ज़िन्दगी अपनी चीखों से निजात पाने के लिए कई बार मुस्कराहट का नकाब ओढ़ लेती है ......और जब कभी तन्हाई में ये नकाब उतारती है तो हंसी मुआवजा मांगने लगती है ...ऐसे में भला मैं उसे क्या देती ....बस ये नज्में दे दीं .....शायद वो इससे बहल जाये ......?
पिछली बार किसी के भी ब्लॉग पे जा न सकी ....व्यस्तता रही कुछ .....मन भी उबने लगा है ....यहाँ भी अब पहले जैसा अपनापन नहीं रहा .....इस बीच अपनी पिछली पोस्टें देखीं ...टिप्पणियाँ भी .....बहुत से मित्रों ने ब्लॉग बंद कर लिया ....और कुछ ने मुह मोड़ लिया .....कुछ अच्छा लिखने वाले खामोश हो गए ....हम यहाँ कुछ पाने आये हैं या खोने पता नहीं ........
फिर कुछ क्षणिकाएं .......
(१)
मोहब्बत .....
ज़िन्दगी की चीखें लिए
जब चाँद उतर आता है
झील के आगोश में ....
लम्बी रात का काफ़िला भी
ठहर जाता है .....
अपना वायदा तोड़
सांसें लौटने तक .....!!
(२)
उम्र की हंसीं .....
यहाँ ...
कोई रात
जायका लिए नहीं आती
बस नमक के साथ
चख ली जाती है ...
उम्र की सारी
हंसी .....!!
(३)
दर्द.....
इस बदलते वक़्त में
हर चीज़ बिकती है
जमीं बिकती है ,आबरू बिकती है
हुस्न बिकता है , नाच बिकता है
ज़िस्म बिकता है ,मुस्कान बिकती है
बस दर्द नहीं बिकता ......!!
(४)
कोफ़्त ...
ले गई है
कई बार सबा
सितारों की नगरी में
अब बड़ी कोफ़्त होती है
देख चाँदनी को....
मोहब्बत के पाश
खिलखिलाते हुए ....!!
(५)
हँसी .....
फिर कुछ सवाल
हवा में खड़े हैं
ज़ेवरात में सजी
उस दूसरी औरत की हँसी
जज़्बात के सीने पर
पैर रखे ......
खिलखिला रही है .....!!
Monday, September 13, 2010
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82 comments:
दर्द भी बिकता है... यूं ही लिख दो, देखना हांथो-हाँथ बिक जाएगा...
दर्द छिपाने की वजाय रख दो बाज़ार में नीलामी के वास्ते...
बहुत जल्द कोई-न-कोई खरीददार ज़रूर आएगा...
well written...
क्या नही बिकता है इस कृत्रिमता से भरे संसार में ।
उत्कृष्ट रचनाएँ ।
यहाँ ...
कोई रात
जायका लिए नहीं आती
बस नमक के साथ
चख ली जाती है ...
उम्र की सारी
हंसी .....!!
मुहब्बत...दर्द...और हंसी...
कितना शानदार, और गहराई से लिखती हैं आप...
हरकीरत जी, आपके लेखन पर टिप्पणी कर पाना सबसे मुश्किल काम लगने लगा है.
दर्द नहीं बिकता है....
फिर कुछ सवाल
हवा में खड़े हैं
जेवरातों में सजी
उस दूसरी औरत की हँसी
जज़्बातों के सीने पर
पैर रखे ......
खिलखिला रही है .....!!
utkrist rachna....bahut badhiya.
यहाँ ...
कोई रात
जायका लिए नहीं आती
बस नमक के साथ
चख ली जाती है ...
उम्र की सारी
हंसी .....!
वाह वाह वाह और वाह.....!
यहाँ ...
कोई रात
जायका लिए नहीं आती
बस नमक के साथ
चख ली जाती है ...
उम्र की सारी
हंसी .....!!
वाह, बहुत बेहतरीन !
ज़िन्दगी अपनी चीखों से निजात पाने के लिए कई बार मुस्कराहट का नकाब ओढ़ लेती है ......और जब कभी तन्हाई में ये नकाब उतारती है तो हंसी मुआवजा मांगने लगती है ...
उफ़ --कहाँ से लाती हैं आप इतने खूबसूरत अल्फाज़ !
हम यहाँ कुछ पाने आये हैं या खोने पता नहीं ........
इतने भी बुरे हालात नहीं हैं । दर्द को खोकर भी सुकून मिलता है ।
आगे बाद में ---।
इसीलिए इसके बावजूद भी मोहब्बत को जिंदाबाद ही कहा गया है
दूसरी औरत की हँसी तड़प के अंजाम लेकर आती है...खासकर औरत के लिये... नहीं दुर्योधन के लिये भी तो....
यहाँ ...
कोई रात
जायका लिए नहीं आती
बस नमक के साथ
चख ली जाती है ...
उम्र की सारी
हंसी .....!!
सभी बहुत अच्छे हैं हंसी के पहलु .दर्द के लफ्ज़ पर यह बहुत बहुत बहुत पसंद आई ...बहुत सच्ची है यह पंक्तियाँ ..............
यहाँ ...
कोई रात
जायका लिए नहीं आती
बस नमक के साथ
चख ली जाती है ...
उम्र की सारी
हंसी .....!!
ek baar fir se asardar rachna.
यहाँ भी अब पहले जैसा अपनापन नहीं रहा .....इस बीच अपनी पिछली पोस्टें देखीं ...टिप्पणियाँ भी .....बहुत से मित्रों ने ब्लॉग बंद कर लिया ....और कुछ ने मुह मोड़ लिया .....कुछ अच्छा लिखने वाले खामोश हो गए ....हम यहाँ कुछ पाने आये हैं या खोने पता नहीं ........
पाने भी..खोने भी...या कहिये कि खोने भी...पाने भी.....
शायद ना खोने कि कोई सीमा रेखा होती है...ना पाने की...
एक से बढ़कर एक है ...'दर्द' वाली बहुत पसंद आयी
यहाँ ...
कोई रात
जायका लिए नहीं आती
बस नमक के साथ
चख ली जाती है ...
उम्र की सारी
हंसी .....!!
..बहुत खूब।
अच्छी क्षणिकाएं। बधाई।
रही बात कमेंट करने या पाने की तो आप उस पर ध्यान न दें तो बेहत्तर है। कमेंट आए या न आए, लोग पढ़ते ज़रूर हैं, भले ही अपने विचार व्यक्त न करें। इसलिए आप निरंतरता बनाए रखिए। यही क्या कम उपलब्धि है कि आपका लेखन एक जगह हमेशा के लिए सुरक्षित रहेगा :)
ਬੜੀਆਂ ਦਰਦਮਈ ਅਤੇ ਭਾਵਪੂਰਨ ਹਨ ਤੁਹਾਡੀਆਂ ਰਚਨਾਵਾਂ।ਮੈਂ ਅਕਸਰ ਪੜ੍ਹਦਾ ਅਤੇ ਸੁਣਦਾ ਹਾਂ। ਇਹ ਤੁਸੀਂ ਬੋਲ ਕੇ ਕਿਵੇਂ ਪਾਉਂਦੇ ਹੋ ਜ਼ਰਾ ਦੱਸਿਓ !!!
दूसरी और आखिरी बहुत ही ज्यादा पसंद आयीं....शुक्रिया जो आपने लिखा
यहाँ ...
कोई रात
जायका लिए नहीं आती
बस नमक के साथ
चख ली जाती है ...
उम्र की सारी
हंसी .....!
lajawab..!!
सारी क्षणिकाएं सत्य को कहती हुई ...
उम्र की हंसी ...नमक के साथ चखना ...बाकी सब बिकना ..बस दर्द नहीं बिकता और हंसी खूबसूरत कटाक्ष है ...
और यूँ मायूस न होइए ...
ले गई है
कई बार सबा
सितारों की नगरी में
अब बड़ी कोफ़्त होती है
देख चाँदनी को....
मोहब्बत के पाश
खिलखिलाते हुए ....!!
और आखिरी क्षणिका भी बहुत अच्छे लगी। सुन्दर क्षणिकाओं के लिये बधाई।
खुबसूरत रचनाएं.....
शुभकामनाएं
वाह एक से बढ़कर एक. बहुत गहरी और बड़ी बात और उतने ही कम शब्द बड़ी संयत भाषा
इस बदलते वक़्त में
हर चीज़ बिकती है
जमीं बिकती है ,आबरू बिकती है
हुस्न बिकता है , नाच बिकता है
ज़िस्म बिकता है ,मुस्कान बिकती है
बस दर्द नहीं बिकता ......!!
असल में दर्द ही तो सबके पास इफ़रात है, तब खरीदे कौन? बहुत सुन्दर क्षणिकाएं.
यहाँ ...
कोई रात
जायका लिए नहीं आती
बस नमक के साथ
चख ली जाती है ...
उम्र की सारी
हंसी .....!!waise to har rachna laazwaab hai magar in panktiyon me kahi baat kuchh khas hai .aap ki rachna hame sukoon deti ,ati sundar .
इस बदलते वक़्त में
हर चीज़ बिकती है
जमीं बिकती है ,आबरू बिकती है
हुस्न बिकता है , नाच बिकता है
ज़िस्म बिकता है ,मुस्कान बिकती है
बस दर्द नहीं बिकता ......!!
ਬਿਲਕੁਲ ਠੀਕ ਕਿਹਾ ਹੈ ਹਰਕੀਰਤ ਜੀ,
ਦਰਦ ਨਹੀਂ ਵਿਕਦਾ.....
ਦਰਦ ਵੰਡਾਉਣ ਵੀ ਵਿਰਲੇ ਹੀ ਆਉਂਦੇ ਨੇ....
ਬਹੁਤੇ ਤਾਂ ਤੁਹਾਡੇ ਦਰਦ ਦਾ ਤਮਾਸ਼ਾ ਵੇਖਣ ਆਉਂਦੇ ਨੇ...ਓਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਚਿਹਰੇ ਦੇ ਪਿਛੇ ਛੁਪਿਆ ਖੁਦਗਰਜ਼ ਹਾਸਾ ਤਾਂ ਜ਼ਰੂਰ ਵੇਖਣ ਨੂੰ ਮਿਲ ਜਾਵੇਗਾ...
ਹਰਦੀਪ
यहाँ ...
कोई रात
जायका लिए नहीं आती
बस नमक के साथ
चख ली जाती है ...
उम्र की सारी
हंसी .....!!
..............
दिन - रात जायका लिए न आएँ तो इन में जायका लाया जा सकता है....समय मिले तो शब्दों का उजाला आइएगा....शायद कुछ मीठा मिल जाए ....
क्या बात है...बहुत गहरे उतर गईं सभी..वाह!
हिन्दी के प्रचार, प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है. हिन्दी दिवस पर आपका हार्दिक अभिनन्दन एवं साधुवाद!!
दर्द भी बिकता है ...
बस झूठ मूठ का हो तब ही ..
सभी क्षणिकाएं हमेशा की तरह अच्छी लगी ...
माहौल बदला सा तो है ...सचमुच मन उचटता है कई बार ...!
झील में चांद नज़र आए थी हसरत उसकी,
कब से आंखों में लिए बैठा हूं सूरत उसकी,
इक दिन मेरे किनारों में सिमट जाएगी
ठहरे पानी सी ये खामोश मुहब्बत उसकी,
झील में चांद नज़र आए...
जय हिंद...
यहाँ ...
कोई रात
जायका लिए नहीं आती
बस नमक के साथ
चख ली जाती है ...
उम्र की सारी
हंसी .....!!
बहुत ही सुन्दर शब्दों के साथ बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
बहुत अरसे बाद लौटी हैं आप अपनी वोही जानी पहचानी कमाल की रचनाओं के साथ...ब्लॉग जगत से इतनी जल्द मत ऊबिये...लिखती रहिये क्यूँ की आप जैसा लिखती हैं वैसा लेखन ब्लॉग जगत में ढूँढना दुर्लभ है...
आप तो लफ़्ज़ों और कोमल एहसास की जादूगर हैं.
नीरज
बस दर्द नहीं बिकता ......!!
इसका कहाँ खरीदार मिलता है?
हर क्षणिका दर्द का एक नया पहलू दिखा गयी।
बेहद गहरी उतर गयीं आप इस बार्…………दिल को छू गयीं।
bas dard nahi bikta........:)
agar bikta to line lag jati, bechne walo ki..........beshak kharidne wala koi na hota......har bechne wala kahta ek ke saath sau muft..........ek dum muft.....:)
ek se badhkar ek ....aapka jabab nahi.....!!
bas dard nahi bikta........:)
agar bikta to line lag jati, bechne walo ki..........beshak kharidne wala koi na hota......har bechne wala kahta ek ke saath sau muft..........ek dum muft.....:)
ek se badhkar ek ....aapka jabab nahi.....!!
यहाँ ...
कोई रात
जायका लिए नहीं आती
बस नमक के साथ
चख ली जाती है ...
उम्र की सारी
हंसी .....!!
lajawab !!!!!!!!!!
जिदंगी के कई रंग अपनी कलम से लिख डाले।
जिन्हें वो खुद बयान ना कर सके। हर रंग अपनी अपनी जुदा कहानी कह रहा है
। और कम शब्दों में सबकुछ कह देना ये आपकी ही कलम कर सकती है
। हर क्षणिकाएं कहीं ना कहीं चोट करती है। उम्र की हँसी और हँसी ये दोनो कुछ ज्यादा ही पसंद आई।
यहाँ ...
कोई रात
जायका लिए नहीं आती
बस नमक के साथ
चख ली जाती है ...
उम्र की सारी
हंसी .....!!
Sabhi kshanikaaen dil ki gaharaaiyon tak utar jaati hai....behad shaandar
भावनाओं में गुथे गुथे शव्द ... धन्यवाद.
बस दर्द बिकता नहीं है , सुन्दर अहसास ...ये तो महसूस किया जा सकता है , गम उसका मेरा एक है ..तो शायद कुछ कम हो जाए । क्षणिकाएं अच्छीं लगीं ।
इस बदलते वक़्त में
हर चीज़ बिकती है
जमीं बिकती है ,आबरू बिकती है
हुस्न बिकता है , नाच बिकता है
ज़िस्म बिकता है ,मुस्कान बिकती है
बस दर्द नहीं बिकता ...
आज तो दर्द भी बिकने लगेगा .... और शायद बहुत ऊँचे दाम पर ... दूसरों को देने के लिए कई लोग खरीद लेंगे ...
सब क्षणिकाएँ जबरदस्त हैं .... लाजवाब ...
सभी क्षणिकाएं बेहद अच्छी लगी. लेकिन यह क्षणिका सबसे अच्छी ...
इस बदलते वक़्त में
हर चीज़ बिकती है
जमीं बिकती है ,आबरू बिकती है
हुस्न बिकता है , नाच बिकता है
ज़िस्म बिकता है ,मुस्कान बिकती है
बस दर्द नहीं बिकता ......!!
..हिंदी दिवस की बहुत बहुत हार्दिक शुभकामनाएँ
हर नज्म अतुलनीय.....
बहुत खूब हीर जी
यहाँ ...
कोई रात
जायका लिए नहीं आती
बस नमक के साथ
चख ली जाती है ...
उम्र की सारी
हंसी .....!!
कमाल का लिखा है...सारी क्षणिकाएं बस लाज़बाब हैं..
एक से बड़कर एक क्षणिकाएं.........
इस नारे के साथ कि चलो हिन्दी अपनाएँ
आप को हिन्दी दिवस पर शुभकामनाएँ..
हरकीरत जी , आज ही पूरा पढ़ पाया हूँ ।
निश्ब्ध हो गया हूँ । आप ही का लिखा --
मोहब्बत ---जब चाँद उतर आता है , झील के आगोश में । सही परिभाषा ।
उम्र की हंसीं .....नमक के साथ ! वाह !
दर्द --नहीं बिकता --दर्द को दर्द ही खरीद सकता है ।
अब बड़ी कोफ़्त होती है
देख चाँदनी को....
बेचारी चांदनी का क्या कसूर है ?
फिर कुछ सवाल --बड़े टेढ़े हैं जी ।
बस आपकी लेखनी को सलाम करने का जी करता है ।
हरकीरत जी, वैसे तो आपकी सभी क्षणिकायें एक से बढ़कर एक हैं पर इसने बहुत प्रभावित किया----- हँसी .....
फिर कुछ सवाल
हवा में खड़े हैं
जेवरातों में सजी
उस दूसरी औरत की हँसी
जज़्बातों के सीने पर
पैर रखे ......
खिलखिला रही है .... शुभकामनायें।
हर कविता एक गहरापन लिये है।
" kis nazm ko kahu mai behatarin ..ye mai nahi janta kyu ki yahan sari ki sari behatrinpost jo hai "
----- eksacchai {AAWAZ}
http://eksacchai.blogspot.com
कितनी ही रातें हमने रो रो कर काटे हैं,
ख़ुद का ही दर्द हमने ख़ुद से बांटे हैं..........
बिक जाते जो हर दर्द बाज़ार में,
एक भी खरीदार दर्द का ना होता संसार में..........
बस कुछ लिखने का दिल हुआ आपकी रचना को पढ़कर ..........
.मार्मिक रचनाएँ हैं आपकी
हरकीरत जी,
इस बार आपकी पोस्ट से और ऊपर लिखी इबारत से बहुत मायूसी झलकती है.........एक पुराना शेर अर्ज़ है
" जिंदगी जिंदादिली का नाम है,
मुर्दादिल क्या खाक जिया करते हैं"
रही बात लोगो के जाने की, तो ये जिंदगी है, यहाँ कुछ भी सदा के लिए नहीं होता, कुछ चले जाते हैं, तो कुछ नए आ जाते है, कुछ टूट जाता है, तो कुछ जुड़ता भी है.......हम जो सोचते है, हम वही हो जाते हैं| तुम किसी को वही दे सकते हो .......जो खुद तुम्हारे पास है ...........शायद उपदेश शुरू हो गया ........माफ़ कीजिये ज़रा जज़्बात में बह गया ..........कुछ बुरा लगे तो माफ़ कीजियेगा |
दर्द के बारे में जिब्रान साहब क्या कहते है -
http://khaleelzibran.blogspot.com/2010/09/blog-post_15.हटमल
1
यहाँ ...
कोई रात
जायका लिए नहीं आती
बस नमक के साथ
चख ली जाती है ...
उम्र की सारी
हंसी .....!!
2
ले गई है
कई बार सबा
सितारों की नगरी में
अब बड़ी कोफ़्त होती है
देख चाँदनी को....
मोहब्बत के पाश
खिलखिलाते हुए ....!!
3
आपकी हर रचना दिल को छूकर गुजरती हैं
क्या नही बिकता है इस कृत्रिमता से भरे संसार में ।
bahut sundar evam aaj ka satya
आपकी सारी क्षणिकाएं बहुत ही अच्छी हैं...बहुत तीखे व्यंग हैं पर ये बहुत अच्छी लगी...
इस बदलते वक़्त में
हर चीज़ बिकती है
जमीं बिकती है ,आबरू बिकती है
हुस्न बिकता है , नाच बिकता है
ज़िस्म बिकता है ,मुस्कान बिकती है
बस दर्द नहीं बिकता ......!!
http://veenakesur.blogspot.com/
यहाँ ...
कोई रात
जायका लिए नहीं आती
बस नमक के साथ
चख ली जाती है ...
उम्र की सारी
हंसी .....!!
बहुत ही सुन्दर
फिर कुछ सवाल
हवा में खड़े हैं
जेवरातों में सजी
उस दूसरी औरत की हँसी
जज़्बातों के सीने पर
पैर रखे ......
खिलखिला रही है .....!!
अतिसुन्दर भावाव्यक्ति , बधाई के पात्र है
bahut badhiya Likhan Shaili.
aise hi likhti rahen.
I appreciate your lovely post.
I appreciate your lovely post.
चाहे वह कोफ्त हो या दूसरी औरत की हँसी या मुहब्बत देती तो दर्द ही है ।
दर्द भी बिकता है हरकीर जी । टी वी सीरियल्स दर्द ही तो बेचते हैं जैसे मीनाकुमारी जी की फिल्में होती थीं ।
उत्कृष्ट रचनाएँ,
यहाँ भी पधारें :-
अकेला कलम...
यहाँ ...
कोई रात
जायका लिए नहीं आती
बस नमक के साथ
चख ली जाती है ...
उम्र की सारी
हंसी .....
yahi to jaayka hai zindagi ka ...
बस दर्द नहीं बिकता ......!!
han sach kaha ...apna dard nahi bikta ...baaki doosron ka dard bechne me aaj kal dunia aage hai ....samvedna ka vyapar sabse safal hai
antim kshanika me ek shanka ho rahi hai mujhe ...
jazbaat ..jazbe ka
aur jevraat jevar ka ...apne aap me bahu vachan hai shayd .
जी हाँ स्वप्निल जी जेवरात और ज़ज्बात दोनों ही अपने आप में बहुवचन हैं ....
पर अक्सर ऐसा लिख दिया जाता है ....
कुछ पढने में रवानगी भी नहीं आ रही थी ....
फिर भी किसी गुरुजन की सलाह से बदल दूंगी ....!!
sabhi kshanikaye laajavab hai..........bahut sunder.
@हरकीरत जी
बहुत बहुत शुक्रिया आप का ... अन्यथा मेरी कविता दोषमुक्त नहीं हो पाती ..मैंने अपने बड़ों से सुझाव लिया और पाया कि मैंने गलत लिखा है ...मैंने कविता मे आप के द्वारा निर्देशित बदलाव कर दिए हैं ...कभी कभी बड़ी पुरानी मान्यताएं बदल जाती हैं ... :) पुनः धन्यवाद
हरकीरत जी आपकी टिप्पणीके लिए शुक्रिया ....
....
है प्रकृति का यही नियम
पाना , खोना और फिर
इक नया जन्म ... ..
आपकी पूरी कविता का इंतजार रहेगा ...
कोरल जी ,
लीजिये आपके अनुरोध पे पुरानी डायरी से वो कविता . ढूढ़ लाई हूँ .....
दिनकर...
छुप जाता है जब
संध्या के आगोश में
ओढा देती है रजनी
झिलमिल तारों का आँचल
सुनहरी सय्या पर
होता मिलन ..
कुछ पल के लिए
खो जाते दोनों ...
एक दुसरे में रत
भोर की लालिमा पड़ती
मुखमंडल पर
होते जुदा
इक नया संसार बसाने
जन्म होता ...
इक नए इतिहास का ....
है प्रकृति का यही नियम
पाना-खोना और
इक नया जन्म .....
हरकीरत जी ...आपकी रचना तो बहुत सुन्दर है ...
आपका बहुत बहुत शुक्रिया !
आप उसे अपने ब्लॉग पे दीजिए !
इतनी सुन्दर तरहसे आपने रात और सुबह का वर्णन करते हुए गहरी बात कही है ..
प्रकृति का यही निया
पाना-खोना और
इक नया जन्म .....
अब मेरी request है आप उसे यहाँ दीजिए !
Harqeerat Heer ji,
kahin majbooriyaan bhi hain
kahin kamjoriyaan bhi hain
kahin is zindagi men
jashna ki taiyaariyaan bhi hain
Garaz ye hai nigaahen is zamin par
dhoondhatin hain kya
bichhe shabanam ke moti bhi
dabin chinagariyaan bhi hain
Aapne zindagi ki haqiqat bayan bahuat sunder dhang se ki hai badhai. Aaj bahut dinon ke baad apko padha, badhai
यहाँ ...
कोई रात
जायका लिए नहीं आती
बस नमक के साथ
चख ली जाती है ...
उम्र की सारी
हंसी .....!!
फिर कुछ सवाल
हवा में खड़े हैं
ज़ेवरात में सजी
उस दूसरी औरत की हँसी
जज़्बात के सीने पर
पैर रखे ......
खिलखिला रही है .....!!
खूबसूरत अंदाज़, लाजवाब अदायगी।।आफरीं !!!
यहाँ ...
कोई रात
जायका लिए नहीं आती
बस नमक के साथ
चख ली जाती है ...
उम्र की सारी
हंसी .....!
hirji, lajwab rachana!
''क्या कहू लब नहीं खुलते मेरे
हैरान हूँ तेरी सज़्दा देख मैं ''
हरकीरत मेम ,
आप कि नज़र मेरा इक मिश्रा .
बहुत खूब दिल को चुने वाली है नज्मे .
शुक्रिया !
वाह........बेहतरीन........आपको सुन्दर लेखनी के लिए ढेर सारी बधाई प्रेषित है कृपया स्वीकार करें.........!!
इन क्षणिकाओं की बयानी लाजवाब है.... जो जज्बात और सच की कहानी है...
मै गौरव शर्मा "भारतीय" आपको सादर नमस्कार प्रेषित करता हूँ !!
मुझ अकिंचन के ब्लॉग में आकर आपने मेरा हौसला बढाया इसके लिए मै आभारी हूँ, मेरा परिचय सर्वप्रथम तो "भारतीय" ही है, मै रायपुर छत्तीसगढ़ का निवासी हूँ और देशभक्ति की भावना से संचालित "अभियान भारतीय" सहित अपने विचारों को आम जन तक पहुँचाने के उद्देश्य को लेकर ब्लॉग लिखने का प्रयास कर रहा हूँ |
बस यही मेरा परिचय है आपसे पुनः आग्रह करता हूँ की आप मेरे नवोदित ब्लॉग में आकर मेरा हौसला बढाकर ब्लॉग को सार्थक एवं "अभियान भारतीय" को सफल बनावें .......वन्दे मातरम
अति सुन्दर दिल को सुकूनो-दर्द देती रचनायें। हरकीरत हीर जी को मुबारक बाद।
panch ki pancho shandar , jandar .kya bat hai .
इस बदलते वक़्त में
हर चीज़ बिकती है
बहुत ही सुन्दर लिखा है आपने
दर्द बिक जाये तो भी मन में टीस रहती है
हरकीरत हीर जी
आदाब !
सतश्रीअकाल !
अब तो आपसे मुंह चुराने वाली स्थिति बन गई है …
आप तो हर बार ख़ूबसूरत अल्फ़ाज़ के साथ पुरअसर जज़्बात कविता में ढाल देंगी …
मोहतरमा , हम कहां से ता'रीफ़ के लिए रचनाओं के अनुरूप शब्द और भाव लाएं ?
आपके हर जज़्बे हर लफ़्ज़ को सौ सौ सलाम !
आपकी अन्य रचनाओं की ही भांति आज की सब रचनाएं भी बहुत प्रभावशाली !
यहां ,
कोरल जी आपको भी शुक्रिया कहना ज़रूरी है , आपकी बदौलत हीरजी की एक और बेहद ख़ूबसूरत कविता से रूबरू होने का सुअवसर मिला ।
"हम यहाँ कुछ पाने आये हैं या खोने पता नहीं ………"
हीर जी
आपसे ही तो सीखने को मिलता है कि खोने में ही पाने का सत्य है !
बहुत बहुत शुभकामनाएं
- राजेन्द्र स्वर्णकार
भाव के स्तर पर तो आपकी क्षणिकाएं लाजबाब होती ही हैं, कुछ प्रयोगात्मक बिम्ब भी बेहद प्रभावित करते हैं।
खूबसूरत कवितायें
ਹੀਰ ਜੀ,
ਨਮਸਤੇ!
ਦਰਦ ਦੇ ਵਾਰੇ ਏਹੀ ਕਹਨਾ ਚਾਹੰਦਾ ਹਾਂ ਕੇ ਮੈਨੂ ਦੇ ਦੋ, ਪੈਹੇ ਨੀ ਮਿਲਣਗੇ..... ਖੁਸ਼ਿਯਾਂ ਲੈ ਲੇਣਾ!
ਬੋਲੋ ਮੰਜੂਰ ਹੈ?
ਆਸ਼ੀਸ਼
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