Sunday, January 3, 2010

टांक लेने दे उसे मोहब्बत के पैरहन पर इश्क़ का बटन ......!!

आज फिर आसमां ने
उछाले हैं कुछ मोहब्बत के अल्फाज़
जिसमें दस्तकें हैं चाहतों की
तेरे जिस्म के सन्नाटे
मुट्ठियों में भर लाई है सबा....
खोलती हूँ तो बिखर जाते हैं
कई कतरे इश्क़ के....



मैंने आसमां की ओर देखा
इक बड़ी प्यारी सी नज़्म थी
चाँद की झोली में .......


रब्बा.... !
ये औरत को ब्याहने वाले लोग
क्यों चिन देते हैं उसे दीवारों में .....?


आज मैंने भी लिखे हैं ....
कुछ जलते अक्षर स्याह सफ़्हों पर
तुम भी आना उस राख को सहेजने ....


के तेरे कन्धों पे चाँद ने हंसी बांटी है
के ज़मीं देखती है अब फूलों की सूरत
के इश्क़ अपना लिबास सीने लगा है ....

ठहर अय सुब्ह .....!
रात की सांसें रुकी हैं अभी
टांक लेने दे उसे
मोहब्बत के पैरहन पर
इश्क़ का बटन ......!!

72 comments:

राजीव तनेजा said...

रब्बा.... !
ये औरत को ब्याहने वाले लोग
क्यों चिन देते हैं उसे दीवारों में .....?

संजीदगी को अपने में समेटे हुए खूबसूरत रचना...

बहुत बढिया...


आज "हँसते रहो हँसाते रहो" की पहेली में आपकी फोटो लगाई है...उम्मीद है कि आपको पसन्द आएगी
http://hansterahohansateraho.blogspot.com/2010/01/29.html

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

के तेरे कन्धों पे चाँद ने हंसी बांटी है
के ज़मीं देखती है अब फूलों की सूरत
के इश्क़ अपना लिबास सीने लगा है ....

बहुत सुंदर पंक्तियां हैं ये.

RAJ SINH said...

' हीर ' जी ,
वैसे तो क्या नहीं लिखा आपने जो सब के मनों को छू नहीं गया .

पर इस बार ?

मैंने आसमां की और देखा
एक बड़ी प्यारी नज़्म थी
चाँद की झोली में ........

मोहब्बत के पैरहन पर इश्क का बटन !!

तो आपने लिखा ..........
पर कहने का मन करता है जैसे भावनाओं के द्वार पर कोई अनजान सी आहट हुयी हो .

बहुत ही खूबसूरत !

विनोद कुमार पांडेय said...

के तेरे कन्धों पे चाँद ने हंसी बांटी है
के ज़मीं देखती है अब फूलों की सूरत
के इश्क़ अपना लिबास सीने लगा है ....

हरकिरत जी कितनी बेहतरीन बातें सिमटी है आपकी इस नज़्म में..बयाँ करना भी इतना आसान नही है..एक खूबसूरत अभिव्यक्ति आपकी यह रचना बहुत बढ़िया लगी...धन्यवाद!!

राज भाटिय़ा said...

बहुत ही गहरे भाव लिये है आप की यह कविता, धन्यवाद

Kulwant Happy said...

अद्भुत..लिखना तो बहुत कुछ चाहता था, लेकिन अद्भुत ही काफी लगा।

Dr. Ashok Kumar Mishra said...

जज्बातों को खूबसूरती से पिरोया है आपने। कथ्य और शिल्प दोनों दृष्टियों से उम्दा रचना।

मैने अपने ब्लाग पर एक कविता लिखी है। समय हो तो पढ़ें-
http://drashokpriyaranjan.blogspot.com

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

हरकीरत साहिबा, आदाब
शायद- वही जाने पहचाने आम अल्फ़ाज़
शायद- जो हर किसी के पास हैं...
शायद- घर में बिखरे सामान को सजाने जैसा हुनर?
शायद- नहीं, ये तो सब कर सकते हैं !
फिर ऐसा क्या जादू भर देती हैं आप?
????????????????????
हम कहां उलझ गये,
हम लाख कोशिश करें, ये पहेली हल नहीं हो सकेगी
अल्लाह ने आपको ऐसा ही हुनर बख्शा है
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद

आनन्द वर्धन ओझा said...

हीरजी,
कभी मैंने ही लिखा था :
'खुशियों के एक सैलाब से जो डूबकर बाहर आया,
सदियों उसी खुशियों के नाम वह बहुत बीमार रहा !'
और आपकी ये पंक्ति मेरे लेखन की सच्चाई की गवाह बन गई हैं शायद

'आज मैंने भी लिखे हैं ....
कुछ जलते अक्षर स्याह सफ़्हों पर
तुम भी आना उस राख को सहेजने ...."

इस बंद की अंतिम पंक्ति की तड़प को महसूस कर रहा हूँ, लेकिन राख सहेजने की कोशिश में मेरी हथेलियों पर जो अंगारे आ पड़े हैं, उनका क्या करूँ ?
आसान नहीं है आपकी इन पंक्तियों को पढ़ना और किनारा करके गुज़र जाना; शब्दों की भावपूर्ण संरचना !! साधुवाद !!
नव-वर्ष का अभिवादन : आनंद व्. ओझा

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत सुन्दर रचना है....बधाई।

आज मैंने भी लिखे हैं ....
कुछ जलते अक्षर स्याह सफ़्हों पर
तुम भी आना उस राख को सहेजने ....

shikha varshney said...

ठहर अय सुब्ह .....!
रात की सांसें रुकी हैं अभी
टांक लेने दे उसे
मोहब्बत के पैरहन पर
इश्क़ का बटन ...
क्या कहूँ में > आपके तो अलफ़ाज़ और बयानगी .दोनों ही निशब्द कर देते

अजित वडनेरकर said...

सुंदर।

Himanshu Pandey said...

"..टांक लेने दे उसे
मोहब्बत के पैरहन पर
इश्क़ का बटन ......!!"

यह उपलब्धि होगी ! कल्पना, प्रयोग अभिव्यक्ति - सब निरख रहा हूँ । बहुत ही खूबसूरत रचना !

Udan Tashtari said...

जबरदस्त भाव!!

दिल को छू गई....




’सकारात्मक सोच के साथ हिन्दी एवं हिन्दी चिट्ठाकारी के प्रचार एवं प्रसार में योगदान दें.’

-त्रुटियों की तरफ ध्यान दिलाना जरुरी है किन्तु प्रोत्साहन उससे भी अधिक जरुरी है.

नोबल पुरुस्कार विजेता एन्टोने फ्रान्स का कहना था कि '९०% सीख प्रोत्साहान देता है.'

कृपया सह-चिट्ठाकारों को प्रोत्साहित करने में न हिचकिचायें.

-सादर,
समीर लाल ’समीर’

वाणी गीत said...

मुहब्बत के पैराहन पर इश्क का बटन ....आप ही टांक सकती हैं ...
चाँद की झोली में प्यारी सी नज़्म ....ढूंढ ही लाई आप ...
और फिर ..
रब्बा.... !
ये औरत को ब्याहने वाले लोग
क्यों चिन देते हैं उसे दीवारों में .....?
अब कहने को बचा क्या है ...
आप हमेशा ही खामोश कर देती हैं ...

के सी said...

आपकी इस नज़्म से अलग एक बधाई देना जरूरी हो गया है.
आप आकाशवाणी के वृहदतम और प्रतिष्ठित आयोजन सर्व भाषा कवि सम्मलेन में अनुवाद और उसके पाठ के लिए लिए आमंत्रित हुई हैं. इस उपलब्धि पर शुभ कामनाएं.

मनोज कुमार said...

इक बड़ी प्यारी सी नज़्म थी
चाँद की झोली में .......
बहुत सुंदर भाव।

देवेन्द्र पाण्डेय said...

----वाह! मन खुश हो जाता है पढ़कर...
तारीफ के लिए शब्द तलाशें तो नज्म देखकर हाथ-पांव फूल जाते हैं
कि इनसे अच्छे मोती कहाँ से लाऊँ!
फिर यह नज़्म तो को कुछ अधिक अच्छी बन गई है
कहीं रात भर खिड़कियाँ खुली रखने का असर तो नहीं
--बधाई।

ताऊ रामपुरिया said...

बेहद खूबसूरत रचना.

रामराम.

Pushpendra Singh "Pushp" said...

हीर जी
बहुत खुबसूरत रचना
के तेरे कन्धों पे चाँद ने हंसी बांटी है
के ज़मीं देखती है अब फूलों की सूरत
के इश्क़ अपना लिबास सीने लगा है .... लाजबाब
बहुत बहुत आभार ..................

डॉ .अनुराग said...

आज अभी दोपहर एक बजे तक सूरज नहीं निकला है ....पेशे ने अभी थोड़ी फुर्सत दी है तो सबसे पहले आपकी खिड़की में झांका है ....


रब्बा.... !
ये औरत को ब्याहने वाले लोग
क्यों चिन देते हैं उसे दीवारों में .....?


डराती है ना सवाल पूछती औरत ........

आज मैंने भी लिखे हैं ....
कुछ जलते अक्षर स्याह सफ़्हों पर
तुम भी आना उस राख को सहेजने ....
के तेरे कन्धों पे चाँद ने हंसी बांटी है
के ज़मीं देखती है अब फूलों की सूरत
के इश्क़ अपना लिबास सीने लगा है ....

इश्क का लिबास कितना हसीं होता है न......कभी पुराना नहीं होता.कोई सीवन नहीं उधडती ...किसी इस्त्री की जरुरत नहीं.....ओर कांधो पे बैठा चांद अमावस की रात भी नजर आता है

ठहर अय सुब्ह .....!
रात की सांसें रुकी हैं अभी
टांक लेने दे उसे
मोहब्बत के पैरहन पर
इश्क़ का बटन ......!!

सुभान अल्लाह....इन लफ्जों को तो मन करता है .रोक दूँ यही......ओर बार बार .कई बार पढता रहूँ......... पढता रहूँ...........

रंजू भाटिया said...

आपके लिखे हुए से अमृता के लफ्ज़ों की याद आ गयी ...संभाल कर रख लेने वाली पंक्तियाँ है ..शुक्रिया

Pawan Kumar said...

हीर जी
गत वर्ष आपकी टिप्पणियों ने बहुत उत्साह दिया......
नव वर्ष 2010 की हार्दिक शुभकामनायें.....!
ईश्वर से कामना है कि यह वर्ष आपके सुख और समृद्धि को और ऊँचाई प्रदान करे.

वन्दना अवस्थी दुबे said...

आज मैंने भी लिखे हैं ....
कुछ जलते अक्षर स्याह सफ़्हों पर
तुम भी आना उस राख को सहेजने ....

अब क्या कहूं? बहुत देर हो गई आने में...सबने सब कह दिया..

अनिल कान्त said...

aapki rachna humesha dil ko chhoo leti hain

pallavi trivedi said...

के तेरे कन्धों पे चाँद ने हंसी बांटी है
के ज़मीं देखती है अब फूलों की सूरत
के इश्क़ अपना लिबास सीने लगा है ....

मन अटक कर रह गया इस नज़्म में....न जाने कितनी बेशकीमती नज्में होंगी इस ब्लोंग में! क्यों मिस किया मैंने! आज ही पढूंगी सारी....

Anonymous said...

आज मैंने भी लिखे हैं ....
कुछ जलते अक्षर स्याह सफ़्हों पर
तुम भी आना उस राख को सहेजने ....
तारीफ करने लायक शब्द नहीं है मेरे शब्दकोष में. 'हीर' जी मैं नि:शब्द हूँ. आभार और शुक्रिया.

डॉ टी एस दराल said...

मैंने आसमां की ओर देखा
इक बड़ी प्यारी सी नज़्म थी
चाँद की झोली में .......

कितना खूबसूरत अहसास।

रब्बा.... !
ये औरत को ब्याहने वाले लोग
क्यों चिन देते हैं उसे दीवारों में .....?

हर खूबसूरत दिन के बाद रात क्यों आती है?

Yogesh Verma Swapn said...

के तेरे कन्धों पे चाँद ने हंसी बांटी है
के ज़मीं देखती है अब फूलों की सूरत
के इश्क़ अपना लिबास सीने लगा है ....

ठहर अय सुब्ह .....!
रात की सांसें रुकी हैं अभी
टांक लेने दे उसे
मोहब्बत के पैरहन पर
इश्क़ का बटन ......!!

wah kya andaaz hai, benazeer.

Kusum Thakur said...

बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति .

नव वर्ष की हार्दिक शुभकामना !!

Dr.Ajit said...

'हीर' जी आपके जज्बात और अल्फाज दोनो ही लाजवाब है और एक बात कहना चाहूंगा कि आज की दिखावापसन्द दूनिया मे अपने दिल मे ये नाजुक अहसास बचा के रहना कोई आसान काम नही है..सो इस अहसास के लिए मुबारकबाद।
अब पढने पढाना का सिलसिला चलता रहेगा..
शेष फिर..
डा.अजीत
www.shesh-fir.blogspot.com

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत नाज़ुक सी नज़्म.....बधाई

aarkay said...

khoobsoorat ehsaas se bhari nazm.

mubaarak ho 'Heer' ji

के सी said...

हरकीरत जी,
कभी भी और किसी के भी हस्तक्षेप से आपकी रचनाधर्मिता के प्रति कोई आग्रह मेरे भीतर जन्म नहीं ले सकता है. आपकी कविताएं स्तरीय हैं, मैं उनका नियमित पाठक हूँ. ब्लॉग लिखने वाले असंख्य विद्वानों का मैं सम्मान करता हूँ किन्तु किसे पढ़ना और कहाँ जाना ये मेरा निजी मामला है इस कार्य के लिए मुझे कोई प्रभावित नहीं कर सकता. आपके यहाँ मेरी संक्षिप्त और देरी से आती टिप्पणियों के मूल में मेरा स्वास्थ्य और व्यक्तिगत चिंताओं से उपजा समयाभाव मात्र है. उनकी सेंसरशिप नहीं हो सकती. आप लिखती ही इतना सुंदर है कि बहुत बार पाठक के पास शब्दों का सामर्थ्य नहीं रहता.
इस वर्ष और आने वाले सभी वर्षों में आपकी रचनाएँ और भावपूर्ण होकर हमारा मानसिक पोषण और मनोरंजन करती रहेंगी, यही कामना है. आकाशवाणी का सर्व भाषा कवि सम्मलेन एक राष्ट्रीय प्रतीक है इसमें आमंत्रित होने का सौभाग्य आपको मिला है. मेरा अभी इतना कद नहीं है फिर भी गुवाहाटी आने के और भी कई बहाने हो सकते हैं लेकिन सबसे खूबसूरत बहाना है " हरकीरत हीर "

Manish Kumar said...

क्या बात है। कितने सुंदर शब्द और उनसे निथरता एक रूमानी अहसास ! नए साक की शुरुआत बरे शानदार ढंग से की आपने।

श्रद्धा जैन said...

रब्बा.... !
ये औरत को ब्याहने वाले लोग
क्यों चिन देते हैं उसे दीवारों में .....?

sateek sawal

taank lene de muhbbat .... aahhhhhhhh

aap jab likhti ho man uddwelit kar deti ho

केतन said...

क्या बात है मैम.. लफ्ज़ जो चुने हैं.. वो गोया कितने जुदा पर कितने अपने से हैं..

गौतम राजऋषि said...

चलिये पहले तो किशोर साब वाली खबर की बधाई दे देते हैं आपको। जब मैं कहता हूं कि आप और आपकी कवितायें बहुत खास हैं तो आपको लगता है कि हम यूं ही कहते हैं। अपने पाठकों की बात को हल्का मत लीजिये मैम!

सोचता हूं, अपनी कुछ अधकचरी नज़्मों को आपके हवाले कर दूं संवारने के लिये कि हम भी टांकना सीख जायें मुहब्बत के पैरहन पर इश्क के बटनों को...

अनामिका की सदायें ...... said...

dil ki tadaf jhalkate shabdo ka chunaav bahut hi asardaar hai...hamesha ki tareh mujhe nirutter karti hai apki ye rachna.

संजय भास्‍कर said...

वाह .....harkeet जी गज़ब का लिखतीं हैं आप .......!!

Asha Joglekar said...

मैंने आसमां की ओर देखा
इक बड़ी प्यारी सी नज़्म थी
चाँद की झोली में .......

हरकीरत ' हीर' said...
This comment has been removed by the author.
हरकीरत ' हीर' said...

अनुराग जी , किशोर जी , गौतम जी बहुत बहुत शुक्रिया इतना मान देने के लिए ....!!

.किशोर जी,

मुझे नहीं पता था ये कार्यक्रम इतना महत्त्व रखता है ....आज पता चला देश कई बड़े रचनाकार इस कार्यक्रम में भाग लेने आ रहे हैं ....वागर्थ के संपादक , बिजेंद्र त्रिपाठी , लक्ष्मी शंकर बाजपेयी , सुभाष नीरव .....२,३ दिन इसी में व्यस्त रहूंगी ....पूरा विवरण बाद में दूंगी .......!!

हाँ ....वो कुछ पल की बातचीत मुस्कुराहट दे गई .....शुक्रिया .....!!

गौतम जी ,

मुझ से बेहतर नज्में तो अनुराग जी लिखते हैं ....और फिर आपकी लिस्ट में मेरा नाम तो है ही नहीं .....!!

ये नज़्म भी अनुराग जी की फरमाइश पर ही है .....!!

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

मोहब्बत के पैरहन पर
इश्क़ का बटन -क्या खूब खेलती हैं आप शब्दों से.

अपूर्व said...

कुछ ऐसे दिलकश प्रयोग..कुछ बिम्ब होते हैं..एक रवानी लिये..जो सिर्फ़ आपकी रचनाओं मे ही मिलते हैं..वर्ना मोहब्बत जैसी अमूर्तऔर धुंधली बात को पैरहन के तौर पे कौन सोचता भला..और वो भी ऐसा सजीव कि रंग और डिजाइन तक देख लो...हालांकि फिर इश्क के बटन वाली बात कुछ कन्फ़्यूज करती है..मुझे जो समझ मे आता है कि मुहब्बत के पैरहन पर इश्क के बटन की यह इश्तिमालियत उसे एक पूरा पैकर देती है..जिस तरफ़ आपका इशारा है शायद..
..और फिर यह जिस्म के सन्नाटे..और चांद की झोली मे नज़्म..मगर यह नज़्म माहताब की पेशानी से जमीन पर क्यूं नही उतर पाती इसका पता आपकी आगे की पंक्तियों से लगता है..दिलफ़िगार..जिगर चाक कर देने वाली कहानी..वैसे तो औरत भी खुद जमीन ही होती है..या जमीन औरत...रब्ब भी तो इसी जमीन पर ही उगा होगा कहीं..आस्माँ मे घर बसाने से पहले..

RAJNISH PARIHAR said...

बहुत सुन्दर रचना है..बहुत ही खूबसूरत !..बधाई।

शारदा अरोरा said...

बहुत ही प्यारी नज्म , पढ़ कर ऐसा लगा कि आपने कितनी सही अभिव्यक्ति दी है ,
'आज मैंने भी लिखे हैं ....
कुछ जलते अक्षर स्याह सफ़्हों पर
तुम भी आना उस राख को सहेजने ....'
कि औरत चाहती है कि उस अफ़साने की राख सहेजने भी वो आए जरुर |

सर्वत एम० said...

उछाले हैं कुछ मोहब्बत अल्फाज़
आपकी इस पंक्ति का अर्थ समझ नहीं आया. मुहब्बत अलफ़ाज़ का अर्थ शायद आपने मुहब्बत के अलफ़ाज़ कहना चाहा होगा. फिर कविता में शार्ट हैण्ड चलाने की क्या जरूरत पड़ गयी? मुझे इल्म है आप सोचती होंगी, कैसा पागल इंसान है, कविता में कोई जरूरी है सारे शब्द लिखे जाएं, कविता पढने वाले को अपना दिमाग भी लगाना चाहिए.
क्षमा चाहूँगा, एक जगह और एक चीज़ हजम नहीं हुई है मगर उस पर बात करके आपका 'आक्रोश' और नहीं बढ़ाना चाहता. यदि आहत हुई हों या नाराजगी ज्यादा हो तो बड़ा समझकर भूल जाइएगा.

हरकीरत ' हीर' said...

सर्वत जी गलती से 'के' छुट गया था ध्यान दिलाने के लिए शुक्रिया ....और कुछ .....??

आक्रोश किस बात का ....अगर गलती हो तो मानूंगी जरुर .....!!

Prem said...

vइतनी गहरी भावनायों से भरी होती हैं आपकी रचनाएँ की जितनी भी दाद दी जाए कम है । नया वर्ष आप के और आपके परिवार के लिए मंगल मय hओ ।

Prem said...

vइतनी गहरी भावनायों से भरी होती हैं आपकी रचनाएँ की जितनी भी दाद दी जाए कम है । नया वर्ष आप के और आपके परिवार के लिए मंगल मय hओ ।

सर्वत एम० said...

आपने अपनी बात कहके खुद को बड़ा साबित कर दिया. हम रचनाकारों में अहं नहीं होना चाहिए. मुझे किसी की बात याद है, "जो अच्छा इंसान नहीं, वो अच्छा रचनाकार नहीं", आपने खुद को साबित कर दिया. अब मैं अपने बारे में सोच रहा हूँ, गलतियाँ निकालना अच्छा काम तो नहीं होता.

ज्योति सिंह said...

आज मैंने भी लिखे हैं ....
कुछ जलते अक्षर स्याह सफ़्हों पर
तुम भी आना उस राख को सहेजने ....
aap aesa likhti hai jiske liye shabd hi najar nahi aate ,phir kahe bhi kaise jubaan ,ati sundar ,saath hi sabke comment bhi damdaar hai ,yahan to munafa double hai ,gyan hi gyan .....

हरकीरत ' हीर' said...

सर्वत जी अब आप मुझे लज्जित कर रहे हैं ......इसे गलती निकलना नहीं कहते .....गलती निकलने वाले की नियत भी देखी जाती है वह किस नियत से कह रहा है ....मैं जानती थी आपके मन में वैसी कोई बात नहीं ....और आप तो गुरुजन हैं ...आपके लेखन की मैं बराबरी नहीं कर सकती ....गुरुजनों का आशीर्वाद ही मिलता रहे तो काफी है .....!!

शायद कोई और बात भी कहना चाहते थे आप .....एक सवाल पहले भी उठाया गया था कहीं वही तो नहीं ......'' मोहब्बत के पैरहन पर इश्क़ का बटन '' कैसे हो सकता है दोनों एक ही शब्द हैं .....यहाँ मैंने 'मोहब्बत' प्रेमी के लिए इस्तेमाल किया है ....!!

सुशील छौक्कर said...

हर शब्द बहुत कुछ और गहरा कहता हुआ।
ना जाने क्यूँ कुछ सवाल आज भी हमारी तरफ मुँह करे खड़े है? वो दिन कब आऐगा जब......

ठहर अय सुब्ह .....!
रात की सांसें रुकी हैं अभी
टांक लेने दे उसे
मोहब्बत के पैरहन पर
इश्क़ का बटन ......!

बेहतरीन.....।

nilesh mathur said...

हरकीरत जी, नमस्कार,
आप को पढ़ कर अच्छा लगता है ,
औरत के दर्द को शब्दों में
ढालना तो कोई आप से सीखे

Dr. Tripat Mehta said...

आज मैंने भी लिखे हैं ....
कुछ जलते अक्षर स्याह सफ़्हों पर
तुम भी आना उस राख को सहेजने ....
के तेरे कन्धों पे चाँद ने हंसी बांटी है
के ज़मीं देखती है अब फूलों की सूरत
के इश्क़ अपना लिबास सीने लगा है ....
bahit khoob..kya baat hai

विजय कुमार झा said...

dil ko chhu gaya yah lekh. aapne dard ko shabdon men achchhi tarah piroya hai.

Rohit Singh said...

heer actully kavita kafi purnia hai...or mene shabdo ko nahi badla...jarooi nahi samza..jo vichar tab they wo us waqt ke ahshaas ke saath hai .isliye gujre waqt ko badla sambhav nahi ....so shabd nahi badle.....

Or me kavi nahi....isley jo hai jasia hai...Aap kaviytri hai..jab kitab aayegi tu use pahle bdal loonga kuch chota kar dunga promise...
Baki apki kavita ke bare me ab me kia kahu.. Logo ne itni tarif kar di hai ki shabd kaha se laao...

अलीम आज़मी said...

बहुत उम्दा लिखा है आपने ...हमारे पास अलफ़ाज़ नहीं है आपकी तारीफ के लिए
बहुत खूब....हरिकिरत जी

पंकज said...

हर शब्द बहुत गहरा जाता है नश्तर की तरह.. बहुत सुंदर हीर जी.

निर्मला कपिला said...

हरकीरत जी इतनी देर बाद मेरा निशब्द रहना ही सही है सब ने जो कहा वही मैं कहती हूँ नये साल की शुभकामनायें लाजवाब शब्दों मे क्या जदू भरदेती हैं कि सन्नाटे मे भी लगता है कोई कुछ कह रहा है। वाह

neera said...

ठहर अय सुब्ह .....!
रात की सांसें रुकी हैं अभी
टांक लेने दे उसे
मोहब्बत के पैरहन पर
इश्क़ का बटन ......!!

क्या बात है !

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

यह आपकी बहुत बेहतरीन रचनाओं में से एक गिनी जाएगी.

दिगम्बर नासवा said...

ठहर अय सुब्ह .....
रात की सांसें रुकी हैं अभी
टांक लेने दे उसे
मोहब्बत के पैरहन पर
इश्क़ का बटन ....

जादू कर देती हैं आप शब्दों से ........ कुछ कहने की स्थिति में नही रखा है इस रचना में .......... बहुत ही लाजवाब ........

rashmi ravija said...

ठहर अय सुब्ह .....!
रात की सांसें रुकी हैं अभी
टांक लेने दे उसे
मोहब्बत के पैरहन पर
इश्क़ का बटन ......!!

हरकीरत जी,
आपकी लेखनी तो बस कमाल की है...इतनी टिप्पणियों के बाद कहने को नहीं बचा कुछ...बस रोंगटे खड़े कर देती है आपकी कविता...डर के नहीं,रोमांच के :).
मैंने अपने ब्लॉग पर..आपको रिप्लाई किया था वही कॉपी पेस्ट कर देती हूँ @ हरकीरत जी,नसीबोंवाली तो आप हैं...खुदा ने ऐसी नेमत बख्शी है, इतना ख़ूबसूरत लिखती हैं...हमें दो बार पढना पड़ता है,समझने के लिए..:)
इन दिनों एक लघु उपन्यास पोस्ट करने में व्यस्त थी..इसलिए इतनी देर हो गयी ऐसी अनमोल कविता पढने में....वक़्त मिले तो कभी नज़र डालें.

करण समस्तीपुरी said...

मैंने आसमां की ओर देखा
इक बड़ी प्यारी सी नज़्म थी
चाँद की झोली में .......

harkeerat jee,

aap kee is upmaa par main saahitya kee saaree sampatti baarataa hoon !!

manu said...

नज़्म के बाद कमेंट्स पढने का एक अलग ही मजा है..

dipayan said...

बहुत शुक्रिया प्रोत्साहन के लिये.

आपकी लिखने की कला अध्भुत और सुन्दर हैं.

विश्व दीपक said...

अंत आते-आते सारी भावनाएँ मुखर हो आई हैं। बड़ी हीं आसानी से आप दिल की उलझनें हर्फ़ों के माध्यम से सुलझा लेती हैं।

बधाई स्वीकारें।

-विश्व दीपक

रजनीश 'साहिल said...

रब्बा.... !
ये औरत को ब्याहने वाले लोग
क्यों चिन देते हैं उसे दीवारों में .....?

bahut mushqil iske aage kuchh kah pana ki Atak sa gaya hoon in panktiyon me. in panktiyon ke bare me 'achchhi rachna' kah dena isme simte hue sawalon ki tauheen karna hoga.

Yugal said...

बहुत संवेदी काव्य