Wednesday, January 26, 2011

गणतंत्र दिवस पर सूरज से हुई कुछ बातचीत ......

राजेन्द्र जी की पोस्ट पढ़ छत पर गई तो देखा ...सूरज धुंध की चादर ओढ़े बादलों की ओट में है ....मुझ से रहा गया ...खूब छेड़ा- छाडी हुई ...आरोप-प्रत्यारोप लगे ....शायरों पर छींटा- कशी हुई ....कुछ मासूम से जवाब भी मिले ....देखिये आप भी ......
(ये
पोस्ट सिर्फ आज के लिए ......)
आप सब को गणतंत्र दिवस ढेरों शुभकामनाएं ......


()

वर्ष की तरह
इस बार भी सूरज
छुट्टियों पर था ...
मैंने फुनगी पर टंगा अपना
मोबाईल उतार उसे फोन लगाया ....
जनाब ! आज २६ जनवरी है
लौट आयें .....
हम ठिठुरता गणतंत्र कैसे मनाएं ?
भला आपके बिना प्रधानमंत्री
सलामी कैसे लेने जायेगें .....
जेबों में हाथ होंगे ,लोग
तालियाँ कैसे बजायेगें ...?
वह मुस्कुराकर बोला -
प्रधानमंत्री को मेरी क्या जरुरत
वह तो मंच पर खड़े होकर
समाजवाद लायेंगे ....
हाँ; उन हजारों नंगे बदनों के लिए
हम जरुर आयेंगे ....
जो देश-प्रेम की भावना मन में लिए
झंडा फहराने जायेंगे .....!!

()

सूरज ....
धुंध की चादर ओढ़े
बादलों की ओट में था
मैंने जरा सी चादर उठाई
तो मुस्कुराया ......
बोला - बहुत ठिठुरन होती है
मेरे बिना .....?
अपनी नज्मों में तो हमेशा मुझे
कटघरे में खड़ा रखती हो ....
सुनो ! अब आऊंगा तो एक शर्त पर
पहले गणतंत्र दिवस पर....
कोई जोशीली सी नज़्म सुना दो
मेरे देश के नौजवाओं में ...
जरा सा जोश तो ला दो ...

मैंने राजेन्द्र स्वर्णकार जी की
नज़्म का लिंक उसे दे दिया .... !!
शस्वरं


()

मैं छत पर गई
तो देखा सूरज ....
उदासी के कपड़े धो रहा था
मैं मुस्कुराई ....
बोली : क्यों किरण को छोड़
धुंध रास नहीं आई ..?
जो आज गणतंत्र दिवस पर भी
ओढ़ ली है ये ख़ामोशी की रजाई ?
वह बोला : अगर मैं किरण तक ही
महदूद रहता ,तो कवि या शायर नहीं
इक दहकती आग होता ......
और तुम मुझे छूते ही
जल कर राख हो जाती ....
बताओ फिर भला तुम गणतंत्र
कैसे मनाती ....?

77 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

गणतंत्र दिवस पर सूरज से हुयी बात चीत बहुत बढ़िया लगी ..और राजेन्द्र जी का लिंक देना बहुत बढ़िया लगा ....

गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं

संजय कुमार चौरसिया said...

गणतंत्र दिवस पर सूरज से हुयी बात चीत बहुत बढ़िया लगी

गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं

इस्मत ज़ैदी said...

क्या बात है हरकीरत जी,
एक नया[पन है आप की नज़्मों में


वह मुस्कुराकर बोला -
प्रधानमंत्री को मेरी क्या जरुरत
वह तो मंच पर खड़े होकर
समाजवाद लायेंगे ....
हाँ; उन हजारों नंगे बदनों के लिए
मैं जरुर आऊंगा ....
जो देश-प्रेम की भावना मन में लिए
झंडा फहराने जायेंगे .....!!

बहुत उम्दा !
सूरज के माध्यम से आप ने बहुत महत्वपूर्ण विचार प्रस्तुत किये
बधाई हो .....गणतंत्र दिवस और इतनी उम्दा नज़्मों के लिये

केवल राम said...

वह तो मंच पर खड़े होकर
समाजवाद लायेंगे ....
हाँ; उन हजारों नंगे बदनों के लिए
मैं जरुर आऊंगा ....
जो देश-प्रेम की भावना मन में लिए
झंडा फहराने जायेंगे .....!!
जी हाँ हर बार यही तो होता है ......
सूरज के बहाने आपने सबके दर्द को भापने का प्रयास किया है .......जो संवाद हुआ है निश्चित रूप से हमारे सामने बहुत से सन्दर्भ लेकर उपस्थित होता है ....हर एक नज्म में नया अर्थ है और नयी परिभाषा है ....आपका आभार इतनी सार्थक और उत्तम प्रस्तुति के लिए .....शुक्रिया

डॉ टी एस दराल said...

ओह ! आप छत पर गईं और सूरज से छेड़ छाड़ !
दुस्साहस है पर पावस है ।

राजेन्द्र जी की नज़्म हमने भी सुबह ही पढ़ और सुन ली थी । और पढ़कर जोश भी आया । फिर डर गया कि कहीं उत्सव शर्मा न बन जाऊं । अफ़सोस देश की हालत ही ऐसी है ।

लेकिन आपने तुरंत गणतंत्र दिवस पर सूरज को पकड़ कर ऐसी नज्में सुनाई कि सूरज देवता को मजबूरन आना ही पड़ा । आज यहाँ भी उसी की किरणों का प्रकाश फैला है ।

तीनों नज्में ऐसी कि --पढ़कर दिन सफल हो गया ।
गणतंत्र दिवस की बधाई और हार्दिक शुभकामनायें जी ।

Sushant Jain said...

Very nice nazm...\\

उपेन्द्र नाथ said...

हीर जी बहुत ही अलग अंदाज में ये प्रस्तुति रही है सूरज के बहाने..... बहुत ही सुंदर नज्में........ स्वर्णकार जी की भी नज़्म वाकई बहुत ही अच्छी लगी .

गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें और बधाई

nilesh mathur said...

वाह! बिलकुल नए अंदाज में बहुत ही सुन्दर रचनाएं , आपको गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामना!

प्रवीण पाण्डेय said...

सूरज गवाह है इतने गणतन्त्रों का।

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

आज आपके ब्लॉग में मुस्कुराहटें बिखरी पडी है....
मुझे देखते ही मुस्कराहट का एक टुकडा उछल कर मेरे होंठों पर भी बैठ गया है....
आपको, सूरज को और सारे जहां से अच्छा भारत को गणतंत्र दिवस की दिली मुबारकबाद... बधाई.

संजय भास्‍कर said...

आप ने बहुत महत्वपूर्ण विचार प्रस्तुत किये
गणतंत्र दिवस की हार्दिक बधाइयाँ !!

Happy Republic Day.........Jai HIND

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

सुंदर नजमें हैं जी,
आज सूरज भी खुश है।

गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं

जयकृष्ण राय तुषार said...

north east ki sukhad hariyali ke madhya nivas karne vali harkirat heer ji pranam aapki najmon kavitaon ki tarif karne men antratma ko kast nahin hota hai.balki sukhad ahsas hota hai adbhut kavyitri ko mera jai hind

जयकृष्ण राय तुषार said...

north east ki sukhad hariyali ke madhya nivas karne vali harkirat heer ji pranam aapki najmon kavitaon ki tarif karne men antratma ko kast nahin hota hai.balki sukhad ahsas hota hai adbhut kavyitri ko mera jai hind

सुशील छौक्कर said...

एक नए अंदाज में गणतंत्र दिवस मना लिया आपने तो। आपका ये अंदाज पसंद आया जी। गोरख पांडे जी लिखा कही पढा था
समाजवाद बबुआ धीरे धीरे आई
हाथी से आई,घोड़ा से आई.
आंधी से आई,गांधी से आई
नोटवा से आई,वोटवा से आई

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

bahut sundar, bahut baddhiya,, sabhi achchhi hain..

फ़िरदौस ख़ान said...

बहुत ख़ूब...सभी रचनाएं बहुत सुन्दर हैं...
आपको गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं...

Kunwar Kusumesh said...

अरे वाह हीर ही, आपसे तो सूरज महराज दिल खोल पर बात कर लेते हैं. उन्हें केंद्र में रख के लिखी हुई आपकी तीनों कवितायें बेहतरीन हैं, संवेदनात्मक धरातल पर कही हुई निम्न पंक्तियाँ बहुत पसंद आयीं:-

प्रधानमंत्री को मेरी क्या जरुरत
वह तो मंच पर खड़े होकर
समाजवाद लायेंगे ....
हाँ; उन हजारों नंगे बदनों के लिए
हम जरुर आयेंगे ....
जो देश-प्रेम की भावना मन में लिए
झंडा फहराने जायेंगे .....!!

विशाल said...

गणतंत्र दिवस पर आप की अनूठी प्रस्तुति है . आप सच में आज की अमृता प्रीतम हैं. आप की कलम को सलाम.

प्रतुल वशिष्ठ said...

.


कहते हैं 'हीरे' को चखना मौत को दावत देना है.

...

पहली बार निकला है रस 'हीरे' से
जिसे पहली बार में ही पी गया हूँ
बिना शब्द शक्तियों का इस्तेमाल किये.

...


.

हरकीरत ' हीर' said...

प्रतुल जी,
सच कहूँ तो मुझे इस तरह की कवितायों से संतुष्टि नहीं होती ....
बस ये तो यूँ ही आज छत पर बैठे बैठे लिख दी ....
गणतंत्र दिवस पे कुछ लिख ही नहीं पाई थी ....
आपको ये भी अच्छी लगी .....
तो शुक्रिया .....!!

G.N.SHAW said...

bahut sundar.wish you a happy republic day.

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...

अरे ! अरे ! अऽऽर् र् रे !

ये इनायतें गज़ब की , ये बला की मेहरबानी … !


हीर जी
ज़र्रानवाज़ी के लिए तो मैं शुक्रगुज़ार हूं ही ,
ज़्यादा ख़ुशी इस बात की है कि आपने बिल्कुल नये मिजाज़ ,
नये भाव , अलग मूड की इतनी शानदार रचनाएं
एक अलग ही अंदाज़ के साथ हमें उपहार में दी हैं ।

संभवतः गणतंत्र दिवस को समर्पित आपकी यह पोस्ट
ब्लॉग जगत की आज की सबसे जुदा और निराली पोस्ट है …
मुबारकबाद कुबूल फ़रमाएं !

गणतंत्र दिवस की हार्दिक बधाई और मंगलकामनाएं !

- राजेन्द्र स्वर्णकार

Dr.Ajmal Khan said...

बहुत ही सुन्दर रचनाएं,नयापन है, बहुत ही अच्छी लगी .........
"गणतंत्र दिवस की हार्दिक हार्दिक शुभकामनायें"

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...

… और गहन गाम्भीर्य आपकी पहचान है , उस पर कभी आंच आ भी नहीं सकती ।

बस, अपने लिए नहीं … सबके लिए कभी कुछ अलग भी होते रहना चाहिए ।

daanish said...

छत पर खूब छेड़ा-छेड़ी
आरोप प्रत्यारोप
कुछ वार्तालाप
और
स्वरणकार जी का लिंक .....

सभी घटनाएं आलौकिक लग रही हैं
और प्रक्रिया के चलते ऐसी
अद्भुत रचनाओं का निर्माण .... !!

गणतंत्र दिवस की शुभ कामनाएं .

Arvind Jangid said...

गणतंत्र दिवस की हार्दिक सुभकामनाएँ

Udan Tashtari said...

मैं छत पर गई
तो देखा सूरज ....
उदासी के कपड़े धो रहा था

-क्या बात है!!


गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामना

Patali-The-Village said...

गणतंत्र दिवस पर सूरज से हुयी बात चीत बहुत बढ़िया लगी|
गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं|

रचना दीक्षित said...

ये मुलाक़ात तो बहुत बढ़िया लगी. आज आपकी नज्मों में नया रंग देखने को मिला. सचमुच बहुत ही मजा आया और कटाक्ष तो सुंदर थे ही.

गणतंत्र दिवस की बधाई.

Dr Xitija Singh said...

हीर जी आपका बहुत बहुत शुक्र्रिया जो आप सुबह सुबह छत पर चलीं गयीं ... वरना शायद हम इन नज्मों से महरूम रह जाते ... तीनों शानदार .... आभार

गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं

mridula pradhan said...

हाँ; उन हजारों नंगे बदनों के लिए
हम जरुर आयेंगे ....
जो देश-प्रेम की भावना मन में लिए
झंडा फहराने जायेंगे .....!!

bahut hi sunder likhi hain.

Sunil Kumar said...

सार्थक और उत्तम प्रस्तुति के लिए ,बधाई ....

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

‘मैंने फुनगी पर टंगा अपना
मोबाईल उतार उसे फोन लगाया ..’
सुंदर प्रयोग... बधाई॥

'साहिल' said...

कुछ अलग रंग देखने को मिला है आपकी इन नज्मों में..........सूरज से सवालो-जवाब हमें बहुत भाये....

डॉ. मोनिका शर्मा said...

:)बडी प्यारी बातें हुई सूरज से....बहुत सुंदर
गणतंत्र दिवस की मंगल कामनाएं

Kunwar Kusumesh said...

मैंने टिप्पणी में संबोधित करते समय "हीर जी" लिखा, पता नहीं कैसे "हीर ही" लिख गया .माफ़ करियेगा हीर जी. मैंने उसे अभी अभी देखा.कृपया उसे "हीर जी" पढ़ें.

दर्शन कौर धनोय said...

गणतन्त्र दिवस की शुभ कामनाओ सहित ---
आखिर आपने हंसना सिख ही लिया हरकीरत जी --जर्द -पतों को छोड़ सूरज से यह मुस्कुराहट -- मजा आ गया --!

प्रतुल वशिष्ठ said...

.

"पता नहीं कैसे "हीर ही" लिख गया. माफ़ करियेगा हीर जी."

कुँवर जी,
हो जाती है भूल अक्सर ऎसी
क्योंकि J और H दोनों हैं पड़ौसी.

.

दर्शन कौर धनोय said...

सगेबोब जी ,ने ठीक कहा हे--आप आज की अमृता प्रीतम हे-उनकी याद में उन्ही का कलाम --आपको समर्पित ---
" मै राख दिखाई देती हु --
पर इस राख में आग दबी हे --
मै किसी का दिल नही दुखती -
मेरा एक ही दोष हे ---
मै तुमसे प्यार करती हु --
और -इस आग को --
राख में दबाए फिरती हु --"

Anonymous said...

वाह हीर जी....आपका अंदाज़ और आपकी शैली......क्या बात है...पहला वाला सबसे अच्छा लगा.....सूरज को नंबर हमें भी दे दो :-)

Suman said...

bahut badhiya likha hai. rajendra ji ka link dekar bahut acha kiya....

वन्दना अवस्थी दुबे said...

हाँ; उन हजारों नंगे बदनों के लिए
हम जरुर आयेंगे ....
जो देश-प्रेम की भावना मन में लिए
झंडा फहराने जायेंगे .....!!
क्या बात है हरकीरत जी!! इन कविताओं में तो एक अलग ही हरकीरत के दर्शन हुए. बहुत खूब. शुभकामनाएं.

सदा said...

वह मुस्कुराकर बोला -
प्रधानमंत्री को मेरी क्या जरुरत
वह तो मंच पर खड़े होकर
समाजवाद लायेंगे ....
हाँ; उन हजारों नंगे बदनों के लिए
मैं जरुर आऊंगा ....
जो देश-प्रेम की भावना मन में लिए
झंडा फहराने जायेंगे .....!!

वाह ...बहुत खूब यह सुन्‍दर विचार वार्ता ...आपकी कलम और आपके ख्‍याल अद्भुत ...।

हरकीरत ' हीर' said...

कुँवर जी .
आप 'जी' न भी लिखते तो बुरा न मानती ...
आप मुझ से बड़े हैं ...साहित्य की दृष्टि से भी ...
आपका हीर कहना वाजिब लगता ...
इसमें अपनत्व भी तो है ....

दीपक बाबा said...

हाँ; उन हजारों नंगे बदनों के लिए
हम जरुर आयेंगे ....
जो देश-प्रेम की भावना मन में लिए
झंडा फहराने जायेंगे .....!!

बहुत उम्दा जी,

स्वप्निल तिवारी said...

वही बात कहूँगा जो सब कह रहे हैं ... आपकी युसुअल स्टाइल से हट कर हैं ये रचनाएं ... लेकिन गणतंत्र पे सूर्य से बात .... जनता की सर्वोच्च सत्ता से बातचीत है .... :)

सादर

Meenu Khare said...

मन को गहरे तक उद्द्वेलित करने वाली कविताएँ.बधाई एवं शुभकामनाएँ.

Meenu Khare said...

मन को गहरे तक उद्द्वेलित करने वाली कविताएँ.बधाई एवं शुभकामनाएँ.

vandana gupta said...

वाह!क्या खूब अन्दाज़-ए-बयाँ है…………अति सुन्दर रचनायें।

गणतंत्र दिवस की बधाई और हार्दिक शुभकामनायें ।

रश्मि प्रभा... said...

suraj se baaten , aur aadesh... sabke vash ki baat nahi

डॉ. दिलबागसिंह विर्क said...

gantanter aur thand ka ek sath sunder varnn . netaon ke kore bhashnon per shandar vyangya .

manu said...

:)

Parul kanani said...

ek anootha prayog..dil baag baag ho gaya.. :)baaton baaton mein vo kitna kuch keh gaye!

rashmi ravija said...

बहुत ही बढ़िया अंदाज़ रहा ...सूरज से बातचीत का
सुन्दर रचनाएं

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " said...

तीनों नज्में पूर्व की भांति अपूर्व ...
पहली नज़्म ......इक शालीन व्यंग
दूसरी नज़्म .....धूप गुनगुनी
तीसरी ..........अपनी बिरादरी

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

नया अंदाज़...
गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं.

Anonymous said...

kaafi acchi poems hain
nice blog
chk out my blog also
http://iamhereonlyforu.blogspot.com/

धीरेन्द्र सिंह said...

सुन्दर कल्पना, सशक्त अभिव्यक्ति के साथ मन में एक भावना जागृत हुयी कि आपकी कविताओं को पढ़ते रहना मुझे अच्छा लगेगा. गणतंत्र दिवस से गण तक नज़्म ने विशेष अनुभूति कराई.

ज्ञानचंद मर्मज्ञ said...

नए अंदाज़ में गणतंत्र दिवस की खूबसूरत कवितायें इस बात की गवाह हैं कि आप की कलम सूरज की आँखों को भी चकाचौध कर सकती है !
गणतंत्र जिंदाबाद !

Mithilesh dubey said...

गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं

अरुण अवध said...

गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं !

सूरज को लेकर ये चुलबुली नज्में बड़ी प्यारी लगीं ,
बहुत बधाई आपको ,सलामत रहिये !

बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरना said...

शब्दों-बिम्बों की आपकी बुनावट अनुपम होती है, हीर जी ! सूरज से आपकी दोस्ती है .......इसीलिये इतनी बातें हो पाती हैं ...बातें अच्छी हुईं. मगर तकलीफ सूरज को भी है ....उसे भी अपनी उदासी धोने के लिए मजबूर होना पड़ता है ..किरणें उसकी बात ज़ो नहीं मानतीं ....बादलों से रास करने लगती हैं ....तभी तो उसे धुंध की तरफ निहारना पड़ता है ......पूछना पड़ता है "किरणें कहाँ गयीं मेरी ?"

Coral said...

हरकीरतदी बहुत सुन्दर रचनाये है
माफ़ी चाहती हू व्यावसाईक व्यस्तता के कारण मै बहुत दिनों से यहाँ नहीं आ पाई

आपको नव वर्ष तथा गणत्रंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाये !

Anonymous said...

वह मुस्कुराकर बोला -
प्रधानमंत्री को मेरी क्या जरुरत
वह तो मंच पर खड़े होकर
समाजवाद लायेंगे ....
हाँ; उन हजारों नंगे बदनों के लिए
हम जरुर आयेंगे ....

बेहतरीन...

हरकीरत ' हीर' said...

कोरल जी,
अच्छा किया आपने अपनी तस्वीर लगा ली ...
अब एक और इल्तजा है अपने असली नाम से ही लिखें ...

SomeOne said...

लगता है सूर्य के साथ आपकी अच्छी बनती है,!
शब्दों का संगम काफी अच्चा है, बहुत बढ़िया!

केवल राम said...

आज फिर दुबारा पढ़ा आपके सूरज के साथ हुए संवाद को ....समझ आया कि क्या महता है जिन्दगी में प्रकाश की और जब सूरज आपसे नज्म सुनाने को कह रहा था तो ....

सुनो ! अब आऊंगा तो एक शर्त पर
पहले गणतंत्र दिवस पर....
कोई जोशीली सी नज़्म सुना दो
मेरे देश के नौजवाओं में ...
जरा सा जोश तो ला दो ...

आपने पुरे जोश के साथ .....हमे भी सुना दी ....आपका आभार ...हमें भी सूरज कि महफ़िल में शामिल करने के लिए .....

और आज अपने ब्लॉग पर
"जिन्दगी है एक दिन "...

ashish said...

मै तो रह ही गया था इतनी खूबसूरत गीत पढने से . सूरज की वाक पटुता अच्छी लगी और आपकी गीतों में शब्दों और भावो की जुगलबंदी सूरज के रथ की तरह देदीप्यमान .

RAJWANT RAJ said...

log to chand sitaro se bate kiya krte hai our khush hua krte hai aap hai ki guftgu our chhed chhad vo bhi suraj se ! masha allah kya bat hai .

डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) said...

बहुत ही बढ़िया अंदाज़ रहा ...सूरज से बातचीत का
सुन्दर रचनाएं

हरीश जोशी said...

नमस्कार........ आपका कि कविता मन को छु गयी......
मैं ब्लॉग जगत में नया हूँ, कृपया मेरा मार्गदर्शन करें......

http://harish-joshi.blogspot.com/

आभार.

वाणी गीत said...

सूरज से छेड़ छाड़, धन्य हुआ होगा वह भी अपने नसीब पर इठलाता ...

हम ठिठुरता गणतंत्र कैसे मनाएं ...मगर उन हजार नंगे बदनों के लिए जरुर आयेंगे ...
व्यवस्था ,सत्ता और एक कोने में ठिठुरते व्यक्ति पर विरोधाभास है हमरे गणतंत्र का ...

हमेशा की तरह बेहद खूबसूरत क्षणिकाएं!

सर्वत एम० said...

बहुत बहुत बहुत दिनों के बाद आपके यहाँ आ सका और आपको पहले की तरोताजा पा कर खुद भी प्रसन्न हुआ. रचनाओं के बारे में क्या कहूँ, "कुछ चीज़ें कभी नहीं बदलतीं"...fb.पर अब आप जाने क्यों मुझे न्ज्त नहीं आतीं.

सर्वत एम० said...

बहुत बहुत बहुत दिनों के बाद आपके यहाँ आ सका और आपको पहले की तरोताजा पा कर खुद भी प्रसन्न हुआ. रचनाओं के बारे में क्या कहूँ, "कुछ चीज़ें कभी नहीं बदलतीं"...fb.पर अब आप जाने क्यों मुझे न्ज्त नहीं आतीं.

सर्वत एम० said...

बहुत बहुत बहुत दिनों के बाद आपके यहाँ आ सका और आपको पहले की तरोताजा पा कर खुद भी प्रसन्न हुआ. रचनाओं के बारे में क्या कहूँ, "कुछ चीज़ें कभी नहीं बदलतीं"...fb.पर अब आप जाने क्यों मुझे नज़र नहीं आतीं.

Yashwant R. B. Mathur said...

कल 26/01/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
धन्यवाद !