हँसी छूटी कि...
हँसी के एवज में
फिर इक रात मर गई .....
बेतरतीब से पड़े सफ़्हों पर नज़्म तड़प-तड़प के साँसे ले रही थी कि अचानक फोन की घंटी बज उठी .....
हैलो ....आप हरकीरत 'हीर' जी बोल रही हैं ...?
जी ... ...
आप वही हैं न जो पहले हरकीरत 'हक़ीर' के नाम से लिखती थीं ....?
जी ... :) ...वही हूँ .... !
पहचाना ....?
नहीं ...
याद कीजिये ...बरसों पहले हम अज़ीज़ मित्र हुआ करती थीं .....एक साथ कवि गोष्ठियों में जाना ...सम्मेलनों में जाना, मुशायरों में जाना .....हम काफी अन्तरंग मित्र रह चुकी हैं ......
स्मृतियों में कुछ धुंधलके से चित्र उभरने लगे ....कुछ कब्रे जिन पर कई वर्षों से मिट्टी डाल चुकी थी आज बदन से मिट्टी झाड़ने लगीं थीं .....
कुछ याद आया ....?
नहीं .....
मैं कुछ और याद दिलाऊँ ...?
................
जय हिंद ...!
आपको याद है हमारी मुलाकात हमेशा 'जय-हिंद' से हुआ करती थी ....
.................
कुछ और ......?
जब पुस्तकालय में पहली बार आपकी नज्मों की समीक्षा हुई थी ...पत्रकारों के सवालों के बीच आप बेहद घबरा गई थीं तब मैंने ही तो संभाली थी सारी स्थिति .....वरना आपकी ऐसी-तैसी हो जाती ....उसने चुहलबाजी की ....और फिर घर आकर हम खूब हँसे थे ...... :)
कुछ याद आया .....?
हाँ ....कुछ- कुछ .....तुम रविकांत के काफी करीब थी ....कुछ याद करते हुए मैंने कहा ....और मैना थापा के भी ....
वह मुस्कुरा पड़ी .....
'हाँ ....मैं वही रीता सिंह हूँ.....
रीता सिंह ......?
नहीं तब शायद तुम किसी और नाम से लिखती थी ....
हाँ ....'सर्जना' .....सर्जना के नाम से .....
धुंधलके से छंट कर एक दुबली पतली नाटी सी खूबसूरत नेपाली लड़की सामने आ खड़ी हुई थी ....
हैरानी से पूछा , '' इतने सालों बाद ....?''
हाँ ....मेरे एक मित्र ने तुम्हारा न. दिया और बताया कि तुम किसी 'सरस्वती-सुमन' नामक पत्रिका का सम्पादन कर रही हो .....
हाँ ....एक अंक की अतिथि संपादिका हूँ .....
पर मैं हैरान थी इस सम्पादन ने मुझे बरसों बिछड़ी सखी से मिलवा दिया ...
पर तुम्हारे ये मित्र हैं कौन ....जानूँ तो ....?
मैं यकदम से अपनत्व पर आ गई थी .....
लखनऊ के हैं ..'राजेन्द्र परदेसी जी ' ....वह मुस्कुरा कर बोली ....
अरे हाँ ...! ....मुझे याद आया अभी पिछले ही दिनों वे सिलचर आये हुए थे ...मुझे फोन भी किया , पर मैं मिल नहीं पाई ....उनकी तो क्षणिकाएं भी आ चुकी हैं ..
उनका साक्षात्कार मैंने ही लिया था वह बोली ....सेंटिनल में छपा था तुमने देखा होगा ....?
नहीं मैं सेंटिनल नहीं लेती .....
फिर लम्बी बातचीत चलती रही .वह मुस्कुरा रही थी ....हँस रही थी ...खिलखिला रही थी ......उसने बताया वह कहीं फारेस्ट डिपार्टमेंट में जाब कर रही है ...शौहर आर्मी में हैं ...दो बेटियाँ हैं .....और ....और ....कि उसे कैंसर है ....युट्रेस में सिस्ट है ... गाल ब्लैडर में स्टोन है .....
मुझे लगा कि किसी ने मुझे बहुत ऊँची ईमारत से नीचे धकेल दिया हो ...मेरी साँसे तेज होती जा रही थीं ...डर रही थी कि कहीं वह कह न दे कि तुम किस दर्द का छलावा लिए बैठी हो ...जीना तो मुझ से सीख .....
अचानक तूफ़ान के साथ तेज बारिश होने लगी ...मैंने अपनी आवाज़ बिजली की कड़कड़ाहट में गुम कर ली .... .मेरे सारे प्रश्न उसकी मुस्कराहट के आगे शर्मिंदा थे .....रात कई चेहरों में गुजरती रही ...रविकांत , दिनकर , सौमित्रम , शमीम , प्रेमलता ...सर्जना ....यादें स्मृतियों के बाहुपाश में मुस्कुराती , आँसू भरती रहीं ....उन दिनों खूब कविगोष्ठियाँ हुआ करती थीं ..लिखने का भी जूनून था ..सर्जना कविताओं के साथ कहानियाँ भी लिखा करती ...बहुत ही मिलनसार ...पलभर में ही किसी के यूँ नजदीक आ जाती जैसे बरसों से जान - पहचान हो ...वर्ना मुझ जैसी ख़ामोशी पसंद तो सिर्फ धुआं ही तलाशती रहती .... न जाने कब , कैसे इतनी गहरी दोस्ती हो गई थी हमारी ...
सुब्ह सोकर उठी तो लगा कुछ गलत हो गया ...उन दिनों सर्जना की एक नज़्म मुझे बेहद पसंद थी सोचा क्यों न आज उसी के बहाने उसे फोन करूँ और आग्रह करूँ सुनाने का ....फोन किया तो पता चला कि वह अस्पताल में है ...पर उसकी मुस्कराहट फिर मेरी हँसी उड़ा रही थी .....
तुम्हें याद है सर्जना ...तुम्हारी एक कविता मुझे बेहद पसंद थी 'कफ़न' शीर्षक' की ...मैं अक्सर तुम्हें सुनाने का आग्रह करती .....?
अरे ...! छोड़ न उसे ...सुन मैंने अभी-अभी अस्पताल में एक कविता लिखी है ...उसे सुन .....
ज़िन्दगी की है
चाहत मुझे
फिर क्यों डरूँ...?
मैं कष्टों से
जीवन की तकलीफों से
संकट से , बाधाओं से
जो करतीं हैं ...
निराश मन को
बन जाता है निर्बल भाव
और टूटने लगता है विश्वास
मुझे ज़िन्दगी से प्यार है
जीना चाहती हूँ मैं
साहस से ...
दुःख-कष्टों को लघु करके
धीरज को बढाती हूँ मैं
तो .....
स्वयं बौने हो जाते हैं दुख
मेरी सहनशक्ति के सामने
और फिर एक बार
जीत जाती है
ज़िन्दगी ......!!
मैंने धीमें से फोन रखा और सारी कब्रें खोल दीं और अपने दर्द तलाशने लगी .....
67 comments:
सकारात्मक कविता... दुखों में जीना का संबल प्राप्त हुआ हो जैसे... बहुत सुन्दर... आपकी बाते और कविता ऐसे बोलती हैं मानो आप प्रत्यक्ष हो... बहुत सुन्दर... अदभुद...
मेरी सहनशक्ति के सामने
और फिर
जीत जाती है ज़िन्दगी
इस अदम्य साहस को मेरा नमन ...नि:शब्द कर दिया आपकी इस प्रस्तुति ने .. आभार ।
क्या टिपण्णी दी जा सकती है इन पंक्तियों पर शायद नहीं
ईश्वर आपकी मित्र के इस हौसले को बरकरार रखे और वो ताउम्र इसी तरह खिलखिलाती रहे हर दुख तकलीफ़ से निज़ात पाकर एक बार फिर से ज़िन्दगी को भरपूर जीयें।
अन्दर की आवाज़ से जो शब्द बाहर निकलते हैं वो हमेशा बहुत खुशनुमा एहसास करते हैं आपने ये बाते ये तकलीफ हमसे कही उम्मीद है आपना मन हल्का हुआ होगा
अक्षय-मन
यही सकारात्मकता और जिजीविषा मौत को हरा देती है. आपकी मित्र की लम्बी उम्र के लिये दुआ करती हूं, ईश्वर करे, वे जल्दी स्वस्थ हों.
main kuch kah sakun ... koshish hai ,
per talashe dard ko tarash rahi hun ...
बस यही याद आ रहा है --
दुनिया में कितना ग़म है
मेरा ग़म कितना कम है ।
इस नश्वर संसार में सभी कुछ न कुछ दुःख पाले हुए हैं ।
लेकिन हर हाल में मुस्कराते हुए ग़मों का सामना करना ही साहसिक जीवन है ।
आपकी मित्र और आपको शुभकामनायें हीर जी ।
सर्जना जी के हौसले और उनकी बुलंद शख्शियत को सलाम... इससे आगे शब्द मौन हैं....
सादर...
हरकीरत जी आपकी लेखनी हमेशा पढने वालों की आँखों में नमी ले आती है...काश सर्जना जैसा हौंसला ऊपर वाला सबको अत करे,,,दुआ करता हूँ के ऐसी जिंदादिल लड़की बरसों बरस जिए...
नीरज
बुलंद हौसले सर्जना के...दर्शा गई यह कविता...
बाकी तो कहीं किसी गहराई में उतर कर थमा सा है आपका लिखा...
सहने और रहने का नाम जीवन है।
यही तो ज़िन्दगी है......
दो लाइन किसी की याद आ रही है....
"ज़िन्दगी जिंदादिली का नाम है,
मुर्दादिल क्या खाक जिया करते हैं".....
सर्जना जी के होंसले को सलाम...
सकारात्मक कविता
जीना चाहती हूँ मैं
साहस से ...
दुःख-कष्टों को लघु करके
धीरज को बढाती हूँ मैं
तो .....
स्वयं बौने हो जाते हैं दुख
मेरी सहनशक्ति के सामने
और फिर एक बार
जीत जाती है
ज़िन्दगी ......!!
बहुत बढ़िया ..... कमाल की सोच... यह हौसला ही जीवन की निरंतरता बनाये रखता है...
sarjana ji ne jaise hi apni bimari ke bare me bataya hoga sach me bahut dhakka laga hoga .shabdon me jyon ka tyon utar diya hai aapne .kavita vakai me jeene ka hausla badati hai .ek mitr ke prati sachchi bhavnaon se bhari aapki post dil ko choo gayi .
maine aapko ''BHARTY NARI '' blog se judne hetu nimantran bheja tha .aaj punh bhej rahi hun .aap swikar karen v jab bhi nari kendrit koi rachna post karen use hamare sath bhi sajha karen .aabhar
I am commentless..
मैंने धीमें से फोन रखा और सारी कब्रें खोल दीं और अपने दर्द तलाशने लगी .....
kyaa faaydaa huaa sarjanaa ke likhane kaa......???
????????????
अल्लाह आप की दोस्त को लंबी ,सेहतमंद और खुशबाश ज़िंदगी अता करे (आमीन)
आप का गद्य भी बहुत पभावी है
आपके आतीत के यादों से छलकी ये आंसू वाली मुस्कुराहट के लिये क्या कहूँ । सर्जना के आत्मबल के लिये शब्द नही है मेरे पास । इतनी जिद से जिंदगी कोई जीना चाहे तो मौत कैसे ना हार जाये ।
सकारात्मक कविता......
सर्जना के नाम .. स्मृतियों की कब्र से मिट्टी झाड़ गहन मार्मिक प्रस्तुति दी है ..
कविता आशा का संचार करती हुई ..बहुत सुन्दर भाव लिए हुए ..
लिहाफ ओढ लेती हूँ
भ्रम और भुलावे की
जब कभी आपकी नज़्मे
रोम रोम से गुजरती है .....शब्द नही मिल रहे अश्को के सिवाय ....आभार
हूँ ....संजीदा ....
पर रोशनी से भरपूर .....
दुःख वह अनुभूति है जिसे हम अपनी क्षमता के अनुसार न्यून या अधिक ग्रहण कर सकते हैं. महर्षियों ने इसे "सत्व-बल" कहा है. चन्द्र शेखर आज़ाद बिना एनेस्थीसिया लिए ही ओपरेशन के लिए तैयार हो गए थे ........और कुछ होते हैं जो ज़रा सी फुंसी में ही सारा अस्पताल आसमान पर उठा लेते हैं.
चलिए, हीर जी ! हम सर्जना जी की तरह गम की ओर से अपनी दृष्टि हटाकर .... खुशियों की ओर मोड़ लें .
सर्जना जी की जिजीविषा को सादर नमन
कविता कहूँ या संस्मरण..या फिर दोनों..
दिल को छू गयी | एक हम है की जरा सा गम नहीं बर्दास्त होता है एक सर्जना है जिंदगी को जी रही है अंतिम लम्हें तक
आखिर हीर जी की मित्र जो ठहरी ..होना ही था ऐसा जिंदादिल उसे |
हरकीरत
सर्जना की कविता ने मन में एक नयी साहस को जन्म दिया है .. मैं सर्जना को hats off देता हूँ . और आपको बधाई .. इसे प्रस्तुत करने के लिये ..
आभार
विजय
कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html
सलाम है उस जज्बे को जो सिखाता है की...गम में भी मुस्कुराना सबसे बड़ी कला है|
स्वयं बौने हो जाते हैं दुख
मेरी सहनशक्ति के सामने
और फिर एक बार
जीत जाती है
ज़िन्दगी ......!!
जो ऐसी पंक्तियाँ रचने की क्षमता रखता हो..उसके सामने प्रारब्ध भी घुटने टेक देगा...आपकी मित्र की यही जिजीविषा ..यही जोश कायम रहे और वे जल्दी स्वस्थ हो ऐसी ही कविताएँ रचती रहें जो दूसरों के लिए प्रेरणा बन सके.
जिंदगी जिन्दा दिली का नाम है , मुर्दादिल क्या खाक जिया करते है . सर्जना जी इस उक्ति का उत्कृष्ट उदहारण है . उनकी जिजीविषा को मेरा सलाम और उनके स्वास्थ्य के लिए इश्वर से प्रार्थना .
अच्छी पोस्ट बधाई और शुभकामनायें
अच्छी पोस्ट बधाई और शुभकामनायें
जीना चाहती हूँ मैं
साहस से ...
दुःख-कष्टों को लघु करके
धीरज को बढाती हूँ मैं
तो .....
स्वयं बौने हो जाते हैं दुख
मेरी सहनशक्ति के सामने
और फिर एक बार
जीत जाती है
ज़िन्दगी ......!!
इस अदम्य साहस और जिजीविषा को मेरा नमन... उनके जल्द स्वस्थ होने की दुआ करती हूं...
सादर,
डोरोथी.
दिल को छू गई.....
कब्र की दीवारों से
हँसी छूटी कि...
हँसी के एवज में
फिर इक रात मर गई .....
अब कुछ नहीं कहूँगी.
दुःख में भी सुख का अनुभव कर जीना , भी एक कला है !
bahut sundar ..heer ji
सुन्दर प्रस्तुति.
खूबसूरत संस्मरण.
आभार.
समय मिले तो मेरे ब्लॉग पर भी दर्शन दें.
मनु जी ,
मैं उन दर्दों को तलाश रही थी जो शर्मिंदा हो कब्रों में मुंह छिपाए फिरते थे .....
itni lambi tippani likhi is post ko padhkar sab mit gayi post karte waqt bahut dukh lag raha hai ,ab kya likhoo samjh nahi aa raha ,aankhe nam ho gayi aur himmat badh gayi is hausale ko dekh .na bhoolne bali baate hai .is haalat se main bhi gujar chuki hoon use hi bayan kiya tha magar sab mit gaya .kavita meri hi kahani dohra rahi hai .is karan bha gayi .
सर्जना जी के होंसले को सलाम...
आपकी मित्र और आपको शुभकामनायें हीर जी ।
jeena bhi ek kala hai....
बेहद मार्मिक प्रस्तुति।
क्यों किसी के हिस्से आता है इतना दर्द...
सुनना इतना मुश्किल तो सहना कितना...????
दर्द जब हद से गुज़र जाता है,
हीर के अल्फाज़ों में उबर आता है...
जय हिंद...(आपकी और सर्जना के बीच वाली)
yaaden.....aavaaz deti hain aksar... aur kabhi achaanak hi kisi jhurmute se baahar nikalkar saamne aa khadi hoti hain.....
batcheet ke lahze ka sansmaran.
Achchha laga.
स्वयं बौने हो जाते हैं दुख
मेरी सहनशक्ति के सामने
और फिर एक बार
जीत जाती है
ज़िन्दगी ...
ज़िन्दगी के हर लम्हे को ज़िन्दादिली से जीने का फ़लसफ़ा देती रचना के लिए आपको और सर्जना जी को बधाई...अल्लाह से दुआ है वे जल्द स्वस्थ हो जाएं (आमीन)
अशोक सलूजा said .....
हरकीरत 'हीर' जी
आज पुरे एक महीने के बाद आप की पोस्ट पढ़ने को मिली |
इस पर कोई टिप्पणी करना मेरे जैसे के लिए तो नामुमकिन है |
क्या लिखे टिप्पणी में ,,,? तारीफ ! आह ! वाह !!!!! चारो तरफ तो
दर्द ही दर्द है ....!
(पिछले कुछ दिनों से तबियत नासाज़ चल रही है )
पिछली दो पोस्ट scheduled थी ,सो आज काफ़ी
दिन के बाद लैपटॉप पर आया तो आप की पोस्ट
पर नज़र गयी,तो रुका नही गया |
बस इतना ही कहना चाहता हूँ आप से कि सुख को
सुख भले न पुकारे ...
दर्द को... दर्द भी बहुत दूर से पुकारता है.....
आप के एहसास में बखूबी महसूस कर सकता हूँ |
में क्या .आप के सब पढ़ने वाले भी |
बस खुश रहे ,आप के हिस्से की खुशियाँ आप को
जल्द नसीब हों |
बहुत-बहुत स्नेह और शुभकामनायें !
अशोक सलूजा !
मेरी तरफ से एक सप्रेम दर्द भरा पंजाबी नगमा
आप के लिए .... हम जैसो को शायद इसी में सुकून
मिलता है ....???
tenu devan hanjuan da-Parvej mehdi.mp3 tenu devan hanjuan da-Parvej mehdi.mp3
5805K Play Download
मुझे ज़िन्दगी से प्यार है
जीना चाहती हूँ मैं
साहस से ...
दुःख-कष्टों को लघु करके
धीरज को बढाती हूँ मैं
तो .....
स्वयं बौने हो जाते हैं दुख
मेरी सहनशक्ति के सामने
इसी इच्छा शक्ति की जरूरत है...
सुन्दर प्रस्तुती.
जीना इसी का नाम है ॥
इस रचना पर टिप्पणी करने लायक ही नहीं जब हो जायेंगे तब ...........
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल कल 11 - 08 - 2011 को यहाँ भी है
नयी पुरानी हल चल में आज- समंदर इतना खारा क्यों है -
मन को उद्वेलित करने वाली बेहतरीन रचना.... आपको मेरी हार्दिक शुभकामनायें.
जीना चाहती हूँ मैं
साहस से ...
दुःख-कष्टों को लघु करके
धीरज को बढाती हूँ मैं
तो .....
स्वयं बौने हो जाते हैं दुख
मेरी सहनशक्ति के सामने
और फिर एक बार
जीत जाती है
ज़िन्दगी ......!!
.esi ka naam to jindagi hai..
..sach dukhon se hamen swayam hi akele ladna hota hai aur iske liye apne andar sahas banaye rakhne ki hardam jarurat hoti hai..
और फिर
एक बार
जीत जाती है जिंदगी .........!!
.............सौ-सौ सलाम ऐसी जीवट जिंदगी को
SARTHAK PRASTUTI............
Bahut khoob Harkirat ji, your words are always beautiful.
बहुत सुन्दर सारगर्भित , सुन्दर भावाभिव्यक्ति , आभार
रक्षाबंधन एवं स्वाधीनता दिवस के पावन पर्वों की हार्दिक मंगल कामनाएं.
हरकीरत "हीर" जी
आपका स्नेह मिला और स्नेहपूर्ण आमंत्रण भी . आभारी हूँ , आपके निर्देशानुसार शीघ्र क्षणिकाएं भेजूंगा .
रक्षाबंधन एवं स्वाधीनता पर्वों की शुभकामनाएं स्वीकार करें .
क्या कहूं, बहुत सुंदर रचना।
आपकी रचनाओं को पढना, समय को सार्थक बना देता है।
हीर जी, आपका पद्य हो या गद्य…दर्द की गहन अनुभूतियों को अभिव्यक्त करने वाला होता है… अपनी बरसों पुरानी खोई हुई मित्र सर्जना के बहाने आपने एक सच्चे दर्द को ही अभिव्यक्ति दी है… हमारे जीवन में एक दर्द ही तो सच्चा है और अपना है… बाकी तो… दिखावा…छलावा…फरेब… यह दर्द ही हमें मांजता है…शक्ति देता है जीवन में लड़ने की… आपकी कलम इस दर्द को खूबसूरत अभिव्यक्ति देती रहे…इसी तरह… यही कामना है…
हीर जी,
भाई के जन्मदिन की बहुत-बहुत बधाई...
एक कविता लिखने की कोशिश की है...समय मिले तो इस लिंक पर देखिएगा...
http://www.deshnama.com/2011/08/blog-post_13.html
आपको इस फील्ड में अपना गुरु बनाना है...अगर हो सके तो sehgalkd@gmail पर अपना ई-मेल एड्रेस भेजिए...
जय हिंद...
बहुत बहुत शुक्रिया खुशदीप जी ,
आपकी कविता पढ़ चुकी हूँ ...
हैरान नहीं हूँ ,....पहले भी आप लिख चुके हैं ....
हाँ... मेरी मेल देख लें ....
harkirathaqeer@gmai.com
जीना चाहती हूँ मैं
साहस से ...
दुःख-कष्टों को लघु करके
स्वयं बौने हो जाते हैं दुख
मेरी सहनशक्ति के सामने
buckup mam, long live everliving willpower,
Bahut behtar tarasha hai un yado ko
कब्र की दीवारों से
हँसी छूटी कि...
हँसी के एवज में
फिर इक रात मर गई .....
bahut sunder lines..magar agae ki post ke liyae sunder shabd kehna callousness hogi...kyunki wo koi rachna nahi hai...bitayae huae kuch kshan hain... ye batane ki koshish ki dekho zindagi aisae jee jati hai...sirf itan hi kahna chahungi is jagah ki ishwar apki mitr ko swasth or lambi zindagi de.
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