता है आपका ....
इतना गुस्सा सेहत के लिए ठीक नहीं .....
हाँ ...ये हुई न बात .....पर एक के साथ एक फ्री मिलना चाहिए .....ह...ह...ह......
मुझे आने दो फिर ......:
लो डिनर आ गया मेरा .....
चलो अब तुम भी जल्दी से डिनर मागवा लो अपना ...ओ के बाय ....
दूसरा फोन फिर बजता है ....कुछ सोच कर उठा लेता है .....
हाय ....कैसी हो ...?
नहीं मैं सुबह से ही काम में बहुत बीजी था .....
अगले महीने पूना आ रहा हूँ न .....अगले महीने उधर ही सूटिंग है.... पूना , , मुम्बई बैंगलोर ....फिर हम सैटरडे सनडे साथ होंगे ....
क्यों नहीं ...? मैं कभी झूठ नहीं बोलता डार्लिंग ......
मैंने देखा उस अधेड़ के चेहरे पर पड़े चेचक के निशानों बीच उग आई हलकी -हलकी सफ़ेद काँटों की सी दाढ़ी में उसके चेहरे की मुस्कराहट और भी विकृत हो गई थी .....
मेरा मन वितृष्णा से भर उठा .....
( यह किस्सा है जब मैं विमोचन के लिए राजधानी से दिल्ली जा रही थी ...लड़की पंजाबी थी नाम यहाँ नहीं लूंगी ...मुझे लगता था कि वो कोई एयर होसट्रेस थी )
Tuesday, March 13, 2012
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62 comments:
dusra phone bajne se pehle tak.. kya chawi ubhar k aa rahi thi phone pe baat karte wyakti ki.. aur sach mein ant hote hote mera man bhi vitrishna se bhar gaya....
bahut hi sehaj tarike se is ghatna ko prastut kiya aapne....
चलचित्र की तरह प्रस्तुत घटना आपकी लेखनी की उत्कृष्टता दर्शा रही है ...आभार ।
यही घटित होता है वास्तव में.
sundar prastuti
घटना को साझा करने के लिए आभार!
घटना ऐसी है कि आप भी मजबूर हो गयीं लिखने के लिए...
सच बात है...रिश्तों में बेईमानी खटकती है..
सादर.
मद में डूबा इंसान ...कहाँ भगा जा रहा है ...पता नहीं ....वितृष्णा से मन भर गया ...सबल है लेखनी आपकी .....
आपने इतना सुंदर लिखा है ....पूरा दृश्य आँखों के आगे घूम गया ....
jo ghat raha hai...
wahi likha h aapne...bht sundar prastuti!
उफ़ ! चेचक के निशानों वाले अधेड़ उम्र के इस नालायक नायक ने तो मर्दों की पोल खोल दी ।
लेकिन लड़की के बारे में आपने कैसे जाना, यही सोच रहा हूँ ।
वैसे ये मोबाइल भी ना --बड़ी ख़राब चीज़ है ।
इस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार - आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - बंद करो बक बक - ब्लॉग बुलेटिन
सिर्फ़ एक सफ़र की घटना नहीं है ये........
सिर्फ़ एक सफ़र की घटना नहीं है ये........
सिर्फ़ एक सफ़र की घटना नहीं है ये........
सिर्फ़ एक सफ़र की घटना नहीं है ये........
सिर्फ़ एक सफ़र की घटना नहीं है ये........
हूँ .......तो ये हुआ रास्ते में ......
इमरोज़ जी की बोलती दीवारें .....मोनू की मस्ती ....गुरुद्वारे के आसपास की दुकानें वगैरह-वगैरह के किस्से कहाँ गये ?
हूँ..दूसरों की बातें सुनना और हावभाव पढ़ना लेखकों की आदत हो गई लगती है।:)
lajwab safarnama...bahut khub
@ लेकिन लड़की के बारे में आपने कैसे जाना, यही सोच रहा हूँ ।
डॉ साहब मैं सुबह से लेकर रात तक उस इंसान की बातें सुन सुलगती रही .....वो इतनी धीमे बोल रहा था फिर भी मैं उसकी सारी बातें सुन पा रही थी समझ पा रही थी ....उसने एक बार उसका नाम लिया 'सुखविंदर' .....लड़की होटल के किसी रूम में थी ...अक्सर एयर होसट्रेसों को ही होटलों में ठहराया जाता है .....उफ्फ्फ ...उस इन्सान की एक एक हरकत याद कर घिन आ रही है मुझे ....
लेखक की कलम से निकली हकीकत भी एक कहानी का रूप धारण कर लेती है .....
आप के मन की शांति के लिए !
शुभकामनाएँ!
जीवन की एक और सच्चाई..
थोड़ी मनोरंजक..पर आज की अत्याधुनिक और विकृत जीवन शैली का सच बयां करती रचना.
खो रहा वर्तमान है
राहगीर अनजान है
कैसे दिखाएँ ..
सुनहरे भविष्य का सपना
आगे का रास्ता सुनसान है..
आभार !
जीवन का एक कटु सत्य....
हमारे गले के नीचे उतरे या न उतरे....
लेकिन सोसाइटी में अच्छे अच्छों के गले आराम से उतर जा रहा है...
और कहा जाता है...टेक ईट इजी....
हम वितृष्णा से भरें तो ये हमारा प्रॉब्लम है....
हम ज़माने के साथ अपनी सोच नहीं बदल पाए तो ये हमारा प्रॉब्लम है..!!
या यूँ कहें...जमाना कहाँ से कहाँ पहुँच गया और हम वहीं हैं.....!!
बेबी...आस-पास देखो...बहुतेरे मिलेंगे ऐसे ही.....!!
हरकीरत जी ,मैं एक बार पहले पढ़ कर जा चुकी हूं लेकिन तब समझ ही नहीं पाई कि क्या कहूं
आप का सटीक लेखन सारी तस्वीर पेश कर रहा है और सोच कर सच में घिन ही आ रही है बस ऊपर वाले से प्रार्थना कर रही हूँ कि ऐसे दरिंदों से लड़कियों को बचाए रखे
दुनिया में गिरगिट रूपी इंसानों की कमी नहीं है . उन्हें देख कर सोचने को मजबूर होना पड़ता है की गिरगिट ने इनसे सिखा या इन्होने गिरगिट से
यह तो आजकल की सोसाइटी में आम बात हैं ...पर फिर भी लेख सटीक लगा ....
@ या यूँ कहें...जमाना कहाँ से कहाँ पहुँच गया और हम वहीं हैं.....!!
बेबी...आस-पास देखो...बहुतेरे मिलेंगे ऐसे ही.....!!
पूनम जी जानती हूँ ...इसलिए तों प्यार नाम से ही घिन आने लगी है
आज का आधुनिक प्यार यही है पहना ओढा और फेंक दिया ....
ऐसे गिरगिटों तो अपने आस पास अक्सर देखती हूँ ...अब आदत पड़ गयी है ....
पहले बहुत तिलमिलाती थी ये सब देख कर ....
मैं उस इंसान की एक एक हरकत देख रही थी समझ रही थी पर पास बैठी एक बुजुर्ग
फैमली उसकी बातों की तह तक न जा सकी ...साइड की बर्थ पे एक युवा नौजवाब देख तिलमिला रहा था
उसने अपने मोबाईल पे जोर जोर से गाने लगा दिए ताकि उसकी आवाज़ कानों तक न पहुंचे ...दोनों में खूब बहस बहसी हुई क्योंकि तब उसे बात करने में कठिनाई हो रही थी
पर हाय रे जिस्म की भूख बात तब भी बंद न हुई ...शायद वहां पहुँचने से पहले उसे मानसिक रूप से तैयार जो करना था .....
आदरणीय हरकीरत जी
नमस्कार !
...कटु सत्य सामने आया
और सबसे बड़ी बात आपने इस घटना को साझा किया उसके लिए आपका आभार!
जरूरी कार्यो के ब्लॉगजगत से दूर था
आप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ
ऐसे मानसिक विकृति वाले इन्सान बहुतेरे पाए जाने लगे है .
आपकी आँखों देखी अपनी आँखों देखी लगी ................ईश्वर से फिर से सद्बुद्धि मांग रही हूँ ...ऐसे निर्लज्ज इंसानों के लिए !
हीर जी , यह सब देख सुनकर आप पर क्या बीती होगी , समझ सकता हूँ .
शायद आपके लिए नया हो . लेकिन क्या करें हम तो पक चुके हैं दिल्ली जैसे बड़े शहरों के हाल देखकर .
बस मुखौटे ही मुखौटे नज़र आते हैं , चेहरा कोई नहीं .
कैसे कैसे सच हैं दुनिया में ...
आपकी लेखनी का जादू इसमें रोचकता पैदा कर रहा है ... जैसे कोई फिल्म गुजार रही हो आँखों के सामने से ...
@ इमरोज़ जी की बोलती दीवारें ..
आपने शीर्षक तो दे दिया कौशलेन्द्र जी ...तसवीरें भी जल्द ही बोलेंगी .....
अगले महीने पूना आ रहा हूँ न .....अगले महीने उधर ही सूटिंग है.... पूना , , मुम्बई बैंगलोर ....फिर हम सैटरडे सनडे साथ होंगे ....
क्यों नहीं ...? मैं कभी झूठ नहीं बोलता डार्लिंग ......
मैंने देखा उस अधेड़ के चेहरे पर पड़े चेचक के निशानों बीच उग आई हलकी -हलकी सफ़ेद काँटों की सी दाढ़ी में उसके चेहरे की मुस्कराहट और भी विकृत हो गई थी .....
मेरा मन वितृष्णा से भर उठा .......सच ऐसे खेल तमाशे देख मन का व्यग्र होना स्वाभाविक है लेकिन सामने वाले शायद धन दौलत की चकाचौंध में डूबे रहना पसंद करता है ...लेकिन ऐसे खेलों को ख़त्म होते देर कहाँ लगती है..
बहुत सुन्दर प्रेरक प्रस्तुति ...
कटु सत्य
सही और सार्थक पोस्ट...
चीजें खटकती हैं..रिश्तो में तो इतने रंग है कि दर्द भी दे जाते हैं
मन बेतरह कड़वा हो गया..
हम्म! :(
दुनिया ऐसे लिजलिजे इंसानों से भरी हुई है .....आपकी लेखनी ने सारा दृश्य जीवंत कर दिया ....सार्थक पोस्ट
yahi jindagi hai... aise hi bahut se patkatha dikh jate hain..
लडकियाँ समझ कर भी नहीं समझती ये सब??...या फिर वे भी फायदा उठाती हैं...
बिलकुल चलचित्र सा घूम गया आँखों के समक्ष...मन तिक्त हो आया
सब बिकाऊ है यहाँ....
शुभकामनायें आपको !
सही लिखा हरकीरत जी आपने। लेकिन तमाम दोहरावों के बाद भी जिदगी चलती रहती है। नफरत और गुस्सा भी स्वाभाविक है। कार, होटल, नाम, पैसा, शोहरत, इन सबकी भूख की के बीच चलते मुहावरों की तोता रटंत..तुम तो पिछड़े हो बाकी सब प्रोग्रेसिव हैं। यह सब एक तरह की जिंदगी का प्रतिनिधित्व करते हैं। वहां ऐसी ही होड़ है।
लेकिन कुछ पाने के लिए कुछ खोने के जुमले का जवाब भी हमें ही देना होगा। अगर लोग मजबूरी या शौक में , लोगों से आगे निकलने की होड़ में उसी भीड़ का हिस्सा बनने लगे तो फिर सफर तो और कठिन हो जाएगा। कहानियां बनती रहेंगी।
लालसाएं तमाम बुराइयों व कमजोरियों की जड़ हैं,लेकिन इंसान कहां इनसे उबर पाता है। जो उबर गया। जो समझ गया। वह तो अपनी राह लेगा। एक इंसान की तरह जो बन पड़ेगा करेगा और अपने मन की पीड़ा लोगों से आपकी तरह साझा करके किसी निष्कर्ष पर पहुंचने की कोशिश करेगा।
आपने दिन भर ट्रेन में ऑबजर्ब किया--ऐसे लोग देखते ही पहचान आ जाते हैं...वो लड़कियाँ जिनसे वो वादे कर रहा था उनकी अपनी मजबूरियाँ होंगी वरना समझती तो वो भी होंगी ही!!
jivant prastuti.
"आवरण सा चढ़ा है सभी पर कोई,
और भीतर से सारे हुए खोखले ।
दिन में आदर्श की बात हमसे करे,
वो बने भेड़िया ख़ुद जंहा दिन ढले ।"
जीवन का एक कटु सत्य....
hey bhagvan ! itna sab yaad kaise raha tumhein harkeerat :)
Minoo ji mera kagaj klam hmesha sath rahta hai ....main wahin likhti ja rahi thi ....:))
.
बहुत ख़राब है ये पुरुषों की दुनिया !
एक से बढ़ कर एक दगाबाज़ !
अय्याश कहीं के !!
...बिचारी दूध की धुली हुई लडकियां / औरतें !
.
क्षमा बड़न को चाहिए छोटन को उत्पात
:)
.
अजी छोड़िए ! ये दुनिया है...
...और यही दुनिया है !
अगली पोस्ट में कविता पढ़ने की प्यास पूरी होगी ?
@ .बिचारी दूध की धुली हुई लडकियां / औरतें !
ये व्यंग क्यों राजेन्द्र जी .....?
व्यभिचारी पुरुष भी होते हैं और स्त्रियाँ भी ...मैं मानती हूँ
मैंने जो देखा और जो गलत लगा उसे बयां किया ..
आपने इसे सम्पूर्ण पुरुष जाति पर क्यों ले लिया ...?
इससे भी बुरे हादसे नित किसी न किसी स्त्री या पुरुषों के साथ होते होंगे
और फिर इसमें कौन किसको छल रहा है ये भी पता नहीं ...कार की लालसा में वह लड़की या कार देने की लालच देकर वह पुरुष ....?
आपके इस व्यंग ने हमें आहत किया ....
सदियाँ बीत जाने के बाद आज भी औरत उपभोग की वस्तु है आम लोगों के लिए । विश्वास कीजिए ‘आम’ इसलिए कह रहा हूँ कि इनकी संख्या ही ज़्यादा है। सिर्फ उन्हें छोड़कर जो औरत को पढ सकते हैं महसूस कर सकते हैं। उपभोग की वस्तु है जितनी अधिक मिल जाए। ऐसे कई किस्से मैंने देखे - सुने हैं जहाँ एक औरत जानबूझकर यह सब करती है। इतनी तरक्की करने के बाद आज भी स्त्री-पुरूष नर -मादा की तरह आचरण कर रहे हैं क्या हमारा समाज आज भी बर्बर नहीं है? कड़ुआ सच बयान करने के लिए बधाई! आप तो इमरोज़ की प्रशंसिका हैं न,उनकी एक कविता दे रहा हूँ दृष्टिकोण का अंतर देखिएगा।
औरत
फ्रांस के एक मशहूर नावल में
एक पात्र अपने आप से कहता है-
मेरा जी चाहता है
कि मैं दुनिया की सब औरतों
के साथ सो सकूँ...
पर किसी के किसी नावल कहानी में
किसी पात्र का कभी जी नहीं चाहा - इमरोज़
कि मैं उस एक औरत के साथ जाग सकूँ..
सोने वालों को सिर्फ जिस्म ही मिलता है
औरत तो मिलेगी
....किसी जागने वाले को ही।
कविता में आया इमरोज़ शब्द गलती से आ गया है इसे सबसे अंत में मैंने लिखा था उनकी कविता के साथ उनका नाम देने । कृपया सुधार कर पढ़ें
पिछले कुछ दिनों से अधिक व्यस्त रहा इसलिए आपके ब्लॉग पर आने में देरी के लिए क्षमा चाहता हूँ...
आपकी लेखनी का कोई जवाब नहीं...
नीरज
kahan kahan aur kaise kaise log bhi mil jate hain apko heer ji ....aj ka samaj vakai bahut advance aur arth kendrit hai aur sab kuchh ho raha hai ....
ak dilchasp post ke liye bahut bahut aabhar .
shukariya Dinesh ji imroz ji ki kavita ke liye ....
agla aalekh imroz par hi likh rahi hun .....
shukariya Dinesh ji imroz ji ki kavita ke liye ....
agla aalekh imroz par hi likh rahi hun .....
♥
अरे !
मैं यहां दुबारा नवरात्रि और नवसंवत की शुभकामनाएं देने नहीं आता तो पता ही नहीं चलता ...
आपको दिल पर नहीं लेना चाहिए ..
फिर , क्षमा बड़न को चाहिए छोटन को उत्पात
मैं हाथोंहाथ कह कर गया था न ... हीर जी
फिर भी ?
चलिए, अब खुश हो जाइए ...:)
हीर जी! राजेन्द्र जी तो अपने हैं, अपनों का क्या बुरा मानना!
लड़के हैं अभी :)(उमरिलरिकइयाँ... )थोडी बहुत बदमाशी का तो हक बनता ही है न!
Aisa laga jaise aapne katha nahi sunai koi film dikhayi hai, half light shaded !!
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