मेरे तसव्वुर की आँखें भर आतीं , जब याद आती है शब घूँघट वाली
मैं कैसे कहूँ ये रिश्ते मोहब्बत बांटते हें ,जब रही अपनी झोली खाली
कल अचानक दूरदर्शन से कबीर जी (गुवाहाटी दूरदर्शन के न्यूज़ रीडर व ऍफ़ एम रेडियो के उदघोषक) का फोन आया कि ३ सितम्बर को लाइव शो है ....आपको जरुर आना है ....विषय होगा 'रिश्ते-नाते '......मैंने कहा कि इस विषय पर अभी हाल ही में नज़्म लिखी है ''आग में जलते रिश्ते '' तो उन्होंने कहा नज्में छोटी हों तो बेहतर है .....अब मैं सोचने बैठी तो कुछ यूँ नज्में उतर पड़ीं ....हालांकि अभी काफी वक़्त पड़ा है पर इस बीच शायद पंजाब जाना हो जाये ......
और हाँ इक खुशखबरी और ....कल ही दिल्ली से लक्ष्मी शंकर बाजपेई जी का समस आया आपकी रचनायें ''साहित्य अमृत'' में छपीं हैं ...खुशी की बात इसलिए की इन बड़ी पत्रिकाओं में लगभग साल भर बाद बारी आती है छपने की.....तो लीजिये पेश है फिर कुछ क्षणिकाएं ......
(१)
तवायफ ....
यहाँ रिश्तों का
मीनाबाज़ार लगा है
हर रोज़ इक नया रिश्ता बनता है
इक नए मर्द के साथ .....
दर्द लगाता है उसके रिश्ते पर
कहकहा ......
और ज़िस्म झूठी मुस्कान ओढ़े
देखता है रिश्तों को हवा में उड़ते हुए
नोटों की गठ्ठियों के साथ ......!!
(२)
पहचान .....
उसका रिश्ता था
दीवारों की ख़ामोशी से ,
सलाखों से झांकते चाँद से ,
सफ़ेद लिबास में संग लेटी तन्हाई से
उसकी नज़रें अक्सर सन्नाटे में
तलाशा करती अपने रिश्ते की
पहचान .......!!
(३)
रिश्तों कि परिभाषा .....
कदम-दर-कदम
रिश्तों में चिंगारियां सी
उठने लगीं हैं .....
मोहब्बत उदासी का पैरहन ओढ़े
ज़िस्म से फाड़ती है कपडे ....
न कोई मीठी बोली आवाज़ लगाती है
न मुस्कुराहटें दरवाज़ा खोलतीं हैं
रात आंसुओं के वजूद पर
बांटती हैं रिश्तों की
परिभाषा .......!!
(४)
दम तोड़ते रिश्ते ......
रिश्तों की गहराई
कभी अदालत में जाकर देखना
जहाँ हररोज़, न जाने कितने रिश्ते
जले कपड़ों में .........
दम तोड़ते हैं .......!!
(५)
मर्सिया .....
न जाने
कितने रिश्ते
हररोज़ .....
सफ़ेद लिबासों में
दर्द की चादर ओढ़े
पढ़ते हैं .......
अपने-अपने नाम का
मर्सिया ......!!
(६)
कैद में रिश्ते .....
रिश्ते ...
सीमेंट और ईटों की
मज़बूत दीवारों में
कैद होकर नहीं पनपते
न ही रिश्ते .....
बंद खिड़की -दरवाज़ों में
साँस ले पाते हैं .....
उन्हें जीने के लिए
खुली बाँहों का
आकाश चाहिए ......!!
(७)
मिट्टी का साथ .....
ज़िस्म के खात्में पर
जो चीज़ साथ देती है
वह सिर्फ मिट्टी होती है
ये इंसानी रिश्ते तो
वक़्त की सीढियों के साथ
बदलते रहते हैं .....!!
Monday, August 2, 2010
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87 comments:
लाइव शो में प्रतिभागिता....
''साहित्य अमृत'' में रचनाओं का प्रकाशन..
और रिश्तों के ताने-बाने को इतनी खूबसूरती से बयान करने के लिए बहुत बहुत बधाई.
रिश्तों की गहराई
कभी अदालत में जाकर देखना
जहाँ हररोज़, न जाने कितने रिश्ते
जले कपड़ों में .........
दम तोड़ते हैं .......!!
कड़वा सच है ये हरकीरत जी. तमाम सफलताओं के लिये हार्दिक बधाई.
पहले तो मुबारक्बाद क़ुबूल करें अपनी कामयाबियों के लिए
न जाने
कितने रिश्ते
हररोज़ .....
सफ़ेद लिबासों में
दर्द की चादर ओढ़े
पढ़ते हैं .......
अपने-अपने नाम का
मर्सिया ......!!
क्या कहूं ?
शब्द कभी कभी साथ छोड़ देते हैं
कभी यूँ भी तो लिखो ...
रिश्ते वक्त मांगते हैं
और वक़्त मिलते ही
मजबूती से
जड़े बढाने लगते हैं.
एक फूट से दूसरे फुट
दुरसे फुट से तीसरे फुट
फिर बढते चले जाते हैं
बिना मोल भाव किये..
रिश्ते प्यार के दो बोल से भी
चलने लग जाते हैं.
बिन पहिये लगाए
दूर, बहुत दूर तक.
हर नज़्म... नायाब है... बहुत ही खूबसूरत... 'साहित्य अमृत' में प्रकाशित होने के लिए बहुत बहुत बधाई....
अनामिका जी ,
लगता है अब आपसे सीखनी पड़ेगी नज्में लिखनी ...!!
मेरे तसव्वुर की आँखें भर आतीं , जब याद आती है शब घूँघट वाली
मैं कैसे कहूँ ये रिश्ते मोहब्बत बांटते हें ,जब रही अपनी झोली खाली
aagaz hi itnaa khoobsurat hota hai ki aage kya kahoon ?
रिश्तों की गहराई
कभी अदालत में जाकर देखना
जहाँ हररोज़, न जाने कितने रिश्ते
जले कपड़ों में .........
दम तोड़ते हैं .......!
sach aese hadse man todte hai .bahut bahut badhai .umda sabhi .
सबसे पहले तो बधाई स्वीकार करें ...
रिश्तों पर काफी तीखा-सा लेप लपेट दिया ...
होते हैं ऐसे भी रिश्ते ...
रिश्ते सच्चे और झूठे दोनों ही रूप में मिलते हैं ...
मगर हमारा विश्वास सच्चे और अच्छे रिश्तों में हमेशा बना रहा है ...रहेगा ...!
बहुत अच्छा लगा पढकर।
bahut hi acchi najm
rshton par tikha prakash
riश्ते ...
सीमेंट और ईटों की
मज़बूत दीवारों में
कैद होकर नहीं पनपते
न ही रिश्ते .....
बंद खिड़की -दरवाज़ों में
साँस ले पाते हैं .....
उन्हें जीने के लिए
खुली बाँहों का
आकाश चाहिए ......!!
मरासिम की बारीकियाँ नज़्म में नज़र आ रही है । मुझे अपनी ही एक नज़्म याद आ गई । आपके लिए तो बस इतना ही -
झुलस रहा है मेरे जिस्म का कोना-कोना
रूह को आग लग गई जैसे
कुछ दिनों से दिन-रात मेरी आंखों में
कोई तकलीफ बह रह रही है धीरे-धीरे
सारे मरासिम पक रहे हैं अभी
मुझको इतनी-सी फ़िक्र रहती है
अलग न हो जाए हर्फ़ से कोई नुक्ता
ख़त लिफाफे में गर रहे तो अच्छा है ...
ऎ लो जी हमारी तरफ़ से भी आप को बधाई, अब जल्दी से मिठाई भी खिलाये, खिलाये क्या जल्दी से भेज दे बस..:)आज की रचना बहुत सुंदर लगी धन्यवाद
एक से बढ़कर एक दिल को भेदती हुई रचनायें..
बहुत कुछ सोचने को पैदा हो गया.
जबरदस्त!!
रिश्तो की सच्चाई बयाँ करते हुए....
बहुत ही सुन्दर................
बधाई हो आपको नज्मो के लिए....
और पंजाब कब आयेंगे और कहाँ???
Hi..
Ek rishta hai humare darmiyan..
Tum chamakta aaftab..
Aur main timtimata dia..
*****
Ek rishta karahti nazm ka.. mujhse..
Jaise dard mera..
Bayan ho karta koi..
****
Hamesha ki tarah dard se bhari nazmen..
Apki nazmon ke prakashan par badhayi.. Aur ye live show kahan ho raha hai ye batayega.. Guwahati to jaana hota rahta hai..
Deepak..
सभी की सभी नज़्में लाजबाव है...बेहद उम्दा...!!
बधाई --प्रकाशन और लाइव प्रोग्राम के लिए।
आपकी रचनाएँ तो साहित्य के लिए अमृत समान ही होती है ।
लाइव प्रोग्राम में आपके जाने से प्रोग्राम लाइव हो उठेगा ।
नज्में शाम को गहराई से पढ़ेंगे और समझेंगे ।
sabhi nazmein behtareen hain....
aapki safaltaon ke liye badhai.....
yun hi likhte rahein...
रिश्ते ...
सीमेंट और ईटों की
मज़बूत दीवारों में
कैद होकर नहीं पनपते
न ही रिश्ते .....
बंद खिड़की -दरवाज़ों में
साँस ले पाते हैं .....
उन्हें जीने के लिए
खुली बाँहों का
आकाश चाहिए ......!!...हार्दिक बधाई.
रिश्तों की बारीकियों को और दर्द को बहुत ही खुबसूरत तरीके से उकेरा है! प्रशंसनीय!
हीर जी मेरी एक रचना आपका इंतज़ार कर रही है!
न जाने
कितने रिश्ते
हररोज़ .....
सफ़ेद लिबासों में
दर्द की चादर ओढ़े
पढ़ते हैं .......
अपने-अपने नाम का
मर्सिया ......!!
..........
क्या खूब लिखा है आपने !
सबसे पहले आपको बधाई .....
और यह नज्में ...बस गज़ब ही हैं ...रिश्तों का हर रूप नज़्म बन कर बहा है ...सुन्दर अभिव्यक्ति
Eak se badhkar eak rachna padhne ko mili...bahut badhai sabhi safaltaon ke liye or aap aage bhi yun hi safltayen prapat karti rahen yahi dua ha hamari...
हर एक क्षणिका बेहतरीन। ख़ासकर कैद में रिश्ते। रिश्तों के इतने पहलुओं पर एक साथ...बधाई।
आपकी क्षणिकाओं को पढ़कर अपनी एक पुरानी क्षणिका याद हो आई -
"वो चुप रहा
मैंने भी ख़ामोशी को थामे रखा
आवाज़ें आती रहीं
रिश्ते के दरकने की
धीरे-धीरे।"
बधाई रचनाओं के प्रकाशन और लाइव शो का हिस्सा बनने के लिए।
सबसे पहले बधाई और शुभकामनायें
आपकी हर क्षणिका अपने आप बोलती है उसके लिये शब्द भी कम पड जाते हैं…………………अब किसी एक की तारीफ़ कैसे करूँ।
सप्तक बहुत ही सुन्दर लगा।
harkeerat ji ! dil se shubhkamnaye kubul kijiye..
रिश्तों की परिभाषा करवट दर करवट कई मुकाम कई अर्थ
कुछ भी कहना बेमानी सा है इन रिश्तों के आगे...आपके लिखने के बाद दर्द का दर्द कम कम सा हो जाता है..शब्दों का दर्द ज्यादा जो है.
फिर भी......
"न जाने
कितने रिश्ते
हररोज़ .....
सफ़ेद लिबासों में
दर्द की चादर ओढ़े
पढ़ते हैं .......
अपने-अपने नाम का
मर्सिया ......!!"
इनके लिए सन्नाटा है मेरे पास देने को...तालियाँ ही तो बधाई देने का जरिया नहीं होतीं.
रिश्तों की अमरबेल को खूब पनपाया है आपने हरकीरत जी...
एक एक नज़्म कीमती है..
भोवों से भरपूर..
पढ़कर लगा कि जैसे रिश्तों के भंवर में फंस गया हूँ..
शुक्रिया और शुभकामनाएँ..
रिश्तों को जीने के लिए खुली बाँहों का आकाश चाहिए --
ज़िस्म के खात्मे पर साथ देती है मिटटी --
अदालतें --रिश्तों के दम तोड़ने की जगह --
रिश्ते हवा में उड़ते हुए , नोटों की गड्डियों के साथ ---।
ओह ! दर्द भरे रिश्तों की परिभाषा इससे बेहतर और क्या हो सकती है ।
एक पहलु को बहुत खूबसूरती से पेश किया है आपने ।
रिश्तों की गहराई
कभी अदालत में जाकर देखना
जहाँ हररोज़, न जाने कितने रिश्ते
जले कपड़ों में .........
दम तोड़ते हैं ....
सच कहता हूँ रिश्तों पर इनसे बेहतर नज्में मैंने नहीं पढ़ीं...बेहतरीन...हर नज़्म रिश्ते की परिभाषा को अलग अंदाज़ में बयां कर रही है...बेजोड़ रचनाएँ...मेरी दाद कबूल करें...
नीरज
अंदर तक चुभती हुई रचनाएं. बहुत शुभकामनाएं.
रामराम.
न जाने
कितने रिश्ते
हररोज़ .....
सफ़ेद लिबासों में
दर्द की चादर ओढ़े
पढ़ते हैं .......
अपने-अपने नाम का
मर्सिया ......!!
ये क्षणिका एक बार पढ़ते ही दिल में उतर गई।
हीर जी लगता है आपको मेरा यूँ लिखना आहत कर गया. किसी तरह से भी दिल दुखा हो तो क्षमा चाहती हूँ. मेरा मकसद आपकी क्षणिकाओं को गलत बताना नहीं वरन उसमे आशावादी सोच बदल कर लिखने का था.
एक बार फिर से क्षमा प्रार्थी हूँ.
बहुत सुन्दर व बढिया क्षणिकाएं। बधाई स्वीकारें एक बड़ी कामयाबी के लिए।शुभकामनाएं।
हरकीरत जी पहले तो मेरी बधाई स्वीकारें एक से एक लाजवाब क्षणिकाएं हैं दिल में गहरे उतर गयीं
कदम-दर-कदम
रिश्तों में चिंगारियां सी
उठने लगीं हैं .....
मोहब्बत उदासी का पैरहन ओढ़े
ज़िस्म से फाड़ती है कपडे ....
न कोई मीठी बोली आवाज़ लगाती है
न मुस्कुराहटें दरवाज़ा खोलतीं हैं
रात आंसुओं के वजूद पर
बांटती हैं रिश्तों की
परिभाषा .......!!
क्या कहूं !!!!!! लाजबाव.
बहुत बढ़िया....................हमेशा की तरह
सही लिखा आपने।
नाता...
पिता से बड़ा हो
गया है बेटा
जिनसे चलना सीखा,
बूढ़ी उंगलियों को
वो अब नहीं पहचानता,
उसके मरने की इंतजार
तक तो है बस नाता...
----क्यों क्या कहते हो हमारी तुकबंदी पर।
अरे नहीं अनामिका जी .....
बस आपने इतना गहरा लिख दिया की भाव समझ ही नहीं पाई .....तो सीखना तो ज़िन्दगी भर चलता रहता है .....
चलिए आप आयीं हैं तो पूछ ही लेती हूँ .....
"एक फूट से दूसरे फुट
दुरसे फुट से तीसरे फुट"
इस फूट और फुट का मतलब समझिएगा जरा .....!!
ये आप क्या लिख दिए हो जी...
सभी को अपनी अपनी रचनाएँ याद आ रही हैं...
हमें अब भी वो ही स्टार प्लस का एड याद आ रहा है...
''रिश्ता वही -- सोच नयी ''
शायद ...
फूट को फुट...
पढ़िए..
और...
दुरसे को दूसरे...
शायद ...
फूट को फुट...
पढ़िए..
और...
दुरसे को दूसरे...
Rishte ki gahrai ko bahut pyare shabdo me aapne peeroya hai!! badhai!!
aur upar se live show me pratibhagita & rancha ke prakhashan ke liye bahut bahut badhai..........:)
दम तोड़ते रिश्ते ......
रिश्तों की गहराई
कभी अदालत में जाकर देखना
जहाँ हररोज़, न जाने कितने रिश्ते
जले कपड़ों में .........
दम तोड़ते हैं .......!!
सम्मानिया मेम ,
प्रणाम !
ऊपर ओलेखित पंक्तियों में बहुत कह दिया आप ने , सातों नज्मे अच्छी है ,
साधुवाद
उन्हें जीने के लिए
खुली बाँहों का
आकाश चाहिए ......!!
saflta ke har sopan ke liye badhaiyaan..baaki jawab hai hi nahi aapka :)
वाह! हरकीरत जी ... रिश्तों को सिर्फ नयी परिभाषा नहीं...नया वजूद, नया आइना, नया रूप दिया है...
dekhna aur fir bhool jana ....ya...dekhna aur dekhte jana ....musalsal ....jaise aankhon me kai aanikhen bhari hon ... kuch isi tarah se rishton ko dekha gaya in kshanikaon ke madhyam se... "rishton ki pareibhasha mujhe sabse jyada pasand aayi ... :)
नज़्मों की शाहजादी हरकीरत हीर साहिबा !
आदाब !
नमस्कार !
सत श्री अकाल !
रचनाएं ''साहित्य अमृत'' में छपने पर बहुत बहुत बधाई !
३ सितम्बर के लाइव शो में रचनापाठ हेतु आमंत्रण के लिए बहुत बहुत बधाई !
…और शुभकामनाएं !
अफ़सोस ! गुवाहाटी जाना नहीं होता हमारा तो …
आपकी नज़्मों को देखते रहने का अभ्यस्त होता जा रहा हूं …
आपकी नज़्मों से गुज़रते हुए
किशोर कुमार जी का गाया एक फिल्मी गीत याद आ जाता है
कितने रांझे तुझे देखके बैरागी बन गए
बैरागी देखके तुझे अनुरागी बन गए …
और जिस लेखन में परिवर्तन लाने की क्षमता हो ,
उसकी सार्थकता स्वयं सिद्ध है ।
मैं छंद का रचनाकार ! नज़्मों की ओर यूं ही तो उन्मुख नहीं होने लगा ।
तमाम नज़्में अद्वितीय !
शुभकामनाओं सहित …
- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं
राजेंद्र जी,
आपने जो संबोधन दिया है उससे अब डर सा लगता है ....
एक और ब्लोगर मित्र थे (अर्श) जो नज्मों की रानी पुकारा करते थे ........
जिनकी टिप्पणियाँ मिस करती हूँ .....
नज्मों में आपकी रूचि जागी.....अच्छा लगा सुनकर .....
एक और मित्र है डा अनुराग ....गज़ब की नज्में लिखते हैं .....
बिलकुल गुलजार सी .....
रिश्तों को इतने विभिन्न रूप से परिभाषित किया है. वाह !
न जाने
कितने रिश्ते
हररोज़ .....
सफ़ेद लिबासों में
दर्द की चादर ओढ़े
पढ़ते हैं .......
अपने-अपने नाम का
मर्सिया ......!!
ये क्या लिख डाला....सारी कि सारी क्षणिकाएं रिश्तों का सच उजागर कर रही हैं..
तमाम सफलताओं के लिए बहुत बहुत बधाई...आप ऐसे ही कामयाबी कि मंजिल तय करती रहें...शुभकामनाएं
ज़िस्म के खात्में पर
जो चीज़ साथ देती है
वह सिर्फ मिट्टी होती है
ये इंसानी रिश्ते तो
वक़्त की सीढियों के साथ
बदलते रहते हैं .....!!
बहुत खूब इन पंक्तियों ने तो इस अभिव्यक्ति को जीवंत कर दिया, बधाई ।
इतनी सुन्दर नज्में ..रिश्तों के ताने-बाने पर लफ्जों को मूर्त रूप देना !...क्या फनकारी है ...बहुत दिन वंचित रह गई...आज आई हूँ तो इत्मिनान से पढूंगी एक एक कर के ।
ढेर सारे प्यारी-प्यारी नज्में...अच्छी लगी..बधाई.
________________________
'पाखी की दुनिया' में 'लाल-लाल तुम बन जाओगे...'
बहुत ही खूबसूरत
congratulation 4 new hight.
risate huye risto par bahut hi bareek pakad wali rachana.
bahut-bahut badhai!
कदम-दर-कदम
रिश्तों में चिंगारियां सी
उठने लगीं हैं .....
मोहब्बत उदासी का पैरहन ओढ़े
ज़िस्म से फाड़ती है कपडे ....
न कोई मीठी बोली आवाज़ लगाती है
न मुस्कुराहटें दरवाज़ा खोलतीं हैं
रात आंसुओं के वजूद पर
बांटती हैं रिश्तों की
परिभाषा .......!!
bahut sach kaha hai........
rishton ki gahrayi adalat mein dekho
bahut sachchi baat
तुम जो भी लिखोगे
इक नज्म बनेगी
उसने बड़ी खूबसूरत ये बात कही...
वो नींद से जागा
बड़ी देर तक नींद न रही
अब फिर से दस्ताने चढ़ा लिए उसने
रिश्तों के लम्स को समझने की तक़दीर न रही...
bahut hi achhe se RISHTON KI JAANCH PADHTAAL KERTI HUI rachnaayen...Bahut hi sunder ....
"साहित्य अमृत" men Nazm prakashit hone par aapko badhaai....
harkirat ji mai to hamesha aapke blog par aati rahi aapki sunder rachanaounko padhati rahi par kabhi koi tippani nahi ki maphi chahati hon. mere blog par aane ka dhnayavad.
बड़ी अजीब शै होता है ये वक़्त....तमाम रिश्तो को फ़िल्टर कर देता है .....ओर फिर अपने मुताबिक उन्हें सिलेवार लगाता है ....रिश्तो को गुलज़ार साहब जैसे परखते है ...लगता है किसी जोहरी को खुदा ने जमीन पे भेजा है माप तौल वास्ते .उनकी एक नज़्म थी पिछले ज्ञानोदय में .....आपको पढ़ा तो वो याद आ गयी.....सो बाँट रहा हूँ.......
मै अगर छोड़ न देता तो मुझको छोड़ दिया होता ,उसने
इश्क में लाज़मी है ,हिज्र विसाल मगर
इक अना भी तो है ,चुभ जाती है पहली बदलने में कभी
रत भर पीठ लगाकर भी तो सोया नहीं जाता
सब कुछ वैसे ही चलता है
जैसे चलता था जब तुम थी
रात भी वैसे ही सर मूंदे आती है
दिन वैसे ही आँख मलते जागता है
तारे साडी रात जम्हाइयाँ लेते है
सब कुछ वैसे चलता है ,जैसे चलता था जब तुम थी !
काश तुम्हारे जाने पर
कुछ फर्क तो पड़ता जीने में
प्यास न लगती पानी की या ,नाखोन बढ़ना बंद हो जाते
बाल हवा में न उड़ते या धुंआ निकलता सांसो से
सब कुछ वैसे ही चलता है ...
बस इतना फर्क पड़ा है मेरी रातो में
नींद नहीं आती तो अब सोने के लिए
इक नींद की गोली रोज़ निगलनी पड़ती है !
वक़्त जो जितना गूंथ सके हम ,गूँथ लिया
आटे की मिकदार कभी बढ़ भी जाती है
भूख मगर इक हद से आगे बढती नहीं
पेट के मारो की ऐसी आदत है ...
भर जाए तो दस्तरख्वान से उठ जाते है !
आओ ,अब उठ जाए दोनों
कोई कचहरी का खूंटा दो इंसानों का
दस्तरख्वान पे कब तक बाँध के रख सकता है
कानूनी मुहरो से कब रुकते है ,या कटते है रिश्ते
रिश्ते रसहं कार्ड नहीं है !!
तुम गए तो कुछ नहीं हुआ
दिल पे ऐ" तमाड़ घट गया मेरा
मै जो दिल के पीछे ,उसके नक़्शे पाया
पाँव रख के चलता था
चलते चलते देखा तो निशान ख़त्म हो गए
तुम गए तो ओर कुछ नहीं हुआ
दिल से ऐ 'तबार उठ गया मेरा !!
अनुराग जी ,
आपकी इस नज़्म पे आँखें नम हो गयीं .......
प्यास न लगती पानी की या ,नाखोन बढ़ना बंद हो जाते
बाल हवा में न उड़ते या धुंआ निकलता सांसो से
सब कुछ वैसे ही चलता है ...
आह....ये गुलजार भी ....
अभी बहुत सीखना है इनसे ....
काश...मेरे पास भी गुलजार जी के कुछ संग्रह होते ......
ज्ञानोदय तो आती है मेरे पास ..फिर मुझे क्यों न दिखी .....
क्या उसी में जिसमेंसे मैंने आपकी टिपण्णी पे लिखी थी .....?
शुक्रिया इस तोहफे के लिए .....!!
mere blog pae aaye aapko bahut din ho gaya have a nice day
mere blog pae aaye aapko bahut din ho gaya have a nice day
बहुत बहुत बधाई!... आपकी रचनाएं बहुत ही सुंदर है!
रिश्तों की गहराई
कभी अदालत में जाकर देखना
जहाँ हररोज़, न जाने कितने रिश्ते
जले कपड़ों में .........
दम तोड़ते हैं .......!!
....रिश्तों का यही हाल है!
सुन्दर रचनाएं!
... बेहतरीन रचनाएं !!!
सुन्दर रचनाये है आपकी .... अपनी भावनाओ को बहुत सुन्दर तरहसे आप कागज पर उतरती है...
हरकीरत जी, काफ़ी दिनों बाद आपके ब्लाग पर आ सका हूं --लेकिन कई सुखद सूचनाओं के साथ रिश्ते पर लिखी बेहतरीन क्षणिकायें पढ़ कर अच्छा लगा।सभी क्षणिकायें एक अलग प्रभाव डालती हैं।
रिश्तों की गहराई
कभी अदालत में जाकर देखना
जहाँ हररोज़, न जाने कितने रिश्ते
जले कपड़ों में .........
दम तोड़ते हैं .......!!
aaahhh!!!
waah!!
इतनी ढेर सारी कामयाबियों के लिये बधाई । रिश्तों की गहराई जानने की आपकी काबिलियत काबिले तारीफ है ।
harkeerat ji,
jo sammaan aapko mila hai waqai sahi mayane me aap uski haqdaar hai. iskeliye tahe dil se aapko badhai.
aapne risten naate par jo chhanikayen likhin hai vo itanibehatareen lagi ki mai padhte -padhte unhi me duub gai ,mujhe samajh me nahi aa raha hai ki mai iski tarrif ke liye koun sa shabd estemal karun.jo bhi likhungi vo kam hi lagenge.ek baar punah aapko hardik badhai.
poonam
रिश्तों पर आपकी बेहतरीन क्षणिकाएँ पढ़ कर दिल भर आया है... सफल लेखन !!!
हरकीरत जी,
..................................
..................................
..................................
आशीष
======================
फिल्लौर फ़िल्म फेस्टिवल!!!!!
इसका मतलब फिल इन द ब्लैंक्स के ब्लैंक्स को फिल करना पड़ेगा!
सबसे ज्यादा तवायफ भाई! (मेरा मतलब कविता और फ़िल्म दोनों! इसके आलावा कुछ नहीं!!!)
कैद में रिश्ते और मिटटी का साथ भी बेहद खूबसूरत और मीनिंगफुल हैं!
(बाकी भी होंगी!!!)
इतना पढ़ लिखा नहीं हूँ, इसलिए ख़ामोशी से कह कर चला गया था के तुस्सिं ग्रेट हो!
================
अब आप भी ब्लैंक्स भर आईये!
आशीष
हरकिरत जी ,हर लाइन पढ़ने के बाद एक बार सोचना पड़ता है.. इन खूबसूरत कविताओं में क्या शब्द पिरोए है आपने और कैसे भाव निकल कर सामने आते है..जितनी बार पढ़ो दिल भर सा आता है..सुंदर प्रस्तुति के लिए आभार और शुभकामनाएँ भी
रिश्तों की गहराई
कभी अदालत में जाकर देखना
जहाँ हररोज़, न जाने कितने रिश्ते
जले कपड़ों में .........
दम तोड़ते हैं .......!!
...दिल को छू गई ये पंक्तियाँ...कभी 'शब्द-सृजन की ओर' भी आयें...
आपकी नज्मों पर तब्सिरा बेहद मुश्किल काम है. मेरे सामने कठिनाई यह होती है कि अल्फाज़ कौन से रखे जाएँ तारीफ के लिए. नज्में हमेशा की तरह एवरेस्ट. मिटटी वाली का जवाब नहीं.
हीर जी लगता है आपकी नज्में पढकर, मेरे सारे शब्द कहीं खो जाते है....तारीफ के लिए क्या कहूं....मालूम नहीं....
वैसे लगता है दुबारा रेडियो खरीदना पड़ेगा....
bahut gahare bhavon se bhari hai aapki har rachna....es chhoti se jindagi mein na jaane kitne modh aa jaate hai aur ham unse gujati kuch shikhte jaate hai..
Betreen prastuti ke liye dhaynavaad
सर्वत जी ,
ये सब क्या है .....???
बहुत दिनों के बाद आना मुमकिन हो सका है. कुछ काम की व्यस्तता, कुछ हालात, इन सभी ने कुछ ऐसा किया कि लगा जैसे नेट से मोह भंग हो गया हो. चाहते हुए भी कुछ नहीं हो सका. कुछ मित्रों से राय ली-क्या ब्लॉग बंद कर दूं....जवाब मिला, ऐसा होता रहता है. लगे रहो. फिर भी मन को चैन नहीं था.
फिर सोचा यह कमेन्ट वगैरह का चक्कर खत्म कर दिया जाए. यह पॉइंट कुछ जचा, कमेन्ट का ऑप्शन खत्म कर दिया. जिन्हें मुझे पढना है, पढ़ लें. प्रशंसा लेकर करूंगा भी क्या. हाँ, जो दोष हों उनके लिए मेल बॉक्स तो है ही.
फिलहाल, बिना कमेन्ट की इच्छा किए, गज़ल आपकी खिदमत में पेश है.
पता चलता नहीं दस्तूर क्या है
यहाँ मंज़ूर, नामंजूर क्या है
कभी खादी, कभी खाकी के चर्चे
हमारे दौर में तैमूर क्या है
गुलामी बन गयी है जिनकी आदत
उन्हें चित्तौड़ क्या, मैसूर क्या है
नहीं है जिसकी आँखों में उजाला
वही बतला रहा है नूर क्या है
बताओ रेत है, पत्थर कि शीशा
किया है तुम ने जिस को चूर, क्या है
यही दिल्ली, जिसे दिल कह रहे हो
अगर नजदीक है तो दूर क्या है
वतन सोने की चिड़िया था, ये सच है
मगर अब सोचिए मशहूर क्या है.
सबसे पहले तो आपसे निवेदन है की कमेन्ट बाक्स खोल दे ....
जानती हूँ ये टिप्पणियाँ प्रेरणा के लिए कितनी जरुरी हैं ....
प्लीज़ ....अपने लिए न सही ...हमारे लिए ही सही .....
और ये मत्ला ......
पता चलता नहीं दस्तूर क्या है
यहाँ मंज़ूर, नामंजूर क्या है
अन्दर का कोई गुब्बार लगता है ....!!
बताओ रेत है, पत्थर कि शीशा
किया है तुम ने जिस को चूर, क्या है
क्या है ये तो चूर करने वाले ही बता सकते हैं ....
गज़ब के शे'र .....पर पीछे कहीं गहरी उदासी सी लगी ......!!
boletobindas said...
हीर जी लगता है आपकी नज्में पढकर, मेरे सारे शब्द कहीं खो जाते है....तारीफ के लिए क्या कहूं....मालूम नहीं....
वैसे लगता है दुबारा रेडियो खरीदना पड़ेगा....
रोहित जी ,
ये रेडिओ किसलिए .....?
ये कार्यक्रम तो दूरदर्शन में हो रहा है ......!!
hrkirt
dil ke drwaje khol bhavnao ki ghrai me aapki nzmo ke sath dubne utrane ka apna ek alg hi mja hai . bhut achchha lgta hai aapko aapke rchna snsar me gtisheel dekh ke . aapki rchnao pe aaye commets bhi kafi kuchh sikhate hai .
shubhkamnaye .
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