" मिर्ज़ा-ग़ालिब ".....आज टी. वी आन करते ही सामने स्क्रीन पे यही फिल्म चल रही थी ....और वही ग़ज़ल जिसका शे'र पिछली पोस्ट में तिलक राज़ जी लिख गए थे ........
हमने माना कि तग़ाफुल न करोगे लेकिन
ख़ाक हो जायेंगे हम तुमको ख़बर होने तक
अब तक मुझे मालूम न था कि ये ग़ज़ल इस फिल्म में है ......पूरी फिल्म देख डाली.... ...शेरो-शायरी के बीच अद्भुत त्रिकोणीय प्रेम-कहानी है ग़ालिब जी की ......अभी तक जेहन में डूब उतर रही है ......
ये न थी हमारी किस्मत के विसाले यार होता
ख़ाक हो जायेंगे हम तुमको ख़बर होने तक
अब तक मुझे मालूम न था कि ये ग़ज़ल इस फिल्म में है ......पूरी फिल्म देख डाली.... ...शेरो-शायरी के बीच अद्भुत त्रिकोणीय प्रेम-कहानी है ग़ालिब जी की ......अभी तक जेहन में डूब उतर रही है ......
ये न थी हमारी किस्मत के विसाले यार होता
अगर और जीते रहते यही इन्तजार होता ....
इस ग़ज़ल के साथ ही अंत में प्रेमिका ग़ालिब की बाँहों में दम तोड़ देती है ......इक और ग़ज़ल की पंक्तियाँ अंत में बैक ग्राउंड में बजतीं हैं ..... 'शमा बुझती है तो उसमें से धुंआ उठता है
शोला ऐ इश्क सिया पोश हुआ मेरे बाद'
जिस पर गरूर है तू वो भी दिखा के देख
फ़न को बुलंदियों पर कुछ यूँ सजा के देख
मुझको हबीब कितने उल्फ़त ने दे दिए हैं
हैबत से न बनेंगे, इक तो बना के देख
तेरी गली की राहें मुझको पता हैं लेकिन
आवाज़ दे कभी तो, मुझको बुला के देख
मत पूछ क्या मिला है उसको गले लगा के
दिल में मुहब्बतों का गुलशन लगा के देख
ऐसा तो वो नहीं था , बातों में आ गया है
उसकी नज़र से अपनी नज़रें मिला के देख
गर इश्क़ है खता तो , मुझसे खता हुई है
मुंसिफ सजा बता मत, मुझको सुना के देख
तुझे 'हीर' में मिलेंगे मैखाना और मंदिर
भूले से ही कभी पर , नज़रें उठा के देख
हबीब- मित्र ,हैबत- आतंक
बह्र: मफ़ऊल फायलातुन मफ़ऊल फायलातुन
63 comments:
मत पूछ क्या मिला है, उसको गले लगाके
दिल में मुहब्बतों का गुलशन लगा के देख.
.....bahut accha laga yah padhakar .badhaai.
मत पूछ क्या मिला है, उसको गले लगाके
दिल में मुहब्बतों का गुलशन लगा के देख..
VAAH.
गर इश्क है खता तो, मुझसे खता हुई है,
मुँसिफ़ सजा बता मत, मुझ को सुना के देख
बहुत बढिया-आभार
मत पूछ क्या मिला है उसको गले लगा के
दिल में मुहब्बतों का गुलशन लगा के देख
ऐसा वो नहीं था , बातों में आ गया है
उसकी नज़र से अपनी नज़रें मिला के देख
गर इश्क़ है खता तो , मुझसे खता हुई है
मुंसिफ सजा बता मत, मुझको सुना के देख
तुझे 'हीर' में मिलेंगे मैखाना और मंदिर
भूले से ही कभी पर , नज़रें उठा के देख
सजदा कबूल करें..नहीं जाऊंगा इस बार.....लगाकर।
bemisal......har ek sher.........
shukriya..........
बहुत बढ़िया.. गजब..
तेरी गली की राहें मुझको पता हैं लेकिन
आवाज़ दे कभी तो, मुझको बुला के देख
मत पूछ क्या मिला है उसको गले लगा के
दिल में मुहब्बतों का गुलशन लगा के देख
आपकी ग़ज़ल में खूबसूरती और शोखी दोनो ही हैं ..... नये अंदाज़ के शेर है ... इस फन में भी आपका मुकाबला नही है ... लाजवाब ...
गर इश्क़ है खता तो , मुझसे खता हुई है
मुंसिफ सजा बता मत, मुझको सुना के देख
गज़ब की प्रस्तुति……………और गालिब साहब का तो क्या कहना……………और ये फ़िल्म तो थी ही गज़ब की।
मुंसिफ सजा बता मत, मुझको सुना के देख................bahut khoob!!!
गज़ब की प्रस्तुति……………और गालिब साहब का तो क्या कहना……………और ये फ़िल्म तो थी ही गज़ब की
ऐसा तो वो नहीं था , बातों में आ गया है
उसकी नज़र से अपनी नज़रें मिला के देख
sundar.
तुझे 'हीर' में मिलेंगे मैखाना और मंदिर
भूले से ही कभी पर , नज़रें उठा के देख
vaah, kya baat hai. ati sundar.
जिस पर गरूर है तू वो भी दिखा के देख
फ़न को बुलंदियों पर कुछ यूँ सजा के देख
मत पूछ क्या मिला है उसको गले लगा के
दिल में मुहब्बतों का गुलशन लगा के देख
गजल यूँ तो हमेशा की तरह बेहतरीन थी।
हम ज्यादा क्या बयान कर सकते है
अपनी पसंद का शेर निकाल रख देते है।
बहुत खूब...पूरी ग़ज़ल लाजवाब
तुझे 'हीर' में मिलेंगे मैखाना और मंदिर
भूले से ही कभी पर , नज़रें उठा के देख
और ये तो दिल में उतरने वाली बात कह दी है....
तेरी गली की राहें मुझको पता हैं लेकिन
आवाज़ दे कभी तो, मुझको बुला के देख
पूरी ग़ज़ल ही हमेशा की तरह लाज़बाब है...बहुत खूब
aap Dil ko chhune wali baat karti ho.........bahut khub!! bahut khubsurat!!
तेरी गली की राहें मुझको पता हैं लेकिन
आवाज़ दे कभी तो, मुझको बुला के देख
बहुत खूब लिखा है...... पूरी ईमानदारी से कहूं तो ग़ज़ल यह शेर पढ़ते ही ज़ेहन पर छा गया है.
आपने जनाब मिर्ज़ा ग़ालिब कि बात की और उनकी एक बेहतरीन ग़ज़ल की भी. जबसे शाइरी से वास्ता रखना शुरू किया तब सबसे पहले मिर्ज़ा ग़ालिब को ही पढ़ा. उनकी इस ग़ज़ल का एक शेर मुझे बेहद पसंद है...
कोई मेरे दिल से पूछे तिरे तीर-ए-नीमकश को
ये ख़लिश कहाँ से होती जो जिगर के पार होता..
आपकी ग़ज़ल के बारे में और अभी तक आपका लिखा हुआ जो भी पढ़ सका हूँ उसके बारे में जनाब ग़ालिब साहब की ही एक पंक्ति कहना चाहूँगा ....
"शमा हर रंग में जलती है सहर होने तक"...
गर इश्क़ है खता तो , मुझसे खता हुई है
मुंसिफ सजा बता मत, मुझको सुना के देख
तुझे 'हीर' में मिलेंगे मैखाना और मंदिर
भूले से ही कभी पर , नज़रें उठा के देख
Isq ko prashtbhumi banakar Dil Ki Gahraai mein utarkar Sache IsQ ko talasti gajal man ko bha gayee.
Bahut shubhkamnayne..
....बेहतरीन!!!
Hello :)
मत पूछ क्या मिला है उसको गले लगा के
दिल में मुहब्बतों का गुलशन लगा के देख
Main kya kahu... aapne bahut hi sundartaa se shabdo ko piroyaa hai...
Sundar moti :) jaise lag rahey hain!
Umdaah :)
Regards,
Dimple
new layout !!!
achchha hai
गर इश्क़ है खता तो , मुझसे खता हुई है
मुंसिफ सजा बता मत, मुझको सुना के देख
बहुत बढ़िया सुन्दर ..
तेरा कसूर था ना मेरा कसूर था ,ये तो जिगर ही है जिसका कसूर था
मय की ओउकात नशे में करेचूर, ये आदतन नशा हैइसी का कसूर था
तुझे 'हीर' में मिलेंगे मैखाना और मंदिर
भूले से ही कभी पर , नज़रें उठा के देख
वाह क्या अन्दाज़ है
आपका जवाब नही.
तेरी गली की राहें मुझको पता हैं लेकिन
आवाज़ दे कभी तो, मुझको बुला के देख
मत पूछ क्या मिला है उसको गले लगा के
दिल में मुहब्बतों का गुलशन लगा के देख
बहुत लाजवाब,हर इक बात बहुत गहरी.इतनी बेहतरीन प्रस्तुती के लिए आभार
हर शेर मुकम्मल
पढ़ कर मजा आ जाया
जिस पर गरूर है तू वो भी दिखा के देख
फ़न को बुलंदियों पर कुछ यूँ सजा के देख
वाह क्या बात है
वाह!! बहुत खूबसूरत गज़ल.
बहुत बढ़िया
वाह, क्या बात है!
गर इश्क़ है खता तो , मुझसे खता हुई है
मुंसिफ सजा बता मत, मुझको सुना के देख
-वाह!! देर से आये मगर आनन्द पूरा उठाये, बहुत खूब!!
गर इश्क है खता तो, मुझसे खता हुई है,
मुँसिफ़ सजा बता मत, मुझ को सुना के देख
Wah-wah!bahut khoob gazal.
तुझे 'हीर' में मिलेंगे मैखाना और मंदिर,
भूले से ही कभी पर , नज़रें उठा के देख...
नज़रें उठा के देख...अरे नज़रें इक लम्हे के लिए हीर से हटने की गुस्ताख़ी करें, तभी उन्हें उठाने की बाबत सोचे न...
जय हिंद...
वाह.... !!
ग़ज़ल में
आपकी लगन
और
तिलक राज जी की मेहनत
दोनों झलक रहे हैं ......
क्या खूब लिखा आपने !!!
ऐसा तो नहीं था ...बातों में आ गया है
उसके नजरों में नजरे मिला कर देख ...
वाह ...
गर इश्क़ है खता तो , मुझसे खता हुई है
मुंसिफ सजा बता मत, मुझको सुना के देख...
बहुत खूब ..
एक -एक शेर नगीना है इस खूबसूरत ग़ज़ल का ...बहुत सुन्दर
गर इश्क़ है खता तो , मुझसे खता हुई है
मुंसिफ सजा बता मत, मुझको सुना के देख
bahut hi khoobsurat
-Shruti
हरकीरतजी,
'मिर्ज़ा ग़ालिब' बरसों पहले देखी थी. मुतासिर भी हुआ था. लम्बे समय तक मन में घुमड़ता रहा था ये फ़साना ! लेकिन ग़ालिब के बाद कुछ लिखना आसान कहाँ था ?
आपने तो बहुत शानदार, वज़नदार और जानदार ग़ज़ल कही है ! कई अशार तो इतने सलीके से कहे हैं आपने कि चौंक पडा हूँ! हर शेर बड़े आराम से उठा है और कुछ ऐसे ख़म से अन्त्यानुप्रास पर उतरा है कि मज़ा आ गया ! बहुत सुदर !! बधाई !!!
साभिवादन--आ.
आपकी नज्मों के जादू से तो अभी तक बंधे ही हुए हैं अब आप ग़ज़ल में भी वोही जादू जगा रही हैं...बेहतरीन...वाह...
नीरज
बहुत सारी टिप्पणियाँ कमेन्ट बॉक्स से गायब हो गयीं हैं ....पता नहीं कैसे ....मैंने किसी और ब्लॉग पे भी कुछ ऐसा ही देखा ...याद नहीं किस किस की थी एक शायद साहिल जी ..थी .....कृपया कोई अन्यथा न ले ......!!
नज़रें उठा के देखा तो हीर दिखी ,नज़रें झुका के देखा तो हीर ही दिखी|
चश्मा लगाया तो हीर दिखी,बिन चश्मे वी कसम नाल हीर ही विखी
मिर्ज़ा ग़ालिब को गर मैंने समझा है तो गुलज़ार की आँख से ही जाना है .......ओर आज सुबह ही मोबाइल के रास्ते ग़ालिब दिलमे दाखिल हुए थे ....अपनी आह को चाहिए एक उम्र असर होने तक लेकर..........
वैसे गुलज़ार ने ग़ालिब पर पूरी एक किताब लिखी है .कभी मौका मिले तो पढियेगा ....
आखिरी शेर पर बकोल ग़ालिब
"कुछ ओर चाहिए बुशरत मेरे बयाँ के लिए "
झामोश झल्ला जी ,
इतना भी मत देखिये अब........
कोई तडपा करे या कोई जान से जाये
कब ये बेदर्द भला नज़र करते हैं ......
aapke ek aur fan se ru-b-ru ho gaye aaj..clap karne ko ji chaahta hai..har sher lajawaab...badhayi.
ग़ज़ल कि बात बाद में कभी...
पहले बात इस बात की के बाहर ४१ कमेंट्स शो कर रहा है..जब कि कमेंट्स बॉक्स में ३४ ही हैं....
दो तीन जगह से और भी शिकायत आई है..
तीन कमेन्ट हमारे ब्लॉग से भी उड़ गए हैं...हमें भी उस वक़्त बहुत हैरानी हुई थी के इंदु जी के कमेन्ट हमने अपने ब्लॉग पर अपनी आँखों से देखे हैं..
उन्हें जवाब भी दिया है....
रत देखा तो उनके कमेंट्स गायब थे..और हमारा जवाब उसी जगह पर था...बहुत हैरान परेशान हुए....पर अब जाकर पता लगा है के ये गूगल देव कि ही कोई लीला लगती है...
कृपया कोई भी ब्लोगर इसे अन्यथा न ले...
Very nice post badhai harkeertji www.jaikrishnaraitushar.blogspot.com
जिस पर गरूर है तू वो भी दिखा के देख
फ़न को बुलंदियों पर कुछ यूँ सजा के देख
क्या बात है!! बुलंद बातें ।
तेरी गली की राहें मुझको पता हैं लेकिन
आवाज़ दे कभी तो, मुझको बुला के देख
इस बात पर मेरी मजबूरियां कहती हैं-
बेपता को बेपता आवाज दे
परकटे हैं या खुदा परवाज दे
ऐसा तो वो नहीं था , बातों में आ गया है
उसकी नज़र से अपनी नज़रें मिला के देख
सच है
नजरों से झांकती है सचाई नजर में देख
खोई हुई हो चीज तो पहले तू घर में देख
हीर जी !
आपको आदाब
और
तिलकराज जी !
आपकी नगतराशी को सलाम
तराशा हमेशा काबिलियत को ही जाता है।
bahut sunadr .Badhai!!!
कमेंट... गायब हो जाएं कोई बात नहीं, महत्वपूर्ण तो यह है न कि कितने लोगों ने आपका लिखा पसंद किया। जैसे कि buzz में होता है। सिर्फ like पर क्लिक करने से भी काम चलता है। आैर अगर कोई कमेंट मिटा भी दे तो ये उसका व्यक्तिगत मामला है कि उसे आपकी राय से इत्तेफाक नहीं है।..... अन्यथा लेना तो बेवकूफी ही कही जा सकती है।
बहरहाल ये जो गूगल की माया है उसके भुक्तभोगी हम भी हैं, पर क्या करें कंट्रोल किसी आैर ही हाथ में है।
टिप्पणी हटाने का अटैक तभी हो सकता है जब आप गूगल एकाउँट पर लाग्ड-ईन हों। प्रश्न उठता है कि किसी को कैसे पता चलेगा कि आप लाग्ड-ईन हैं।
कुछ कठिन नहीं, अगर आप गूगल चैट का उपयोग करते हैं और आपने स्वयं को इन्विजि़बल नहीं किया हुआ है तो यह देखा जा सकता है कि आप लाग्ड-ईन हैं।
ओ बेटा....!!!!!!!!!!!!!!!
हमारे कमेंट्स तो वापिस मिल गए....वो भी जहां थे..ठीक उसी जगह....
और त्वाडे कमेंट्स भी वापस आ गए हीर जी....
ओ जी..
बल्ले..बल्ले...
ओ..
शावा शावा.....
तेरी गली की राहें मुझको पता हैं लेकिन
आवाज़ दे कभी तो, मुझको बुला के देख
मत पूछ क्या मिला है उसको गले लगा के
दिल में मुहब्बतों का गुलशन लगा के दे
aapki rachna ki kya taarif karoon ,shabd hi nahi hai wo ,bahut hi umda likhti hai ,har sher laazwaab .
अब बात ग़ज़ल की..
खूबसूरत बह्र में ढालने कि कोशिश कि गयी है..उम्दा ख्यालों को...
दोनों फनकारों ने अच्छी कोशिश कि है.....
जारी रखें........
मअफूल फाइलातुन , मअफूल फाइलातुन......
काफी हद तक मअफूल फाइलातुन हुई है.....
ज़ारी रखें...
हीर जी
अरसे बाद आपकी ग़ज़ल से रु ब रु हुए
मतला तो बहुत ही शानदार है......
जिस पर गरूर है तू वो भी दिखा के देख
फ़न को बुलंदियों पर कुछ यूँ सजा के देख
.........और ये शेर तो काबिले दाद है...क़ुबूल करें
तेरी गली की राहें मुझको पता हैं लेकिन
आवाज़ दे कभी तो, मुझको बुला के देख
क्या बात कह दी आपने...वाह वाह.......
गर इश्क़ है खता तो , मुझसे खता हुई है
मुंसिफ सजा बता मत, मुझको सुना के देख
पूरी ग़ज़ल शानदार है........बेहतरीन ग़ज़ल पेश करने का शुक्रिया.....
Hi..
Yun teri vazm roshan, chahe rahi hamesha..
Ghar ke kisi kone main, 'DEEPAK' jala ke dekh..
Tere habib kitne, tujhko pata chalega..
Kisi roz un sabhi ko aajma ke dekh..
Sundar gazal..
DEEPAK SHUKLA..
Hi..
Yun teri vazm roshan, chahe rahi hamesha..
Ghar ke kisi kone main, 'DEEPAK' jala ke dekh..
Tere habib kitne, tujhko pata chalega..
Kisi roz un sabhi ko aajma ke dekh..
Sundar gazal..
DEEPAK SHUKLA..
Hi..
Yun teri vazm roshan, chahe rahi hamesha..
Ghar ke kisi kone main, 'DEEPAK' jala ke dekh..
Tere habib kitne, tujhko pata chalega..
Kisi roz un sabhi ko aajma ke dekh..
Sundar gazal..
DEEPAK SHUKLA..
--आप की लिखी ग़ज़ल लाजवाब ...
------जिस अधूरे शेर के बारे मं आप ने पूछा है वह ऐसे है ....
*'शमा बुझती है तो उसमें से धुंआ उठता है
शोला ऐ इश्क सिया पोश हुआ मेरे बाद'
:)ये मेरी तरफ से ग़ालिब का ही एक शेर-
आये है बेकसी इश्क पे रोना ग़ालिब
किस के घर जाये गा सलीबे बला मेरे बाद
मेरी पसन्द -
"मुझको हबीब कितने उल्फ़त ने दे दिए हैं
हैबत से न बनेंगे, इक तो बना के देख॥"
बाकी आपकी गज़ल सुभान अल्ला!! :)
तेरी गली की राहेँ
मुझको पता हैँ लेकिन,
आवाज़ दे कभी तो
मुझको बुला के देख।
बहुत खूबसूरत गज़ल
बधाई
ye ghazal sabko bahut [asand hai
ye ghazal mujhko bhi to achhi lagi . :) nice blog .. :)
Hawaaon si rawaangi.... Hawa ke jhonke si chhoo kar mandraati hui ghazal
Post a Comment