Sunday, April 18, 2010

बड़े मदहोश लम्हे थे सनम जब सामने आये.....

पिछले दिनों वीनस जी ने ग़ज़ल कि दिशा में इक नया ब्लॉग शुरू किया था ......" आइये इक शेर कहें "....जिसे किन्हीं निजी कारणों से वीनस जी को बंद कर देना पड़ा ......खैर जितने दीं कक्षा चली हमने खूब मज़े लूटे ....और वहीँ से लुट-पिट के आई ये ग़ज़ल .....
मत्ला दिया था समीर जी ने .............

फरिश्ते इस ज़मीं पर आके , अक्सर टूट जाते हैं
संभल कर साथ में चलना, ये रिश्ते टूट जाते हैं

ग़ज़लगोओं से इल्तिजा है कि इस ग़ज़ल में रह गयी खामियों पर अपने नज़रीयात पेश करें .........



ग़ज़ल

क्यूँ ये चाहतों के सिलसिले यूँ छूट जाते हें
बता क्यूँ दिल मोहब्बत से भरे ये टूट जाते हें ?

नज़र जो मुंतजिर होती कभी हम लौट ही आते
घरौंदे ये उम्मीदों के भला क्यूँ टूट जाते हैं...?


शजर हमने लगाये जो , वो अक्सर सूख जाते हैं
जहाँ हमने मुहब्बत की शहर ही छूट जाते हैं


जफ़ा देखी वफ़ा देखी जहाँ की हर अदा देखी
छुपा चहरे नकाबों में , चमन वो लूट जाते हैं


वो कश्ती हूँ बिखरती जो रही बेबस हवाओं से
बहाना था वगरना दिल कहाँ यूँ टूट जाते हैं


सदा जो मुस्कुरा कर हैं कभी देते सनम मुझको
बहारें लौट आतीं फिर गिले भी छूट जाते हें


घरौंदे साहिलों पर तुम बना लो शौक से लेकिन
बने हों रेत से जो घर , वो 'हीर' टूट जाते हैं

बहर - १२२२,१२२२,१२२२,१२२२
मुन्तज़िर - प्रतीक्षक

89 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

नज़र जो मुन्तजिर होती हम भी लौट आते घर
परिंदों के घरौंदों से , घर क्यूँ टूट जाते हैं.... ?


लगाये जो शजर हमने बाग़ ही सूख जाते हैं
जहाँ हमने मुहब्बत की शहर वो छूट जाते हैं

पूरी गज़ल लाजवाब....और ये शेर दिल के बहुत करीब लगे...बहुत खूब

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

क्या बात है साहब, बहुत खूब... वाह वाह... हर शेर एक से बढ़कर एक.

M VERMA said...

बड़े नाज़ुक से लम्हे थे जब वो सामने आये
जुबां खामोश रहती है तअश्शुक फूट जाते हैं
और फिर
लगाये जो शजर हमने बाग़ ही सूख जाते हैं
जहाँ हमने मुहब्बत की शहर वो छूट जाते हैं

बेमिसाल की क्या मिसाल

Shekhar Kumawat said...

नज़र जो मुन्तजिर होती हम भी लौट आते घर
परिंदों के घरौंदों से , घर क्यूँ टूट जाते हैं....


bahut khub

shekhar kumawat
http://kavyawani.blogspot.com/\

अलीम आज़मी said...

लगाये जो शजर हमने बाग़ ही सूख जाते हैं
जहाँ हमने मुहब्बत की शहर वो छूट जाते हैं

kya baaat hai bahut umda likha hai aapne....

Apanatva said...

bemisaal.......

फ़िरदौस ख़ान said...

कभी वो मुस्कुराते हैं ,कभी वो रूठ जाते हैं
बड़े ज़ालिम महबूब हैं तसव्वुर लूट जाते हैं


नज़र जो मुन्तजिर होती हम भी लौट आते घर
परिंदों के घरौंदों से , घर क्यूँ टूट जाते हैं.... ?


लगाये जो शजर हमने बाग़ ही सूख जाते हैं
जहाँ हमने मुहब्बत की शहर वो छूट जाते हैं


लाजवाब ग़ज़ल है... एक-एक शेअर बेहद उम्दा...

vandana gupta said...

फरिश्ते इस ज़मीं पर आके , अक्सर टूट जाते हैं
संभल कर साथ में चलना, ये रिश्ते टूट जाते हैं
हकीकत बयाँ कर दी है………………………………बहुत ही सुन्दर गज़ल्।

डॉ टी एस दराल said...

कभी वो मुस्कुराते हैं ,कभी वो रूठ जाते हैं
बड़े ज़ालिम महबूब हैं तसव्वुर लूट जाते हैं

आह , क्या बात है इस अंदाज़ में ।

इस मतले के बाद दूसरा शेर मतले जैसा ही लग रहा है। इसे ठीक किया जा सकता है।

Randhir Singh Suman said...

nice

''अपनी माटी'' वेबपत्रिका सम्पादन मंडल said...

कभी वो मुस्कुराते हैं ,कभी वो रूठ जाते हैं
बड़े ज़ालिम महबूब हैं तसव्वुर लूट जाते हैं


achaa likhatee hai aap

APNI MAATI
MANIKNAAMAA

देवेन्द्र पाण्डेय said...

लाज़वाब गज़ल है मगर
'चहरे' खटकता है।

राज भाटिय़ा said...

बहुत सुंदर लगे आप केसभी शेर.
धन्यवाद

ज्योति सिंह said...

वो कश्ती हूँ बिखरती जो रही बेबस हवाओं से
बहाना था वगरना दिल कहाँ यूँ टूट जाते हैं


अक्सर मुस्कुरा कर जो सदायें मुझको देते हैं
इशारों ही इशारों में , दिलों को लूट जाते हैं


बड़े नाज़ुक से लम्हे थे जब वो सामने आये
जुबां खामोश रहती है तअश्शुक फूट जाते हैं


गुमां न कर इतना अपने इन नादान ख्यालों पे
लहरें जो साथ न दें तो सागर भी टूट जाते हैं
bemisaal ,padhkar dil ko sukoon pahuncha .

सु-मन (Suman Kapoor) said...

गुमां न कर इतना अपने इन नादान ख्यालों पे
लहरें जो साथ न दें तो सागर भी टूट जाते हैं

बहुत सुन्दर

हरकीरत ' हीर' said...

वंदना जी .

इतनी भी हड़बड़ी ठीक नहीं ....जिस शे'र की तारीफ कर रहीं हैं वो मेरा नहीं समीर जी का है .....!!

Khushdeep Sehgal said...

लगाये जो शजर हमने बाग़ ही सूख जाते हैं,
जहाँ हमने मुहब्बत की शहर वो छूट जाते हैं...

अपना शहर मेरठ भी दस साल पहले छूट गया था...अब तो सिर्फ यही गा सकते हैं...छोड़ आए हम वो गलियां...

जय हिंद...

मनोज भारती said...

आज बहुत दिन बाद आप को पढ़ा, जानें क्यों इधर आना ही न हुआ और अब जब मैं आपके अशआरों को पढ़ रहा हूँ तो लग रहा है कि इतने दिनों तक मैं इस अल्मास से दूर कैसे रहा ... जो हो हरकीरत 'हिर'का कोई सानी नहीं इस ब्लॉग जगत पर ।

वन्दना अवस्थी दुबे said...

सुन्दर अश’आर. बधाई.

अरुणेश मिश्र said...

लाजबाब ।

Deepak Shukla said...

Hi..
Gazal par hum kahen kuchh bhi, nahi ustaad etne hain..
Tere ashaar padh kar hum to khud ko bhul jaate hain..

Wah.. Kya gazal hai..

DEEPAK..

nilesh mathur said...

कभी वो मुस्कुराते हैं ,कभी वो रूठ जाते हैं
बड़े ज़ालिम महबूब हैं तसव्वुर लूट जाते हैं
वाह ! क्या बात है !

Shayar Ashok : Assistant manager (Central Bank) said...

जफ़ा देखी वफ़ा देखी जहाँ की हर अदा देखी
छुपा चहरे नकाबों में , हया वो लूट जाते हैं

लाज़वाब .........


बड़े नाज़ुक से लम्हे थे जब वो सामने आये
जुबां खामोश रहती है तअश्शुक़ फूट जाते हैं

मेरी सबसे पसंदीदा शेर .....


कभी मत्ले पे होती वाह कभी मक्ता लुभाता है
अस'आर तेरे यूँ 'हीर' दिलों को लूट जाते हैं ।

सच में... मक्ता दिल को लुभा गया ||

दिगम्बर नासवा said...

आपके शेर तो कमाल के निकले हैं ... हमने भी एक शेर कहा था वहाँ ...

गुज़रती उम्र का दिखने लगा है कुछ असर मुझ पर
जो उम्दा शेर होते हैं वो अक्सर छूट जाते हैं

Kulwant Happy said...

अद्बुत।
अद्बुत।

मत छीन मुझसे मेरे गम का खजाना,
फिर मत कहना, हैप्पी लोग रूठ जाते हैं

रश्मि प्रभा... said...

गुमां न कर इतना अपने इन नादान ख्यालों पे
लहरें जो साथ न दें तो सागर भी टूट जाते हैं
....
अब कहने को रहा क्या...
या खुदा इस ग़ज़ल का सजदा करने की इजाज़त दे दे

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" said...

बेहतरीन ग़ज़ल है ! खास कर ये शेर मुझे बहुत पसंद आया:
गुमां न कर इतना अपने इन नादान ख्यालों पे
लहरें जो साथ न दें तो सागर भी टूट जाते हैं
और मकते का क्या कहने .... आपके अस'आर तो दिल को लूट गया जी ..
कभी मत्ले पे होती वाह कभी मक्ता लुभाता है
अस'आर तेरे यूँ 'हीर' दिलों को लूट जाते हैं ।!!

kavi surendra dube said...

"आइए एक शेर कहें " का प्रयोग बहुत जोरदार है .यह सचमुच ब्लॉग के लिए ही बना है .इससे गजल को तो विकास और विस्तार मिलेगा ही साथ में एक अभिरुची के रचनाकार सामूहिक सृजन कर सकेंगे .काव्य लिखना या कहना अभी तक व्यक्तिगत था ,अब यह सामुहिक होगा.मोलिकता को लेकर भी अनेक सवाल खड़े होने .लेकिन नया काम करने वाले अपना काम करते हैं .समय ही फैसला करता है की सही हुआ या गलत ? बहरहाल यह नया काम आपके जरिये हम तक पहुंचा .आपको साधुवाद .

सुशीला पुरी said...

बहुत खूब लिखा आपने !!!!!!!!!

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत ही सुन्दर गजल है।बधाई स्वीकारें।

लगाये जो शजर हमने बाग़ ही सूख जाते हैं
जहाँ हमने मुहब्बत की शहर वो छूट जाते हैं

sandeep sharma said...

हरकीरत जी,
आपकी रचना ने वाकई मन मोह लिया... बहुत दिनों से किसी के ब्लॉग पर नहीं आ पाया हूँ, पर आपकी यह रचना मुझमे अफ़सोस जाहिर करवा रही है, की क्यों नहीं ब्लॉग पर आ पाया... आपकी रचना वाकई काबिल-ए-तारीफ हैं...


कभी वो मुस्कुराते हैं ,कभी वो रूठ जाते हैं, बड़े ज़ालिम महबूब हैं तसव्वुर लूट जाते हैं
नज़र जो मुन्तजिर होती हम भी लौट आते घर, परिंदों के घरौंदों से , घर क्यूँ टूट जाते हैं.... ?

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

मोहतरमा हरकीरत जी, आदाब
इसमें कोई शक नहीं कि ग़ज़ल की इस कोशिश में आप बहुत कामयाब रही हैं....
अलबत्ता आपने कई शेर और मिसरे ऐसे जोड़े हैं, जिन्हें शायद मैं या तिलक जी देख नहीं पाये हैं......
इसी वजह से उनमें फ़न के ऐतबार से मामूली सी खामियां झलक रही हैं.
बहरहाल इस कोशिश के लिये आप बधाई की पात्र हैं.

SACCHAI said...

" कभी वो मुस्कुराते हैं ,कभी वो रूठ जाते हैं
बड़े ज़ालिम महबूब हैं तसव्वुर लूट जाते हैं
नज़र जो मुन्तजिर होती हम भी लौट आते घर
परिंदों के घरौंदों से , घर क्यूँ टूट जाते हैं....?"

" subhaan allah ..ek se badhker ek "

" badhai "

----- eksacchai { AAWAZ }

http://eksacchai.blogspot.com

वीनस केसरी said...

जफ़ा देखी वफ़ा देखी जहाँ की हर अदा देखी
छुपा चहरे नकाबों में , हया वो लूट जाते हैं


वो कश्ती हूँ बिखरती जो रही बेबस हवाओं से
बहाना था वगरना दिल कहाँ यूँ टूट जाते हैं

:):):):):):):):):):)
अब क्या कहें
स्माईली से ही काफी कुछ कहा जा सकता है
आज समझ में आया :)

वीनस केसरी said...

हरकीरत जी निवेदन है आप मुझे केवल "वीनस" कहा करें

ओम पुरोहित'कागद' said...

बहुत कुछ
सरसराता सा
पासंग से
निकल गया
शायद
वह कोई
बिसरा क्षण था
जिस मेँ बसी
याद थी
किसी की............
.................!

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

ग़ज़ब के शीर्षक के साथ.... बहुत बढ़िया ग़ज़ल....

Udan Tashtari said...

हर शेर शानदार...वाह!!

एक उम्दा गज़ल!

वाणी गीत said...

गुमां न कर इतना अपने इन नादान ख्यालों पे
लहरें जो साथ न दें तो सागर भी टूट जाते हैं...
वाह ..विशाल सागर ...टकराती कमजोर लहरे ...फिर भी सागर को तोड़ने का हौसला रखे ...
किसी गुमान में ना रहे सागर ...क्या बात है ...
शानदार ग़ज़ल ...!!

Anonymous said...

दिल को छू जाने वाली ग़ज़ल

अजित गुप्ता का कोना said...

एक से एक बढ़कर शेर हैं। बहुत बधाई।

kunwarji's said...

"बड़े नाज़ुक से लम्हे थे जब वो सामने आये
जुबां खामोश रहती है तअश्शुक़ फूट जाते हैं"

bahut khoob wali baat hai ji,

kunwar ji,

Kuldeep Saini said...

कभी वो मुस्कुराते हैं ,कभी वो रूठ जाते हैं
बड़े ज़ालिम महबूब हैं तसव्वुर लूट जाते हैं

bahut khoobsoorat gajal suparb

प्रवीण पाण्डेय said...

बहुत सुन्दर व्यक्त किया है ।

हरकीरत ' हीर' said...

शाहिद जी ,
जो खामियां हैं निशंकोच बताने की पहल करें .....
अपनी ओर से तो पूरी कोशिश की है बहर में रखने की ...!!

rashmi ravija said...

लगाये जो शजर हमने बाग़ ही सूख जाते हैं
जहाँ हमने मुहब्बत की शहर वो छूट जाते हैं
कितने ही लोगों ने अपने दिल का दर्द पढ़ लिया होगा इन पंक्तियों में...बेहतरीन ग़ज़ल..

रंजू भाटिया said...

गुमां न कर इतना अपने इन नादान ख्यालों पे
लहरें जो साथ न दें तो सागर भी टूट जाते हैं
बहुत खूब .......बहुत सुन्दर लिखा है हर शेर बहुत पसंद आई यह शुक्रिया

Alpana Verma said...

वो कश्ती हूँ बिखरती जो रही बेबस हवाओं से
बहाना था वगरना दिल कहाँ यूँ टूट जाते हैं'
वाह !क्या खूब कहा है!
-आप की नज्मो के दीवाने हैं अब ग़ज़ल ने भी मन मोह लिया..
बहुत ही बढ़िया.
इतने गुनीजनों का आशीर्वाद भी आप की इस ग़ज़ल को मिला है.
बहुत बहुत बधाई.

SINGHSADAN said...

हीर जी
जफ़ा देखी वफ़ा देखी जहाँ की हर अदा देखी
छुपा चहरे नकाबों में , हया वो लूट जाते हैं
वो कश्ती हूँ बिखरती जो रही बेबस हवाओं से
बहाना था वगरना दिल कहाँ यूँ टूट जाते हैं

यह दो शेर ग़ज़ल की रेक्वयिरमेंट को पूरा करते हैं.......बाकी शेर भी अच्छे हैं कुछ ग्रामातिकल मिस्टेक हैं किसी उस्ताद से सही करवा लीजिये....!

Pawan Kumar said...

हीर जी
जफ़ा देखी वफ़ा देखी जहाँ की हर अदा देखी
छुपा चहरे नकाबों में , हया वो लूट जाते हैं
वो कश्ती हूँ बिखरती जो रही बेबस हवाओं से
बहाना था वगरना दिल कहाँ यूँ टूट जाते हैं

यह दो शेर ग़ज़ल की रेक्वयिरमेंट को पूरा करते हैं.......बाकी शेर भी अच्छे हैं कुछ ग्रामातिकल मिस्टेक हैं किसी उस्ताद से सही करवा लीजिये....!

अंजना said...

वाह क्या बात है बहुत खूब , हर पंक्ति लाजवाब ..

सुशील छौक्कर said...

अच्छी गज़ल लिखी है जी आपने। दो शेर ज्यादा ही पसंद आए जी।
कभी वो मुस्कुराते हैं ,कभी वो रूठ जाते हैं
बड़े ज़ालिम महबूब हैं तसव्वुर लूट जाते हैं

नज़र जो मुन्तजिर होती हम भी लौट आते घर
परिंदों के घरौंदों से , घर क्यूँ टूट जाते हैं.... ?

बहुत खूब......

Ikwinder Singh said...

Harkirat Heer Sahib ki ghazal mein behar ki bahut galtian hain.Jaise Lagae jo shajar ham ne [bhaga]hi toot jate hain. Yahan par bhag shabad nahin aa sakta etc.

हरकीरत ' हीर' said...

ओह ...ये आपका तीसरा ब्लॉग ......!!

खैर देखिये हमने बाग़ की जगह बगीचे कर दिया .....अब ठीक है ....!!

और कुछ ....!?!

सम्वेदना के स्वर said...

शायद कोई भी क़ाफ़िया नहीं छोड़ा आपने हमारे लिए … बधाई की पात्र हैं आप... वैसे भी आपके अश’आर के कायल हैं हम..एक सुझाव ..पोस्ट करने के पहले एक बार पढ ज़रूर लें ..जैसे आपकी पोस्ट पर अस’आर लिखा है अश’आर की जगह..

ओम पुरोहित'कागद' said...

हरकीरत जी,
सत श्री अकाल!
जिवेँ तुहाडी माँ बोली पंजाबी है औसे तरां मेरी मां बोली राजस्थानी है।जिस तरै कां,कुत्ता,बिल्ला, चिड़ी,घुग्गी,मोर अते डड्डू अपणी माँ बोली नीँ छड्ड दे औसे तरां आपां नूं वी नीँ छड्डणी चाइदी।
मैँ हर जी दी बोली अते भाषा दा मान करदा वां।
आप जी दा पिछला पिँड केड़ा है अते आसाम किँवे उप्पड़े?
ब्लागड़्यां विच्च अजकल बो'ता कचरा सुट रख्या है लोगां ने।पर आप दा ब्लाग मैँनूं प्रभावित करदा है।लक्ख लक्ख बधाइयां!

कविता रावत said...

घरौंदे साहिलों पर तुम बना लो शौक से लेकिन
बने हों रेत से जो घर , वो अक्सर टूट जाते हैं
.....laajawab gajal.... ek se badhkar ek.....

Shruti said...

बड़े नाज़ुक से लम्हे थे जब वो सामने आये
जुबां खामोश रहती है तअश्शुक़ फूट जाते हैं

aap ki post ki tareef karne ke liye shabd hamesha kam padte hai mujhe. ba syahi kahungi bahut hi achhi lagi

-Shruti

arvind said...

बड़े मदहोश लम्हे थे सनम जब सामने आये
जुबां खामोश रहती है तअश्शुक़ फूट जाते हैं
.....बहुत खूब

neera said...

क्या बात है!

लगाये जो शजर हमने बगीचे सूख जाते हैं
जहाँ हमने मुहब्बत की शहर वो छूट जाते हैं

Anonymous said...

जहाँ हमने मुहब्बत की शहर वो छूट जाते हैं !
आपके हर शेर दिल में कसक छोड़ जाते हैं !!
कितना सुंदर लिखती हैं आप ....शुभकामनायें !

कुमार संभव said...

कभी वो मुस्कुराते हैं ,कभी वो रूठ जाते हैं
बड़े ज़ालिम महबूब हैं तसव्वुर लूट जाते हैं
हरकीरत जी बहुत दिनों बाद गजल पढ़ी अच्छा लगा है

Manish Kumar said...

जफ़ा देखी वफ़ा देखी जहाँ की हर अदा देखी
छुपा चहरे नकाबों में,हया वो लूट जाते हैं


ये शेर सबसे उम्दा लगा...

Akshitaa (Pakhi) said...

बहुत सुन्दर लिखा आपने.

________________
'पाखी की दुनिया' में इस बार माउन्ट हैरियट की सैर करें !!

राइना said...

Bahut hi badhiya.

Ikwinder Singh said...

Bade Zaalim hain dil wale

... Aisa kar deejea.

हरकीरत ' हीर' said...

Ikwinder Singh said...

Bade Zaalim hain dil wale

... Aisa kar deejea.

बहुत खूब .....!!

जानती थी महबूब बहर में नहीं ...शब्द ढूढ़ ही रही थी की आपका जवाब आ गया ....!!

बहु बहुत शुक्रिया .....!!

बाकि तो ठीक है न गुरुदेव.......??

पर आप हैं कौन ....??

गेस करूँ ....???

सम्वेदना के स्वर said...

एक गुस्ताखी की है आपकी ग़ज़ल को आगे बढाने की...आपको समर्पित है...भूल क्षमा करेंगी और आशीर्वाद देंगी...

सहज समाधि आश्रम said...

हरकीरत जी सीने में दर्द तभी होता है
जब कोई हार्ट की प्राब्लम हो बाकी सभी
दर्द मन की इच्छाओं के है पर इंसान स्वंय
उन्हें दिल को रैफ़र कर देता है और वैसे
भी दिल का दर्द गजल आदि से दूर होने
के वजाय बङता ही है..इसलिये आप
सब हटाकर प्रभु का सुमरन करे जो सौ
रोगों की एक दवा है .
एकहि साधे सब सधे सब साधे सब जाय
रहिमन सींचो मूल को फ़ूले फ़ले अघाय
आपके सारे दर्द दूर होकर अवर्णनीय आनन्द
प्राप्त होगा शुभकामनांए

अनामिका की सदायें ...... said...

वो कश्ती हूँ बिखरती जो रही बेबस हवाओं से
बहाना था वगरना दिल कहाँ यूँ टूट जाते हैं

Heer ji muaafi chaahti hu gazel k bare me kuchh nahi janti per mujhe ye sher mukammal nahi lag raha.

अक्सर मुस्कुरा कर जो सदायें मुझको देते हैं
इशारों ही इशारों में , दिलों को लूट जाते हैं

aur iski last line agar aise hoti to???

ISHARO HI ISHARO ME AKSAR DILO KO LOOT JATE HAI...

pls. suggest for both.

Ikwinder Singh said...

[1]Woh aksar sookh jaate hain lagae jo shajar ham ne.[2]Kabhi voh muskara ke jo sadaein mugh ko dete hain.Isharon hi isharon me mera dil loot jaate hain.[3]chhupa kar muh[n]vo parde main haya ko loot jaate hain[4]Kabhi matle pe ho wah-wah kabhi makte pe ho wah-wah!ke ab to 'Heer' ke ashyaar mehfil loot jaate hain.

Ikwinder Singh said...

Yeh misra rakh lo: parindon ke ghaonde jab shaja se toot jaate hain. Mere dost 'Kashish' Hoshiarpuri ka shair dekho:Kisi ki yaad mein roti hue palkon se yeh do, Mussalsas baarishen gar hon to raste toot jaate hain.

Ikwinder Singh said...

Parindon ke gharonde jab shajar se toot jaate hain.[Correction] Yeh bhi gungunate raho:[1]Likhe jo khat tughe woh teri yaad mein..[2] Chale jaana zara thehro kisi ka dam nikalta hai..

Ikwinder Singh said...

Kisi ki yaad mein roti hue palkon se yeh keh do,mussalsal baarishen gar ho to raste toot jaate hain [Kashish Hoshiarpuri]

देवेन्द्र पाण्डेय said...

कभी मत्ले पे होती वाह कभी मक्ता लुभाता है
अश 'आर तेरे यूँ 'हीर' दिलों को लूट जाते हैं ।!!

हरकीरत ' हीर' said...

इक्विंदर जी ,
गज़ब गज़ब के शे'र कहे आपने ....सच ...अब खुशबू आने लगी है अश'आरों से ....बहुत बहुत शुक्रिया .....

एक बार फिर देख लें मैंने ठीक लिखे हैं या नहीं ......

लगाये जो शज़र हमने वो अक्सर सूख जाते हैं
जहां हमने मोहब्बत की शहर ही छूट जाते हैं

कभी जो मुस्कुरा के वो सदाएं मुझको देते हैं
इशारों ही इशारों में मेरा दिल लूट जाते हैं

कभी मत्ले पे हो वाह-वाह कभी मक्ते पे हो वाह-वाह
के अब तो 'हीर' के अश'आर महफ़िल लूट जाते हैं

और इस लाजवाब शे'र के लिए खशिश जी को मुबारकबाद .....

किसी की याद में रोती हुई पलकों से यह कह दो
मुसलसल बारिशें गर हों तो रस्ते टूट जाते हैं
वाह बहुत खूब .....!!

अंत में जानने की जिज्ञासा है कि आप सच्च में ही कोई इक्विंदर जी हैं .....या परिचित ब्लोगरों में से कोई ....???
अपना संपर्क पता या ई- मेल दें .....!!

हरकीरत ' हीर' said...

अनामिका जी ,
आपने जिस जगह 'अक्सर' लगाया है वजन में ज्यादा हो जायेगा ....!!

Ravish Tiwari (रविश तिवारी ) said...

फरिश्ते इस ज़मीं पर आके , अक्सर टूट जाते हैं
संभल कर साथ में चलना, ये रिश्ते टूट जाते हैं

सही कहा आपने,

इतनी भीड़ है इस शहर में के कोई तनहा नहीं होता,
अपनों की तलाश अब न जाने क्यों अपनों में भी पूरी नहीं होती,
क्योंकि कभी कभी आज कल अपनों में भी कोई "अपना" नहीं होता
मै तो आप सभी के सामने अभी बच्चा हु, मै क्या कहू और,


Ravish
http://alfaazspecial.blogspot.com/

Harshvardhan said...

bahut khoob rachna hai........

आदित्य आफ़ताब "इश्क़" aditya aaftab 'ishq' said...

lazabab ................

Unknown said...

हरकीरत जी,
बहुत उम्दा लिखा है, आसमान में सितारा तो नहीं लगा सकूंगा, पर एक छोटा सा ५ वाट का बल्ब जलाये देता हूं ...

बड़ी पुरजोर ख्वाहिश थी तेरे दामन में रोने की
तेरी खुशवहमी के सज़्दे,अश्क हम घूंट जाते हैं ||

आदाब अर्ज़ है..
नवीन

लोकेन्द्र विक्रम सिंह said...

घरौंदे साहिलों पर तुम बना लो शौक से लेकिन
बने हों रेत से जो घर , वो अक्सर टूट जाते हैं...

वाकई में जीवन सिर्फ जीने का नाम नही है.... यहाँ हर पल विश्वास और साथ जो संगम है वही एक मुकाम का मार्ग है.....
और कुछ कहते बन ही नही रहा..... क्योकि ये गजल तो अन्तरमन को भेद चुकी है......

Brajdeep Singh said...

hamare pass to shabd hi nahi hain ,ki kahe to kya kahain ,lagta hian ranjo-gam ka saath khule dil se nibha rahe ho ,ho udaas par khud ko khush karne ki kosis kiye jaa rahe ho
kuch log hi hain jinhe dekh kar mijhe main bhi likne ki prena jaagi hain ,krapaya aakar apne vichhar jaror de ,ki apke pad chinnho ko kahan tak liye aa rahe hain

shyam gupta said...

--शानदार गज़ल,
नज़र जो मुन्तजिर होती कभी हम लौट ही आते
घरौंदे ये उम्मीदों के मगर क्यूँ घर टूट जाते हैं...?

घर ---अतिरिक्त है अनावश्यक.

ashokjairath's diary said...

Jo ghazal kahe koi aur par lage apni apni, wo laajwab hoti hai.

Yeh khoobsoorat ghazal khud se shuru ho khud ko khud tak le aati hai.

Badhai

KALAAM-E-CHAUHAN said...

mohtarma

vakai matla aur makhta kamaal hai .....

गुज़रती उम्र का दिखने लगा है कुछ असर मुझ पर
जो उम्दा शेर होते हैं वो अक्सर छूट जाते हैं

sachchai hai....kya kehne

visit at Kalaam-e-Chauhan.blogspot.com

KALAAM-E-CHAUHAN said...

bus mohtarma matle me mehboob .....naaaaaaaaa

bade zalim musafir hain, tassvur loot jate hain

gar main kehta to aise kehta ......

Himanshu Mohan said...

मैंने बाक़ी कमेण्ट्स पढ़े नहीं हैं। ग़ज़ल पढ़ी है। अगर कोई बात दुहराव हो या ख़राब लगे तो बहक़-ए-मालिकाना-ओ-दोस्त आप ये कमेण्ट हटा दीजिएगा, मगर इस्लाह पे ध्यान ज़रूर दीजिएगा क्योंकि आपकी नज़्म में बहुत जान है, सो शायरा तो आप बेहतरीन हैं, बाक़ी ग़ज़ल के बारे में मैं ईमानदारी से लिखूँगा। ज़्यादा टेक्निकल न होते हुए आसान अल्फ़ाज़ में-
1) मत्ले ने ही मुश्किल खड़ी कर दी है। दो बार "टूट जाते हैं" का मतलब हुआ कि हर शे'र के दूसरे मिस्रे में (सानी) "टूट जाते हैं"।
2) अगर इस मत्ले को ही सुधार लिया जाय और मत्ले के दूसरे मिस्रे में छूट कर लिया जाय तो अब आगे बढ़ें।
3)आपने मत्ला ही तर्क कर दिया है, नया मत्ला कर लिया है, मगर "रूठ" में "ठ" आया है जो "टूट" के "ट" से फ़र्क रखता है। शुद्धता के लिहाज़ से ये भी गया। अगर इसे नज़र-अंदाज़ कर दें तो फिर बस एक ही कमी है, बार-बार "टूट" और "लूट" का इस्तेमाल। ये कोई ग़लती नहीं है मगर इसे अच्छी ग़ज़लकारी में शुमार नहीं किया जाता।
4) मक़्ता थोड़ा सा बह्र से गिर रहा है, जो अदायगी से सँभाला जा सकता है, मगर क्यूँ? जब ऐसे ही सँभल सकता है-
कभी मत्ले पे वाह-वा', कभी मक़्ता लुभाता है
युँही अश'आर तेरे 'हीर' महफ़िल लूट जाते हैं

अब अपनी ज़िम्मेदारी निभा चुका, अब दिल की कहता हूँ -
वाह! वाह-वाह!! वाह-वा, वाह-वा!!
बहुत ख़ूब कही है हीर आपने - आपका क़लाम हीरा है हीरा, क्यूँ न हो? कहा भी तो हीर ने है!
बस ज़रा सा तराश लीजिए, फिर चमक- न-न, शफ़क़ देखिए फिर इसकी।
शुभकामनाओं सहित,

पवन धीमान said...

वो कश्ती हूँ बिखरती जो रही बेबस हवाओं से..
बहाना था वगरना दिल कहाँ यूँ टूट जाते हैं..
..उत्कट अभिलाषा, कोमल मन और जज्बातो के अनुपम समन्वय को शब्दो का स्वरूप देती आपकी रचनाये.. .....बहुत सुन्दर....बहुत अर्थपूर्ण .. ईश्वर इतनी तड़फ किसी को ना दे, जीना मुहाल हो जाता है.