पहले का नाम याद नहीं दुसरे हैं सुभाष नीरव , लक्ष्मी शंकर बाजपेयी , अलका सिन्हा और मैं .....
जी हाँ , मैं बात कर रही हूँ आकाशवाणी की तरफ से कल गुवाहाटी में ६३ बरसों बाद हुए उस सर्वभाषा कवि सम्मलेन की ....जिसकी महक अभी तक रगों में दौड़ रही है .....देश भर से आये प्रतिष्ठित व् सम्मानित सर्वभाषाओं के २२ कवि और उतने ही उनके अनुवादक ....शाम ५ बजे से रात्रि ९ बजे तक चले इस कार्यक्रम का शुभारंभ होता है आकाशवाणी की महानिदेशिका अलका पाठक जी के दीप प्रज्वलन से ( जिनके लगभग २५ संकलन आ चुके हैं )....तदुपरांत सभी कवियों का सम्मान किया जाता है असमिया गमछा , राज्यिक पशु ' गैंडे' के प्रतिक चिन्ह और एक खुशबूदार गुलाब से .....!
संचालन करती तशरीह देती है दिल्ली आकाशवाणी के स्टेशन डाइरेक्टर लक्ष्मी शंकर बाजपेयी जी की मदहोश कर देने वाली कशिश आवाज़ ......
यह कार्यक्रम किसी न किसी प्रान्त में हर वर्ष आयोजित किया जाता है ....साल भर हर भाषा की ढेरों कविताओं में
से किसी एक कविता का चुनाव किया जाता है .....तदुपरांत ही उन कवियों को इस कार्यक्रम में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया जाता है ....कुछ हिंदी अनुवादक स्थानीय व् कुछ उन्हीं के प्रान्तों के .....इन चुनिन्दा कविताओं का तर्जुमा हर प्रान्त स्थानीय भाषा में भी किया जाता है ....मसलन असम में असमिया में , पंजाब में पंजाबी में , गुजरात में गुजराती में .....इस कार्यक्रम को गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या रात्रि १० बजे आकाशवाणी से प्रसारित किया जाता है .....!
कविता पाठ आरम्भ होता है अभिराज़ राजेंद्र मिश्र जी की संस्कृत ग़ज़ल से जिसका हिंदी रूपांतर श्री राम कुमार lआत्रेय जी ने सस्वर पढ़ा .....तदुपरांत असमिया कविता की बारी थी जिसका अनुवाद मुझे पढना था ....अब मैंने कैसा पढ़ा या मेरी आवाज़ कैसी थी ये जानने के लिए आपको सुभाष नीरव जी के कमेन्ट का इन्तजार करना पड़ेगा.....जी हाँ मैं बात कर रही हूँ छ: छ: ब्लॉग चलाने वाले सुभाष जी
का.........सुभाष जी आ रहे हैं ये तो हमें कार्ड में छपे नामोंसे ही पता चल गया था .....फिर उनका फोन भी
आ चूका था यह जानने कि वहाँ ठण्ड कितनी है गर्म कपड़ों की जरुरत है या नहीं ....वगैरह वगैरह .......तस्वीर से थोड़े भिन्न पर फिर भी हमने एक दुसरे को पहचान लिया था .....बहुत ही मिलनसार और नम्रता इतनी की फख्र होने लगे .....!
खैर ........सारे कवियों में सबसे मधुर आवाज़ लगी कोकिला स्वर वाली अलका सिन्हा जी की ....(इनके तीन काव्य संकलन और एक कहानी संग्रह छप चुके हैं ) इन्होने कश्मीरी भाषा का अनुवाद पढ़ा ......उफ्फ्फ्फ़ ....आवाज़ इतनी कोमल और मीठी कि लगा सच-मुच कश्मीर की वादियों की सैर कर रहे हों .....और गुवाहाटी के कबीर जी कि दिलकश आवाज़ के जादू ने तो उन्हें तुरंत दिल्ली आकाशवाणी में न्योता दे दिया ....और अंत में हिंदी के प्रतिष्ठित कवि डा. बलदेव वंशी जी ( ६० से अधिक पुस्तकें )
की कविता' पत्थर भी बोलते हैं ' ने इतनी वाहवाही लूटी कि जी चाहा एक दो फरमाइश और रख दें पर यहाँ स्वीकृत कविताओं का ही पाठ था .....बाजपेयी जी की रोमानी आवाज़ में नज़्म सुनने की इच्छा भी पूरी हो गई .....उर्दू के कवि बशर नवाज़ जी नहीं पहुँच पाए थे उनकी नज़्म का पाठ स्वयं बाजपेयी जी ने किया ......
कुछ रोचक व् यादगार मुलाकातें .....
अपनासंकलन नहीं लाये कोई ...'' मैं पूछती हूँ ...
अमीरों की अँगुलियों में अंगूठी के लिए और जगह नहीं है
(१)
खेतों में फसल नहीं अब - रेत है
तालाबों में मछलियां नहीं - दरारें हैं
पर्वतों में नहीं बचे दरख्त- अग्नि है
पेड़ों में भी अब नहीं है परिंदे- बस रक्त है
शहर की अँगुलियों में अब नहीं बची जगह अंगूठी की
हिनहिनाती हुई मौत
पुकारती है
हर दिशा ....!!
( २)
हजारों लोग महज़
ख्वाबों में ही सो पाते हैं अब
आँखों की चाहत बन जाती है
सावन का आकाश
चमक उठती है मौत
बिल्ली की आँखों सी
तितलियों ने
फूलों के कानों में
चुपके से ये मंत्र फूंका
के अब जंगल भी समझने लगे हैं
तूफानों से जूझने की भाषा ...
क्षुधाग्नि ....
क्रोधाग्नि .....
मृतप्राय तृण पुनर्जीवित हो
अचानक बो देते हैं बीज प्रकाश के
मेढकों के गीत....
फसल बोने के गीत
जिन्हें सुन-सुन देखता रहूँगा मैं चिरदिन
आसमां में लिखे उस श्वेत गुलाब का
अनग्न अनंत यौवन ......!!
आप चाहें तो इस कार्यक्रम को आकाशवाणी में गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या रात्रि १० बजे सुन सकते हैं .......
....................................................................................
अंत में एक त्रिवेणी .......
चनाब बहुत देर तक सांसों में बहती-उतरती रही ...!!
उपेन्द्र रैणा ,सुभाष नीरव जी , लक्ष्मी शंकर बाजपेयी जी , अलका सिन्हा और मैं
71 comments:
बहुत अच्छी और जानकारी पूर्ण रपट!
--
ओंठों पर मधु-मुस्कान खिलाती, रंग-रँगीली शुभकामनाएँ!
नए वर्ष की नई सुबह में, महके हृदय तुम्हारा!
संयुक्ताक्षर "श्रृ" सही है या "शृ", उर्दू कौन सी भाषा का शब्द है?
संपादक : "सरस पायस"
बहुत अच्छी और जानकारी पूर्ण रपट!
--
ओंठों पर मधु-मुस्कान खिलाती, रंग-रँगीली शुभकामनाएँ!
नए वर्ष की नई सुबह में, महके हृदय तुम्हारा!
संयुक्ताक्षर "श्रृ" सही है या "शृ", उर्दू कौन सी भाषा का शब्द है?
संपादक : "सरस पायस"
आनंद आ गया समारोह की रिपोर्टिंग पढ़ कर...
चनाब बहुत देर तक सांसों में बहती-उतरती रही ...!!
लेकिन हरकीरत हीर का 'इक दर्द' कभी सांसों से नहीं उतर सकता...
जय हिंद...
बहुत उम्दा रिपोर्टिंग...रचनायें पढ़कर अच्छा लगा...और
ओढ़ाये थे तुमने जो शब्दों के कम्बल
रात भर जिस्म में उनसे गर्माहट रही
चनाब बहुत देर तक सांसों में बहती-उतरती रही ...!
-क्या बात है!! वाह!!
दर्द तुम्हें अमर कर देगा, जैसे शिव बटालवी को कर गया। कभी कभी सोचता हूँ, कोई कैसे जी लेता है दर्द को इतना भी। बधाई हो। एक दर्द मुझे भी पढ़नी पड़ेगी, क्या दिल्ली से मिलेगी?
चलते चलते।
जैसे उनको ब्लॉग़ पर कमेंट्स करके आप भूल गए, हमको भी तो नहीं भूल जाते।
चनाब बहुत देर तक सांसों में बहती-उतरती रही ...!
...और जब पत्थरनुमा सफेद रूह पर औंधे मुँह गिरी तो टूट गई |
यकीन न हो तो...
मेरी हथेलियों पर चूभते हुए ज़ख्मों से पूछिए जो क़लम की बाहों में सिमट कर तमाम रात महकते रहे |
आप महसूस कर सकती हैं...
http://www.tanharaat.blogspot.com
स्याह रातों में अकसर पैदा होते हैं सफ़ेद अफ़साने
इतना खतरनाक कैसे लिख लेती हैं...
ऐसा लगा मानों लाइव प्रसारण हो रहा हो। बेहद मधुरिम वर्णन किया है आपने।
... प्रसंशनीय अभिव्यक्ति !!!
अरे इसमें आप है की नहीं। चलिए शाम को देखते हैं।
तब तक बहुत बधाई इस सम्मलेन की।
आकाशवाणी की इस कवरेज के लिए आपको आकाशवाणी परिवार की ओर से हार्दिक धन्यवाद. हमे लगा हमारा प्रयास सार्थक हुआ.अब 25 जनवरी को इन कविताओं को रेडियों पर सुनूँगी.
ओढ़ाये थे तुमने जो शब्दों के कम्बल
रात भर जिस्म में उनसे गर्माहट रही ।
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति के साथ इन पंक्तियों के लिये आभार ।
दराल जी मैं भी हूँ पीछे की पंक्ति में दुसरे नम्बर पे .....
शाम को कुछ और तस्वीरें लगाती हूँ ......!!
मेरी हथेलियों पर चूभते हुए ज़ख्मों से पूछिए जो क़लम की बाहों में सिमट कर तमाम रात महकते रहे |
Kya baat hai! Sach me dil ke kone antare me ja kar baith jate hai aise shabd.Aapki ek ek line se sikhati hun mai. AMRITA PRITAM meri fevrite writer hai, unke baad ab aap achchhi lagti hai mujhe.
Karyakram ki reporting karke aapne bahuto ko uske prabhaw me shamil kar liya. reporting ke litye dhanyawad.
Apni kavitao par aapke comment ki pratiksha karti rahti hu.
यह रिपोर्टिंग बहुत अच्छी लगी...
इस बार का सर्व भाषा कवि सम्मलेन मेरे लिए खास रहेगा. आपने बहुत सुंदर अनुवाद किये हैं कि कविताएं हिंदी में ही लिखी जान पड़ती हैं. असमिया भाषा पर आपकी अच्छी पकड़ है ऐसा अनुमान लगा रहा हूँ. वैसे आपकी भाषाई दक्षता पर रश्क होता है. असमिया, उर्दू, पंजाबी और हिंदी के बारे में तो जानकारी भी हो गयी है मुझे. नई जानकरी इस पोस्ट से ये हुई कि आपके दर्द के कितने दीवाने हैं, वाह.
Bahut hi rochak ma'm
laga ham bhi wahinmkahin kisi kone me baithe hain..!
एक अलग सा ब्लॉगर मिलन
बहुत ही खूबसूरती से बयाँ की है आपने उस शाम की कहानी...हम भी रु-ब-रु हो उठे उन सारी हलचलों से....उन पुरकशिश आवाजों में पढ़ी जाने वाली...कवितायें जैसे हमारे कानों ने भी सुन ली...
जब आप खुद इतना सुन्दर लिखती हैं....फिर अनुवाद ख़ूबसूरत कैसे ना अच्छा होता
हजारों लोग महज़
ख्वाबों में ही सो पाते हैं अब
आँखों की चाहत बन जाती है
सावन का आकाश
बहुत खूब हैं ये पंक्तियाँ...
सम्मेलन की सरस रिपोर्ट के लिये आभार.
ऐसे मिलन निश्चत तौर पर बहुत ही कम लोगों को नसीब हो पाते हैं जब नेट की दुनिया के अन्जाने मगर पहचाने लोगों से मिलने का अवसर मिलता है.
यही तो है ब्लॉगिंग का आनंद
पूरा विश्व एक कुटिया में समाया
जिसका नाम ब्लॉग कहलाया।
हीर जी
इस सम्मलेन के लिए
बधाई कुबूल करें ...........
sach mein alag sa blogger meet tha...........bahut hi badhiya aayojan raha aisa laga jaise sab liv ho.
ओढ़ाये थे तुमने जो शब्दों के कम्बल रात भर जिस्म में उनसे गर्माहट रही
चनाब बहुत देर तक सांसों में बहती-उतरती रही ...!!
kya baat kah di........kin shabdon mein tarif karoon...........behtreen.
बहुत ही अच्छी है चर्चा ........ मज़ा आ गया आपको पढ़ कर .......... चित्रों का इंतेज़ार रहेगा ........
समारोह का विवरण अच्छा लगा और उससे भी अच्छी आप की पंक्तियाँ
ओढ़ाये थे तुमने जो शब्दों के कम्बल
रात भर जिस्म में उनसे गर्माहट रही
चनाब बहुत देर तक सांसों में बहती-उतरती रही ...!
-क्या बात है!! वाह!!
इंतज़ार था इस रपट का .बेहद खुशी हुयी सफल आयोजन की और आपका योगदान तो अतुलनीय रहा.
बधाई !
'के अब जंगल भी समझने लगे हैं
तूफानों से जूझने की भाषा ...'
-वाह! क्या बात है!
त्रिवेणी भी खूब कही है.
**बधाई जी इस सम्मलेन की! और उम्दा रिपोर्टिंग की है.
मैं तो रेडियो सुन नहीं sakati yahan हो सके तो उस कार्यक्र्म की रेकॉर्डिंग सुनव दीजीएगा.
खेतों में फसल नहीं अब - रेत है
तालाबों में मछलियां नहीं - दरारें हैं
पर्वतों में नहीं बचे दरख्त- अग्नि है
पेड़ों में भी अब नहीं है परिंदे- बस रक्त हैnice
बहुत अच्छा लगा पढ़कर.
हरकीरत जी, अब पूरी पोस्ट को तसल्ली से पढ़ा है।
मैं समझ सकता हूँ , ६३ साल बाद इस तरह के सम्मलेन का आयोजन कितना सुखप्रद रहा होगा।
आपका अनुवाद पढ़कर बहुत अच्छा लगा।
बेशक आप लफ़्ज़ों में जादू डाल देती हैं।
चनाब बहुत देर तक सांसों में बहती-उतरती रही ...!
वाह, वाह ! और क्या कहूँ। अद्भुत।
कुछ बातें कितनी ख़ास हो जाती हैं , पोस्ट पढ़ कर समझ आया ...
मुबारका जी ..
अर्श
bahuthi khuoosurti se aapne har baat kah di .... bahut hi khoobsurat ....
best regards
aleem azmi
सजीव वर्णन,जीवंत वृतांत ... प्रवाहमयी भाषा और सुंदर अनुवाद के लिए हार्दिक धन्यवाद । इसे कहते हैं रचनाधर्मिता । आप एक अच्छी कवयित्री के साथ-साथ एक अच्छी लेखिका और संस्मरणकार भी हैं, इसकी सुंदर बानगी आज देखने को मिली ।
POORA VRATANT RUCHIKAR LAGA.
कभी इस सर्व भाषा कवि सम्मेलन को बडे ध्यन से सुनते थे. आज आपने इतनी सुन्दर, सरल और प्रभावी रपट लिखी है कि मज़ा आ गया.
हरकीरत जी, सर्वभाषा कवि सम्मेलन -2010 के बहाने ही सही,गुवाहाटी में आपसे मिलना बहुत सुखद लगा। आपने अपने ब्लॉग में इस सम्मेलन के विषय में जो लिखा है, उसे पढ़कर सचमुच अच्छ लगा। असमिया कविताओं का आपका हिन्दी अनुवाद नि:संदेह बहुत सुन्दर है, छन्दमुक्त कविता में जो रिद्म होना चाहिए, वह तो है, इसके साथ साथ मूल कविता के भाव और विचार को आपने बड़ी खूबसूरती से पकड़ा है। रही बात मंच पर आपके सस्वर पाठ की, तो इतना ही कहूँगा- ठहरी ठहरी सी कोमल आवाज़ और अंदाजे बयां ऐसा कि ये छोटी छोटी कविताएं दिल को छूती चली गईं। एक बारगी लगा कि जैसे दर्द से भीगी आप अपनी कविताएं पढ़ रही हों… श्री उदय कुमार शर्मा जी की छोटी असमिया कविताओं को हिन्दी में इतना सुन्दर अनुवाद करने के लिए आपको बधाई !
बढ़िया रिपोर्ट
आपकी सफलताओं के लिए
हमारी दुआएं भी शामिल कर लीजिये
नव वर्ष मंगल मय हो
- लावण्या
बहुत अच्छी लगी समारोह की रिपोर्टिंग ओर सुंदर रचना पढ कर आनंद आ गया, धन्यवाद
वाह कितनेी नये खुशगवार रंग देखने को मिले आपके..इस पोस्ट मे..और वह कविता..सुभा्नल्लाह!!कुछ और बोलूँगा तो लफ़्ज़ों की तासीर कम होगी..
आकाशवाणी मे क्या विविधभारती पर सुन सकते हैं इसे?
अपूर्व जी इतना तो नहीं पता ....बस यही पता है आकाशवाणी से रात्रि १० बजे प्रसारण होगा ..... इसकी जानकारी तो सुभाष जी या मीनू जी दे सकते हैं .....मेरे पास तो रेडियो भी नहीं है ....!!
आपके द्वारा दी गयी जानकारी के लिए शुक्रिया.....बहुत खूबसूरती से सारी बातें शब्दों में उतारी हैं....और तेइवेनी तो लाजवाब है....
आपके " दर्द " को पढ़ने की ख्वाहिश है......बहुत बहुत बधाई
सर्वभाषा कवि सम्मेलन -2010 का प्रसारण निश्चित रूप से सुना जाएगा। अब तो रेडियो सुनना तभी हो पाता है जब बिजली न हो लेकिन इस बार आपकी इस रपट से मिली जानकारी की प्रेरणा के चलते बिजली होते हुए भी इसे सुनूंगा- इसलिए कि अनुवाद में रुचि है कुछ अनुवाद किया भी है और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इस आयोजन में हिन्दी ब्लागर्स के सक्रिय जुड़ाव के कारण यह खास अवसर होगा मेरे वास्ते। आपके लिखे का प्रशसक हूँ, यह कहना दुहराव ही होगा। इस समय हिन्दी ब्लाग की बनती हुई दुनिया में बहुत कम लोग हैं जो इस माध्यम को साहित्य के गंभीर प्रस्तुतीकरण और दस्तावेजीकरण के औजार के रूप में साध चुके हैं। इस क्षेत्र में आपका प्रयास , सक्रियता और निरन्तरता तारीफ के काबिल है।
bahut badiya lagi aur acha bhi laga sab kuch padh kar..
shukriya..
लम्बी पोस्ट है तसल्ली से पढकर बात करेगे जी।
आकाशवाणी साहित्य सम्मलेन के
रोचक समारोह का विवरण
आपकी ज़बानी और भी रोचक बन पडा है
ये सब
आपकी परिपक्व और अनुपम रचनाधर्मिता ही है
जो आप इन सभी स्थापित और
सिद्धहस्त साहित्यकारों से
इतना मान, प्यार और आदर हासिल कर रही हैं
आपकी साहित्य के प्रति
निष्ठा , लगन , और समर्पण भाव
आपको इस खूबसूरत मक़ाम तक ले आए हैं
श्री लक्ष्मी शंकर बाजपाई जी के punjab आगमन पर उनसे हुई भेंट में
आपका ज़िक्र बराबर होता रहा था
और ....
श्रीमती शकुन्तला श्रीवास्तव तो अब लुधिअना वापिस आती ही होंगी ...
उनकी और आपकी मुलाक़ात का भरपूर
ब्योरा लिया जाएगा .........
आपकी रचनाओं से भली-भांति परिचित हूँ ...
आपकी कृति "इक दर्द" की
समीक्षा भी कर चुका हूँ
जो कई पत्रिकाओं में छप भी चुकी है ....
आपके अन्दर का रचनाकार
अब आपके साथ घुल-मिल चुका है
आपका एहसास , आपकी सोच ,
आपके लेखन का अंग बन चुके हैं
इस निरंतरता को ,
इस प्रक्रिया को बनाए रक्खें
माँ सरस्वती जी
हरकीरत 'हीर' को
अपने पावन आशीर्वाद से यूं ही नवाज़ती रहें.. यही हम सब की प्रार्थना है
आमीन .
heer ji bahut bahut shukriya ki photo ki maarfat aapne itni unchi hastiyo se milvaya...aur bahut bahut shukriya jo aapne apni bhasha me anuwad kiya jis se me puri kavita samajh payi. aapki sharing bahut acchhi lagi tahe dil se shukriy.
अरे इसमें आप है की नहीं। चलिए शाम को देखते हैं।
तब तक बहुत बधाई इस सम्मलेन की।
इस पोस्ट को पढकर बहुत खुशी हुई.
इस सम्मलेन की बधाई साथ ही हौसला अफजायी के लिये धन्यवाद
वाह! कितना मज़ा आया होगा आपको!! कितना प्रफुल्लित हुआ होगा मन!! हमें भी कार्यक्रम में होने की अनुभूति हुई आपके संस्मरण को पढ के.
सुबह इधर बड़ी जोर की बारिश गिरी है .उसके बाद सूरज कुछ देर की चहलकदमी के वास्ते ....मै अब भी पिछली नज्मो के सरूर में बैठा हूँ....अजीब बात है के नशा उतरता नहीं ..किसी ने कंप्यूटर में कुछ बूंदे ओर गिराई है ....खुदा जाने अब कब .....
ओढ़ाये थे तुमने जो शब्दों के कम्बल
रात भर जिस्म में उनसे गर्माहट रही
चनाब बहुत देर तक सांसों में बहती-उतरती रही ...!!
कोसिस है की इतने प्रतिभा संपन्न कलाकार की मक्खनबाजी करते न पकड़ा जाऊं. मैं बस इतना कहना चाहता हूँ की अगर आप ने अनुवाद न किया होता तो मैं 'सफ़ेद घोडा सफ़ेद गुलाब' जैसी रचना की महानता को जाने कैसे परिभाषित करता.
उम्मीद है आपसे बहुत कुछ सीखूंगा.
अब मुझे 'एक दर्द' को पढने और जानने की जितनी जल्दी है शायद किसी और काम की नहीं.
सुन्दर रिपोर्ट के साथ शानदार रचनाओं का आनंद !!! भाल लागिले ओखोमोत ईमान धुनिया मिला मिसा टू!!!
बहुत अच्छी जानकारी है। बधाई आपको इसमे सहिरकत करने के लिये। लोहडी की बहुत बहुत शुभकामनायें
बहुत सजीव वर्णन किया है आपने। रोचक रिपोर्ट।
bahut bahut badhayi
aapki nazm hoti hi aisi hai
jo padh le man mein bas jaaye
bas khushbu aur sakun
dard mein sakoon kaise milta hai ye aapni nazm padh kar jaan paayi hun
bas aap likhti rahe aapki kalam mein jaadu hai
aur bulndiyon ko chhuye
कुछ रोचक व् यादगार मुलाकातें प्रस्तुत करने का अंदाज अच्छा लगा । साथ ही कविताओं और पूरे कार्यक्रम का अच्छा विवरण दिया है आपने ।
ओढ़ाये थे तुमने जो शब्दों के कम्बल
रात भर जिस्म में उनसे गर्माहट रही
चनाब बहुत देर तक सांसों में बहती-उतरती रही ...!
यह सब पर भारी है ।
हरकीरत जी...
पहचाना..................?
:)
दुआ करता हूँ कि इस मिलन कि गर्माहट आपको सदा तरोताजा रखे इस सर्दी में भी... कभी लक्ष्मी शंकर जी से मुलाकात हुई आपका जिक्र जरूर होगा... शुभकामनाएं
एक बात और कहूँगा... बहुत कम लोग होते हैं जिसके दर्द को पहचान मिलती है... यहाँ तो "कितने दिल टूटे हैं, टुटा करेंगे" वाली स्थिति है ... ऐसे में आपके दर्द को मुकम्मल पहचान मिलना सुखद रहा... शुक्रिया.. हाँ त्रिवेणी मेरे समझ में नहीं आती ... मेरी गलती ...
मनु जी ....ये टोपी कुछ कुछ तो पहचानी लग रही है .....पहली बार हिंद-युग्म में देखी थी ....और जब हिंदी में लिखना सीख लिया तो हिंद-युग्म टिप्पणियों से छा गया था ......!!
आपने आँखों देखा/सचित्र हाल बता /दिखाकर हमें सीधा गुवाहाटी पहुंचा दिया. एक बात सच बयान करना चाहूँगा -- उस असमिया कविता का अनुवाद मुझे ज्यादा अच्छा लगा बनिस्बत उसके उस मूल में जो हिंदी में आप ने पढवाया .
असम में रहते हुए भी चनाब को न भूलना , मन को छू गया .
ये लुधियाना के मुशायरे का क्या किस्सा है?
harkeratji
vah aannd aa gya ,mugdh hoo is riport
par .
bahut bahut shubhkamnaye
लाजवाब रपट मैम...फिर भी लगा जैसे जल्दबाजी में सब समेट दिया आपने। इसे कम-से-कम दो-तीन पोस्टों तक क्रमवार चलाना था तो मजा आ जाता....
त्रिवेणी तो कहर ढ़ा रहा है...अनुवाद को फिर से पढ़ने के लिये आ रहा हूँ। विजय बहादुर जी से मिलने की तमन्ना तो कब से मेरी भी रही है। जाने कब मौका मिले....
देर से आ पाया, कुछ पढ़ा कुछ नहीं, इतने बड़े-बड़े लोग बोल रहे हैं तो मेरी क्या हस्ती जो अपनी जुबान खोलूं जैसे: वागर्थ के संपादक विजय बहादुर सिंह जी - - मिलते ही बोले ...." तुम्हें पढ़ लिया मैंने " मैं हतप्रद सी.... "कैसे ...?"
" इक दर्द" में ..... हार्दिक बधाई.
"ओढ़ाये थे तुमने जो शब्दों के कम्बल
रात भर जिस्म में उनसे गर्माहट रही"
श्वेत अश्व श्वेत गुलाब का अनुवाद -
सपने में नींद में आ गिरे हजारों लोग
आँखों क़ि झलक हो पड़े सावन का आकाश
अँधेरे में बिल्ली की आँखें बनकर
चमक उठे मौत
टुटा-फुटा कौन बोलता है, कुछ टाइपिंग की गलतियाँ ही तो हैं - समझ आ रहा है - धन्यवाद्
...बहुत बहुत बधाई!!!
अरे वाह... लगता है मैं और आप एक ही नक्षत्र के हैं....
अभी देखिये न २-३ जनवरी को दिल्ली में राष्ट्रिय कवि संगम में शिरकत किया था...
वहां भी डा. लक्ष्मी शंकर वाजपेयी जी से मिला...
विस्तृत रिपोर्ट(रचनाओ के साथ) यहाँ है-
http://sulabhpatra.blogspot.com/2010/01/ek-report.html
रिपोर्ट और अनुवाद कविताये देख मजा आ गया... बहुत अच्छा रहा होगा न समारोह... "त्रिवेणी भी खूब है...चनाब का जिक्र आ ही गया"
आपके चित्र देख थोडा और करीब से जान पाया. अच्छी रिपोर्टिंग कर लेते हैं आप. अब आप ही बताईये पहले गुवाहाटी में मिलूं या आप दिल्ली आ रही हैं.??
ओढ़ाये थे तुमने जो शब्दों के कम्बल
रात भर जिस्म में उनसे गर्माहट रही
चनाब बहुत देर तक सांसों में बहती-उतरती रही ...!!
आहा......क्या बेहतरीन त्रिवेणी प्रस्तुत की ..... ! बहुत सुन्दर रचना.....
हरकीरत साहिबा
आदाब
आज शनिवार को "रविवार" देखने का मौका मिला
और आपका ब्लॉग भी कुछ अपने जाने पहचाने
दोस्तों के साथ आपके दीदार भी किये ख़ुशी हुई
मैं अक्सर यह सोचता रहा के आप कनाड़ा में हैं
और भी ख़ुशी हुई के आप तार्कीने वतन नहीं
अपने वतन में ही हैं
सलामत रहो ता क़यामत रहो
चाँद शुक्ला हदियाबादी
डेनमार्क
कवि सम्मेलन की उम्दा रिपोर्टिंग के लिए हार्दिक बधाई ..
आप ने तो हमे घर बैठे हुए ही सुखद एहसास की अनुभूति करवा दी ..'इक दर्द ' के बारे में जिज्ञासा हो रही है
कृपया बताएं ये कहाँ उपलब्ध है...??
---- राकेश वर्मा
इतने लम्बे अंतराल के बाद कोई मुझ जैसा मूर्ख ही बधाई देगा । रिपोर्ट की तो मुझ से पहले 71 लोग तारीफ कर चुके हैं...हाँ एक ज़िक्र किए बगैर मेरी बात पूरी नहीं होगी...आपने असमी कविता का अनुवाद बेहद जीवंत किया है...इतना अच्छा अनुवाद बरसों से नहीं पढा था.....शुभकामनाएँ ।
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