आज राजेन्द्र जी की पोस्ट पढ़ छत पर गई तो देखा ...सूरज धुंध की चादर ओढ़े बादलों की ओट में है ....मुझ से रहा न गया ...खूब छेड़ा- छाडी हुई ...आरोप-प्रत्यारोप लगे ....शायरों पर छींटा- कशी हुई ....कुछ मासूम से जवाब भी मिले ....देखिये आप भी ......
(ये पोस्ट सिर्फ आज के लिए ......)
आप सब को गणतंत्र दिवस ढेरों शुभकामनाएं ......
(१)
हर वर्ष की तरह
इस बार भी सूरज
छुट्टियों पर था ...
मैंने फुनगी पर टंगा अपना
मोबाईल उतार उसे फोन लगाया ....
जनाब ! आज २६ जनवरी है
लौट आयें .....
हम ठिठुरता गणतंत्र कैसे मनाएं ?
भला आपके बिना प्रधानमंत्री
सलामी कैसे लेने जायेगें .....
जेबों में हाथ होंगे ,लोग
तालियाँ कैसे बजायेगें ...?
वह मुस्कुराकर बोला -
प्रधानमंत्री को मेरी क्या जरुरत
वह तो मंच पर खड़े होकर
समाजवाद लायेंगे ....
हाँ; उन हजारों नंगे बदनों के लिए
हम जरुर आयेंगे ....
जो देश-प्रेम की भावना मन में लिए
झंडा फहराने जायेंगे .....!!
(२)
सूरज ....
धुंध की चादर ओढ़े
बादलों की ओट में था
मैंने जरा सी चादर उठाई
तो मुस्कुराया ......
बोला - बहुत ठिठुरन होती है न
मेरे बिना .....?
अपनी नज्मों में तो हमेशा मुझे
कटघरे में खड़ा रखती हो ....
सुनो ! अब आऊंगा तो एक शर्त पर
पहले गणतंत्र दिवस पर....
कोई जोशीली सी नज़्म सुना दो
मेरे देश के नौजवाओं में ...
जरा सा जोश तो ला दो ...
मैंने राजेन्द्र स्वर्णकार जी की
नज़्म का लिंक उसे दे दिया .... !!
शस्वरं
(३)
मैं छत पर गई
तो देखा सूरज ....
उदासी के कपड़े धो रहा था
मैं मुस्कुराई ....
बोली : क्यों किरण को छोड़
धुंध रास नहीं आई ..?
जो आज गणतंत्र दिवस पर भी
ओढ़ ली है ये ख़ामोशी की रजाई ?
वह बोला : अगर मैं किरण तक ही
महदूद रहता ,तो कवि या शायर नहीं
इक दहकती आग होता ......
और तुम मुझे छूते ही
जल कर राख हो जाती ....
बताओ फिर भला तुम गणतंत्र
कैसे मनाती ....?
Wednesday, January 26, 2011
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77 comments:
गणतंत्र दिवस पर सूरज से हुयी बात चीत बहुत बढ़िया लगी ..और राजेन्द्र जी का लिंक देना बहुत बढ़िया लगा ....
गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
गणतंत्र दिवस पर सूरज से हुयी बात चीत बहुत बढ़िया लगी
गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
क्या बात है हरकीरत जी,
एक नया[पन है आप की नज़्मों में
वह मुस्कुराकर बोला -
प्रधानमंत्री को मेरी क्या जरुरत
वह तो मंच पर खड़े होकर
समाजवाद लायेंगे ....
हाँ; उन हजारों नंगे बदनों के लिए
मैं जरुर आऊंगा ....
जो देश-प्रेम की भावना मन में लिए
झंडा फहराने जायेंगे .....!!
बहुत उम्दा !
सूरज के माध्यम से आप ने बहुत महत्वपूर्ण विचार प्रस्तुत किये
बधाई हो .....गणतंत्र दिवस और इतनी उम्दा नज़्मों के लिये
वह तो मंच पर खड़े होकर
समाजवाद लायेंगे ....
हाँ; उन हजारों नंगे बदनों के लिए
मैं जरुर आऊंगा ....
जो देश-प्रेम की भावना मन में लिए
झंडा फहराने जायेंगे .....!!
जी हाँ हर बार यही तो होता है ......
सूरज के बहाने आपने सबके दर्द को भापने का प्रयास किया है .......जो संवाद हुआ है निश्चित रूप से हमारे सामने बहुत से सन्दर्भ लेकर उपस्थित होता है ....हर एक नज्म में नया अर्थ है और नयी परिभाषा है ....आपका आभार इतनी सार्थक और उत्तम प्रस्तुति के लिए .....शुक्रिया
ओह ! आप छत पर गईं और सूरज से छेड़ छाड़ !
दुस्साहस है पर पावस है ।
राजेन्द्र जी की नज़्म हमने भी सुबह ही पढ़ और सुन ली थी । और पढ़कर जोश भी आया । फिर डर गया कि कहीं उत्सव शर्मा न बन जाऊं । अफ़सोस देश की हालत ही ऐसी है ।
लेकिन आपने तुरंत गणतंत्र दिवस पर सूरज को पकड़ कर ऐसी नज्में सुनाई कि सूरज देवता को मजबूरन आना ही पड़ा । आज यहाँ भी उसी की किरणों का प्रकाश फैला है ।
तीनों नज्में ऐसी कि --पढ़कर दिन सफल हो गया ।
गणतंत्र दिवस की बधाई और हार्दिक शुभकामनायें जी ।
Very nice nazm...\\
हीर जी बहुत ही अलग अंदाज में ये प्रस्तुति रही है सूरज के बहाने..... बहुत ही सुंदर नज्में........ स्वर्णकार जी की भी नज़्म वाकई बहुत ही अच्छी लगी .
गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें और बधाई
वाह! बिलकुल नए अंदाज में बहुत ही सुन्दर रचनाएं , आपको गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामना!
सूरज गवाह है इतने गणतन्त्रों का।
आज आपके ब्लॉग में मुस्कुराहटें बिखरी पडी है....
मुझे देखते ही मुस्कराहट का एक टुकडा उछल कर मेरे होंठों पर भी बैठ गया है....
आपको, सूरज को और सारे जहां से अच्छा भारत को गणतंत्र दिवस की दिली मुबारकबाद... बधाई.
आप ने बहुत महत्वपूर्ण विचार प्रस्तुत किये
गणतंत्र दिवस की हार्दिक बधाइयाँ !!
Happy Republic Day.........Jai HIND
सुंदर नजमें हैं जी,
आज सूरज भी खुश है।
गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं
north east ki sukhad hariyali ke madhya nivas karne vali harkirat heer ji pranam aapki najmon kavitaon ki tarif karne men antratma ko kast nahin hota hai.balki sukhad ahsas hota hai adbhut kavyitri ko mera jai hind
north east ki sukhad hariyali ke madhya nivas karne vali harkirat heer ji pranam aapki najmon kavitaon ki tarif karne men antratma ko kast nahin hota hai.balki sukhad ahsas hota hai adbhut kavyitri ko mera jai hind
एक नए अंदाज में गणतंत्र दिवस मना लिया आपने तो। आपका ये अंदाज पसंद आया जी। गोरख पांडे जी लिखा कही पढा था
समाजवाद बबुआ धीरे धीरे आई
हाथी से आई,घोड़ा से आई.
आंधी से आई,गांधी से आई
नोटवा से आई,वोटवा से आई
bahut sundar, bahut baddhiya,, sabhi achchhi hain..
बहुत ख़ूब...सभी रचनाएं बहुत सुन्दर हैं...
आपको गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं...
अरे वाह हीर ही, आपसे तो सूरज महराज दिल खोल पर बात कर लेते हैं. उन्हें केंद्र में रख के लिखी हुई आपकी तीनों कवितायें बेहतरीन हैं, संवेदनात्मक धरातल पर कही हुई निम्न पंक्तियाँ बहुत पसंद आयीं:-
प्रधानमंत्री को मेरी क्या जरुरत
वह तो मंच पर खड़े होकर
समाजवाद लायेंगे ....
हाँ; उन हजारों नंगे बदनों के लिए
हम जरुर आयेंगे ....
जो देश-प्रेम की भावना मन में लिए
झंडा फहराने जायेंगे .....!!
गणतंत्र दिवस पर आप की अनूठी प्रस्तुति है . आप सच में आज की अमृता प्रीतम हैं. आप की कलम को सलाम.
.
कहते हैं 'हीरे' को चखना मौत को दावत देना है.
...
पहली बार निकला है रस 'हीरे' से
जिसे पहली बार में ही पी गया हूँ
बिना शब्द शक्तियों का इस्तेमाल किये.
...
.
प्रतुल जी,
सच कहूँ तो मुझे इस तरह की कवितायों से संतुष्टि नहीं होती ....
बस ये तो यूँ ही आज छत पर बैठे बैठे लिख दी ....
गणतंत्र दिवस पे कुछ लिख ही नहीं पाई थी ....
आपको ये भी अच्छी लगी .....
तो शुक्रिया .....!!
bahut sundar.wish you a happy republic day.
अरे ! अरे ! अऽऽर् र् रे !
ये इनायतें गज़ब की , ये बला की मेहरबानी … !
हीर जी
ज़र्रानवाज़ी के लिए तो मैं शुक्रगुज़ार हूं ही ,
ज़्यादा ख़ुशी इस बात की है कि आपने बिल्कुल नये मिजाज़ ,
नये भाव , अलग मूड की इतनी शानदार रचनाएं
एक अलग ही अंदाज़ के साथ हमें उपहार में दी हैं ।
संभवतः गणतंत्र दिवस को समर्पित आपकी यह पोस्ट
ब्लॉग जगत की आज की सबसे जुदा और निराली पोस्ट है …
मुबारकबाद कुबूल फ़रमाएं !
गणतंत्र दिवस की हार्दिक बधाई और मंगलकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
बहुत ही सुन्दर रचनाएं,नयापन है, बहुत ही अच्छी लगी .........
"गणतंत्र दिवस की हार्दिक हार्दिक शुभकामनायें"
… और गहन गाम्भीर्य आपकी पहचान है , उस पर कभी आंच आ भी नहीं सकती ।
बस, अपने लिए नहीं … सबके लिए कभी कुछ अलग भी होते रहना चाहिए ।
छत पर खूब छेड़ा-छेड़ी
आरोप प्रत्यारोप
कुछ वार्तालाप
और
स्वरणकार जी का लिंक .....
सभी घटनाएं आलौकिक लग रही हैं
और प्रक्रिया के चलते ऐसी
अद्भुत रचनाओं का निर्माण .... !!
गणतंत्र दिवस की शुभ कामनाएं .
गणतंत्र दिवस की हार्दिक सुभकामनाएँ
मैं छत पर गई
तो देखा सूरज ....
उदासी के कपड़े धो रहा था
-क्या बात है!!
गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामना
गणतंत्र दिवस पर सूरज से हुयी बात चीत बहुत बढ़िया लगी|
गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं|
ये मुलाक़ात तो बहुत बढ़िया लगी. आज आपकी नज्मों में नया रंग देखने को मिला. सचमुच बहुत ही मजा आया और कटाक्ष तो सुंदर थे ही.
गणतंत्र दिवस की बधाई.
हीर जी आपका बहुत बहुत शुक्र्रिया जो आप सुबह सुबह छत पर चलीं गयीं ... वरना शायद हम इन नज्मों से महरूम रह जाते ... तीनों शानदार .... आभार
गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
हाँ; उन हजारों नंगे बदनों के लिए
हम जरुर आयेंगे ....
जो देश-प्रेम की भावना मन में लिए
झंडा फहराने जायेंगे .....!!
bahut hi sunder likhi hain.
सार्थक और उत्तम प्रस्तुति के लिए ,बधाई ....
‘मैंने फुनगी पर टंगा अपना
मोबाईल उतार उसे फोन लगाया ..’
सुंदर प्रयोग... बधाई॥
कुछ अलग रंग देखने को मिला है आपकी इन नज्मों में..........सूरज से सवालो-जवाब हमें बहुत भाये....
:)बडी प्यारी बातें हुई सूरज से....बहुत सुंदर
गणतंत्र दिवस की मंगल कामनाएं
मैंने टिप्पणी में संबोधित करते समय "हीर जी" लिखा, पता नहीं कैसे "हीर ही" लिख गया .माफ़ करियेगा हीर जी. मैंने उसे अभी अभी देखा.कृपया उसे "हीर जी" पढ़ें.
गणतन्त्र दिवस की शुभ कामनाओ सहित ---
आखिर आपने हंसना सिख ही लिया हरकीरत जी --जर्द -पतों को छोड़ सूरज से यह मुस्कुराहट -- मजा आ गया --!
.
"पता नहीं कैसे "हीर ही" लिख गया. माफ़ करियेगा हीर जी."
कुँवर जी,
हो जाती है भूल अक्सर ऎसी
क्योंकि J और H दोनों हैं पड़ौसी.
.
सगेबोब जी ,ने ठीक कहा हे--आप आज की अमृता प्रीतम हे-उनकी याद में उन्ही का कलाम --आपको समर्पित ---
" मै राख दिखाई देती हु --
पर इस राख में आग दबी हे --
मै किसी का दिल नही दुखती -
मेरा एक ही दोष हे ---
मै तुमसे प्यार करती हु --
और -इस आग को --
राख में दबाए फिरती हु --"
वाह हीर जी....आपका अंदाज़ और आपकी शैली......क्या बात है...पहला वाला सबसे अच्छा लगा.....सूरज को नंबर हमें भी दे दो :-)
bahut badhiya likha hai. rajendra ji ka link dekar bahut acha kiya....
हाँ; उन हजारों नंगे बदनों के लिए
हम जरुर आयेंगे ....
जो देश-प्रेम की भावना मन में लिए
झंडा फहराने जायेंगे .....!!
क्या बात है हरकीरत जी!! इन कविताओं में तो एक अलग ही हरकीरत के दर्शन हुए. बहुत खूब. शुभकामनाएं.
वह मुस्कुराकर बोला -
प्रधानमंत्री को मेरी क्या जरुरत
वह तो मंच पर खड़े होकर
समाजवाद लायेंगे ....
हाँ; उन हजारों नंगे बदनों के लिए
मैं जरुर आऊंगा ....
जो देश-प्रेम की भावना मन में लिए
झंडा फहराने जायेंगे .....!!
वाह ...बहुत खूब यह सुन्दर विचार वार्ता ...आपकी कलम और आपके ख्याल अद्भुत ...।
कुँवर जी .
आप 'जी' न भी लिखते तो बुरा न मानती ...
आप मुझ से बड़े हैं ...साहित्य की दृष्टि से भी ...
आपका हीर कहना वाजिब लगता ...
इसमें अपनत्व भी तो है ....
हाँ; उन हजारों नंगे बदनों के लिए
हम जरुर आयेंगे ....
जो देश-प्रेम की भावना मन में लिए
झंडा फहराने जायेंगे .....!!
बहुत उम्दा जी,
वही बात कहूँगा जो सब कह रहे हैं ... आपकी युसुअल स्टाइल से हट कर हैं ये रचनाएं ... लेकिन गणतंत्र पे सूर्य से बात .... जनता की सर्वोच्च सत्ता से बातचीत है .... :)
सादर
मन को गहरे तक उद्द्वेलित करने वाली कविताएँ.बधाई एवं शुभकामनाएँ.
मन को गहरे तक उद्द्वेलित करने वाली कविताएँ.बधाई एवं शुभकामनाएँ.
वाह!क्या खूब अन्दाज़-ए-बयाँ है…………अति सुन्दर रचनायें।
गणतंत्र दिवस की बधाई और हार्दिक शुभकामनायें ।
suraj se baaten , aur aadesh... sabke vash ki baat nahi
gantanter aur thand ka ek sath sunder varnn . netaon ke kore bhashnon per shandar vyangya .
:)
ek anootha prayog..dil baag baag ho gaya.. :)baaton baaton mein vo kitna kuch keh gaye!
बहुत ही बढ़िया अंदाज़ रहा ...सूरज से बातचीत का
सुन्दर रचनाएं
तीनों नज्में पूर्व की भांति अपूर्व ...
पहली नज़्म ......इक शालीन व्यंग
दूसरी नज़्म .....धूप गुनगुनी
तीसरी ..........अपनी बिरादरी
नया अंदाज़...
गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं.
kaafi acchi poems hain
nice blog
chk out my blog also
http://iamhereonlyforu.blogspot.com/
सुन्दर कल्पना, सशक्त अभिव्यक्ति के साथ मन में एक भावना जागृत हुयी कि आपकी कविताओं को पढ़ते रहना मुझे अच्छा लगेगा. गणतंत्र दिवस से गण तक नज़्म ने विशेष अनुभूति कराई.
नए अंदाज़ में गणतंत्र दिवस की खूबसूरत कवितायें इस बात की गवाह हैं कि आप की कलम सूरज की आँखों को भी चकाचौध कर सकती है !
गणतंत्र जिंदाबाद !
गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं !
सूरज को लेकर ये चुलबुली नज्में बड़ी प्यारी लगीं ,
बहुत बधाई आपको ,सलामत रहिये !
शब्दों-बिम्बों की आपकी बुनावट अनुपम होती है, हीर जी ! सूरज से आपकी दोस्ती है .......इसीलिये इतनी बातें हो पाती हैं ...बातें अच्छी हुईं. मगर तकलीफ सूरज को भी है ....उसे भी अपनी उदासी धोने के लिए मजबूर होना पड़ता है ..किरणें उसकी बात ज़ो नहीं मानतीं ....बादलों से रास करने लगती हैं ....तभी तो उसे धुंध की तरफ निहारना पड़ता है ......पूछना पड़ता है "किरणें कहाँ गयीं मेरी ?"
हरकीरतदी बहुत सुन्दर रचनाये है
माफ़ी चाहती हू व्यावसाईक व्यस्तता के कारण मै बहुत दिनों से यहाँ नहीं आ पाई
आपको नव वर्ष तथा गणत्रंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाये !
वह मुस्कुराकर बोला -
प्रधानमंत्री को मेरी क्या जरुरत
वह तो मंच पर खड़े होकर
समाजवाद लायेंगे ....
हाँ; उन हजारों नंगे बदनों के लिए
हम जरुर आयेंगे ....
बेहतरीन...
कोरल जी,
अच्छा किया आपने अपनी तस्वीर लगा ली ...
अब एक और इल्तजा है अपने असली नाम से ही लिखें ...
लगता है सूर्य के साथ आपकी अच्छी बनती है,!
शब्दों का संगम काफी अच्चा है, बहुत बढ़िया!
आज फिर दुबारा पढ़ा आपके सूरज के साथ हुए संवाद को ....समझ आया कि क्या महता है जिन्दगी में प्रकाश की और जब सूरज आपसे नज्म सुनाने को कह रहा था तो ....
सुनो ! अब आऊंगा तो एक शर्त पर
पहले गणतंत्र दिवस पर....
कोई जोशीली सी नज़्म सुना दो
मेरे देश के नौजवाओं में ...
जरा सा जोश तो ला दो ...
आपने पुरे जोश के साथ .....हमे भी सुना दी ....आपका आभार ...हमें भी सूरज कि महफ़िल में शामिल करने के लिए .....
और आज अपने ब्लॉग पर
"जिन्दगी है एक दिन "...
मै तो रह ही गया था इतनी खूबसूरत गीत पढने से . सूरज की वाक पटुता अच्छी लगी और आपकी गीतों में शब्दों और भावो की जुगलबंदी सूरज के रथ की तरह देदीप्यमान .
log to chand sitaro se bate kiya krte hai our khush hua krte hai aap hai ki guftgu our chhed chhad vo bhi suraj se ! masha allah kya bat hai .
बहुत ही बढ़िया अंदाज़ रहा ...सूरज से बातचीत का
सुन्दर रचनाएं
नमस्कार........ आपका कि कविता मन को छु गयी......
मैं ब्लॉग जगत में नया हूँ, कृपया मेरा मार्गदर्शन करें......
http://harish-joshi.blogspot.com/
आभार.
सूरज से छेड़ छाड़, धन्य हुआ होगा वह भी अपने नसीब पर इठलाता ...
हम ठिठुरता गणतंत्र कैसे मनाएं ...मगर उन हजार नंगे बदनों के लिए जरुर आयेंगे ...
व्यवस्था ,सत्ता और एक कोने में ठिठुरते व्यक्ति पर विरोधाभास है हमरे गणतंत्र का ...
हमेशा की तरह बेहद खूबसूरत क्षणिकाएं!
बहुत बहुत बहुत दिनों के बाद आपके यहाँ आ सका और आपको पहले की तरोताजा पा कर खुद भी प्रसन्न हुआ. रचनाओं के बारे में क्या कहूँ, "कुछ चीज़ें कभी नहीं बदलतीं"...fb.पर अब आप जाने क्यों मुझे न्ज्त नहीं आतीं.
बहुत बहुत बहुत दिनों के बाद आपके यहाँ आ सका और आपको पहले की तरोताजा पा कर खुद भी प्रसन्न हुआ. रचनाओं के बारे में क्या कहूँ, "कुछ चीज़ें कभी नहीं बदलतीं"...fb.पर अब आप जाने क्यों मुझे न्ज्त नहीं आतीं.
बहुत बहुत बहुत दिनों के बाद आपके यहाँ आ सका और आपको पहले की तरोताजा पा कर खुद भी प्रसन्न हुआ. रचनाओं के बारे में क्या कहूँ, "कुछ चीज़ें कभी नहीं बदलतीं"...fb.पर अब आप जाने क्यों मुझे नज़र नहीं आतीं.
कल 26/01/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
धन्यवाद !
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