आज की तम्हीद बड़ी मायने रखती है ....आज इक अज़ीज़ मित्र मुफ़लिस (अब दानिश भारती )जी का जन्म दिन है .....तोहफे में पहली नज़्म उनके नाम ......मुफ़लिस जी से मेरा परिचय भी बड़ा रोमांचक है ....न वो तब ब्लोगर थे और न मैं .....उनकी एक ग़ज़ल किसी पत्रिका में छपी थी ....ग़ज़ल पसंद आई....नम्बर भी नीचे दिया गया था ....मैंने तुरंत समस किया '' मुफ़लिस जी आपकी ग़ज़ल बेहद पसंद आई '' ....जवाब में उन्होंने लिखा....'' शुक्रिया जनाब ..'' ...मैंने फिर कहा...'' मैं 'जनाब' नहीं 'जनाबी हूँ'' ....और सितम देखिये वो आज भी कभी मुझे मेल करते हैं तो 'जनाबी' ही लिखते हैं .... कई बार जब ज्यादा परेशां होती तो उन्हें फोन करती ....कहती..., '' जी चाहता है ख़ुदकुशी कर लूँ ''....वे हंस कर कहते... '' कैसे करोगी ...? फंदा मत लगाना उससे जीभ बाहर निकल आती है ''...और मैं उस कल्पना से खिलखिलाकर हंस पड़ती .......
मुफ़लिस जी बहुत ही अच्छे इंसान हैं ....दिल के भी उतने ही सरल ...साफ...और नेक ....कई बार मुझे दुविधाओं में सलाह देते ....हिदायत देते ..और मशवरा भी ....
आज के दिन दुआ है रब्ब उन्हें कामयाबी की हर मंजिल दे ...उनके फ़न को और हुनर बख्शे ...वे अदब नवाजों में गिने जायें ....
आज फिर पेश हैं कुछ क्षणिकाएं .....
(१)
तेरा जन्म ....
पत्तों के ....
लबों की ये थरथराहट ....
शाखों की ये मुस्कराहट ...
आँखों में अज़ब सी चमक लिए ...
अजनबी सी ये सबा ...
आज ये ....
कैसा पता दे रही है ....?
(२)
तेरी याद ...
जब भी ....
तेरी याद का परिंदा
मेरी छत की मुंडेर पर
बैठता है ....
मेरे मकान की नीव हिलने लगती है
आ इक बार ही सही ....
अपनी मोहब्बत की इक ईंट लगा जा
कहीं ये ढह न जाये .....!!
(३)
ख़त .....
कुछ अक्षर ...
जो कभी तुम्हारे सीने पर
सर रख कर खूब खिलखिलाए थे
आज फिर भेजे हैं ख़त में
हो सके तो इन्हें ...
रोने देना ....
मोहब्बत अब ....
जिंदा रहना चाहती है .....!!
(४)
सिसकता चिराग़ .....
आज ये फिर ...
तेरी कमी सी
जाने कैसी खली है ...
के मेरी कब्र के......
टूटे आले पर रखा रखा चिराग़
सिसक उठा है ....
मेरी उम्र की मीआद
अब घटने लगी है ........!!
(५)
ज़िक्र ...
उनका ज़िक्र ...
कुछ यूँ करती है सबा
के इस खुश्करात के सीने पर
उग आता है .....
मीठा - मीठा सा दर्द
इश्क़ का .......!!
(६)
रंग.....
शायद मैं ....
कागज़ का वह टुकड़ा थी
जहाँ मोहब्बत का कोई हर्फ़
रंग नहीं लाया .....
ऐसे में तुम ही कहो
मैं तुम्हारे लिए
मोहब्बत का हर्फ़
कैसे लिखती .....!!
Wednesday, November 24, 2010
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107 comments:
मुफलिस जी को जनम दिन की हार्दिक शुभकामनाएं ...
'मोहब्बत की इक ईंट' ... बहुत खूब ... सिर्फ ये ही है जो मकान बचा सकती है ...
सारी क्षणिकाएं एक से बढ़ कर एक ... बेहतरीन प्रस्तुति ...
सबसे पहले तो मुफलिस जी के जन्म दिन की बधाई देने का अवसर प्रदान करने के लिए शुक्रिया कबूल करें....जब आपको शुक्रिया देने यहाँ आयें तो मेरी भी बधाई स्वीकार करें...
सुंदर नज्मों के तोहफे दिए हैं आपने...'जनाबी' का जवाब नहीं..!
डर है कि आपके तोहफे देख सभी अपना जन्मदिन याद न दिलाने लगें...वैसे मैं ..बसंत पंचमी..
दूसरी नज्म..
जब भी ....
तेरी याद का परिंदा
मेरी छत की मुंडेर पर
बैठता है ....
मेरे मकान की नीव हिलने लगती है
...जबरदस्त है।
..बधाई।
Ahaa..bade din baad aapko padhna hua..muflis ji se abhi taza taza parichay hua hai mera...bahut kuch janna baki hai..par aapne jo baaten likheen padh kar anand aya..kshanikayen bahut bahut bahut khubsurat hain.. Sisakta chirag to royen tak me ujala kar gaya...muflis jee ko janmdin ki dher sari shubhkamnayen...
Saadar
Aatish
मुफलिस जी को जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं ...
सभी क्षणिकाएँ बेहतरीन हैं.... 'ख़त ' और ' ज़िक्र ' मुझे बहुत अच्छे लगे....
(६)
रंग.....
शायद मैं ....
कागज़ का वह टुकड़ा थी
जहाँ मोहब्बत का कोई हर्फ़
रंग नहीं लाया .....
ऐसे में तुम ही कहो
मैं तुम्हारे लिए
मोहब्बत का हर्फ़
कैसे लिखती .....!!
बहुत सुंदर !
सभी क्षणिकाएं एक प्रभाव छोड़ती हैं
बहुत खूब.. सुन्दर..
बेशक सारी क्षणिकाएं एक से बढ़ कर एक हैं
'ख़त ' और सिसकता चिराग़ 'खास पसंद आई.
.........
दानिश साहब को जन्मदिन की हार्दिक बधाईयाँ.
कल रात मुफलिस जी की पोस्ट पढ़ी । लग रहा था कि जन्मदिन की बात कर रहे हैं । लेकिन जल्दी में सुबह के लिए छोड़ दिया । सुबह आपकी पोस्ट पर नज़र गई तो पता चला कि मेरा अंदाज़ा सही था ।
बेशक मुफलिस जी जैसे इंसान कम ही मिलते हैं । उन्हें जन्मदिन की हार्दिक बधाई ।
बाकि शाम को ही पढ़ पाएंगे
... ek-se-badhakar-ek rachanaayen ... behatreen !!!
ek-se-badhakar-ek rachanaayen ... behatreen !!!
shabd kam pad jaate hain hamare liye,behtreen panktiyan likhna mamuli baat hai aapke liye
काव्य की गरिमा ,
महत्त्व
और सफलता
बनाए रखने में
आपकी लेखनी का जो योगदान रहा है
उसे सभी पाठकों और समालोचकों द्वारा
हमेशा हमेशा सराहा जाता रहा है
और सराहा जाता रहेगा
समय और समाज के कुछ अन-छुए पहलुओं को
उजागर कर, उन्हें अनुपम शब्दों का रूप दे कर
काव्य धारा में सम्मिलित कर पाना
आपकी स्वच्छ प्रवृति
और सशक्त रचना-क्षमता का परिचायिक है .
और हाँ ... !
भूमिका (तम्हीद).....
हर हाल में क्षणिकाओं से कम महत्वपूर्ण है
अभिवादन .
पहले तो तुम्हारी क्लास लगा लूं ...
आत्महत्या का विचार भी कभी आया क्यूँ मन में ....बुरी बात ...
मुफलिस जी को जन्मदिन की अनंत शुभकामनायें ....
क्षणिकाओं की तो क्या कहूँ ....एक से बढ़कर एक ...
मोहब्बत की ईंट , या सीने पर सर रख कर खिलखिलाए शब्द ....
और मोहब्बत का हर्फ़ ...ओह !
तुम्ही कहो आभार प्रेम का मनाती कैसे !!
हमेशा की तरह बहुत खूबसूरत हर रंग के शब्द !
दानिश भारती जी को जन्मदिन की शुभकामनायें ..
ये नन्ही नज्में एक से बढ़ कर एक ....
जो कभी तुम्हारे सीने पर
सर रख कर खूब खिलखिलाए थे
आज फिर भेजे हैं ख़त में ...मोहब्बत की एक ईंट ...अब किसे छोडूँ ? सारी ही तो पसंद आ रही हैं ....बहुत खूबसूरत ...
याद का परिंदा मकान की नींव तो क्या तब भी पीछा नहीं छोड़ता जब शरीर की इमारत सूखे पत्तों की मानिंद हिलने लगती है...
दानिश जी को मुबारकबाद...वैसे मुफलिस (हम जैसा) कोई भी हो, ऐसे ही होते हैं...
जय हिंद...
मुफलिस जी को जनम दिन की हार्दिक शुभकामनाएं ...क्षणिकाएँ बेहतरीन
फंदा मत लगाना उससे जीभ बाहर निकल आती है ''......hamne kabhi ye socha hi nahi......:P badi gahri soch hai muflis jee kee :P.......
janamdin pe bahut bahut badhai unko meri aur se bhi......:)
मैं तुम्हारे लिए
मोहब्बत का हर्फ़
कैसे लिखती .....!!
bahut khub.....!!waise aap jaiso se hi ham seekhte hain, kuchh na kahen, fir bhi aap hamare liye meel ka pathhar ho:)
शायद मैं ....
कागज़ का वह टुकड़ा थी
जहाँ मोहब्बत का कोई हर्फ़
रंग नहीं लाया .....
ऐसे में तुम ही कहो
मैं तुम्हारे लिए
मोहब्बत का हर्फ़
कैसे लिखती .....!!
वैसे तो सारी क्षणिकाएं एक से एक बढ़कर है , पर यह दिल की गहराई में उतर गयी .....बहुत खूब..... मुफलिस जी को जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं ...शुक्रिया
कुछ अक्षर
जो कभी तुम्हारे सीने पर
सर रख कर खूब खिलखिलाए थे
आज फिर भेजे हैं ख़त में
हो सके तो इन्हें
रोने देना
मोहब्बत अब
जिंदा रहना चाहती है
दिल की गहराइयों से निकली एक कोमल कविता।
मुफलिस जी को जन्म दिन की हार्दिक शुभकामनाये
ये क्षणिकाये , केवल क्षण भर के लिए नहीं अपितु दीर्घ काल तक प्रभावी होगी . नमन है आपकी कल्पनाशीलता को .
Sabse pahle "mufalis ji" ko janmdin ki bahut-2 badhai.
aur aapki kshadikaon ka to koi jabab nahi hamesa ki tarah me aapki kashadikayen padhkar .. kho sa jata hun.
bahut-2 badhai.
जब भी ....
तेरी याद का परिंदा
मेरी छत की मुंडेर पर
बैठता है ....
मेरे मकान की नीव हिलने लगती है
आ इक बार ही सही ....
अपनी मोहब्बत की इक ईंट लगा जा
कहीं ये ढह न जाये .....!!
........
शायद मैं ....
कागज़ का वह टुकड़ा थी
जहाँ मोहब्बत का कोई हर्फ़
रंग नहीं लाया .....
ऐसे में तुम ही कहो
मैं तुम्हारे लिए
मोहब्बत का हर्फ़
कैसे लिखती .....!!
main kaun sa harf likhun jo kahe ki aapki kalam mere jehan per asar karti hai
मुफ़लिस जी को जन्मदिन की हार्दिक बधाइयाँ.
क्षणिकाएँ बहुत अच्छी लगीं...खासकर जिक्र...और सिसकता चिराग...
आभार आपका!
@ वैसे मैं ..बसंत पंचमी..
हा...हा...हा....
देवेन्द्र जी पूरा ही बता देते ....
चलिए पाबला जी तो हैं ही बताने के लिए ......
चलिए आपको तोहफा तो पसंद आया ....
यहाँ तो मुफलिस जी दानिश बनकर आये .....
और आलोचक बनकर चले गए ....
हरकीरत जी,
हर बार की तरह फिर वही आलम है कहने को कुछ नहीं बचा....इतनी जल्दी आपकी पोस्ट आई बहुत अच्छा लगा.......मेरी और से दानिश भारती जी को सालगिरह मुबारक....तेरी याद....ख़त....सिसकता चिराग....क्या कहूँ....सबसे खास लगी तेरी याद...वाह...सुभानाल्लाह|
कई बार जब ज्यादा परेशां होती तो उन्हें फोन करती ....कहती..., '' जी चाहता है ख़ुदकुशी कर लूँ ''....
ख़बरदार जो आपने ऐसा फिर कभी सोचा.....जिंदगी एक नेमत है जो खुदा ने बक्शी है.....खुद से मुहब्बत लाज़मी है....जो खुद को न चाह सका वो दूसरो की मुहब्बत का दम कैसे भर सकता है.....खुदा आपको महफूज़ रखे.....आमीन|
और हाँ आपसे एक शिकायत है मुझे मैंने आपसे पहले कई बार पूछा था की क्या आपकी कोई किताब प्रकाशित हुई है पर आपने कभी उसका जवाब नहीं दिया अभी कुछ दिन पहले मैंने आपकी टिप्पणीयों में पढ़ा की आपकी एक किताब आ चुकी है और दूसरी आने वाली है मुझे बहुत बुरा लगा इससे की आपने मुझे उसके बारे में क्यों नहीं बताया?
जब भी ....
तेरी याद का परिंदा
मेरी छत की मुंडेर पर
बैठता है ....
मेरे मकान की नीव हिलने लगती है
क्या बात है ....गजब के शब्द और यह पंक्तियां बेमिसाल हो गई आपकी लेखनी से निकल के ...।
एक बात कहूँ हीर जी, हमें आपके क्षणिकाओं के ज्यादा उसकी प्रस्तावना पसंद आती है... मैं एक पाठक (कई बार साइलेंट रीडर) के तौर पर आपसे गुज़ारिश करूँगा की आप एक ब्लॉग गद्य का भी बनायें... वो मुझे (और उम्मीद करता हूँ ) सबको रुचेगा... कम से कम डाइरी ही सही.. इस पर विचार करें... क्योंकि इस दर्द भरे नगमे का कोई जवाब नहीं होता और मैं अक्सर अपने को असमर्थ पाता हूँ. आप समझ रही हैं ना ?
इमरान जी ,
मेरी तो प्रोफाइल में ही पुस्तक का ज़िक्र है .....
जो पंक्तियाँ लिखी हैं वो उसी पुस्तक का अंश हैं ....
फिर भी मुझे लगा कि मैंने जवाब दिया है ....क्षमा प्रार्थी हूँ अगर नहीं दे पाई तो ....
''इक- दर्द '' जिसके प्रकाशक कोलकत्ता के हैं ....और अब दूसरी ''दर्द की महक '' जिसका प्रकाशन 'हिंद -युग्म' कर रहा है ....
मुफ्लिस जी को जन्मदिन की बहुत बहुत बधाईयाँ\ सभी रचनायें एक से एक बडः कर हैं किस की तारीफ करूँ। सच मे हरकीरत जी आप दिल से लिखती हैं। बधाई।
मुफलिस जी आपको जन्म दिन की हार्दिक शुभकामनाएं ...
बहुत खूबसुरत नज्में है
सागर जी ,
अभी कुछ समय मैं गद्य की ओर नहीं जाना चाहती ....
कुछेक कहानियाँ लिखी पड़ी हैं .....
पर अगर मैंने गद्य की ओर ध्यान दिया इस ओर से ध्यान बिलकुल हट जायेगा .....
आना तो है ही कभी .....
अभी घर में भी व्यस्तता बहुत ज्यादा रहती है ....
sabhi nazme bahut achchhi.
bhav dil ko chhoote nahi dil me sama jaate hain.
हीर जी,
शुक्रिया जो आपने जवाब दिया.....काफी पहले मैंने पुछा था की ये 'इक-दर्द' जहाँ से आपने ये संकलित किया है अगर किताब है तो किसकी है?....कोई जवाब नहीं आया था आपका और हो सकता है की आपने दिया भी हो दरअसल मैं पहले किसी ब्लॉग पर टिप्पणी छोड़ने के बाद दुबारा नई पोस्ट पड़ने ही जाता था|
क्या ये किताबें आगामी दिल्ली पुस्तक मेले में मिल सकेंगी?
अगर हाँ.....तो कृपया विवरण दें......धन्यवाद|
तेरी याद का परिंदा
मेरी छत की मुंडेर पर
बैठता है ....
मेरे मकान की नीव हिलने लगती है
आ इक बार ही सही ....
अपनी मोहब्बत की इक ईंट लगा जा
कहीं ये ढह न जाये .....!!
बेहतरीन प्रस्तुति !
सारी की सारी कवितायें अच्छी लगीं। दानिश साहब को जन्मदिन की बधाईयाँ।
नहीं इमरान जी , इस पुस्तक की जितनी भी प्रतियां छपी थीं खत्म हो चुकी हैं ......
अगर भविष्य में पाठकों की मांग हुई तो दूसरा संस्करण छपवाने की सोचूंगी .........!!
मुफलिस जी को जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं .
तेरा जन्म, तेरी याद,खत , सिसकता चिराग्……………गज़ब ढा दिया हर क्षणिका जैसे दर्द की सिसकती चादर्।
जब भी ....
तेरी याद का परिंदा
मेरी छत की मुंडेर पर
बैठता है ....
मेरे मकान की नीव हिलने लगती है
आ इक बार ही सही ....
अपनी मोहब्बत की इक ईंट लगा जा
कहीं ये ढह न जाये .....!!
'हीर' जी स्तब्ध हूँ आपकी इस कविता से ! दिलो-दिमाग पर छा गई है और चाहने पर भी पीछा नहीं छोड़ रही। बहुत खूब लिखती हैं आप…
खुदा आपकी कलम में यह तड़प… यह आग… यह दर्द बनाये रखे।
आपके कह्यलों की गहराइयों का जबाब नहीं .
यह सबसे अच्छी लगी
जब भी ....
तेरी याद का परिंदा
मेरी छत की मुंडेर पर
बैठता है ....
मेरे मकान की नीव हिलने लगती है
आ इक बार ही सही ....
अपनी मोहब्बत की इक ईंट लगा जा
कहीं ये ढह न जाये ....
मुफलिस जी को जन्मदिन की शुभकामनायें!
सभी क्षणिकाएं बेहद सुन्दर हैं!!
““कागज़ का वह टुकड़ा थी
जहाँ मोहब्बत का कोई हर्फ़
रंग नहीं लाया .....’
बिना कलम के कागज़ तो कोरा ही रहेगा :)
kya kehoon...mujhe to yahan baar baar aana hai :)
आदरणीय हरकीरत'हीर'जी
नमस्कार !
एक से बढ़ कर एक ... बेहतरीन प्रस्तुति ...
....बहुत खूबसूरत
क्षणिकाएं : ही क्यों कहते हैं इनको.... ये जिंदगी का जायका बताती हैं.... कई बार बदल भी देती हैं....
मेरी बक बक :
कुछ मुस्कुराते हुए पल
और कुछ नाराज़ से लम्हे......
एक ही बात कहते हैं...
देखो तो सही...
मोहबत का हर हर्फ़ रंगीन है.
सुंदर प्रस्तुति ; प्रणाम
हो सके तो इन्हें
रोने देना
मोहब्बत अब
जिंदा रहना चाहती है !!मुफलिस जी की जन्मदिवस में नज्मों की सौगात दिल को छू गई !आभार प्रकट करती हूँ !
8/10
आपकी नज्में गहरा असर छोडती हैं, पोस्ट से हटने के बाद भी पीछा नहीं छोड़तीं. यह नज्में अमृता प्रीतम की याद दिलाती हैं.
क्या आपने अपनी नज्मों को किसी के भी स्वर में रिकार्ड किया है.
दानिश भारती जी को मुबारकबाद
अपनेपन के जज़्बे को पेश करती भूमिका बहुत अच्छी लगी...
बडी बडी खुशियां हैं छोटी छोटी बातों में.
और हां हर नज़्म बहुत ही खूबसूरत है.
मित्रो ,
'हिन्दी ब्लागरों के जन्मदिन, ज़िंदगी के मेले, इंटरनेट से आमदनी, कल की दुनिया और कम्प्यूटर सुरक्षा' ब्लॉग वाले श्री बी.एस.पाबला जी से जब मैंने पूछा कि वे आज कल ब्लोगरों का जन्मदिन क्यों नहीं बता रहे तो मुझे ये दुखद समाचार मिला .....कि पाबला जी की माता जी श्रीमती हरभजन कौर का 18 नवम्बर 2010 को अपरान्ह देहान्त हो गया है। कुछ दिन पहले ही उनके पुत्र गुरुप्रीत सिंह एक सड़क दुर्घटना में घायलहो गए थे ...उन्हें अस्पताल में भर्ती किया गया था। अपने पोते के घायल होने का समाचार दादी बर्दाश्त नहीं कर सकीं और उन्हें ब्रेन हेमरेज हो गया। उन्हें तत्काल अस्पताल ले जाया गया। चिकित्सकों के भरपूर प्रयास के बावजूद उन्हें बचाया नहीं जा सका।
इधर खुशदीप जी....डॉ दराल जी के पिता जी का भी दुखद समाचार मिला .....दराल जी के ब्लॉग पर ही पता चला महावीर शर्मा जी भी नहीं रहे ...और अब पाबला जी की माता जी ......
घर से बड़े बुजुर्गों का चले जाना बेहद दुखद होता है .....
मेरे सभी को श्रद्धासुमन अर्पित हैं ......!!
गुरप्रीत जी के लिए दुआ है वे जल्द स्वस्थ लाभ करें ......
उस्ताद जी ,
निचली कुछ पोस्टों में मैंने अपनी आवाज़ में रेकार्डिंग की है ....
और भी कुछ अज़ीज़ मित्रों की राय है कि मैं सम्पूर्ण नज्मों की c d बनवाऊं .....
देखती हूँ कर पाती हूँ या नहीं ....पहले संकलन आ जाये .....
एक ठो CD हम भी खरीदेंगे......
आप बनवाइए तो सही...
इसके लिए अग्रिम शुभकामनाएं स्वीकार कीजिए.
हीर जी, सभी क्षणिकाएं बहुत ही सुंदर है .... बेहद गहरे भावों से भरी हुई
"जिस पर हमारी आँख ने मोती बिछाए रात भर,
भेजा वही कागज़ उसे, हमने लिखा कुछ भी नहीं."
मोहतरम मुफलिस जी (दानिश भारती) को आदाब और जन्मदिन मुबारक....
Nice post .
Dili mubarakbad qubool farmayen .
ज़ालिम कौन Father Manu या आज के So called intellectuals ?
एक अनुपम रचना जिसके सामने हरेक विरोधी पस्त है और सारे श्रद्धालु मस्त हैं ।
देखें हिंदी कलम का एक अद्भुत चमत्कार
ahsaskiparten.blogspot.com
पर आज ही , अभी ,तुरंत ।
महर्षि मनु की महानता और पवित्रता को सिद्ध करने वाला कोई तथ्य अगर आपके पास है तो कृप्या उसे कमेँट बॉक्स में add करना न भूलें ।
जगत के सभी सदाचारियों की जय !
धर्म की जय !!
कुछ अक्षर ...
जो कभी तुम्हारे सीने पर
सर रख कर खूब खिलखिलाए थे
आज फिर भेजे हैं ख़त में
हो सके तो इन्हें ...
रोने देना ....
मोहब्बत अब ....
जिंदा रहना चाहती है
एक से बढ़ कर एक ... बेहतरीन
हरकीरत जी , आखिरी क्षणिका --रंग --सबसे ज्यादा पसंद आई । कितनी मोहब्बत भरी मासूमियत झलक रही है इन पंक्तियों में ।
पत्तों के ....
लबों की ये थरथराहट ....
शाखों की ये मुस्कराहट ...
आँखों में अज़ब सी चमक लिए ...
अजनबी सी ये सबा ...
आज ये ....
कैसा पता दे रही है ....?
बहुत खूब हरकीरत जी. लेकिन ये खुदकुशी का खयाल आता ही क्यों था? अब इसे फटकने भी न दीजियेगा.
अपनी मोहब्बत की इक ईंट लगा जा
कहीं ये ढह न जाये
सभी क्षणिकाएं एक से बढ़कर एक.
प्रस्तावना और क्षणिकाएं दोनों ही अपनी बात कहने में प्रभावशाली....
सुन्दर भावाभिव्यक्तियोँ के लिए बधाई।मुफलिस जी को जन्मदिवस की बधाई
हीर जी,
दुखद समाचार से खेद हुआ.....खुदा सभी मरहूमों को जन्नतनशीं करे और बीमारों को फैज़ दे....आमीन
अच्छा जी, सारी किताबें ख़त्म हो गयी....एक पाठक की मांग तो हुई समझिये....और आपकी नयी किताब दिल्ली में कहाँ मिल सकेगी?
इमरान जी ,
पुस्तक का प्रकाशन हिंद-युग्म वाले शैलेश जी कर रहे हैं ....
क्या आप कभी हिंद-युग्म पे नहीं गए .....?
आप पुस्तक के लिए हिंद- युग्म से ही संपर्क करें ......
देखिये .....hindyugm.blogspot.com
हीर जी,
आपके बताये लिंक पर गया.....अजी मैं सीधा-सादा बंदा....जो अभी तक एक आम आदमी है और शायद आम ही रुखसत हो जाये..... वहां तो जी बड़े-बड़े कवि और शायरों की जमात हैं और मुझे शुरू से ही जमाते पसंद नहीं हैं....ग़ज़लें और कवितायेँ लिखना सिखया जा रहा है.....
अरे जमातें तो पागलों की होती हैं कवि और शायर बनाये नहीं जा सकते हाँ तुकबंदी सीखी जा सकती है पर उससे होगा क्या? हुनर तो रब से आता है जब भाव उठते हैं तो वो शब्दों और व्याकरण की सीमाओं में नहीं बंधते......
कबीर, ग़ालिब जैसे ने किसी से कोई शिक्षा ली थी क्या?
खैर ये तो संसार की रीत है....इसका रोना रोने से हासिल कुछ नहीं होगा.....आप मुझे ये बताओ की आपकी किताब बाज़ार में खरीद का ली जा सकती है या नहीं? वैसे एक बात बताऊँ आपको एक दिन फुर्सत में मैंने आपके ब्लॉग की सारी पोस्ट पढ़ डाली थी|
काश आप दर्द के आलावा अध्यात्म और सूफियाना कलाम भी लिखती.....तो मुहावरे की भाषा में चार चाँद और लग जाते...चार अभी हैं चार और लग जाते|
वैसे तो हर क्षणिका अपने आप में प्रभावशाली है मगर इसका तो जवाब नहीं ,
जब भी ....
तेरी याद का परिंदा
मेरी छत की मुंडेर पर
बैठता है ....
मेरे मकान की नीव हिलने लगती है
आ इक बार ही सही ....
अपनी मोहब्बत की इक ईंट लगा जा
कहीं ये ढह न जाये .....!!
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति,
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
फूलों और किताबों से आरास्ता घर है
तन की हर आसाइश देने वाला साथी
आँखों को ठंडक पहुँचाने वाला बच्चा
लेकिन उस आसाइश, उस ठंडक के रंगमहल में
जहाँ कहीं जाती हूँ
बुनियादों में बेहद गहरे चुनी हुई
एक आवाज़ बराबर गिरयः करती है
मुझे निकालो !
मुझे निकालो
-parveen shakir.
pay my regard and wishes to muflis ji.....
इमरान जी ,
हिंद - युग्म निस्वार्थ रूप से कई सेवाएं दे रहा है .....
हिंदी में टंकण ...ग़ज़ल ...पुरस्कार ....
खैर जब पुस्तक छपेगी आपको जरुर बताउंगी ....
रही अध्यात्म और सूफियाना कलाम की बात ....
जब मन हुआ इस ओर आने का तो जरुर आऊँगी .....
शुक्रिया......!!
अनुराग जी ,
आपने वो आवाज़ सुनी .....
शुक्रिया ......!!
हीर जी हम इंतज़ार करेंगे.....कभी वक़्त मिले तो अनीता जी और अमृता जी (मेरे ब्लॉग पर मेरी टॉप लिस्ट में न. -३ और २) को ज़रूर पढियेगा ......ऐसी कवितायेँ जो सीधे चेतना से उठती हैं और चैतन्य के चरम तक जाती हैं बिना व्याकरण और मात्राओं की सीमाओं के|
और यही वजह है की आपका कलम भी मुझे इसलिए अच्छा लगता है क्योंकि आप भी दिल से लिखती हैं......शुभकामनायें|
शायद मैं ....
कागज़ का वह टुकड़ा थी
जहाँ मोहब्बत का कोई हर्फ़
रंग नहीं लाया .....
ऐसे में तुम ही कहो
मैं तुम्हारे लिए
मोहब्बत का हर्फ़
कैसे लिखती .....!!
..... dil kee gahrayee se likhi ibarat kabhi n kabhi gahra asar karti hi hai....... laajawab prastuti..
बहुत प्यारी नज्में पेश की हैं....
देर से आने के लिए माफ़ी चाहता हूँ......
जब भी ....
तेरी याद का परिंदा
मेरी छत की मुंडेर पर
बैठता है ....
मेरे मकान की नीव हिलने लगती है
आ इक बार ही सही ....
अपनी मोहब्बत की इक ईंट लगा जा
कहीं ये ढह न जाये .....!!
हरकीरत जी , तेरी याद और सिसकता चिराग़ दिल को छू गई । बहुत ही मार्मिक अभिव्यक्ति है । इतनी कम पंक्तियों में बहुत व्यापक अर्थ संजोना बहुत कठिन है , जिसे आपने सहज भाव से व्यक्त कर दिया है -गागर में सागर की तरह ।
शायद मैं ....
कागज़ का वह टुकड़ा थी
जहाँ मोहब्बत का कोई हर्फ़
रंग नहीं लाया .....
ऐसे में तुम ही कहो
मैं तुम्हारे लिए
मोहब्बत का हर्फ़
कैसे लिखती .....!!
bhut umda...!!
अपनी मोहब्बत की इक ईंट लगा जा
कहीं ये ढह न जाये .....!!
वाह...
इन पंक्तियों ने बेहद प्रभावित किया....
हमारी और से भी मुफलिस जी को जन्मदिन की बधाई
हरकिरत जी,अक्सर मैं देर से पहुँचता हूँ आपके ब्लॉग पर ..क्षमा चाहता हूँ ..ऐसी नज़्म केवल आप ही लिख सकती है..ऐसा मैने अपनी जानकरी के आधार पर कहा है....
आज भी बेहतरीन..खास कर ये...
कुछ अक्षर ...
जो कभी तुम्हारे सीने पर
सर रख कर खूब खिलखिलाए थे
आज फिर भेजे हैं ख़त में
हो सके तो इन्हें ...
रोने देना ....
मोहब्बत अब ....
जिंदा रहना चाहती है .....!!
बेहतरीन क्षणिकाओं के लिए बहुत बहुत बधाई!!
ek-ek nayab motiyon ko piroya hai aapne.
jitne khoobsoorat shabd,usse khoobsoorat bhav our usse bhi khoobsoorat ehsas .wonderful !
आपकी हर नज्म एक अलग दुनिया में ले जाती है। खास बात ये है कि यहां आकर हर शख्स इसी दुनिया का होकर रह जाता है।
इतनी खूबसूरत पंक्तियों के लिए बार-बार
शुक्रिया...
आपकी छोटी छोटी कवितायें हमेशा की तरह सुन्दर तथा भावों से भरी हुई
हरकीरत 'हीर' जी,
आपकी पोस्ट पर आकर दानिश जी के जन्म दिन का पता चला. बहुत अच्छी बात है कि आपने ये जानकारी सब तक पहुंचाई. मेरा निम्न कमेन्ट उन तक पहुंचा सकें तो मेहरबानी होगी.
कुँवर कुसुमेश
------------------------------------------------------------ जनाब मुफलिश जी a/s दानिश जी,
अभी अभी हरकीरत 'हीर' जी का ब्लॉग देखा,पता चला कि 24 Nov. को आपका जन्म दिन था.आप उस रोज़ मेरे ब्लॉग पर आये और टिप्पणी भी की.मुझे वाक़ई पता नहीं था वरना मैं आपको उसकी बधाई उसी रोज़ ज़रूर देता. देर के लिए माफ़ करें और जन्म दिन पर मेरी बधाई स्वीकार करें. हाज़िर हैं मेरी निम्न पंक्तियाँ भी:-
हर पल खुशियाँ आस पास हों,कभी न हों नाशाद,
ऊपर वाले से भी मिलती रहे सदा इमदाद.
दूर बहुत हूँ करता रहता फिर भी हर दम याद,
जन्म दिवस पर क़ुबूल करिये मेरी मुबारकबाद.
हों सके तो अपनी e-mail id बताइयेगा.मेरी id मेरे ब्लॉग पर है.
कुँवर कुसुमेश
क्या बात है मै जनाब नहीं जनाबी हूं। आश्चर्य कि खुदकुशी का बिचार आया वह भी एक साहित्यकार को। सिसकते चिराग के रंग का खत में जिक्र वह भी उनके जन्म पर ।बहुत ,खूब
बेहद भावपूर्ण अभिव्यक्ति.........
http://saaransh-ek-ant.blogspot.com
बेहद भावपूर्ण अभिव्यक्ति.........
http://saaransh-ek-ant.blogspot.com
लहू से तर-बतर है पैराहन सारा तमन्ना का ,
वो फिर से दर्द का दरिया नहाकर लौट आयी है !
.............बेहतरीन नज्में ! बहुत बधाई !
Many many happy returns of the day to Muflis ji.
Aapki choti choti poems bahut khubsoorat hain. Lajbaab....
choti choti sunder naqzmo ke liye regarding mem ka bahut bahut aabhar ,
मुफलिस जी को जनम दिन की शुभकामनाएं .
हमेशा की तरह सभी क्षणिकाएँ बेहतरीन हैं.बहुत खूबसूरत
आपके ब्लॉग पर आकर अच्छा लगा...........
मेरे ब्लॉग पर आपकी टिप्पणी एक बार मिली है....
आशा है की अब संवाद शून्यता नहीं रहेगी........
सादर
http://gangesh7-eminent.blogspot.com/
तेरी याद ...
जब भी ....
तेरी याद का परिंदा
मेरी छत की मुंडेर पर
बैठता है ....
मेरे मकान की नीव हिलने लगती है
आ इक बार ही सही ....
अपनी मोहब्बत की इक ईंट लगा जा
कहीं ये ढह न जाये .....!!
waaaaah!!!
behad khubsoorat.......bahot dino baad apka blog dekha...blog ka roop nikhar gaya, apki rachnao ka dard sahejte sahejte...!!!!
lajawab andaz hai aapke likhne ka qable tareef
Harkirat ji bahut dilkash hai apki kavitauen !
हीर जी,
लो आ गये न्ह्याने वीर जी!
नमस्ते!
जहाँ मेरी सोच (ब्रेकिंग न्यूज़: आई थिंक!!!) का दायरा ख़त्म होता है, उससे कोई 25000 मील आगे से आप सोचना शुरू करती हो.
जो समझ आयीं, वो तो अच्छी हैं ही.... जो नहीं आयीं, वो भी अच्छी ही होंगी!
आशीष
---
नौकरी इज़ नौकरी!
मुफलिस जी आशा है जनमदिन शानदार रहा होगा । हरकीरत, क्या क्या खयाल पालती हो और मोहब्बत की ईंट क्या, अक्षर क्या, कागज का टुकडा क्या, परिंदा क्या सारे के सारे आम शब्द एक बिल्कुल नया पेहरावा लिये दिलो दिमाग की रैम्प पर इतराते चले आते हैं ।
आज ये फिर ...
तेरी कमी सी
जाने कैसी खली है ...
के मेरी कब्र के......
टूटे आले पर रखा रखा चिराग़
सिसक उठा है ....
मेरी उम्र की मीआद
अब घटने लगी है ........!
अच्छी नज़्में
__________
मुफलिस जी को जनम दिन की हार्दिक शुभकामनाएं ...
मुफलिस जी को जनम दिन की हार्दिक शुभकामनाएं ...
सभी क्षणिकाएँ... एक से बढ़ कर एक बेहतरीन हैं!...धन्यवाद एवं बधाई!
शायद मैं ....
कागज़ का वह टुकड़ा थी
जहाँ मोहब्बत का कोई हर्फ़
रंग नहीं लाया .....
ऐसे में तुम ही कहो
मैं तुम्हारे लिए
मोहब्बत का हर्फ़
कैसे लिखती .....!!
panjabi magik
bahut hi khubsurar............
बहुत ही खूबसूरत क्षणिकाएं..बधाई !!
जब भी ....
तेरी याद का परिंदा
मेरी छत की मुंडेर पर
बैठता है ....
मेरे मकान की नीव हिलने लगती है
आ इक बार ही सही ....
अपनी मोहब्बत की इक ईंट लगा जा
कहीं ये ढह न जाये .....!!
ਹਰਕੀਰਤ ਜੀ,ਸਸਅ,ਦਿਲ ਨੂੰ ਛੂਹ ਜਾਂਦੀਆਂ ਹਨ ਤੁਹਾਡੀਆਂ ਕਵਿਤਾਵਾਂ,
जब भी ....
तेरी याद का परिंदा
मेरी छत की मुंडेर पर
बैठता है ....
मेरे मकान की नीव हिलने लगती है
आ इक बार ही सही ....
अपनी मोहब्बत की इक ईंट लगा जा
कहीं ये ढह न जाये ........
मुफलिस जी को जनम दिन की हार्दिक शुभकामनाएं ...
दानिश भारती जी को हमारी भी बधाई.
आपकी सभी छः क्षणिकाओं में की गागर में से भावों के सागर छलकते प्रतीत हो रहे हैं .
सच आप बहुत अच्छा लिखती हैं.
-विजय तिवारी 'किसलय'
सकारात्मक एवं आदर्श ब्लागिंग की दिशा में अग्रसर होना ब्लागर्स का दायित्त्व है : जबलपुर ब्लागिंग कार्यशाला पर विशेष.
बहुत गहरे उतरे शब्द शब्द!!
बहुत ही भावपूर्ण. .....सभी क्षणिकाएं ख़ूबसूरत हैं...
जब भी ....
तेरी याद का परिंदा
मेरी छत की मुंडेर पर
बैठता है ....
मेरे मकान की नीव हिलने लगती है
आ इक बार ही सही ....
अपनी मोहब्बत की इक ईंट लगा जा
मुहब्बत की ईंट .?...और कोई जां ही लगा जाए तो ?
दिल तो कमबख्त कब का लगा बैठा है..
आपकी सारी क्षणिकाएं बहुत ही मार्मिक एवं सारगर्भित हैं। आपके अंतर्मन में उठने वाले भाव- बिंम्वों का रहस्य जानने के लिए विशेष ज्ञान की जरूरत है। मेरे पोस्ट पर आपका स्वागत है।
आ इक बार ही सही ....
अपनी मोहब्बत की इक ईंट लगा जा
कहीं ये ढह न जाये .....!!
hayeeee....!! tooooooo good...qatl hai bas...kya likha hai aapne....u are a star...!!
sab ki sab bohot kamaal hai, kahan tak quote karoon..............
MOHTARIMA,
AAPKI NAZAMON MEIN DARAD KE
MOTI BIKHARE HUEY TO KHOOB MILE MAGAR KHUSHI KI JHALAK KA KOIE BHI NAHEEN NAZAR AAYA .
HOPING TO FIND SOME SHOWERS OF HAPPINESS FURTHER.
GURCHARAN NARANG
"gurcharannarang@gmail.com"
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