Sunday, January 10, 2010

आकाशवाणी का सर्वभाषा कवि सम्मलेन व कुछ ब्लोगर मीट......

उपेन्द्र रैणा (दिल्ली आकाशवाणी में अधिकारी पद पर ), सुभाष नीरव जी , लक्ष्मी शंकर बाजपेयी जी , अलका सिन्हा और मैं


पहले का नाम याद नहीं दुसरे हैं सुभाष नीरव , लक्ष्मी शंकर बाजपेयी , अलका सिन्हा और मैं .....


रसों में... नसीब होती है इक ऐसी शाम ......जो ऐसी सर्द शामों में भी गर्माहट दे जाये .....कुछ कशिश भरी मदहोश कर देने वाली आवाजें .....कुछ मौसम का रंगीन मिजाज़ ....कुछ वाहवाही .....कुछ स्नेह ....कुछ आशीर्वाद ....और कुछ हीर से मिलने की उत्सुकता ......सारा समां जैसे पलों में ही बीत गया और मन उन्हीं पलों में रात भर डूबता - उतरता रोमांचित होता रहा .....!
जी हाँ , मैं बात कर रही हूँ आकाशवाणी की तरफ से कल गुवाहाटी में ६३ बरसों बाद हुए उस सर्वभाषा कवि सम्मलेन की ....जिसकी महक अभी तक रगों में दौड़ रही है .....देश भर से आये प्रतिष्ठित व् सम्मानित सर्वभाषाओं के २२ कवि और उतने ही उनके अनुवादक ....शाम ५ बजे से रात्रि ९ बजे तक चले इस कार्यक्रम का शुभारंभ होता है आकाशवाणी की महानिदेशिका अलका पाठक जी के दीप प्रज्वलन से ( जिनके लगभग २५ संकलन आ चुके हैं )....तदुपरांत सभी कवियों का सम्मान किया जाता है असमिया गमछा , राज्यिक पशु ' गैंडे' के प्रतिक चिन्ह और एक खुशबूदार गुलाब से .....!
संचालन करती तशरीह देती है दिल्ली आकाशवाणी के स्टेशन डाइरेक्टर लक्ष्मी शंकर बाजपेयी जी की मदहोश कर देने वाली कशिश आवाज़ ......
यह कार्यक्रम किसी न किसी प्रान्त में हर वर्ष आयोजित किया जाता है ....साल भर हर भाषा की ढेरों कविताओं में
से किसी एक कविता का चुनाव किया जाता है .....तदुपरांत ही उन कवियों को इस कार्यक्रम में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया जाता है ....कुछ हिंदी अनुवादक स्थानीय व् कुछ उन्हीं के प्रान्तों के .....इन चुनिन्दा कविताओं का तर्जुमा हर प्रान्त स्थानीय भाषा में भी किया जाता है ....मसलन असम में असमिया में , पंजाब में पंजाबी में , गुजरात में गुजराती में .....इस कार्यक्रम को गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या रात्रि १० बजे आकाशवाणी से प्रसारित किया जाता है .....!
कविता पाठ आरम्भ होता है अभिराज़ राजेंद्र मिश्र जी की संस्कृत ग़ज़ल से जिसका हिंदी रूपांतर श्री राम कुमार lआत्रेय जी ने सस्वर पढ़ा .....तदुपरांत असमिया कविता की बारी थी जिसका अनुवाद मुझे पढना था ....अब मैंने कैसा पढ़ा या मेरी आवाज़ कैसी थी ये जानने के लिए आपको सुभाष नीरव जी के कमेन्ट का इन्तजार करना पड़ेगा.....जी हाँ मैं बात कर रही हूँ छ: छ: ब्लॉग चलाने वाले सुभाष जी

का.........सुभाष जी आ रहे हैं ये तो हमें कार्ड में छपे नामोंसे ही पता चल गया था .....फिर उनका फोन भी

आ चूका था यह जानने कि वहाँ ठण्ड कितनी है गर्म कपड़ों की जरुरत है या नहीं ....वगैरह वगैरह .......तस्वीर से थोड़े भिन्न पर फिर भी हमने एक दुसरे को पहचान लिया था .....बहुत ही मिलनसार और नम्रता इतनी की फख्र होने लगे .....!

खैर ........सारे कवियों में सबसे मधुर आवाज़ लगी कोकिला स्वर वाली अलका सिन्हा जी की ....(इनके तीन काव्य संकलन और एक कहानी संग्रह छप चुके हैं ) इन्होने कश्मीरी भाषा का अनुवाद पढ़ा ......उफ्फ्फ्फ़ ....आवाज़ इतनी कोमल और मीठी कि लगा सच-मुच कश्मीर की वादियों की सैर कर रहे हों .....और गुवाहाटी के कबीर जी कि दिलकश आवाज़ के जादू ने तो उन्हें तुरंत दिल्ली आकाशवाणी में न्योता दे दिया ....और अंत में हिंदी के प्रतिष्ठित कवि डा. बलदेव वंशी जी ( ६० से अधिक पुस्तकें )

की कविता' पत्थर भी बोलते हैं ' ने इतनी वाहवाही लूटी कि जी चाहा एक दो फरमाइश और रख दें पर यहाँ स्वीकृत कविताओं का ही पाठ था .....बाजपेयी जी की रोमानी आवाज़ में नज़्म सुनने की इच्छा भी पूरी हो गई .....उर्दू के कवि बशर नवाज़ जी नहीं पहुँच पाए थे उनकी नज़्म का पाठ स्वयं बाजपेयी जी ने किया ......


कुछ रोचक व् यादगार मुलाकातें .....


) वागर्थ के संपादक विजय बहादुर सिंह जी - -

मिलते ही बोले ...." तुम्हें पढ़ लिया मैंने "

मैं हतप्रद सी.... "कैसे ...?"

" इक दर्द" में .....


) समकालीन भारतीय साहित्य के संपादक बिजेंद्र त्रिपाठी -

" हक़ीर......"

"जी "

" पहचाना ....??"

" मैं नहीं में सर हिलती हूँ "

" मैं बिजेंद्र त्रिपाठी "

तभी गुवाहाटी यूनिवर्सिटी के पूर्व हिंदी प्रवक्ता डा. धर्मदेव तिवारी बीच में बोल पढ़ते हैं ...." तुम्हारा दर्द इनके शेल्फ में भी विराजमान है ....पाँव बहुत व्यापक हैं तुम्हारे दर्द के .....न जाने और कितनी दूरी तय करेगा ....और हंस पड़ते हैं ......!


) सिलचर यूनिवर्सिटी के हिंदी प्रवक्ता कृष्ण मोहन झा -

हरकीरत जी पहचाना .......??

मैं इन्हें भी नहीं में सर हिलती हूँ .....

आपने मेरे ब्लॉग पे कमेन्ट किया था ...??

"जी.... कहाँ से हैं आप ....?" मैं पूछती हूँ ....

" सिलचर से ...'अनुनाद' नाम से ब्लॉग है मेरा "

''ओह .....हाँ ....आप तो गज़ब का लिखते हैं ......

अपनासंकलन नहीं लाये कोई ...'' मैं पूछती हूँ ...

'' नहीं अभी मेरे पास कोई है नहीं .....''


) निलेश माथुर - ( गुवाहाटी के ब्लोगर )

" हीर जी ....."

मैं पलटकर देखती हूँ ...".जी ....?"

मैं " निलेश माथुर ..."

'' अरे ....'' मैं हतप्रद रह जाती हूँ ...वे मुझसे मिलने मंच तक आये हैं .....!


)लक्ष्मी शंकर बाजपेयी जी -

'' हरकीरत मेरी बात अब भी वही है ...''

'' कौन सी बात ....? ''

''अनुभूति वाली ...उसमें भी रचनायें भेजो ...''


) असमिया कवि अनुभव तुलसी -

जाते जाते बोले ....''अपना मोबाइल देखना ...''

मैंने देखा तारीफों की इक लम्बी तहरीर थी ....

अब आपके लिए वो कविता जिसका अनुवाद मैंने किया ....उसका टुटा-फुटा अनुवाद तो होता है पर हमें उसे कवितामय बनाना होता है साथ ही यह भी ध्यान में रखना क़ि कविता मूल भाव से हटने न पाए .....देखिये और बताइए क़ि मैं कितनी सफल हो पाई हूँ ......


सफ़ेद घोडा सफ़ेद गुलाब ( मूल . उदय कुमार शर्मा , अनु. किशोर जैन -गुवाहाटी )
(१)
खेत में फसल नहीं है रेत
तालाब में मछली नहीं है दरार
पहाड़ पर पेड़ नहीं है आग
पेड़ पर पक्षी नहीं है खून

अमीरों की अँगुलियों में अंगूठी के लिए और जगह नहीं है

एक सफ़ेद घोड़े क़ि तरह
सिर हिनहिनाते हुए मौत बुलाती है
(२)

सपने में नींद में आ गिरे हजारों लोग
आँखों क़ि झलक हो पड़े सावन का आकाश
अँधेरे में बिल्ली की आँखें बनकर
चमक उठे मौत
(३)

फूल के कानों में
तितली कौन सा मंत्र गुनगुनाती है
जंगल अभी भी तूफ़ान की भाषा समझते हैं
क्षुधाग्नि बनकर
क्रोधाग्नि में
मर कर जीने वाली घास पर से रौशनी का झरना बहता है
मेढक के गीत
पौधे रोपने के गीत
जिन्हें सुनकर देखते रहेंगे आजीवन
आसमान के उन सफ़ेद गुलाब की पंखुड़ियों को
अनग्न अनंत यौवन




मेरा अनुवाद .......


श्वेत अश्व श्वेत गुलाब .....( असमियाँ कविता , अनु. हरकीरत 'हीर' ) मूल: उदय कुमार शर्मा
(१)
खेतों में फसल नहीं अब - रेत है
तालाबों में मछलियां नहीं - दरारें हैं
पर्वतों में नहीं बचे दरख्त- अग्नि है
पेड़ों में भी अब नहीं है परिंदे- बस रक्त है

शहर की अँगुलियों में अब नहीं बची जगह अंगूठी की


बस जंगी सफ़ेद घोड़े सी
हिनहिनाती हुई मौत
पुकारती है
हर दिशा ....!!



( )

हजारों लोग महज़
ख्वाबों में ही सो पाते हैं अब
आँखों की चाहत बन जाती है
सावन का आकाश
चमक उठती है मौत
बिल्ली की आँखों सी

(३)

तितलियों ने
फूलों के कानों में
चुपके से ये मंत्र फूंका
के अब जंगल भी समझने लगे हैं
तूफानों से जूझने की भाषा ...
क्षुधाग्नि ....
क्रोधाग्नि .....
मृतप्राय तृण पुनर्जीवित हो
अचानक बो देते हैं बीज प्रकाश के
मेढकों के गीत....
फसल बोने के गीत
जिन्हें सुन-सुन देखता रहूँगा मैं चिरदिन
आसमां में लिखे उस श्वेत गुलाब का
अनग्न अनंत यौवन ......!!


आप चाहें तो इस कार्यक्रम को आकाशवाणी में गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या रात्रि १० बजे सुन सकते हैं .......

....................................................................................


अंत में एक त्रिवेणी .......

ओढ़ाये थे तुमने जो शब्दों के कम्बल

रात भर जिस्म में उनसे गर्माहट रही



चनाब बहुत देर तक सांसों में बहती-उतरती रही ...!!

लक्ष्मी शंकर बाजपेयी ,, अलका सिन्हा , हरकीरत हीर, बिजेंद्र त्रिपाठी , सुभाष नीरव व उपेन्द्र रैणा

वागर्थ के संपादक विजय बहादुर सिंग के साथ

उपेन्द्र रैणा ,सुभाष नीरव जी , लक्ष्मी शंकर बाजपेयी जी , अलका सिन्हा और मैं

71 comments:

रावेंद्रकुमार रवि said...

बहुत अच्छी और जानकारी पूर्ण रपट!
--
ओंठों पर मधु-मुस्कान खिलाती, रंग-रँगीली शुभकामनाएँ!
नए वर्ष की नई सुबह में, महके हृदय तुम्हारा!
संयुक्ताक्षर "श्रृ" सही है या "शृ", उर्दू कौन सी भाषा का शब्द है?
संपादक : "सरस पायस"

रावेंद्रकुमार रवि said...

बहुत अच्छी और जानकारी पूर्ण रपट!
--
ओंठों पर मधु-मुस्कान खिलाती, रंग-रँगीली शुभकामनाएँ!
नए वर्ष की नई सुबह में, महके हृदय तुम्हारा!
संयुक्ताक्षर "श्रृ" सही है या "शृ", उर्दू कौन सी भाषा का शब्द है?
संपादक : "सरस पायस"

Khushdeep Sehgal said...

आनंद आ गया समारोह की रिपोर्टिंग पढ़ कर...

चनाब बहुत देर तक सांसों में बहती-उतरती रही ...!!

लेकिन हरकीरत हीर का 'इक दर्द' कभी सांसों से नहीं उतर सकता...

जय हिंद...

Udan Tashtari said...

बहुत उम्दा रिपोर्टिंग...रचनायें पढ़कर अच्छा लगा...और


ओढ़ाये थे तुमने जो शब्दों के कम्बल
रात भर जिस्म में उनसे गर्माहट रही


चनाब बहुत देर तक सांसों में बहती-उतरती रही ...!

-क्या बात है!! वाह!!

Kulwant Happy said...

दर्द तुम्हें अमर कर देगा, जैसे शिव बटालवी को कर गया। कभी कभी सोचता हूँ, कोई कैसे जी लेता है दर्द को इतना भी। बधाई हो। एक दर्द मुझे भी पढ़नी पड़ेगी, क्या दिल्ली से मिलेगी?

चलते चलते।
जैसे उनको ब्लॉग़ पर कमेंट्स करके आप भूल गए, हमको भी तो नहीं भूल जाते।

TRIPURARI said...

चनाब बहुत देर तक सांसों में बहती-उतरती रही ...!


...और जब पत्थरनुमा सफेद रूह पर औंधे मुँह गिरी तो टूट गई |

यकीन न हो तो...

मेरी हथेलियों पर चूभते हुए ज़ख्मों से पूछिए जो क़लम की बाहों में सिमट कर तमाम रात महकते रहे |

आप महसूस कर सकती हैं...

http://www.tanharaat.blogspot.com

स्याह रातों में अकसर पैदा होते हैं सफ़ेद अफ़साने

रवि धवन said...

इतना खतरनाक कैसे लिख लेती हैं...
ऐसा लगा मानों लाइव प्रसारण हो रहा हो। बेहद मधुरिम वर्णन किया है आपने।

कडुवासच said...

... प्रसंशनीय अभिव्यक्ति !!!

डॉ टी एस दराल said...

अरे इसमें आप है की नहीं। चलिए शाम को देखते हैं।
तब तक बहुत बधाई इस सम्मलेन की।

Meenu Khare said...

आकाशवाणी की इस कवरेज के लिए आपको आकाशवाणी परिवार की ओर से हार्दिक धन्यवाद. हमे लगा हमारा प्रयास सार्थक हुआ.अब 25 जनवरी को इन कविताओं को रेडियों पर सुनूँगी.

सदा said...

ओढ़ाये थे तुमने जो शब्दों के कम्बल
रात भर जिस्म में उनसे गर्माहट रही ।
बहुत ही सुन्‍दर प्रस्‍तुति के साथ इन पंक्तियों के लिये आभार ।

हरकीरत ' हीर' said...
This comment has been removed by the author.
हरकीरत ' हीर' said...

दराल जी मैं भी हूँ पीछे की पंक्ति में दुसरे नम्बर पे .....
शाम को कुछ और तस्वीरें लगाती हूँ ......!!

Aparna Bajpai said...

मेरी हथेलियों पर चूभते हुए ज़ख्मों से पूछिए जो क़लम की बाहों में सिमट कर तमाम रात महकते रहे |

Kya baat hai! Sach me dil ke kone antare me ja kar baith jate hai aise shabd.Aapki ek ek line se sikhati hun mai. AMRITA PRITAM meri fevrite writer hai, unke baad ab aap achchhi lagti hai mujhe.

Karyakram ki reporting karke aapne bahuto ko uske prabhaw me shamil kar liya. reporting ke litye dhanyawad.

Apni kavitao par aapke comment ki pratiksha karti rahti hu.

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

यह रिपोर्टिंग बहुत अच्छी लगी...

के सी said...

इस बार का सर्व भाषा कवि सम्मलेन मेरे लिए खास रहेगा. आपने बहुत सुंदर अनुवाद किये हैं कि कविताएं हिंदी में ही लिखी जान पड़ती हैं. असमिया भाषा पर आपकी अच्छी पकड़ है ऐसा अनुमान लगा रहा हूँ. वैसे आपकी भाषाई दक्षता पर रश्क होता है. असमिया, उर्दू, पंजाबी और हिंदी के बारे में तो जानकारी भी हो गयी है मुझे. नई जानकरी इस पोस्ट से ये हुई कि आपके दर्द के कितने दीवाने हैं, वाह.

Ravi Rajbhar said...

Bahut hi rochak ma'm
laga ham bhi wahinmkahin kisi kone me baithe hain..!

डॉ महेश सिन्हा said...

एक अलग सा ब्लॉगर मिलन

rashmi ravija said...

बहुत ही खूबसूरती से बयाँ की है आपने उस शाम की कहानी...हम भी रु-ब-रु हो उठे उन सारी हलचलों से....उन पुरकशिश आवाजों में पढ़ी जाने वाली...कवितायें जैसे हमारे कानों ने भी सुन ली...
जब आप खुद इतना सुन्दर लिखती हैं....फिर अनुवाद ख़ूबसूरत कैसे ना अच्छा होता
हजारों लोग महज़
ख्वाबों में ही सो पाते हैं अब
आँखों की चाहत बन जाती है
सावन का आकाश
बहुत खूब हैं ये पंक्तियाँ...

Mohinder56 said...

सम्मेलन की सरस रिपोर्ट के लिये आभार.
ऐसे मिलन निश्चत तौर पर बहुत ही कम लोगों को नसीब हो पाते हैं जब नेट की दुनिया के अन्जाने मगर पहचाने लोगों से मिलने का अवसर मिलता है.

अविनाश वाचस्पति said...

यही तो है ब्‍लॉगिंग का आनंद
पूरा विश्‍व एक कुटिया में समाया
जिसका नाम ब्‍लॉग कहलाया।

Pushpendra Singh "Pushp" said...

हीर जी
इस सम्मलेन के लिए
बधाई कुबूल करें ...........

vandana gupta said...

sach mein alag sa blogger meet tha...........bahut hi badhiya aayojan raha aisa laga jaise sab liv ho.
ओढ़ाये थे तुमने जो शब्दों के कम्बल रात भर जिस्म में उनसे गर्माहट रही


चनाब बहुत देर तक सांसों में बहती-उतरती रही ...!!


kya baat kah di........kin shabdon mein tarif karoon...........behtreen.

दिगम्बर नासवा said...

बहुत ही अच्छी है चर्चा ........ मज़ा आ गया आपको पढ़ कर .......... चित्रों का इंतेज़ार रहेगा ........

रचना दीक्षित said...

समारोह का विवरण अच्छा लगा और उससे भी अच्छी आप की पंक्तियाँ

ओढ़ाये थे तुमने जो शब्दों के कम्बल
रात भर जिस्म में उनसे गर्माहट रही


चनाब बहुत देर तक सांसों में बहती-उतरती रही ...!

-क्या बात है!! वाह!!

RAJ SINH said...

इंतज़ार था इस रपट का .बेहद खुशी हुयी सफल आयोजन की और आपका योगदान तो अतुलनीय रहा.
बधाई !

Alpana Verma said...

'के अब जंगल भी समझने लगे हैं
तूफानों से जूझने की भाषा ...'
-वाह! क्या बात है!
त्रिवेणी भी खूब कही है.

**बधाई जी इस सम्मलेन की! और उम्दा रिपोर्टिंग की है.
मैं तो रेडियो सुन नहीं sakati yahan हो सके तो उस कार्यक्र्म की रेकॉर्डिंग सुनव दीजीएगा.

Randhir Singh Suman said...

खेतों में फसल नहीं अब - रेत है
तालाबों में मछलियां नहीं - दरारें हैं
पर्वतों में नहीं बचे दरख्त- अग्नि है
पेड़ों में भी अब नहीं है परिंदे- बस रक्त हैnice

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

बहुत अच्छा लगा पढ़कर.

डॉ टी एस दराल said...

हरकीरत जी, अब पूरी पोस्ट को तसल्ली से पढ़ा है।
मैं समझ सकता हूँ , ६३ साल बाद इस तरह के सम्मलेन का आयोजन कितना सुखप्रद रहा होगा।
आपका अनुवाद पढ़कर बहुत अच्छा लगा।
बेशक आप लफ़्ज़ों में जादू डाल देती हैं।

चनाब बहुत देर तक सांसों में बहती-उतरती रही ...!
वाह, वाह ! और क्या कहूँ। अद्भुत।

"अर्श" said...

कुछ बातें कितनी ख़ास हो जाती हैं , पोस्ट पढ़ कर समझ आया ...
मुबारका जी ..


अर्श

अलीम आज़मी said...

bahuthi khuoosurti se aapne har baat kah di .... bahut hi khoobsurat ....
best regards
aleem azmi

मनोज भारती said...

सजीव वर्णन,जीवंत वृतांत ... प्रवाहमयी भाषा और सुंदर अनुवाद के लिए हार्दिक धन्यवाद । इसे कहते हैं रचनाधर्मिता । आप एक अच्छी कवयित्री के साथ-साथ एक अच्छी लेखिका और संस्मरणकार भी हैं, इसकी सुंदर बानगी आज देखने को मिली ।

Yogesh Verma Swapn said...

POORA VRATANT RUCHIKAR LAGA.

Unknown said...

कभी इस सर्व भाषा कवि सम्मेलन को बडे ध्यन से सुनते थे. आज आपने इतनी सुन्दर, सरल और प्रभावी रपट लिखी है कि मज़ा आ गया.

सुभाष नीरव said...

हरकीरत जी, सर्वभाषा कवि सम्मेलन -2010 के बहाने ही सही,गुवाहाटी में आपसे मिलना बहुत सुखद लगा। आपने अपने ब्लॉग में इस सम्मेलन के विषय में जो लिखा है, उसे पढ़कर सचमुच अच्छ लगा। असमिया कविताओं का आपका हिन्दी अनुवाद नि:संदेह बहुत सुन्दर है, छन्दमुक्त कविता में जो रिद्म होना चाहिए, वह तो है, इसके साथ साथ मूल कविता के भाव और विचार को आपने बड़ी खूबसूरती से पकड़ा है। रही बात मंच पर आपके सस्वर पाठ की, तो इतना ही कहूँगा- ठहरी ठहरी सी कोमल आवाज़ और अंदाजे बयां ऐसा कि ये छोटी छोटी कविताएं दिल को छूती चली गईं। एक बारगी लगा कि जैसे दर्द से भीगी आप अपनी कविताएं पढ़ रही हों… श्री उदय कुमार शर्मा जी की छोटी असमिया कविताओं को हिन्दी में इतना सुन्दर अनुवाद करने के लिए आपको बधाई !

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

बढ़िया रिपोर्ट
आपकी सफलताओं के लिए
हमारी दुआएं भी शामिल कर लीजिये
नव वर्ष मंगल मय हो
- लावण्या

राज भाटिय़ा said...

बहुत अच्छी लगी समारोह की रिपोर्टिंग ओर सुंदर रचना पढ कर आनंद आ गया, धन्यवाद

अपूर्व said...

वाह कितनेी नये खुशगवार रंग देखने को मिले आपके..इस पोस्ट मे..और वह कविता..सुभा्नल्लाह!!कुछ और बोलूँगा तो लफ़्ज़ों की तासीर कम होगी..
आकाशवाणी मे क्या विविधभारती पर सुन सकते हैं इसे?

हरकीरत ' हीर' said...

अपूर्व जी इतना तो नहीं पता ....बस यही पता है आकाशवाणी से रात्रि १० बजे प्रसारण होगा ..... इसकी जानकारी तो सुभाष जी या मीनू जी दे सकते हैं .....मेरे पास तो रेडियो भी नहीं है ....!!

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

आपके द्वारा दी गयी जानकारी के लिए शुक्रिया.....बहुत खूबसूरती से सारी बातें शब्दों में उतारी हैं....और तेइवेनी तो लाजवाब है....
आपके " दर्द " को पढ़ने की ख्वाहिश है......बहुत बहुत बधाई

siddheshwar singh said...

सर्वभाषा कवि सम्मेलन -2010 का प्रसारण निश्चित रूप से सुना जाएगा। अब तो रेडियो सुनना तभी हो पाता है जब बिजली न हो लेकिन इस बार आपकी इस रपट से मिली जानकारी की प्रेरणा के चलते बिजली होते हुए भी इसे सुनूंगा- इसलिए कि अनुवाद में रुचि है कुछ अनुवाद किया भी है और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इस आयोजन में हिन्दी ब्लागर्स के सक्रिय जुड़ाव के कारण यह खास अवसर होगा मेरे वास्ते। आपके लिखे का प्रशसक हूँ, यह कहना दुहराव ही होगा। इस समय हिन्दी ब्लाग की बनती हुई दुनिया में बहुत कम लोग हैं जो इस माध्यम को साहित्य के गंभीर प्रस्तुतीकरण और दस्तावेजीकरण के औजार के रूप में साध चुके हैं। इस क्षेत्र में आपका प्रयास , सक्रियता और निरन्तरता तारीफ के काबिल है।

Dr. Tripat Mehta said...

bahut badiya lagi aur acha bhi laga sab kuch padh kar..
shukriya..

सुशील छौक्कर said...

लम्बी पोस्ट है तसल्ली से पढकर बात करेगे जी।

daanish said...

आकाशवाणी साहित्य सम्मलेन के
रोचक समारोह का विवरण
आपकी ज़बानी और भी रोचक बन पडा है
ये सब
आपकी परिपक्व और अनुपम रचनाधर्मिता ही है
जो आप इन सभी स्थापित और
सिद्धहस्त साहित्यकारों से
इतना मान, प्यार और आदर हासिल कर रही हैं
आपकी साहित्य के प्रति
निष्ठा , लगन , और समर्पण भाव
आपको इस खूबसूरत मक़ाम तक ले आए हैं

श्री लक्ष्मी शंकर बाजपाई जी के punjab आगमन पर उनसे हुई भेंट में
आपका ज़िक्र बराबर होता रहा था
और ....
श्रीमती शकुन्तला श्रीवास्तव तो अब लुधिअना वापिस आती ही होंगी ...
उनकी और आपकी मुलाक़ात का भरपूर
ब्योरा लिया जाएगा .........

आपकी रचनाओं से भली-भांति परिचित हूँ ...
आपकी कृति "इक दर्द" की
समीक्षा भी कर चुका हूँ
जो कई पत्रिकाओं में छप भी चुकी है ....
आपके अन्दर का रचनाकार
अब आपके साथ घुल-मिल चुका है
आपका एहसास , आपकी सोच ,
आपके लेखन का अंग बन चुके हैं
इस निरंतरता को ,
इस प्रक्रिया को बनाए रक्खें
माँ सरस्वती जी
हरकीरत 'हीर' को
अपने पावन आशीर्वाद से यूं ही नवाज़ती रहें.. यही हम सब की प्रार्थना है
आमीन .

अनामिका की सदायें ...... said...

heer ji bahut bahut shukriya ki photo ki maarfat aapne itni unchi hastiyo se milvaya...aur bahut bahut shukriya jo aapne apni bhasha me anuwad kiya jis se me puri kavita samajh payi. aapki sharing bahut acchhi lagi tahe dil se shukriy.

संजय भास्‍कर said...

अरे इसमें आप है की नहीं। चलिए शाम को देखते हैं।
तब तक बहुत बधाई इस सम्मलेन की।

देवेन्द्र पाण्डेय said...

इस पोस्ट को पढकर बहुत खुशी हुई.

Satyendra Kumar said...

इस सम्मलेन की बधाई साथ ही हौसला अफजायी के लिये धन्यवाद

वन्दना अवस्थी दुबे said...

वाह! कितना मज़ा आया होगा आपको!! कितना प्रफुल्लित हुआ होगा मन!! हमें भी कार्यक्रम में होने की अनुभूति हुई आपके संस्मरण को पढ के.

डॉ .अनुराग said...

सुबह इधर बड़ी जोर की बारिश गिरी है .उसके बाद सूरज कुछ देर की चहलकदमी के वास्ते ....मै अब भी पिछली नज्मो के सरूर में बैठा हूँ....अजीब बात है के नशा उतरता नहीं ..किसी ने कंप्यूटर में कुछ बूंदे ओर गिराई है ....खुदा जाने अब कब .....



ओढ़ाये थे तुमने जो शब्दों के कम्बल
रात भर जिस्म में उनसे गर्माहट रही

चनाब बहुत देर तक सांसों में बहती-उतरती रही ...!!

देश अपरिमेय said...

कोसिस है की इतने प्रतिभा संपन्न कलाकार की मक्खनबाजी करते न पकड़ा जाऊं. मैं बस इतना कहना चाहता हूँ की अगर आप ने अनुवाद न किया होता तो मैं 'सफ़ेद घोडा सफ़ेद गुलाब' जैसी रचना की महानता को जाने कैसे परिभाषित करता.
उम्मीद है आपसे बहुत कुछ सीखूंगा.
अब मुझे 'एक दर्द' को पढने और जानने की जितनी जल्दी है शायद किसी और काम की नहीं.

Murari Pareek said...

सुन्दर रिपोर्ट के साथ शानदार रचनाओं का आनंद !!! भाल लागिले ओखोमोत ईमान धुनिया मिला मिसा टू!!!

निर्मला कपिला said...

बहुत अच्छी जानकारी है। बधाई आपको इसमे सहिरकत करने के लिये। लोहडी की बहुत बहुत शुभकामनायें

मथुरा कलौनी said...

बहुत सजीव वर्णन किया है आपने। रोचक रिपोर्ट।

श्रद्धा जैन said...

bahut bahut badhayi
aapki nazm hoti hi aisi hai
jo padh le man mein bas jaaye
bas khushbu aur sakun
dard mein sakoon kaise milta hai ye aapni nazm padh kar jaan paayi hun

bas aap likhti rahe aapki kalam mein jaadu hai
aur bulndiyon ko chhuye

अर्कजेश Arkjesh said...

कुछ रोचक व् यादगार मुलाकातें प्रस्‍तुत करने का अंदाज अच्‍छा लगा । सा‍थ ही कविताओं और पूरे कार्यक्रम का अच्‍छा विवरण दिया है आपने ।

ओढ़ाये थे तुमने जो शब्दों के कम्बल
रात भर जिस्म में उनसे गर्माहट रही


चनाब बहुत देर तक सांसों में बहती-उतरती रही ...!

यह सब पर भारी है ।

manu said...

हरकीरत जी...
पहचाना..................?

:)

सागर said...

दुआ करता हूँ कि इस मिलन कि गर्माहट आपको सदा तरोताजा रखे इस सर्दी में भी... कभी लक्ष्मी शंकर जी से मुलाकात हुई आपका जिक्र जरूर होगा... शुभकामनाएं

सागर said...

एक बात और कहूँगा... बहुत कम लोग होते हैं जिसके दर्द को पहचान मिलती है... यहाँ तो "कितने दिल टूटे हैं, टुटा करेंगे" वाली स्थिति है ... ऐसे में आपके दर्द को मुकम्मल पहचान मिलना सुखद रहा... शुक्रिया.. हाँ त्रिवेणी मेरे समझ में नहीं आती ... मेरी गलती ...

हरकीरत ' हीर' said...

मनु जी ....ये टोपी कुछ कुछ तो पहचानी लग रही है .....पहली बार हिंद-युग्म में देखी थी ....और जब हिंदी में लिखना सीख लिया तो हिंद-युग्म टिप्पणियों से छा गया था ......!!

सर्वत एम० said...

आपने आँखों देखा/सचित्र हाल बता /दिखाकर हमें सीधा गुवाहाटी पहुंचा दिया. एक बात सच बयान करना चाहूँगा -- उस असमिया कविता का अनुवाद मुझे ज्यादा अच्छा लगा बनिस्बत उसके उस मूल में जो हिंदी में आप ने पढवाया .
असम में रहते हुए भी चनाब को न भूलना , मन को छू गया .
ये लुधियाना के मुशायरे का क्या किस्सा है?

शोभना चौरे said...

harkeratji
vah aannd aa gya ,mugdh hoo is riport
par .
bahut bahut shubhkamnaye

गौतम राजऋषि said...

लाजवाब रपट मैम...फिर भी लगा जैसे जल्दबाजी में सब समेट दिया आपने। इसे कम-से-कम दो-तीन पोस्टों तक क्रमवार चलाना था तो मजा आ जाता....

त्रिवेणी तो कहर ढ़ा रहा है...अनुवाद को फिर से पढ़ने के लिये आ रहा हूँ। विजय बहादुर जी से मिलने की तमन्ना तो कब से मेरी भी रही है। जाने कब मौका मिले....

Anonymous said...

देर से आ पाया, कुछ पढ़ा कुछ नहीं, इतने बड़े-बड़े लोग बोल रहे हैं तो मेरी क्या हस्ती जो अपनी जुबान खोलूं जैसे: वागर्थ के संपादक विजय बहादुर सिंह जी - - मिलते ही बोले ...." तुम्हें पढ़ लिया मैंने " मैं हतप्रद सी.... "कैसे ...?"
" इक दर्द" में ..... हार्दिक बधाई.
"ओढ़ाये थे तुमने जो शब्दों के कम्बल
रात भर जिस्म में उनसे गर्माहट रही"

श्वेत अश्व श्वेत गुलाब का अनुवाद -
सपने में नींद में आ गिरे हजारों लोग
आँखों क़ि झलक हो पड़े सावन का आकाश
अँधेरे में बिल्ली की आँखें बनकर
चमक उठे मौत
टुटा-फुटा कौन बोलता है, कुछ टाइपिंग की गलतियाँ ही तो हैं - समझ आ रहा है - धन्यवाद्

कडुवासच said...

...बहुत बहुत बधाई!!!

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

अरे वाह... लगता है मैं और आप एक ही नक्षत्र के हैं....

अभी देखिये न २-३ जनवरी को दिल्ली में राष्ट्रिय कवि संगम में शिरकत किया था...
वहां भी डा. लक्ष्मी शंकर वाजपेयी जी से मिला...
विस्तृत रिपोर्ट(रचनाओ के साथ) यहाँ है-
http://sulabhpatra.blogspot.com/2010/01/ek-report.html

रिपोर्ट और अनुवाद कविताये देख मजा आ गया... बहुत अच्छा रहा होगा न समारोह... "त्रिवेणी भी खूब है...चनाब का जिक्र आ ही गया"

आपके चित्र देख थोडा और करीब से जान पाया. अच्छी रिपोर्टिंग कर लेते हैं आप. अब आप ही बताईये पहले गुवाहाटी में मिलूं या आप दिल्ली आ रही हैं.??

Pawan Kumar said...

ओढ़ाये थे तुमने जो शब्दों के कम्बल
रात भर जिस्म में उनसे गर्माहट रही
चनाब बहुत देर तक सांसों में बहती-उतरती रही ...!!
आहा......क्या बेहतरीन त्रिवेणी प्रस्तुत की ..... ! बहुत सुन्दर रचना.....

haidabadi said...

हरकीरत साहिबा
आदाब
आज शनिवार को "रविवार" देखने का मौका मिला
और आपका ब्लॉग भी कुछ अपने जाने पहचाने
दोस्तों के साथ आपके दीदार भी किये ख़ुशी हुई
मैं अक्सर यह सोचता रहा के आप कनाड़ा में हैं
और भी ख़ुशी हुई के आप तार्कीने वतन नहीं
अपने वतन में ही हैं
सलामत रहो ता क़यामत रहो

चाँद शुक्ला हदियाबादी
डेनमार्क

AKHRAN DA VANZARA said...

कवि सम्मेलन की उम्दा रिपोर्टिंग के लिए हार्दिक बधाई ..
आप ने तो हमे घर बैठे हुए ही सुखद एहसास की अनुभूति करवा दी ..'इक दर्द ' के बारे में जिज्ञासा हो रही है
कृपया बताएं ये कहाँ उपलब्ध है...??
---- राकेश वर्मा

RAJESHWAR VASHISTHA said...

इतने लम्बे अंतराल के बाद कोई मुझ जैसा मूर्ख ही बधाई देगा । रिपोर्ट की तो मुझ से पहले 71 लोग तारीफ कर चुके हैं...हाँ एक ज़िक्र किए बगैर मेरी बात पूरी नहीं होगी...आपने असमी कविता का अनुवाद बेहद जीवंत किया है...इतना अच्छा अनुवाद बरसों से नहीं पढा था.....शुभकामनाएँ ।