न जाने कितनी खामोशियाँ है
जो आवाज़ मांगतीं हैं ......
और वक़्त चाहकर भी उन्हें
मुनासिफ फैंसला नहीं सुना पाता ....
बस ये खुशबू है कुछ तेरे ज़िक्र की
जो उम्र की रंगत में हौले-हौले मुस्कुरा रही है ......
(१)
ख़ामोशी ....
कई संदेशों के बाद
शुक्रवार की शाम
आये थे बादल ....
हलकी बूंदा-बांदी के बाद
एक उदास सी नज़्म छोड़ गए
सफ़्हों पर ......
तुम्हारी ख़ामोशी अब
कुछ कहने लगी है ......!!
(२)
शुकराना ....
तुम्हारी नज़रों के
शुकराने के साथ-साथ
कुछ मोहब्बत के हर्फ़ भी
उड़कर चले आये थे मेरे दर
मैंने उन्हें दिल का दरवाज़ा खोल
अन्दर बैठा लिया है ...........
जाने क्यूँ .....
आज चाँद के चहरे पे
मुस्कराहट है ........!!
(३)
दो लफ़्ज़ों का फूल ....
मैंने हथेलियों पे
चाहत की बूंदें सजा रखी हैं
तुम आना अपनी आँखों से छुआ
इनमें भर जाना .....
मुहब्बत के रंग ....
देख धुले हुए आसमां में
चाँद तारों का काफिला
इश्क़ की अलामत* लिए
उतर आया है .....
मैंने सारी चांदनी भर ली है
बाहों में .......
हवा भी तेरे आस-पास होने का
पता दे गई है ......
आ कुछ तो लिख दे
मेरे नसीब पे तू
आज ...
अँधेरे की कोख से
दो लफ़्ज़ों का फूल खिला है .....!!
अलामत- निशाँ, चिन्ह
(४)
गुलाब के खिलने तक .....
तुम आना
अपने हाथों में ...
सूरज की पहली किरण लेकर
मैं मोहब्बत के सारे दरवाज़े
खोल दूंगी .......
देह की दुनियाँ से दूर
जहाँ अंधेरों की सिलवटें
नहीं होती .....
हम बाँट लेगें ....
अपनी-अपनी मोहब्बत
गुलाब के खिलने तक ......!!
Tuesday, August 10, 2010
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54 comments:
मैंने सारी चांदनी भर ली है
बाहों में .......
हवा भी तेरे आस-पास होने का
पता दे गई है ......
आ कुछ तो लिख दे
मेरे नसीब पे तू
baihtareen, umda, bahoot khoob
आपके ख़ामोश लेखन में भी कितनी आवाज़ है.... कितनी गहराई तक छू जाते हैं आपके अलफ़ाज़......... कहाँ से लातीं हैं आप इतने अच्छे ख़यालात...? लफ़्ज़ों में ऐसा लगता है ...... कि ......उनके होंठ हिल रहे हैं... आपके लफ्ज़ भी कुछ कहना चाहते हैं.... और एकदम ज़िंदा लगते हैं.......... आप बेस्ट हैं......... बेस्ट नहीं........ आप बेस्टेस्ट हैं....... नहीं........... आप बेस्टेस्ट के भी बियौंड हैं.... मैं और कैसे तारीफ़ करूँ......... समझ में नहीं आ रहा है........ शायद लफ्ज़ कम पड़ गए हैं.... हाँ! वाकई में कम पड़ गए हैं ....
ग्रेट........
:)
:)
- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं
हरकीरत जी
सुबहानअल्लाह … !
निश्चित रूप से शुक्रवार की शाम ऐतिहासिक थी ,
शायद … !
आज चांद के चहरे पे
मुस्कराहट है ……!!
ख़ुदा करे कि चांद सदा मुस्कुराता ही रहे … … …
आमीन !
अंधेरे की कोख से
दो लफ़्ज़ों का फूल खिला है .....!!
वल्लाह !
आपकी क़लम को साष्टांग दण्डवत है !
वाह ! वाह ! वाह !
देह की दुनिया से दूर
जहां अंधेरों की सिलवटें
नहीं होती …
हम बांट लेगें …
अपनी-अपनी मोहब्बत
गुलाब के खिलने तक … … …!!
प्रेम की पवित्रतम प्रस्तुति !
लफ़्ज़ लफ़्ज़ में ग़ज़ब कशिश !
नाज़ुक जज़्बातों का ऐसा हुस्नअफ़्ज़ा दरिया !
भाव और शब्द जनित अद्भुत सम्मोहन !
कैसे कोई वशीभूत नहीं होगा ?
ख़ुदा बुरी नज़र से बचाए …!
बड़ी मेहरबानी ! काजल का टीका लगा लें , क़लम और आपकी पेशानी पर …
तमाम दुआएं आपके लिए …
- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं
वक़्त चाहकर भी उन्हें
मुनासिफ फैंसला नहीं सुना पाता ..
----बहुत खूब!
-------
खामोशियाँ बोलने लगे तो ?....दर्दो ग़म के सभी किस्से कहने लगेंगी..और रुलायेंगी खामखाँ !
------
'दो लफ़्ज़ों के फ़ूल 'पर सदा बहार रहे..
- बहुत सुन्दर नज्में हैं
बहुत खूब !!
खु्बसूरत नज्में हैं
उम्दा पोस्ट के लिए धन्यवाद
ब्लॉग4वार्ता की 150वीं पोस्ट पर आपका स्वागत है
आपके भावों की खामोशी का ये स्वर मन में उठ रहे तमाम भावों के आन्दोलन को थाम देता है. जैसे हिलोरे लेते हुए पानी को किसीने अपने कोमल हाथों से शांत कर दिया हो.
आप प्रायः उन चित्रों को पकड़ने का प्रयास करती हैं जो नज़रों से बचकर भाग जाना चाहते हैं.
पसंद आयीं रचनाएँ.
उम्दा रचना हमेशा की तरह ...आभार
खामोशी भी एक हद तक खामोश रहने के बाद कुछ कहने सी लगती है।
main to bas kayal hoon...!!!
आपकी रचनाओं को महसूस किया जा सकता है उन पर कमेन्ट नहीं लिखा जा सकता...बेहतरीन रचनाएँ...
नीरज
aapki khamoshi me bhi wo baat hai jo hamare bolte lafzo me nahi hai.....:(
kash aap jaisa ham bhi khamoshi se apne soch ko shabdo me dhall pate....:)
lajabab rachna!!
"तुम्हारी ख़ामोशी अब
कुछ कहने लगी है ......!!"
"तुम आना
अपने हाथों में ...
सूरज की पहली किरण लेकर
मैं मोहब्बत के सारे दरवाज़े
खोल दूंगी .......
देह की दुनियाँ से दूर
जहाँ अंधेरों की सिलवटें
नहीं होती ....."
शुकराना बहुत खूबसूरत है।..
देह की दुनियाँ से दूर
जहाँ अंधेरों की सिलवटें
नहीं होती .....
हम बाँट लेगें ....
अपनी-अपनी मोहब्बत
गुलाब के खिलने तक ......!!
बहुत ही उम्दा।
त्रिवेणी की शक्ल में कुछ लिखा है, देखिएगा-
http://khalishh.blogspot.com/2010/08/blog-post.html#comments
आपके शब्द तो इसे गहरे बैठते हैं दिल में बहुत देर तो कुछ कहा ही नहीं जाता ...
ख़ामोशी और दो लफ्जों का फूल ..बेहतरीन बन पड़ी हैं ...
बहुत सुकून देता है आपको पढ़ना.
आपकी टिपण्णी के लिए आपका आभार ...अच्छी कविता हैं...बहुत अच्छी .
एक से बढ़ कर एक नज़्म ...मन की गहराई में उतरती हुई ..
एक एक हर्फ़ दिल की गहराइयों को छूता चला गया ...
तुम्हारी ख़ामोशी अब
कुछ कहने लगी है ......!!वाह ! वाह ! वाह !
आपने एक बार फिर निः शब्द कर दिया. आपकी नज्में तो इस कायनात से कहीं दूर पहुंचा देती, शायद ख्वाबों की नगरी में. हकीकत की दुनिया में वापसी बहुत मुश्किल से होती है. मेरी समझ में नहीं आता कि किस किस नज्म की तारीफ़ की जाए और किसे छोड़ दिया जाए. आप ऐसा क्यों नहीं करतीं कि एक बार में एक ही रचना पोस्ट किया करें. इससे हमारे जैसों को बहुत ज्यादा डूबना नहीं पड़ेगा.
अगर आप बुरा न मानें तो एक अर्ज़ करनी थी- पहली नज्म पर आपने मेहनत नहीं की.
बेमिशाल, बेहतरीन, लाजवाब.........
जाने क्यूँ .....
आज चाँद के चहरे पे
मुस्कराहट है ........!!
क्यूँ न हो मुस्कराहट..
"देख धुले हुए आसमां में
चाँद तारों का काफिला
इश्क़ की अलामत लिए
उतर आया है ...."
बहुत सुकून का एहसास हुआ ये पढ़ के...बहुत ख़ूबसूरत.
और यहाँ फिर से वही चोट, दर्द.....
आज ...
अँधेरे की कोख से
दो लफ़्ज़ों का फूल खिला है .....!!
और ये बहुत बढ़िया लगी..बहुत ही बढ़िया...
हम बाँट लेगें ....
अपनी-अपनी मोहब्बत
गुलाब के खिलने तक ......!!
:)
मासूम सी, आशाओं वाली पछुआ जैसे.
तुम्हारी नज़रों के
शुकराने के साथ-साथ
कुछ मोहब्बत के हर्फ़ भी
उड़कर चले आये थे मेरे दर
मैंने उन्हें दिल का दरवाज़ा खोल
अन्दर बैठा लिया है ...........
जाने क्यूँ .....
आज चाँद के चहरे पे
मुस्कराहट है ........!!
bas main bhi muskura rahi hun
देह की दुनियाँ से दूर
जहाँ अंधेरों की सिलवटें
नहीं होती .....
हम बाँट लेगें ....
अपनी-अपनी मोहब्बत
गुलाब के खिलने तक ......!!
बेहतरीन जज़्बात और चाहत्……………॥वैसे तो सारी ही बहुत सुन्दर हैं दिल को छू जाती हैं हमेशा की तरह मगर इसमे तो एक अलग ही अह्सास है।
Hi..
Do lafzon ke phool liye..
Koi aaya jo nazmon main..
Ek shukrana dekha hai..
Humne to tere lafzon main..
Hamesha ki tarah .........behtareen..
Wah..
Deepak..
तुम आना
अपने हाथों में ...
सूरज की पहली किरण लेकर
मैं मोहब्बत के सारे दरवाज़े
खोल दूंगी .......
देह की दुनियाँ से दूर
जहाँ अंधेरों की सिलवटें
नहीं होती .....
हम बाँट लेगें ....
अपनी-अपनी मोहब्बत
गुलाब के खिलने तक ......!!
vaise sabhi rachnaayen ek se badhkar ek hain...
Lekin ye panktiyon mujhe bahut khaas lagi.....
AApko meri shubkaamnayen....
तुम्हारी नज़रों के
शुकराने के साथ-साथ
कुछ मोहब्बत के हर्फ़ भी
उड़कर चले आये थे मेरे दर
मैंने उन्हें दिल का दरवाज़ा खोल
अन्दर बैठा लिया है ...........
Harikirat ji..ye bhi behtareen sundar ehsaas bhari prstuti..badhai
बहुत लाजवाब, शुभकामनाएं.
रामराम.
सुना है
वक़्त के मोड़ो पे
दो आंखे
अब भी बहुत बोलती है .....
तुम आना
अपने हाथों में ...
सूरज की पहली किरण लेकर
मैं मोहब्बत के सारे दरवाज़े
खोल दूंगी .......
- सुन्दर.
बस लाजवाब ।
Dimpal Maheshwari said...
आपकी टिपण्णी के लिए आपका आभार ...अच्छी कविता हैं...बहुत अच्छी .
डिम्पल जी ,
मुझे तो याद नहीं की मैं आपके ब्लॉग पे पहले गई हूँ ...
.ब्लॉग पर भी जाकर देखा कहीं कोई टिपण्णी नहीं मिली
और आपनी यही टिपण्णी कई जगह और भी देखी...
माजरा क्या है ......?
हरकीरत जी
कहाँ से लती है आप इतने जीवंत अहसास ?
बहुत खुबसूरत रचनाये अंतर्मन को छूती हुई |
आभार
एक बार फिर खतरनाक पोस्ट।
आपकी खामोशी के रंग कभी चांदनी, कभी किरण, कभी बादल, कभी जंगल, कभी नदी, कभी शबनम तो कभी आंसू ...
न जाने कितनी खामोशियाँ है
जो आवाज़ मांगतीं हैं ......
ek bar phir se sundar nazm Badhai!
बस ये खुशबू है कुछ तेरे ज़िक्र की
जो उम्र की रंगत में हौले-हौले मुस्कुरा रही है ......
आज तो ओपनिंग ही कमाल की की है ।
तुम्हारी ख़ामोशी अब
कुछ कहने लगी है ......!!
ख़ामोशी से ही सुनना पड़ेगा ।
जाने क्यूँ .....
आज चाँद के चहरे पे
मुस्कराहट है ........!!
आज तो चाँद धन्य हो गया जी ।
हवा भी तेरे आस-पास होने का
पता दे गई है ......
लगता तो ऐसा ही है ।
हम बाँट लेगें ....
अपनी-अपनी मोहब्बत
गुलाब के खिलने तक ......!!
अति सुन्दर ।
एक एक रचना मोहब्बत के रंग में रंगी हुई ।
ऐसी ही नज़्मे लिखती रहिये ना ।
मैंने सारी चांदनी भर ली है
बाहों में .......
हवा भी तेरे आस-पास होने का
पता दे गई है ......
आ कुछ तो लिख दे
मेरे नसीब पे तू
आज ...
अँधेरे की कोख से
दो लफ़्ज़ों का फूल खिला है .....!!
harkirat ji, bahut sunder. bas belafz hain hum...
...sundar rachanaayen !!!
तुम आना
अपने हाथों में ...
सूरज की पहली किरण लेकर
मैं मोहब्बत के सारे दरवाज़े
खोल दूंगी .......
देह की दुनियाँ से दूर
जहाँ अंधेरों की सिलवटें
नहीं होती .....
हम बाँट लेगें ....
अपनी-अपनी मोहब्बत
गुलाब के खिलने तक ......!!
hamesha ki tarah behad khubsurat rachnayeeee!!!!!!!!!
दिल से लिखने वालो की तारीफ़ बन्दा दिल से करे
लफ्जों में तारीफ़ क्या करें, लफ्जों की हदें खत्म हो जाएँगी
अगर आपकी तारीफ़ करना शुरू करें
आप सदा ही कमाल का लिखती हैं.........बस यू ही शब्दों को सजाते रहिये
मैंने सारी चांदनी भर ली है
बाहों में .......
हवा भी तेरे आस-पास होने का
पता दे गई है ......
आ कुछ तो लिख दे
मेरे नसीब पे तू.
aapke blog pe har baar kuchh nya pata hu.
मैंने सारी चांदनी भर ली है
बाहों में .......
हवा भी तेरे आस-पास होने का
पता दे गई है ......
आ कुछ तो लिख दे
मेरे नसीब पे तू.
aapke blog pe har baar kuchh nya pata hu.
मैंने सारी चांदनी भर ली है
बाहों में .......
हवा भी तेरे आस-पास होने का
पता दे गई है ......
आ कुछ तो लिख दे
मेरे नसीब पे तू.
aapke blog pe har baar kuchh nya pata hu.
कुछ मोहब्बत के हर्फ़ भी
उड़कर चले आये थे मेरे दर
मैंने उन्हें दिल का दरवाज़ा खोल
अन्दर बैठा लिया है ...........
जाने क्यूँ .....
आज चाँद के चहरे पे
मुस्कराहट है ........!!
कितनी सुंदर नज्म है । दर्द से परे, खुशी की इक झलक लिये ।
bahut pyaree nazmen,
dil tak pahuchee aap ki
baat.
wah.....behtreen bhavabhivyakti...
देह की दुनियाँ से दूर
जहाँ अंधेरों की सिलवटें
नहीं होती .....
हम बाँट लेगें ....
अपनी-अपनी मोहब्बत
गुलाब के खिलने तक ......!!
हर कीरत जी आप की पोस्ट पढ़ कर तो कुछ भी कहने की स्थिति में नहीं रहती हूँ.बहुत सुन्दर नज्में हैं एहसास बहुत गहरे हैं.......
मैं मोहब्बत के सारे दरवाज़े
खोल दूंगी .......
देह की दुनियाँ से दूर
जहाँ अंधेरों की सिलवटें
नहीं होती .....
हम बाँट लेगें ....
अपनी-अपनी मोहब्बत
गुलाब के खिलने तक ......!!
क्या कहूँ ...सभी एक से एक ...!
तुम आना
अपने हाथों में ...
सूरज की पहली किरण लेकर
मैं मोहब्बत के सारे दरवाज़े
खोल दूंगी .......
देह की दुनियाँ से दूर
जहाँ अंधेरों की सिलवटें
नहीं होती .....
aise paakeeza se rishton ki kya kahein baangi .. aapki lekhni andheron mein bhi siharte lafz pakad laati hai..
इस खामोशी ने भी कितने फूल खिलाए हैं ... भीगा एहसास है आपकी सब पंक्तियों में ... दिल को छूता हुवा ...
बस ये खुशबू है कुछ तेरे ज़िक्र की
जो उम्र की रंगत में हौले-हौले मुस्कुरा रही है ......
kya khoobsurat khayal ubhra hai
wah! bahut khoob..
ख़ामोशियों आवाज़ मांगती हैं ,वक़्त का फ़ैसला,तेरे ज़िक्र की ख़ुशबू , बिम्बों का ख़ूबसूरत संयोजन ब्धाई। मैं "मुनासिफ़" का यहां मतलब नहीं समझ पा रहा हूं।
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