सोचती हूँ दिवाली
इस बार तुम आई तो
तुझे कहाँ रखूंगी ......
पिछले वर्ष की तरह
इस बार भी तुम आओगी
उसी नीम के पेड़ पर
जहाँ हर बार मैं तुम्हें
टांग देती हूँ लड़ियों में
दीवारों पर ,
कोने में उपजे कैक्टस पर
या काँटों की उस झाड़ पर
जो मन के किसी कोने में कहीं उपजी है
वर्षों से ......
ठूंठ दरख्त की टहनियों में
टांग दूंगी तुम्हें
और देखा करुँगी एकटक
कैसा लगता है
हरियाली के बिना
रौशनी का जहां ......
इस बार भी तुम आओगी
वही आंखों में
हजारों सवाल लिए
हाथों में मेंहदी ,
कलाइयों में चूडियाँ ,
माथे पे बिंदिया ,
महावर, रंगोली ,
वन्दनवार सब कहाँ है ....?
मैं फ़िर हौले से मुस्कुरा दूंगी
वही बेजां सी फीकी मुस्कराहट
जो हर बार तुम्हारे सामने परोस देती हूँ
मिठाई के थाल में
और कहती हूँ ......
''स्वागत है ".....
जानती हूँ इस बार भी तुम
चुरा लाओगी वही
रंगोली का लाल टीका
पड़ोसी के आँगन से
और जड़ दोगी मेरे माथे पे
आर्शीवाद स्वरुप
और कहोगी .....
"सदा सुहागिन रहो".....
वर्षों से तुम इसी तरह तो मुझे
जीना सिखलाती रही हो
कभी दीया बन, कभी बाती बन ,
कभी तेल बन ...
बस दूसरों के लिए जीना
सिखलाती रही हो ....
" स्वागत है दिपावली ....."
Thursday, October 15, 2009
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47 comments:
इस बार भी तुम आओगी
वही आंखों में
हजारों सवाल लिए
हाथों में मेंहदी ,
कलाइयों में चूडियाँ ,
माथे पे बिंदिया ,
महावर, रंगोली ,
वन्दनवार सब कहाँ है ....?
कितने सुंदर सुंदर भाव पिरोया है आपने अपनी कविता में दीवाली के साथ..बहुत अच्छा लगा..
जानती हूँ इस बार भी तुम
चुरा लाओगी वही
रंगोली का लाल टीका
पड़ोसी के आँगन से
और जड़ दोगी मेरे माथे पे
आर्शीवाद स्वरुप
और कहोगी .....
"सदा सुहागिन रहो".....
bahut sunder panktiyan hain yeh.........
bahut hi sunder kavita.....
aapko depaawali ki haardik shubhkaamnayen....
दीवाली की हार्दिक शुभकामनाएँ!!!
बेहतरीन सुन्दरता से बुना है मनोभावों को, वाह!!
सुख औ’ समृद्धि आपके अंगना झिलमिलाएँ,
दीपक अमन के चारों दिशाओं में जगमगाएँ
खुशियाँ आपके द्वार पर आकर खुशी मनाएँ..
दीपावली पर्व की आपको ढेरों मंगलकामनाएँ!
-समीर लाल ’समीर’
हरकीरत जी इस कविता की सबसे महत्वपूर्ण पंक्तियाँ यह हैं
जानती हूँ इस बार भी तुम
चुरा लाओगी वही
रंगोली का लाल टीका
पड़ोसी के आँगन से
और जड़ दोगी मेरे माथे पे
आर्शीवाद स्वरुप
और कहोगी .....
"सदा सुहागिन रहो".....
इन पंक्तियों के अनेक अर्थ हैं कि हम कितनी असुरक्षा से घिरे हैं ,मान्यतायें बदल रही है फिर भी दुख उन्ही परिभाषाओं मे साँस ले रहा है और यह अमानवीयता क्यों कि किसी का दुख किसी का सुख बन जाता है । दिवाली के इस रूप का भी स्वागत है ।
वर्षों से तुम इसी तरह तो मुझे
जीना सिखलाती रही हो
कभी दीया बन, कभी बाती बन ,
कभी तेल बन ...
बस दूसरों के लिए जीना
सिखलाती रही हो ....
बेहतरीन..
दीवाली की हार्दिक शुभकामनाएँ |
रेखाचित्रनुमा वक्तव्य सयास बांध लेते हैं, कुतूहल पैदा करते हैं। यादों के चिराग ख़ूबसूरती से जलाए हैं।
जी पहली बधाई, आपके ब्लॉग के नए मोहक, सुन्दर कलेवर के लिए, दूसरी बधाई, दीवाली की शायद सबसे सुन्दर रचना लिखने के लिए,....और तीसरी बधाई, आपके पूरे परिवार को दीवाली की अनगिन.....
दिपावली का स्वागत बहुत ही सुंदर ढ़ंग से किया गया है ...
दीपक का प्रतीक बहुत सुंदर है
आत्म मंथन के लिए , उत्थान के लिए ...
जलो मगर दीपक की तरह
वर्षों से तुम इसी तरह तो मुझे
जीना सिखलाती रही हो
कभी दीया बन, कभी बाती बन ,
कभी तेल बन ...
बस दूसरों के लिए जीना
सिखलाती रही हो ....
दिपावली आपके और आपके परिवार के लिए हर प्रकार की खुशहाली और समृद्धि लाए ।
"ठूंठ दरख्त की टहनियों में
टांग दूंगी तुम्हें
और देखा करुँगी एकटक
कैसा लगता है
हरियाली के बिना
रौशनी का जहां ......"
uff... itnaa marm kaise itni khoobsoorti se bunn paati ahin aap itni sundertaa se.... behad sudner rachnaa....
shubh deepawali :)
बेहद खूबसूरत बुनावट ! प्रारंभ की पंक्तियों ने बाँध लिया । आभार ।
श्रेष्ठता के पायदान पर नम्बर वन कविता। शुभ दीपावली।
बढ़ा दो अपनी लौ
कि पकड़ लूँ उसे मैं अपनी लौ से,
इससे पहले कि फकफका कर
बुझ जाए ये रिश्ता
आओ मिल के फ़िर से मना लें दिवाली !
दीपावली की हार्दिक शुभकामना के साथ
ओम आर्य
इस बार भी तुम आओगी
वही आंखों में
हजारों सवाल लिए
हाथों में मेंहदी ,
कलाइयों में चूडियाँ ,
माथे पे बिंदिया ,
महावर, रंगोली ,
वन्दनवार सब कहाँ है ....?
bahut khoob Harkirat ji!
आप सहित पूरे परिवार को दीवाली की हार्दिक शुभकामनाएँ.
जानती हूँ इस बार भी तुम
चुरा लाओगी वही
रंगोली का लाल टीका
पड़ोसी के आँगन से
और जड़ दोगी मेरे माथे पे
आर्शीवाद स्वरुप
बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण शब्दों का संयोजन के साथ अनुपम अभिव्यक्ति दीपावली की अनेकोनेक शुभकामनाओं सहित 'सदा'
जानती हूँ इस बार भी तुम
चुरा लाओगी वही
रंगोली का लाल टीका
पड़ोसी के आँगन से
और जड़ दोगी मेरे माथे पे
आर्शीवाद स्वरुप
और कहोगी .....
"सदा सुहागिन रहो".....
वर्षों से तुम इसी तरह तो मुझे
जीना सिखलाती रही हो
कभी दीया बन, कभी बाती बन ,
कभी तेल बन ...
बस दूसरों के लिए जीना
सिखलाती रही हो ....
जानती हूँ इस बार भी तुम
चुरा लाओगी वही
रंगोली का लाल टीका
पड़ोसी के आँगन से
और जड़ दोगी मेरे माथे पे
आर्शीवाद स्वरुप
और कहोगी .....
"सदा सुहागिन रहो".....
दीप पर्व आपकी रचनाशीलता को सदा आलोकित करता रहे.
हार्दिक शुभकामनाएँ!!!
मीनू खरे
"Haryali ke bina roshni ka jahan". Wah Harkeerat ji kya andaaz hai is duniya ko gahree need se jagane ka.
Harkirat ji,
Bahut hi khoobsurat rachna hai. Aap harr baar ek nayi misaal kaayam karte ho... Apni harr rachna se aap dil mein ek nayi jagah banaatey ho...
Shubh Deepawali.
Rabb twaanu lakh-2 khushiyan bakshey...
And thx for your comments :)
Regards,
Dimple
http://poemshub.blogspot.com
अपने वास्ते जीणा मरण
samaanaa ये raaj sadion
पहले जग ने jaanaa| हैप्पी DIWALI
दीपावली पर आपकी यह कविता पढ़कर अच्छा लगा। बहुत सुन्दर भाव और शब्द दिए हैं आपने। हाँ, यह ब्लाग का टेम्पलेट बदलने की प्रक्रिया कुछ जल्दी जल्दी ही करती हैं आप। वैसे पहले वाला टेम्पलेट भी बहुत खूबसूरत था।
दीपपर्व दीपावली की अनेनानेक शुभकामनाएं आपको !
यूं ही लिखती रहें…
-सुभाष नीरव
इस दीपावली कितने सुन्दर शब्दों के रंगो से यह रचना रची है।
वर्षों से तुम इसी तरह तो मुझे
जीना सिखलाती रही हो
कभी दीया बन, कभी बाती बन ,
कभी तेल बन ...
बस दूसरों के लिए जीना
सिखलाती रही हो .
स्वागत है दिपावली।
अलग ही अहसास हुआ आपकी इस रचना पढकर।
टेम्पलेट भी बहुत सुन्दर है।
दीवाली की हार्दिक शुभकामनाएँ!
उफ़्फ़्फ़...
पहेल तो ये कह दूँ कि ब्लौग क नया कलेवर जगमग कर रहा है...
और फिर नज़्म का पहलु, "हरकीरत-शैली" , कुछ अनूठी पंक्तियां जैसे कि "ठूंठ दरख्त की टहनियों में
टांग दूंगी तुम्हें और देखा करुँगी एकटक कैसा लगता है हरियाली के बिना रौशनी का जहां"
आपकी सर्वश्रेष्ठ नज़्मों मे से एक...इस दीपोत्सव का अलग-सा नजरिया....बहुत खूब!
पिछले वर्ष की तरह
इस बार भी तुम आओगी
उसी नीम के पेड़ पर
जहाँ हर बार मैं तुम्हें
टांग देती हूँ लड़ियों में
दीवारों पर ,
कोने में उपजे कैक्टस पर
या काँटों की उस झाड़ पर
जो मन के किसी कोने में कहीं उपजी है
वर्षों से ......
cactus aur kanton par tangna achcha bimb hai..
जानती हूँ इस बार भी तुम
चुरा लाओगी वही
रंगोली का लाल टीका
पड़ोसी के आँगन से
और जड़ दोगी मेरे माथे पे
आर्शीवाद स्वरुप
और कहोगी .....
"सदा सुहागिन रहो".....
baुत गहरे भाव हैं इन शब्दों के जिसे शायद पाठक से अधिक कवि ही समझ सकता है कि इस आशीर्वाद मे भी कभी कभी कितने दर्द छुपे होते है मगर इन त्यौहारों मे उन्हें ढाँपने का उपक्रम करते रहते हैं बहुत गहरे भाव लिये अभिव्यक्ति। आपको दीपावली की शुभकामनायें
Wishing you and your family a very happy, prosperous, and successful Deepawali. May this diwali bring all happiness sparkles to your life.
हरकीरत जी, दीपावली की हार्दिक शुभकामना, आपकी ये कविता हमारे लिए दीपावली का तोहफा है, कुछ पक्तियों ने तो दिल को छु लिया, "कैसा लगता है हरियाली के बिना रौशनी का जहा" वैसे मेरे लिए ये दीपावली शुभ है क्योंकि किसी न किसी तरह आपके संपर्क में तो आया !
हरकीरत जी ,ब्लॉग की दुनिया में नया हूँ, मैं सोच भी नहीं सकता था की यहाँ एक अलग इतनी बड़ी दुनिया है!
sunder abhivyakti..........आपको और आपके परिवार को दीपावली की मंगल कामनाएं.
"वर्षों से तुम इसी तरह तो मुझे
जीना सिखलाती रही हो
कभी दीया बन, कभी बाती बन ,
कभी तेल बन ..."
और कभी अमावस्या बन ....
..........................
बेह्तेरिन लिखा है, आपको और आपके सम्पूर्ण परिवार की दिवाली की हार्दिक शुभ कामनाएं .
Dipawali ki dheron shubkamnayen.
बहुत ही बढियां...
कोने में उपजे कैक्टस पर
या काँटों की उस झाड़ पर
जो मन के किसी कोने में कहीं उपजी है
वर्षों से ......
आपको दिवाली की हज़ारों शुभकामनायें. ये केक्टस मन के बगीचे में और ना उग पांये, यही कामना.
दीवाली का स्वागत आपको फीकी मुस्कान से न करना पड़े , ऐसी कामना है.
रचना मानवीय जीवन की गहरी संवेदनाओं को समेटे है.
बधाई नहीं दे पाऊंगा क्योंकि कहते हैं की
"दिल के छालों को कोई शायरी कहे तो परवाह नहीं ,
तकलीफ तो तब होती है ,जब कोई वाह-वाह करता है."
" behtarin , bahut hi accha laga ..sach to yahi hai ki aapki her ek post hi behtarin hoti hai ...aur intezar raheta hai aapki agali post ka herdum .."
----- eksacchai { AAWAZ }
http://eksacchai.blogspot.com
मैं फ़िर हौले से मुस्कुरा दूंगी
वही बेजां सी फीकी मुस्कराहट
जो हर बार तुम्हारे सामने परोस देती हूँ
मिठाई के थाल में
और कहती हूँ ......
''स्वागत है ".....
संवेदनशील लिखा है ......... दिल के दर्द को लिखा है ..........
ये दीपावली आपके जीवन में नयी नयी खुशियाँ ले कर आये .........
बहुत बहुत मंगल कामनाएं .........
dill se nikali hui bat bahut hi bhavpurn ...aapki rachan pad kar bahut achha lagta hai ...
ठूंठ दरख्त की टहनियों में
टांग दूंगी तुम्हें
और देखा करुँगी एकटक
कैसा लगता है
हरियाली के बिना
रौशनी का जहां ...
bahut sundar svagt. prkrti ke sath .
prkrti ke bina nkli bijli ki kya raounak .
abhar
मैं फ़िर हौले से मुस्कुरा दूंगी
वही बेजां सी फीकी मुस्कराहट
जो हर बार तुम्हारे सामने परोस देती हूँ
मिठाई के थाल में
और कहती हूँ ......
''स्वागत है ".....
कितनी बडी और कडवी सच्चाई...बहुत ही सुन्दर..लगता है, जैसे किसी पेन्टिंग को देख रही हूं..
वर्षों से तुम इसी तरह तो मुझे
जीना सिखलाती रही हो
कभी दीया बन, कभी बाती बन ,
कभी तेल बन ...
बस दूसरों के लिए जीना
सिखलाती रही हो ....
" स्वागत है दिपावली ....."
हम भी दीपावली का स्वागत आपके इन्ही शब्दों के साथ ही कर रहे हैं....................
आपको दीपावली और भाई-दूज की अनंत हार्दिक शुभकामनाएं.
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com
harkirat ji..
aap ne to diwali ko hamari aankhon ke samne khada kar diya...
bahut khubsurat hai aapki har ek pankti...
वर्षों से तुम इसी तरह तो मुझे
जीना सिखलाती रही हो
कभी दीया बन, कभी बाती बन ,
कभी तेल बन ...
बस दूसरों के लिए जीना
सिखलाती रही हो ....
" स्वागत है दिपावली ....
aap bahut khas hain is hindi rachna jagat me...
आपने अमृताप्रीतम की याद दिला दी ,जिसकी हर किताब पढ़ी मैंने !
आपके सुंदर लेखन के लिए शुभ कामनाएं !आपका सारा लेखन पढूंगी !
मेरे कविता सराहा आपने ,बहुत बहुत धन्यवाद !मेरी कमियां भी बताइयेगा !
हरकीरतजी,
उजास और उल्लास के इस पर्व में भी आपने नारी के अंतर्जगत की घनीभूत पीडा को अभिव्यक्त करके दीपावली के रंग बदल दिए हैं. आपकी इन हृदयस्पर्शी अनुभूतियों का कंदील समय के दरख्त और ठूंठ पर हमेशा लटका रहेगा ! प्रभावी अभिव्यक्ति, दीपावली पर अनुपम काव्य-कृति का अनूठा तोहफा !! बधाई !!
साभिवादन--आ.
aapka nazaria bahut pasand aaya
kabhi socha bhi nahi tha ki diwali ko koi aise bhi dekh sakta hai
bahut hi achha likha hai
-Sheena
गहरे भाव लिये नज़्म
बहुत ही बढियां
हार्दिक शुभ कामनाएं
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क्रियेटिव मंच
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जानती हूँ इस बार भी तुम
चुरा लाओगी वही
रंगोली का लाल टीका
पड़ोसी के आँगन से
और जड़ दोगी मेरे माथे पे
आर्शीवाद स्वरुप
और कहोगी ...
सुन्दर ही नही भावा पूर्ण लेखन है!
"सच में" (www.sachmein.blogspot.com )पर आप का आगमन प्रार्थनीय है,एक रचना को आषीश का इन्तेज़ार है!
बहुत प्यारे ढंग से आपने इस पर्व को याद किया !
last para is really amazing..
aap bahut achcha likhti hai .. :)
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